सैफू का मेडिकल बिल: ओपन बिलिंग से बंद हो जायेंगें छोटे अस्पताल
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Saif Ali Khan के मेडिक्लेम अप्रूवल पर डॉक्टरों के संगठन ने जताई चिंता, इस वजह से छिड़ रही है बहस
बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान (Saif Ali Khan) पर 16 जनवरी की रात हमला हुआ था। इस मामले का आरोपी पकड़ा जा चुका है लेकिन यह केस अलग-अलग वजह से सुर्खियों में बना हुआ है। जब सैफ लीलावती अस्पताल से घर वापस लौटे थे सियासत तेज हो गई कि वह इतने फिट कैसे नजर आ रहे हैं। इसके बाद उनके मेडिक्लेम अप्रूवल पर बहस अभी तक खत्म नहीं हुई है।
By Sahil Ohlyan
Edited By: Sahil Ohlyan
Updated: Sun, 26 Jan 2025 05:09 PM (IST)
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सैफ अली खान के मेडिक्लेम पर उठे सवाल (Phot Credit- Instagram)
HighLights
सैफ अली खान के मेडिक्लेम अप्रूवल पर विवाद चल रहा है
डॉक्टरों के संगठन ने बीमा कंपनी पर सवाल खड़े किए हैं
संगठन की ओर से पत्र लिखकर मामले पर जंता जताई गई है
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता सैफ अली खान (Saif Ali Khan) पर जानलेवा हमला 16 जनवरी की रात ढाई बजे के करीब हुआ था। एक्टर पर हमला करने वाला संदिग्ध पुलिस की हिरासत में है। लीलावती अस्पताल में सैफ का इलाज हुआ और वह अब घर वापस आ चुके हैं। आज उन्हें अटैक के बाद पहली बार शहर में अपनी पत्नी के साथ देखा गया। अभिनेता पर हुए हमले के मामले पर कई अलग-अलग विवाद खड़े हो चुके हैं। इन दिनों उनके मेडिक्लेम अप्रूवल पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
लीलावती अस्पताल में सैफ अली खान का इलाज चल रहा था, तो उनकी बीमा कंपनी ने तुरंत 25 लाख रुपये (Saif Ali Khan Health Insurance Claim) का अप्रूवल दे दिया था। अब सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि इतनी बड़ी रकम की मंजूरी इतनी जल्दी कैसे दे दी गई। दरअसल, आम व्यक्ति के मामले में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी ज्यादा तेजी से काम नहीं करती है और अप्रूवल के लिए भी कागजी कार्रवाई को पहले पूरा किया जाता है।
डॉक्टरों के संगठन ने बीमा कंपनी पर खड़े किए सवाल
इस विवाद पर अब डॉक्टरों के संगठन मेडिकल कंसल्टेंट एसोसिएशन (AMC) ने बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण को पत्र लिखकर चिंता जताई है। संगठन की ओर से कहा गया है कि इंश्योरेंस कंपनी ने सैफ अली खान के सेलिब्रिटी होने के कारण उनके साथ स्पेशल रवैया अपनाया है। वहीं, कंपनी अन्य ग्राहकों के साथ इस तरह का व्यवहार बिल्कुल भी नहीं करती है। उन्होंने इस बारे में भी जानकारी दी कि ज्यादातर पॉलिसीधारकों को कंपनी की ओर से शुरुआत में केवल 50 हजार की मंजूरी दी जाती है।
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Photo Credit- Instagram
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एसोसिएशन के बयान में यह भी कहा गया है कि यह एक परेशान करने वाला उदाहरण है, जहां पॉपुलर हस्तियों को बीमा कंपनियां उच्च कैशलेस इलाज की सीमाएं प्रदान करती हैं। वहीं, आम आदमी अपर्याप्त कवर की कमी का सामना करता है। संगठन का मानना है कि इस तरह की घटना समाज में अनुचित असमानता को पैदा करती है। डॉक्टरों के संगठन का कहना है कि बीमा कंपनियों को सभी ग्राहकों को मेडिक्लेम अप्रूवल उचित ढंग से देना चाहिए। सेलिब्रिटी स्टेट्स के आधार पर किया जाने वाला अलग व्यवहार सही नहीं है।
Photo Credit- Instagram
संगठन ने उठाई मामले के जांच की मांग
डॉक्टरों के संगठन ने अपने पत्र में आईआरडीएआई से मामले में जांच करने की मांग की है। साथ ही, यह अनुरोध किया है कि सभी ग्राहकों के साथ एक जैसा व्यवहार करना चाहिए। चाहे फिर उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में अंतर ही क्यों न हो।
