वीर भोग्या वसुंधरा:युद्ध से परहेज कभी नहीं रहा प्राचीन भारत को
भारतीय वीरता के सूत्र संकेत
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(ये अनुपमा संजीव के अनुरोध पर संकेत मात्र है,थोडा विस्तार बाद में करेंगे)
1- प्राचीनतम काल से भारत वीरों का राष्ट्र है .
2- यह प्रचार कि हिन्दू कभी बाहर आक्रमण नहीं करते थे, अंग्रेजी काल में रचित कल्पना है .
3-वैदिक काल से विश्व व्यापी युद्ध करते रहे हैं हम .
4- मान्धाता का शासन समस्द्त विश्व पर था :
यावद् उदेति सूर्यं, यावाद्याति अस्त्याचालम .
तत्सर्वं यौवानाश्वस्य मान्धातु : क्षेत्र मुच्यते
(सन्दर्भ के लिए देखें मेरी पुस्तक : कभी भी पराधीन नहीं रहा है भारत 🙂
5- मनु स्मृति , महाभारत , अर्थशास्त्र सहित शताधिक ग्रंथों में राज्य विस्तार की महिमा है .
6- विजित का जीवन और उपासना आदि बदलना पाप है और श्रेष्ठ राजा यह कभी .नहीं करते अतः हमने किसी का CONVERSION नहीं किया .
7- साम,दान,दंड और भेद से निरंतर राज्य विस्तार राज्यकर्ता का धर्म है.इनमे से दंड का अंग है युद्ध जो साम , दान और भेद के सफल न रहने पर अनिवार्य है
8- षाडगुण्य राजनीति का अंग है .
9- पुराण और मनुस्मृति में इन पर विशद विवेचना है .
10- अथर्व वेद में सम्राट , एकराट,सार्वभौम , चक्रवर्ती आदि राज्य प्रकार वर्णित हैं .
11-प्राचीनतम काल से अश्वमेध होता रहा है जो विश्व विजय का रूप है .
12- देवासुर संग्राम का गौरव पूर्ण वर्णन युद्ध के महत्व का परिचायक है .
13-विशाल सेनाएं सदा से थीं ,युद्ध ही प्रयोजन था .
14-अश्वमेध,वाजपेय,राजसूय:ये युद्ध के उपरांत सम्पादनीय यज्ञ हैं
15-व्यापार का विस्तार सेना के संरक्षण में ही संभव है अतः व्यापारी भी सेना रखते थे और राज्य का उन्हें संरक्षण भी प्राप्त था .
16-भीष्म पर्व (महाभारत) में युद्ध नीति का विस्तृत निरूपण है 17-याज्ञवल्क्य स्मृति , मनु स्मृति,शुक्र नीति ,अर्थ शास्त्र सभी में युद्ध शास्त्र भी भरा है .
18-सभी पुराण में ऐतिहासिक युद्धों के प्रामाणिक वर्णन हैं . मत्स्य,वायु,विष्णु,भागवत आदि पुराण द्रष्टव्य .
19- स्वयं रामायण (वाल्मीकि )में सेनाओं के प्रकार वर्णित हैं :मित्र,आटव,भृत्य,मौल जो क्रमशः मित्र,वनवासी,भाड़े के और मूल सैनिक हैं.ऊपर कहे गए सब ग्रंथों में इनका वर्णन है व्यापारियों की व्यापार को पोषित सेना को श्रेणी बल कहा गया है 20- पदाति (पैदल ) , अश्व , हस्ती और रथ के सैन्य बलों का विस्तार से वर्णन है .
21- साथ ही नौ बल (जल सेना ) और विमान बल (वायु सेना )का वर्णन भी वैदिक काल सेहै . यह विश्व का प्राचीनतम युद्ध वर्णन है और वह अति व्यवस्थित है .
22- जिसे नए नए सभ्य बने ख्रीस्त यूरोपीय जन ऐतिहासिक काल कहते है (हमारे लिए वैदिक काल ऐतिहासिक काल है ), उसमे भी समुद्रगुप्त से छत्रपति शिवाजी महाराज तक नौ बल और युद्ध पोतों की विराट परंपरा है,सातवाहनों,चोलों,चालुक्यों,पांड्यों , पल्लवों की विशाल नौसेनाएं रही हैं
23- तमिल संगम साहित्य में नौ सेनाओं का विस्तार वर्णित है.
24- चाणक्य ने अर्थशास्त्र में नौसेना अध्यक्ष के पद के गुण धर्म बताये हैं.उसके बहुत पहले महाभारत में भी नौसेना का वर्णन है .यवन लेखकों ने लिखा है कि संद्रोकोतास (जो वस्तुतः समुद्रगुप्त या अन्य गुप्त राजा है,चन्द्रगुप्त का काल इस से बहुत पूर्व का है )की सेना में १००० (एक हज़ार) युद्ध पोत थे .
25-पुष्पक,हिरन्यपुर और शुभ विमानों का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है .
26- स्वयं भगवती गंगा जब स्वर्ग से पृथ्वी पर आयीं .तब यक्ष और सिद्ध विमानों पर खड़े हो आकाश में उस दिव्य घटना के साक्षी थे,इसका प्रमाणिक विवरण रामायण के बालकाण्ड में महर्षि वाल्मीकि ने किया है.जो प्रत्यक्ष दर्शी का वर्णन है .
27- रावण और भगवान् राम के सन्दर्भ में ही नहीं,अन्यत्र भी विमानों का प्रमाणिक वर्णन है
28-हर्ष के समय भी बाणभट्ट ने एक विमान देखा था जिसका उल्लेख किया है
29- महाराज भोज ने समरांगण सूत्रधार में विमान का वर्णन किया है .
30-शस्त्रों का जितना विस्तृत वर्णन रामायण और महाभारत में है ,वैसा विश्व में कहीं प्राचीन साहित्य में नही है
31-युद्ध के नियमों का प्राचीनतम वर्णन केवल भारत में मिलता है ;महाभारत,शुक्र नीति,अर्थशास्त्र और अनेक पुराणों में.
32-वीरों की विशालतम संख्या भारत में ही रही है
33- युद्ध के व्यूहों की रचना का विस्तार से वर्णन प्राचीनतम काल से केवल भारत में है .
✍🏻रामेश्वर मिश्रा पंकज