सत्य की महिमा ही है सत्यनारायण की कथा

सत्यनारायण भगवान विष्णु के एक रूप हैं जिनकी पूजा हिंदू धर्म में की जाती है। सत्यनारायण भगवान की कथा उनकी महिमा और आशीर्वाद को वर्णित करती है।

विष्णु पुराण के अनुसार सत्यनारायण भगवान का जन्म  दक्षिण भारत में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम वैवस्वत मनु और शतरूपा था। इन्होंने अपने बाल्यकाल में ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया था । बाद में वेदों का अध्ययन करते हुए धर्म  ज्ञान प्राप्त किया था।

सत्यनारायण की कथा कल्पनिक नहीं है। यह पूर्व में राजा श्वेतकेतु ने संपन्न की थी। राजा श्वेतकेतु ने संतोष और समृद्धि के लिए सत्यनारायण भगवान की पूजा की थी। इस पूजा के समय भगवान सत्यनारायण ने राजा को आशीर्वाद दिया था। इस घटना का विस्तार सत्यनारायण कथा में है।

सत्यनारायण भगवान की कथा में पात्र भी कथा करते हैं वो कौन सी कथा थी.?
एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा में विवाद हुआ कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है ? तभी उनके बीच एक ज्योति स्तंभ प्रकट हुआ । ब्रह्मदेव और विष्णु देव ने तय किया कि उस ज्योति स्तंभ का आरंभ और अंत ढूंढने ब्रह्मदेव ऊपर और विष्णु जी नीचे दिशा की ओर जाएंगे  । विष्णु जितना भी नीचे गये , उस ज्योति स्तंभ का अंत न मिला । उसी तरह ब्रह्मा को भी ऊपर की तरफ उसका अंत नहीं मिला । रास्ते में ब्रह्मदेव को केतकी पुष्प मिला । ब्रह्मदेव ने केतकी से कहा कि जब मैं कहूँ कि मुझे इस ज्योतिस्तंभ का अंत मिल गया है तो तुम ‘हाँ’ कहना ।

जब ब्रह्मदेव  और विष्णुदेव मिले तो विष्णुजी ने कहा कि उन्हें उस ज्योति स्तंभ का अंत नहीं मिला । ब्रह्मदेव ने कहा कि मुझे ऊपर इसका अंतिम छोर मिल गया । केतकी पुष्प ने भी ब्रह्मदेव की हाँ में हाँ मिलाई । विष्णु भगवान ने ब्रह्मदेव को श्रेष्ठ मान लिया तभी ज्योतिस्तंभ अदृश्य हो गया और शिव जी प्रकट हो गए । उन्होंने ब्रह्मदेव को मिथ्या बोलने पर धिक्कारा और केतकी से कहा कि मिथ्या बोलने से तुम्हारा प्रयोग मेरी पूजा में नहीं होगा ।

फिर शिव जी ने विष्णु से कहा कि आपने सत्य बोला , अतः आज से आपको सत्यनारायण के नाम से जाना जाएगा ।

ये कथा शिव पुराण में वर्णित है ।

सत्यनारायण की कथा का क्या इतिहास है?
अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो ये माना जा सकता है कि “सत्यनारायण कथा” होगी। ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना प्रचलित नहीं था। हरि विनायक ने कभी 1890 के आस पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अनुवाद किया, हम लोग लगभग वही सुनते हैं। हरि विनायक की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी और वो दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थ‌े। कुछ तो आर्थिक कारणों से और कुछ अपने बेटों को अपना काम सिखाने को उन्होंने अपनी कीर्तन मंडली में अलग से कोई संगीत बजाने वाले नहीं रखे। उन्होंने अपने तीनों बेटों को इसी काम में लगा रखा था। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव को इसी कारण कोई ख़ास स्कूल की शिक्षा नहीं मिली। हाँ ये कहा जा सकता है कि संस्कृत और मराठी जैसी भाषाएँ इनके लिए परिवार में ही सीख लेना बिलकुल आसान था। ऊपर से लगातार दरबार जैसी जगहों पर आने जाने के कारण अपने समय के बड़े पंडितों के साथ उनका उठाना बैठना था। दामोदर हरि अपनी आत्मकथा में भी यही लिखते हैं कि दो चार परीक्षाएं पास करने से बेहतर शिक्षा उन्हें ज्ञानियों के साथ उठने बैठने के कारण मिल गयी थी।

