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Uttarakhand UCC: नैनीताल हाई कोर्ट की टिप्पणी- निजता के हनन की आड़ में नहीं दी जा सकती आत्मसम्मान की बलि
नैनीताल हाई कोर्ट ने यूसीसी के प्रावधानों पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि निजता के हनन की आड़ में किसी व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि नहीं दी जा सकती। खासकर तब जब वह लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मा बच्चा हो। न्यायालय ने पूछा कि ऐसे रिश्तों को विनियमित करने में क्या गलत है। बता दें कि उत्तराखंड में 27 जनवरी को यूसीसी लागू हुआ था।कोर्ट ने यूसीसी के प्रावधान पर सुनवाई करते हुए की टिप्पणी।

उत्तराखंड में यूसीसी के कुछ प्रावधानों को हाई कोर्ट में दी गई थी चुनौती
निजता के हनन की आड़ में नहीं दी जा सकती आत्मसम्मान की बलि- कोर्ट
जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने यूसीसी के प्रवधानों को चुनौती देती याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि निजता के हनन की आड़ में किसी व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि नहीं दी जा सकती। खासकर तब, जब वह लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मा बच्चा हो। न्यायालय ने पूछा कि ऐसे रिश्तों को विनियमित करने में क्या गलत है।

यूसीसी में परिभाषित “निषिद्ध रिश्तों की डिग्री” के अंतर्गत आने वाले रिश्तेदारों से विवाह करने के लिए मुसलमानों के बीच रीति-रिवाजों और उपयोग के सवाल पर सालिसिटर जनरल ने न्यायालय का ध्यान संहिता की अनुसूची एक और दो की ओर आकर्षित किया।
यह “निषिद्ध रिश्तों की डिग्री” को परिभाषित करती है। इस अनुसूची के अनुसार, कोई व्यक्ति अपनी मां, सौतेली मां, बेटी, बेटे की विधवा और अन्य करीबी रिश्तेदारों से विवाह नहीं कर सकता। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि करीबी रिश्तेदारों के बीच इस तरह की शादियों को कानून द्वारा विनियमित किया जाना चाहिए और किसी भी सभ्य समाज में निषिद्ध होना चाहिए।

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