शाहीन बाग, किसान घेराव, बंगाल हिंसा के बाद कश्मीर हिंसा से लग रहा मोदी सरकार पर बट्टा
कश्मीर से पलायन, बंगाल हिंसा, शाहीन बाग… घरेलू मोर्चे पर कैसे सरकार की छवि को लग रहा है बट्टा?
अमित शुक्ला |
कश्मीर में हिंदुओं की हत्याओं के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इसने 1990 की याद ताजा कर दी है।
Kashmir Protest; CAA Protest; WB Protest; Delhi Riots
हाइलाइट्स
कश्मीर में टारगेट किलिंग को लेकर सरकार पर हमलावर है पूरा विपक्ष
विदेश नीति में सरकार ने बजाया डंका, पर आंतरिक मोर्चे पर वो तेवर गुम
कश्मीर से हिंदुओं के पलायन, बंगाल हिंसा जैसी घटनाओं ने छवि पर डाला असर
Modi Government Image: कश्मीर में पिछले कुछ समय में आतंकियों ने चुन-चुनकर गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया है। हिंदुओं की टारगेट किलिंग (Target Killing) के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है। शाहीन बाग से शुरू हुई सुगबुगाहट, बंगाल हिंसा के वक्त चीखों में बदली और अब कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने का मौका दे दिया है। विपक्ष सरकार को घेरने में जुट गया है। हिंदुओं के मसलों पर आक्रामक रहने वाली पार्टी पर आरोप लगने लगे हैं। कश्मीर में हिंदुओं की दशा का जिक्र करते हुए भगवा पार्टी से सवाल पूछे जा रहे हैं कि वह कहां है। बेशक, फॉरेन पॉलिसी (Modi Foreign Policy) के मोर्चे पर मोदी सरकार ने डंका बजाया है। लेकिन, यह बात आंतरिक मामलों के प्रबंधन को लेकर नहीं कही जा सकती है। कश्मीर से हिंदुओं के पलायन की खबरें मनोबल तोड़ने वाली हैं। बंगाल में चुनावों के बाद हिंसा का नाच पूरे देश ने देखा। दिल्ली दंगे, CAA और NRC के विरोध में शाहीन बाग को बंधक बनाकर राजधानी की रफ्तार रोक देने की घटनाएं किसी से छुपी नहीं हैं। इसने घरेलू मोर्चे पर सरकार की छवि पर बट्टा लगाने का काम किया है।
कड़े फैसले लेने का दम भरती रही है सरकार
मोदी सरकार कड़े फैसले लेने का दम भरती रही है। उसने ऐसा किया भी है। कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाना, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी, कोरोना के दौरान देशबंदी जैसे कदम उसकी बानगी हैं। हालांकि, कश्मीर में टारगेट किलिंग रोकने, बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा पर अंकुश लगाने और शाहीन बाग जैसी घटनाओं पर उसके तेवर वैसे नहीं दिखे जिसके लिए वह जानी जाती है। इन घटनाओं ने सरकार की सख्त और आक्रामक वाली इमेज पर बट्टा लगाया है।
सीएए-एनआरसी पर सरकार ने नहीं दिखाए आक्रामक तेवर
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) और राष्ट्रव्यापी नागरिक रजिस्टर (NRC) बनाने के प्रस्तावों के खिलाफ देशभर में कई जगह प्रदर्शनों का दौर चला। दिसंबर 2019 में असम, दिल्ली, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में इसका तीखा विरोध शुरू हुआ। बाद में विरोध की आग देशभर में फैल गई। दिल्ली का शाहीन बाग इसका सिंबल बन गया था। प्रदर्शनकारियों ने महीनों इसे बंधक बनाकर राजधानी की सांसें रोक दी थीं। हालांकि, अपने रुख के उलट सरकार ने यहां एहतियात बरती। यहां तक सुप्रीम कोर्ट ने तब कह दिया था कि किसी को अपने अधिकारों के इस्तेमाल के लिए दूसरे के अधिकारों को कुचलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
शाहीन बाग की तर्ज पर दिल्ली के अन्य इलाकों में भी सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने मुख्य मार्गों पर जुटना शुरू किया था। हालत ऐसी हो गई थी कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से ठीक पहले राष्ट्रीय राजधानी में दंगे भड़क गए थे। जाफराबाद समेत दिल्ली के कई हिस्सों में ये दंगे शुरू हुए थे। हालांकि, सरकार ने इसे बहुत आक्रामक तरीके से हैंडल नहीं किया।
बंगाल चुनाव के बाद हिंसा पर भी कड़े रुख का रहा इंतजार
केंद्र सरकार का कुछ ऐसा ही रवैया पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में देखने को मिला। इस हिंसा में कई लोगों ने जान गंवाई। चुन-चुनकर लोगों का निशाना बनाया गया। हिंसा की जांच के आदेश भी दिए गए। लेकिन, जमीनी हकीकत यह है कि इसमें कसूरवार अब तब खुलेआम घूम रहे हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव घोषित होने के दिन हिंसा का दौर शुरू हुआ था। इसमें मुख्य रूप से टीएमसी विरोधियों को हिंसा और बर्बरता का सामना करना पड़ा। उनके घरों में आगजनी की गई। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ। यह और बात है कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने इसे लेकर बहुत कड़ा रुख अख्तियार नहीं किया।
कश्मीर मसले पर विरोध में खुले मुंह
अब कश्मीर मसले पर सरकार के खिलाफ विरोधियों के मुंह खुल गए हैं। दरअसल, आतंकियों ने पिछले कुछ समय में कश्मीर में चुन-चुनकर गैर-मुस्लिमों की हत्याएं की हैं। हत्याओं का यह दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते मंगलवार को आतंकियों ने कुलगाम में जम्मू के सांबा जिले की रहने वाली एक महिला शिक्षक सहित तीन लोगों की हत्या कर दी थी। 18 मई को आतंकियों ने उत्तरी कश्मीर के बारामूला में एक शराब की दुकान में घुसकर ग्रेनेड फेंका था। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। तीन अन्य घायल हो गए थे। 24 मई को श्रीनगर में आतंकियों ने एक पुलिसकर्मी सैफुल्ला कादरी की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके ठीक दो दिन बाद बडगाम में एक टीवी एक्ट्रेस अमरीन भट्ट की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 12 मई को आतंकियों ने कश्मीर के बडगाम जिले के चदूरा इलाके में कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर दी थी। इसके बाद से कश्मीरी पंडित सहमे हुए हैं। वो न केवल सरकार का विरोध करने लगे हैं बल्कि पलायन करने पर भी मजबूर हुए हैं। कश्मीर में सुरक्षा के मसले पर विपक्ष भी सरकार पर हमलावर है।
कैसे सरकार की छवि को लग रहा है बट्टा?
कश्मीर से हिंदुओं का पलायन और उनमें डर की भावना बैठना कतई अच्छी खबर नहीं है। यह आतंकियों की जीत है। वो यही चाहते थे। यह सरकार पर भी सवाल खड़े करता है। इससे पता चलता है कि वह अपने वादे को पूरा करने में कामयाब नहीं हुई है। कश्मीर की ताजा घटनाएं हों या बंगाल और दिल्ली दंगों की वारदातें, इसने सरकार के लिजलिजेपन को दिखाया है। ये सभी बीजेपी की छवि पर बट्टा लगाने वाली हैं।
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