आज अगर पूछा जाए तो हरि विनायक को उनके सत्यनारायण कथा के अनुवाद के लिए तो नहीं ही याद किया जाता। उन्हें उनके बेटों की वजह से याद किया जाता है। सर्टिफिकेट के आधार पर जो तीनों कम पढ़े-लिखे बेटे थे और अपनी पत्नी के साथ हरि विनायक पुणे के पास रहते थे। आज जिसे इंडस्ट्रियल एरिया माना जाता है, वो चिंचवाड़ उस दौर में पूरा ही गाँव हुआ करता था। 1896 के अंत में पुणे में प्लेग फैला और 1897 की फ़रवरी तक इस बीमारी ने भयावह रूप धारण कर लिया। ब्युबोनिक प्लेग से जितनी मौतें होती हैं, पुणे के उस प्लेग में उससे दोगुनी दर से मौतें हो रही थीं। तबतक भारत के अंतिम बड़े स्वतंत्रता संग्राम को चालीस साल हो चुके थे और फिरंगियों ने पूरे भारत पर अपना शिकंजा कस रखा था।

अंग्रेजों को दहेज़ में मिले मुंबई (तब बॉम्बे) के इतने पास प्लेग के भयावह स्वरुप को देखते हुए आईसीएस अधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैंड को नियुक्त किया गया। उसे प्लेग के नियंत्रण के तरीके दमनकारी थे। उसे साथ के फौजी अफसर घरों में जबरन घुसकर लोगों में प्लेग के लक्षण ढूँढ़ते और उन्हें अलग कैंप में ले जाते। इस काम के लिए वो घरों में घुसकर औरतों-मर्दों सभी को नंगा करके जांच करते। तीनों भाइयों को साफ़ समझ में आ रहा था कि महिलाओं के साथ होते इस दुर्व्यवहार के लिए वाल्टर रैंड ही जिम्मेदार है। उन्होंने देशवासियों के साथ हो रहे इस दमन के विरोध में वाल्टर रैंड का वध करने की ठान ली।

थोड़े समय बाद (22 जून 1887 को) रानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक की डायमंड जुबली मनाई जाने वाली थी। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव ने इसी दिन वाल्टर रैंड का वध करने की ठानी। हरेक भाई एक तलवार और एक बन्दूक/पिस्तौल से लैस होकर निकले। आज जिसे सेनापति बापत मार्ग कहा जाता है, वो वहीँ वाल्टर रैंड का इन्तजार करने वाले थे मगर ढकी हुई सवारी की वजह से वो जाते वक्त वाल्टर रैंड की सवारी पहचान नहीं पाए। लिहाजा अपने हथियार छुपाकर दामोदर हरि ने लौटते वक्त वाल्टर रैंड का इंतजार किया। जैसे ही वाल्टर रवाना हुआ, दामोदर हरि उसकी सवारी के पीछे दौड़े और चिल्लाकर अपने भाइयों से कहा “गुंडया आला रे!”

सवारी का पर्दा खींचकर दामोदर हरि ने गोली दाग दी। उसके ठीक पीछे की सवारी में आय्रेस्ट नाम का वाल्टर का ही फौजी एस्कॉर्ट था। बालकृष्ण हरि ने उसके सर में गोली मार दी और उसकी फ़ौरन मौत हो गयी। वाल्टर फ़ौरन नहीं मरा था, उसे ससून हॉस्पिटल ले जाया गया और 3 जुलाई 1897 को उसकी मौत हुई। इस घटना की गवाही द्रविड़ बंधुओं ने दी थी। उनकी पहचान पर दामोदर हरि गिरफ्तार हुए और उन्हें 18 अप्रैल 1898 को फांसी दी गयी। बालकृष्ण हरि भागने में कामयाब तो हुए मगर जनवरी 1899 को किसी साथी की गद्दारी की वजह से पकड़े गए। बालकृष्ण हरि को 12 मई 1899 को फांसी दी गयी।

