सैफू का मेडिकल बिल: ओपन बिलिंग से बंद हो जायेंगें छोटे अस्पताल

 

Doctor Questions Saif Ali Khan Hospital Bill Said Why Such Exorbitant Charges
खत्‍म हो जाएंगे छोटे अस्‍पताल… सैफ अली खान के हॉस्पिटल बिल पर सवाल उठा डॉक्‍टर ने कर दी बड़ी भविष्‍यवाणी
बॉलीवुड ऐक्‍टर सैफ अली खान के 35.95 लाख रुपये के अस्पताल के बिल के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती कीमतों और बीमा पॉलिसियों पर बहस छिड़ गई है। डॉक्टरों ने छोटे अस्पतालों के खिलाफ बीमा कंपनियों की नीतियों और आम आदमी पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ पर सवाल उठाए हैं

सैफ अली खान के अस्पताल बिल ने स्वास्थ्य सेवाओं पर बहस छेड़ी
डॉक्टरों ने महंगे अस्पतालों की ओपन बिलिंग सिस्टम पर सवाल उठाए
बीमा कंपनियों की नीतियों से छोटे अस्पतालों पर खतरा बढ़ रहा है

नई दिल्‍ली: सैफ अली खान के 35.95 लाख रुपये के अस्पताल के बिल पर बहस छिड़ गई है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती कीमतों और बीमा पॉलिसी पर सवाल उठ रहे हैं। मुंबई के एक सर्जन ने बताया है कि कैसे बीमा कंपनियां 5-स्टार और छोटे अस्पतालों के लिए अलग-अलग पॉलिसी अपनाती हैं। इससे मरीजों के इलाज और खर्च पर बहुत दबाव पड़ता है। एक डॉक्टर की पोस्ट शेयर करते हुए हृदय रोग विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा ने लिखा, ‘इस तरह बीमा कंपनियां छोटे अस्पतालों को खत्म कर रही हैं। मुझे यकीन है कि कुछ सालों बाद सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल ही बचेंगे। इलाज का खर्च बहुत ज्‍यादा होगा। मेडिक्लेम का प्रीमियम भी आसमान छुएगा।’

बॉलीवुड स्‍टार सैफ अली खान बांद्रा स्थित अपने घर पर चाकू से हमले के बाद लीलावती अस्पताल में भर्ती हुए थे। उन्हें कई चोटें आई थीं। उनके बीमा प्रदाता ने कैशलेस इलाज के लिए 25 लाख रुपये मंजूर किए, लेकिन बाकी का क्‍लेम अभी अंतिम बिलिंग का इंतजार कर रहा है। इस घटना ने इलाज की ऊंची लागत और आम आदमी पर इसके असर पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मुंबई के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत मिश्रा ने महंगे अस्पतालों की बिलिंग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्‍स पर पोस्ट किया, ‘चाकू लगने की चोट के लिए इतना ज्यादा बिल क्यों, जिसमें 5-7 दिन अस्पताल में रहना पड़ा? ज्‍यादातर अस्पतालों में तो पैकेज सिस्टम होता है?’ डॉ. मिश्रा का मानना है कि अस्पताल ओपन बिलिंग सिस्टम पर काम करता है। इससे खर्च बढ़ जाते हैं। ओपन बिलिंग में हर सेवा का अलग चार्ज होता है। जबकि फिक्स्ड पैकेज में एक तय कीमत होती है। इससे मरीजों को खर्च का अंदाजा लगाना आसान होता है।

आम आदमी पर कैसे पड़ता है फर्क?
डॉ. मिश्रा ने यह भी कहा कि ये ऊंचे दाम सीधे तौर पर मध्यम वर्ग को प्रभावित करते हैं। बीमा कंपनियों की ओर से ज्यादा भुगतान करने से आम लोगों के प्रीमियम बढ़ जाते हैं। डॉ. मिश्रा ने एक पुरानी पोस्ट में लिखा था कि छोटे अस्पतालों में इसी तरह के इलाज के लिए बीमा कंपनियां 5 लाख रुपये से ज्यादा देने से हिचकिचाती हैं। यह दर्शाता है कि बड़े अस्पताल ज्यादा क्लेम कर सकते हैं। जबकि आम आदमी को कम क्लेम मिलता है। इससे आम आदमी पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।

डॉ. मिश्रा ने जिस डॉक्टर की पोस्ट शेयर की वो एक 50 बेड वाले अस्पताल के को-डायरेक्टर हैं। उन्होंने लिखा कि 2019 से बीमा कंपनियां अपने रेट नहीं बढ़ा रही हैं। बार-बार कहने पर भी कंपनियां रेट नहीं बढ़ा रही हैं। पुराने रेट के हिसाब से तो किसी भी बीमारी के इलाज के लिए 5% से भी कम पैसा मिलता है। वहीं, दूसरी तरफ खुद के मेडिक्लेम का प्रीमियम हर साल बढ़ता जा रहा है। कंपनियां इसका कारण मेडिकल खर्च में बढ़ोतरी बताती हैं।

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