वौ शिक्षक जो क्रांति पढाते थे, सचिन्द्र नाथ सान्याल

वो शिक्षक जो “क्रांति” पढ़ाते थे!
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भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन को “अहिंसक” रंग देने के प्रयास में कई मामले दबा देने पड़ते हैं। मुजफ्फरपुर कांड (1908) सुनाई देता है क्योंकि उससे खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी जुड़े थे। उसके थोड़े समय बाद का दिल्ली कांड (1912) थोड़ा कम सुनाई देता है। इसमें बसंत कुमार बिस्वास, आमिर चंद और अवध बिहारी को फांसी की सजा हुई थी। इस काण्ड में रास बिहारी बोस ने बम फेंका था। ऐसे ही कई मामलों को एक साथ जोड़कर पेशावर कांड (1922-27) नाम दिया जाता है। एक मामला कानपुर बोल्शेविक कांड (1924) का भी था। ऐसे सभी मामलों के साथ एक ख़ास बात ये थी कि इन सभी में छात्र जुड़े हुए थे। अब सवाल है कि क्रन्तिकारी अगर छात्र थे तो उनका शिक्षक कौन था?

ये सवाल हमें फ़ौरन सचिन्द्र नाथ सान्याल पर ले आता है। ये वो व्यक्ति थे जो चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, जतिंद्र नाथ जैसे क्रांतिकारियों के गुरु थे। जन्तिन्द्र नाथ ने बम बनाना भी इन्हीं से सीखा था। इन्होने 1913 में पटना में “अनुशीलन समिति” की एक शाखा की स्थापना की। गदर काण्ड की योजना में शामिल होने का जब फिरंगियों को पता चला तो सचिन्द्र नाथ सान्याल को 1915 में फरार होना पड़ा। रास बिहारी बोस के जापान फरार होने के बाद वो भारत के क्रांतिकारियों में सबसे वरिष्ठ थे। उन्हें भी जब पकड़ा गया तो बाकी क्रांतिकारियों की ही तरह अंडमान की सेलुलर जेल में डाला गया था। इसी दौर में उन्होंने अपनी आत्मकथा “बंदी जीवन” (1922) लिखी थी। वो थोड़े समय के लिए जेल से छोड़े गए, मगर जब उनकी क्रन्तिकारी गतिविधियाँ जारी रहीं, तो उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया था और उनकी बनारस की संपत्ति भी जब्त कर ली गयी थी।

भारत में क्रांति का नाम लेते ही जिस संगठन का नाम याद आता है वो है एचआरए (हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी)। सन 1922 में जब असहयोग आन्दोलन असफल हो चुका था, तभी इस संगठन के बनने की नींव पड़ चुकी थी। अक्टूबर 1924 में राम प्रसाद बिस्मिल के साथ सचिन्द्र नाथ सान्याल ने एचआरए बनाया। 31 दिसम्बर 1924 को इस संगठन का मैनिफेस्टो कई बड़े शहरों में बांटा गया था। “द रेवोलुशनरी” नाम के इस मैनिफेस्टो के लेखक सचिन्द्र नाथ सान्याल ही थे। सान्याल को काकोरी कांड में शामिल होने के लिए नैनी जेल में डाला गया था जहाँ से वो 1937 में छूटे। वो उन गिने चुने क्रांतिकारियों में से हैं जिन्हें दो दो बार कालापानी की सजा दी गयी हो।

जेल में ही उन्हें टीबी हो गया था जिसकी वजह से उन्हें आखरी दिनों में गोरखपुर जेल भेज दिया गया था। सन 1942 में उनकी मृत्यु हुई। तकनिकी रूप से देखा जाए तो सचिन्द्र नाथ सान्याल किसी स्कूल-कॉलेज के शिक्षक तो नहीं थे। उनके विचारों, या उनके सिखाये हुए का असर देखा जाए तो सरदार भगत सिंह की लिखी प्रख्यात सी पुस्तिका “व्हाई आई एम एन एथीस्ट” में भी सान्याल के विचारों का जिक्र आता है। जो लोग ये मानते हैं कि गाँधी की कांग्रेस ऐसे क्रांतिकारियों से अलग थी, उन्हें भी बताते चलें कि गाँधी और सान्याल के बीच चली लम्बी बहस (चिट्ठियों/लेखों के रूप में) 1920-24 के दौरान यंग इंडिया में छपी थी। मौलाना शौकत अली और कृष्ण कान्त मालवीय जैसे कांग्रेसी भी उन्हें हथियार और पैसे मुहैया करवाते थे।

बाकी जब शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को याद करने की बात चले तो ऐसे शिक्षकों को भी याद किया जाना चाहिए। ये परंपरागत विषय नहीं, क्रांति सिखाते थे और पढ़ाई पूरी करने पर डिग्री नहीं, जेल और फांसी मिलती थी। अपने छात्रों को इतिहास पढ़ाने के बदले इतिहास बन जाना सिखा देने वाले शिक्षकों को भी याद किया ही जाना चाहिए!
✍🏻आनन्द कुमार

 

 

 

 

 

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