भाई के खिलाफ गवाही देने वाले द्रविड़ बंधुओं का वासुदेव हरि ने वध कर दिया था। अपने साथियों महादेव विनायक रानाडे और खांडो विष्णु साठे के साथ उन्होंने उसी शाम (9 फ़रवरी 1899) को पुलिस के चीफ कांस्टेबल रामा पांडू को भी मारने की कोशिश की मगर पकड़े गए। वासुदेव हरि को 8 मई 1899 और महादेव रानाडे को 10 मई 1899 को फांसी दी गयी। खांडो विष्णु साठे उस वक्त नाबालिग थे इसलिए उन्हें दस साल कैद-ए-बामुशक्कत सुनाई गयी।

मैंने स्कूल के इतिहास में भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ते वक्त दामोदर चापेकर, बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर की कहानी नहीं पढ़ी थी। जैसे पटना में सात शहीदों की मूर्ती दिखती है वैसे ही चापेकर बंधुओं की मूर्तियाँ पुणे के चिंचवाड में लगी हैं। उनकी पुरानी किस्म की बंदूकें देखकर जब हमने पूछा कि ये क्या 1857 के सेनानी थे? तब चापेकर बंधुओं का नाम और उनकी कहानी मालूम पड़ी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को अहिंसक साबित करने की जिद में शायद इनका नाम किताबों में शामिल करना उपन्यासकारों को जरूरी नहीं लगा होगा। काफी बाद में (2018) भारत सरकार ने दामोदर हरि चापेकर का डाक टिकट जारी किया है।

“बाकी इतिहास खंगालियेगा भी तो चापेकर के किये अनुवाद से पहले, सत्यनारायण कथा के पूरे भारत में प्रचलित होने का कोई पुराना इतिहास नहीं निकलेगा। चापेकर बंधुओं को किताबों और फिल्मों आदि में भले कम जगह मिली हो, धर्म अपने बलिदानियों को कैसे याद रखता है, ये अगली बार सत्यनारायण की कथा सुनते वक्त जरूर याद कर लीजियेगा। धर्म है, तो राष्ट्र भी है!”

सत्यनारायण की कथा का क्या इतिहास है?
प्रश्न कठिन है क्योंकि ज्ञान सही ढंग से लेना एवम देना चाहिए क्योंकि गलत ज्ञान से लोग ऐसे ही भ्रमित हो जाते हैं जैसे कि मुझसे पहले एक सनातन धर्मी भाई ने इस प्रश्न के उत्तर में कुछ अपशब्द कहे हैं, इस फलदायी कथा के संबंध में। कुछ बातें बुजुर्गों से लिया है, कुछ मौलिकता का आश्रय लिया है, कुछ सहायता गूगल से भी ली है,

शास्त्रों में कहा गया है कि सत्यनारायण कथा कराने से हजारों साल तक किए गए यज्ञ के बराबर फल मिलता है। साथ ही सत्यनारायण कथा सुनने को भी सौभाग्य की बात माना गया है।

भगवान सत्यनारायण।

किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले या फिर मनोकामना की पूर्ति होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनाई जाती है। आपने भी इस कथा में हिस्सा लिया होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सत्यनारायण व्रत की कथा क्यों कराई जाती है? इसके क्या लाभ बताए गए हैं? यदि नहीं तो हम आपको इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं। सत्य को नारायण के रूप में पूजने को ही सत्यनारायण की पूजा कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि इस संसार में नारायण ही एकमात्र सत्य हैं, बाकी सब माया है। सत्य में ही यह संसार समाया हुआ है। सत्य के बिना यह संसार कुछ भी नहीं होगा।