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खत्म हो जाएंगे छोटे अस्पताल… सैफ अली खान के हॉस्पिटल बिल पर सवाल उठा डॉक्टर ने कर दी बड़ी भविष्यवाणी
बॉलीवुड ऐक्टर सैफ अली खान के 35.95 लाख रुपये के अस्पताल के बिल के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती कीमतों और बीमा पॉलिसियों पर बहस छिड़ गई है। डॉक्टरों ने छोटे अस्पतालों के खिलाफ बीमा कंपनियों की नीतियों और आम आदमी पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ पर सवाल उठाए हैं
सैफ अली खान के अस्पताल बिल ने स्वास्थ्य सेवाओं पर बहस छेड़ी
डॉक्टरों ने महंगे अस्पतालों की ओपन बिलिंग सिस्टम पर सवाल उठाए
बीमा कंपनियों की नीतियों से छोटे अस्पतालों पर खतरा बढ़ रहा है
नई दिल्ली: सैफ अली खान के 35.95 लाख रुपये के अस्पताल के बिल पर बहस छिड़ गई है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती कीमतों और बीमा पॉलिसी पर सवाल उठ रहे हैं। मुंबई के एक सर्जन ने बताया है कि कैसे बीमा कंपनियां 5-स्टार और छोटे अस्पतालों के लिए अलग-अलग पॉलिसी अपनाती हैं। इससे मरीजों के इलाज और खर्च पर बहुत दबाव पड़ता है। एक डॉक्टर की पोस्ट शेयर करते हुए हृदय रोग विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा ने लिखा, ‘इस तरह बीमा कंपनियां छोटे अस्पतालों को खत्म कर रही हैं। मुझे यकीन है कि कुछ सालों बाद सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल ही बचेंगे। इलाज का खर्च बहुत ज्यादा होगा। मेडिक्लेम का प्रीमियम भी आसमान छुएगा।’
बॉलीवुड स्टार सैफ अली खान बांद्रा स्थित अपने घर पर चाकू से हमले के बाद लीलावती अस्पताल में भर्ती हुए थे। उन्हें कई चोटें आई थीं। उनके बीमा प्रदाता ने कैशलेस इलाज के लिए 25 लाख रुपये मंजूर किए, लेकिन बाकी का क्लेम अभी अंतिम बिलिंग का इंतजार कर रहा है। इस घटना ने इलाज की ऊंची लागत और आम आदमी पर इसके असर पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मुंबई के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत मिश्रा ने महंगे अस्पतालों की बिलिंग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, ‘चाकू लगने की चोट के लिए इतना ज्यादा बिल क्यों, जिसमें 5-7 दिन अस्पताल में रहना पड़ा? ज्यादातर अस्पतालों में तो पैकेज सिस्टम होता है?’ डॉ. मिश्रा का मानना है कि अस्पताल ओपन बिलिंग सिस्टम पर काम करता है। इससे खर्च बढ़ जाते हैं। ओपन बिलिंग में हर सेवा का अलग चार्ज होता है। जबकि फिक्स्ड पैकेज में एक तय कीमत होती है। इससे मरीजों को खर्च का अंदाजा लगाना आसान होता है।
आम आदमी पर कैसे पड़ता है फर्क?
डॉ. मिश्रा ने यह भी कहा कि ये ऊंचे दाम सीधे तौर पर मध्यम वर्ग को प्रभावित करते हैं। बीमा कंपनियों की ओर से ज्यादा भुगतान करने से आम लोगों के प्रीमियम बढ़ जाते हैं। डॉ. मिश्रा ने एक पुरानी पोस्ट में लिखा था कि छोटे अस्पतालों में इसी तरह के इलाज के लिए बीमा कंपनियां 5 लाख रुपये से ज्यादा देने से हिचकिचाती हैं। यह दर्शाता है कि बड़े अस्पताल ज्यादा क्लेम कर सकते हैं। जबकि आम आदमी को कम क्लेम मिलता है। इससे आम आदमी पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।
डॉ. मिश्रा ने जिस डॉक्टर की पोस्ट शेयर की वो एक 50 बेड वाले अस्पताल के को-डायरेक्टर हैं। उन्होंने लिखा कि 2019 से बीमा कंपनियां अपने रेट नहीं बढ़ा रही हैं। बार-बार कहने पर भी कंपनियां रेट नहीं बढ़ा रही हैं। पुराने रेट के हिसाब से तो किसी भी बीमारी के इलाज के लिए 5% से भी कम पैसा मिलता है। वहीं, दूसरी तरफ खुद के मेडिक्लेम का प्रीमियम हर साल बढ़ता जा रहा है। कंपनियां इसका कारण मेडिकल खर्च में बढ़ोतरी बताती हैं।