कहते हैं कि सत्यनारायण कथा सुनने वाले व्यक्ति को व्रत जरूर रखना चाहिए। इससे श्री हरि विष्णु द्वारा जीवन के सभी कष्टों को हर लिए जाने की बात कही गई है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि सत्यनारायण भगवान विष्णु के ही रूप हैं। ऐसे में सत्यनारायण कथा कराने और सुनने से भक्त पर विष्णु जी की भी कृपा बरसने की मान्यता है। इससे जीवन में सुख-शांति आने की बात कही गई है।

बता दें कि पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण कथा कराना काफी शुभ माना गया है। कहते हैं कि इस दिन सत्यनारायण कथा बेहद ही खास होती है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की विशेष कृपा मिलती है। साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ केले के पेड़ के नीचे या फिर घर के ब्रम्हा स्थान पर कराना उत्तम माना गया है। सत्यनारायण कथा के भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी अश्वय शामिल करना चाहिए। सत्यनारायण कथा भक्त अपने परिजनों, पड़ोसियों और अन्य भक्तों के साथ सुननी चाहिए। इससे जीवन में समृद्धि आने की मान्यता है।

सत्यनारायण की कथा स्कन्दपुराण के रेवाखंड से संकलित की गई है. इसके मूल पाठ में संस्कृत भाषा के करीब 170 श्लोक हैं जो पांच अध्यायों में बांटे गए हैं जिनका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं. इसके पहले अध्याय के बारे में थोड़ा विस्तार से जानें तो ऋषि शौनक और उनके साथी नैमिष वन में रहने वाले महर्षि सूत के आश्रम में पहुंचते हैं. यहां पर बातों-बातों में शौनक महर्षि सूत से पूछ बैठते हैं कि इंसान को इच्छा पूर्ति और उसके बाद स्वर्ग का सुख पाने के लिए अपने जीते-जी क्या करना चाहिए. यहां पर जवाब में सूत जी भी शौनक ऋषि को एक कहानी सुनाते हैं. महर्षि सूत, ऋषि शौनक को बताते हैं कि ऐसा ही सवाल एक बार महर्षि नारद ने भगवान् विष्णु से किया था. उसके जवाब में नारद जी को भी एक कहानी सुनने को मिली थी जो उन्हें विष्णु जी ने सुनाई थी. इस कहानी में विष्णु भगवान सांसारिक कष्टों से मुक्ति के लिए अपने ही एक रूप सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजा करने को कहते हैं.

सत्यनारायण कथा क्यों की जाती है ? और सत्यनारायण कथा का उद्भव कैसे हुआ?
सत्यनारायण कथा हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना का एक प्रमुख अनुष्ठान है, जिसे घर या मंदिर में विशेष अवसरों, शुभ कार्यों या मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। यह कथा भगवान सत्यनारायण (भगवान विष्णु का एक रूप) को समर्पित है, और इसके पीछे कई धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्य होते हैं।

सत्यनारायण कथा क्यों की जाती है?

धार्मिक आस्था और श्रद्धा: सत्यनारायण कथा की जाती है ताकि भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त हो और जीवन में सुख, समृद्धि, शांति, और संतोष प्राप्त हो सके।
मनोकामनाओं की पूर्ति: यह माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से इस कथा का व्रत करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से जब किसी की इच्छा या परेशानी हो, तब यह कथा करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
सकारात्मक ऊर्जा: कथा करने से परिवार में सकारात्मकता, शांति और सौहार्द बना रहता है। यह घर के वातावरण को पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
पुन्य और आशीर्वाद प्राप्ति: यह माना जाता है कि सत्यनारायण कथा सुनने और करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विशेष अवसरों पर: सत्यनारायण कथा को अक्सर शादी, गृह प्रवेश, जन्मदिन, नई यात्रा या अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत के समय किया जाता है, ताकि भगवान का आशीर्वाद बना रहे और सभी कार्य शुभ फल प्रदान करें।
सत्यनारायण कथा का उद्भव कैसे हुआ?

सत्यनारायण कथा का उल्लेख मुख्यतः स्कंद पुराण के रेवाखंड में मिलता है। कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने स्वयं नर-नारायण के रूप में इस कथा का उद्घाटन किया था। इसका पहला जिक्र राजा हरीशचंद्र की कथा में आता है, जो अपनी कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए सत्यनारायण की पूजा करते हैं और उन्हें हर प्रकार की बाधा से मुक्ति मिलती है।

कथा में पांच मुख्य कथाएँ होती हैं, जिनमें अलग-अलग पात्र होते हैं, जो सत्यनारायण व्रत और पूजा करने से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति पाते हैं। ये कथाएँ बताती हैं कि सत्यनारायण व्रत से कैसे व्यक्ति को आशीर्वाद और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, चाहे वह गरीब हो या अमीर, छोटा हो या बड़ा।

निष्कर्ष: सत्यनारायण कथा का उद्देश्य जीवन में शांति, समृद्धि, और सुख लाना है। यह पूजा भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक पवित्र मार्ग है, और इसका उद्भव प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पुराणों में निहित है।

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सत्यनारायण भगवान की कथा में हमें बताया जाता हैं कि इन लोगों ने कथा सुनी और इनके साथ ऐसा हुआ तो वो कौन सी कथा थी, जिसे उन लोगों ने सुना था?
सत्य नारायण की कथा में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि किसी ने कोई कथा सुनीथी ।भगवान विष्णु जी नारद से कहते हैं कि जो कोई सत्य नारायण का व्रत पूजन करेगा एवं भगवान के नाम का सुमिरन कर उनकी कथाओं को सुनेगा ।उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी ।अब यहां ध्यान देने की बात है कि भगवान की कोई एक कथा की बात नहीं हो रही ।बात हो रही है उनकी कथाओं की तो भगवान की हजारों कथायें है ।किसी भी कथा को सुन सकते हैं ।आगे वैश्य जिनका नाम साधू है को श्राप दिया था कि तुमने झूँठ बोलने का काम किया है तो तुझे महान दारुण दुख मिले ।इसके बाद साधू नाम का वैश्य जब राजा की जेल से छूट कर बहुत सा धन लेकर अपने नगर जाने की तैयारी कर रहा थ

सत्यनारायण की कथा क्या वास्तव मनगढ़ंत और लोगों को डराने के उद्देश्य से बनाई गई है?
यह कथा , स्कंदपुरण के रेवाखंड में आती है । इसके ५ अध्याय हैं।

अब पहले यह जान लें कि इस कथा का वास्तविक उद्देश्य क्या है? अथवा , यह कथा हमें क्या शिक्षा देती है? हम यहॉ , इस कथा का वर्णित , फलादेश का किसी पंडित की तरह यहॉ नहीं करेंगे।क्यों कि वह तो धर्म प्राण भक्तों की बात हो जाएगी ।

इस कथा का हम विश्लेषण critical analysis करेंगे। पॉच कथाओं का वर्णन है इसमें। कथाओं में , सत्य बोलने पर ही ज़ोर दिया गया है। सत्य के प्रभाव से ही सब काम सिद्ध होते हैं। झूठ से काम नहीं चलता । (देखें , अंतिम कथा , बनिया , कलावती और लीलावती ) । कथा के अधिष्ठाता देवता का नाम भी सत्यनारायण है। इससे संदेश यही जाता है कि ,

सत्यनारायण भगवान की कथा की मानता रखकर क्या आपके द्वारा मांगी हुई अभीष्ट मांग पूरी हुई है, क्या आप शेयर कर सकते है?
सत्यनारायण भगवान याने विष्णु जी की पूजा होती है। इसकी विधि बहुत ही आसान है ,इसलिए ये बहुत प्रचलित है। हमारे परिवार में विवाह के अगले दिन सत्यनारायण की कथा कराई जाती है, नए घर मे प्रवेश की पूजा में भी इस कथा को पढ़ा जाता है।

व्यक्तिगत रूप से मुझे भगवान से मन्नत वगैरह करके मांगना गलत लगता है।ये मांगें की स्वास्थ्य और योग्यता दें ताकि जिस लायक हूँ वो प्राप्त हो।

सत्यनारायण भगवान की पूजा और सत्यनारायण पूजा की व्रत कथा ये दोनों अलग अलग चीजें हैं। पर चूंकि साथ में होती हैं तो लोग इस बात को नही समझ पाते।

हमारे घर के सामने ताऊजी रहते थे वो हर पूर्णिमा पर ये पूजा और कथा पाठ करते थे। हम छोटे बच्चों को वो सा

सत्यनारायण भगवान की कथा की मानता रखकर क्या आपके द्वारा मांगी हुई अभीष्ट मांग पूरी हुई है, क्या आप शेयर कर सकते है?
सवाल से थोड़ा हटकर जवाब देने के लिए क्षमा चाहता हूं।

सत्यनारायण की कथा आखिर है कौन सी , मैं आज तक यही नहीं समझ पाया।

मेरे घर में पंडित जी ने कई बार सत्यनारायण की कथा पढ़ी है और खुद मैंने भी ३-४ बार यह कथा पढ़ी है।

इस कथा के हर अध्याय में यही बताया जाता है कि फलाने भक्त ने सत्यनारायण की कथा पढ़ी /सुनी और उनकी यह मनोकामना पूर्ण हुई। हर अध्याय में बस यही है कि किसको कथा सुनकर क्या लाभ हुआ या कथा का अपमान करने पर क्या हानि हुई।

पर वो कथा है क्या ? कथा तो सुनाते ही नहीं पंडित जी। न ही किताब में कथा लिखी है। पूरी किताब बस “testimonials” का पुलिंदा है। पर जिस कथा के इतने testimonials हैं वह कथा आखिर है क्या

सत्यनारायण कथा क्यों की जाती है ? और सत्यनारायण कथा का उद्भव कैसे हुआ?
हिंदू धर्म में सत्यनारायण कथा बहुत प्रचलित है, यह व्रत पूर्णमासी के दिन किया जाता है, भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए भगवान विष्णु का ही एक रुप स्वरुप है जो सत्य नारायण के नाम से प्रचलित है ,सत्यनारायण का व्रत पूर्णमासी के दिन किया जाता है। वैसे किसी भी दिन सत्यनारायण का व्रत किया जा सकता है ।लेकिन पूर्णमासी सत्यनारायण का प्रिय दिन है, क्योंकि चंद्रमा इस दिन पूर्ण कलाओं के साथ उदित होता है और पूर्ण चंद्र को अर्घ देने से व्यक्ति के जीवन में पूर्णता आती है ,किसी भी कार्य के लिए अगर वह सत्यनारायण भगवान का व्रत करने का संकल्प करता है तो उसे कार्य सिद्धि होती है ।

अब आते हैं सत्यनारायण भगवान का

सत्यनारायण व्रत कथा किस पुराण से ली गई है? यह कथा मध्य भारत में इतनी लोकप्रिय क्यों है?
सत्यनारायण व्रत कथा स्कन्दपुराण के रेवाखंड से ली गई है. इसमें संस्कृत के 170 श्लोक हैं जो पाँच अध्यायों में बाँटे गए हैं।

कथा का माहात्म्य

सत्यनारायण व्रत कथा असल में ईश्वर को धन्यवाद देने का सबसे आसान तरीका है। यह कथा अत्यन्त सरल, कम खर्चीली है। इस कथा के पात्र गण स्वयं अपने आर्थिक सामजिक स्थिति का परिचय देते हुए किसी भी स्तर के व्यक्ति द्वारा इस व्रत कथा की पात्रता प्रदान करते हैं। श्री सत्यनारायण व्रत दुःख-शोक दूर करने वाला, धन बढ़ाने वाला, सौभाग्य और संतान का दाता, सर्वत्र विजय दिलाने वाला अनुपम कथा है।

यह कथा गृहस्थ जीवन की सभी समस्याओं के समाधान के रास्ते खोलता है, क्योंकि भक्त अपने गृहस्थी

सत्यनारायण व्रत कथा का मूल तथ्य क्या है?
सत्यनारायण व्रत कथा का मूल तथ्य भगवान विष्णु की उपासना और उनकी कृपा प्राप्त करने का महत्व है। यह कथा मुख्य रूप से सत्य और धर्म का पालन करने, भगवान की भक्ति करने, और जीवन में सत्यनिष्ठा बनाए रखने पर केंद्रित है। सत्यनारायण व्रत कथा के माध्यम से यह सिखाया जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से भगवान सत्यनारायण की पूजा करता है, वह जीवन के सभी कष्टों और बाधाओं से मुक्त होकर सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त करता है।

कथा के मुख्य तथ्य:

भगवान विष्णु की पूजा: सत्यनारायण भगवान विष्णु का एक रूप हैं। यह व्रत उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसका पालन करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और घर में समृद्धि आ
सत्यनारायण की कथा का क्या इतिहास है?
धर्मांनंद कोशाम्बी लिखते हैं कि, जिस तरह महाभारत का इस्तेमाल एक माध्यम के तौर पर इसलिए किया गया कि लोग युद्ध की कहानी सुनने आते थे। उसी तरह कृष्ण भी तभी लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं, जब उनकी भक्ति – संप्रदाय की लोकप्रियता बढ़ रही हो। लेकिन बिना किसी छिपाव के लोगों को अपने सांचे में नए सिरे से ढालने के लिहाज से वह उस समय तक अधकचरी हाल में था। नारायण संप्रदाय में सफाईतौर पर कई उपासना – परंपराओं के बीच तालमेल बैठाया गया था। नारायण से सरोकार कायम करने के लिए मूलरूप में अलग पहचान रखने वाली कई उपासना – परंपराओं को एक ही उपासना – परंपरा के रूप में स्वीकार कर लिया गया। इस कोशिश के तहत कई लोककथाओं को कृष्

सत्यनारायण की कथा क्या वास्तव मनगढ़ंत और लोगों को डराने के उद्देश्य से बनाई गई है?
प्रश्न करता जी से पूछना चाहूंगी कि सत्यनारायण कथा में डरावना क्या है ।और इसमें मनगढ़ंत कहानी क्या है। हमारे धर्म शास्त्र में चार वेद 18 पुराण और कितने ही उपनिषद अलग-अलग ऋषि-मुनियों ने लिखे हुए हैं वेद तो स्वयं ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुए हैं ।तब इसमें शंका किस बात की है। हमारे जो ऋषि मुनी अनुवाद कर गये, व्याख्या कर गए उन्हीं में से कुछ सारांश में ऐसी कथाएं बना दी गई जिसे हम कथा के रूप में बाचते हैं रही बात सत्यनारायण कथा की तो सत्यनारायण कथा में विष्णु पुराण नारायण पुराण इन में अलग-अलग जगहों पर इनके बारे में आपको सत्यनारायण कथा के बारे में मिल जाएगा ।सत्यनारायण कथा में अनेकों कहानियां जुड़ सकत

सत्यनारायण कौन है?
हमारे सनातन धर्म में हम गुरुवार के दिन को भगवान सत्यनारायण की पूजा अर्चना करते है । गुरूवार का दिन इनकी पूजा और व्रत का मुख्य दिन माना जाता है | हमारे हिन्दू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित व्रत की संज्ञा इसे प्राप्त है ।सत्यनारायण भगवान विष्णु के सत्य गुण का रूप है । नारायण यानि विष्णु को ही इस ब्रहमांड का सत्य माना गया है , उनके अलावा सब माया है | जो व्यक्ति सच्च पर जीवन जीता है उन्हें सत्यनारायण की कृपा प्राप्त होती है ।

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