सभी का खून नहीं शामिल यहां की मिट्टी में
भारत का संविधान बनाने में संविधान सभा में २३ सदस्य ऐसे थे जो 1946 में पाकिस्तान बनाने के लिए मुस्लिम लीग के टिकट पर जीते थे
लेकिन
जब इन्होंने पाकिस्तान बना लिया तो उसके बाद यह बड़ी होशियारी से पाकिस्तान नहीं गए और फिर नेहरू गांधी ने इनको भारत के संविधान बनाने का ही जिम्मा दे दिया है इन सब ने भी अपना संविधान बनाया है
यह सिर्फ भारत में नेहरू और गांधी ही कर सकते थे कि जिनको गद्दारी का चार्ज लगाकर जेल में डालना था उनको सीधे संविधान बनाने की जिम्मेदारी दे दी
यह सब बाद में बहुत सारे लोग केंद्र और राज्यो में मंत्री अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर तक बने
इनमें से कुछ नाम है
From Madras:
१ Mohamed Ismail Sahib
२ K.T.M. Ahmed Ibrahim·
३ Mahboob Ali Baig Sahib Bahadur·
४ B Pocker Sahib Bahadur from mubai
५ Abdul Kadar Mohammad Shaikh
६ Abdul Kadir Abdul Aziz Khan from Asam
७ Muhammad Saadulla,
८ Abdur Rouf from Up
९ Begum Qudsia Aijaz Rasul nbab of hardoi
१० Syed Fazl-ul-Hasan harshat mohani of AMU
११ Nabab ismail khan of meerut who became chancellor of AMU
१२ ZH LARI from Bihar
१३ Husaain imam from gaya
१४ Saiyid Jafar Imam·
१५ Latifur Rahman·
१६ Mohammad Tahir·
आज इनके नाजायज वंशज बड़े-बड़े नेता बनकर बोल रहे हैं कि
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
है ना कमाल की बात? जो बाइडेन कहे कि अमरीकियों का भी खून बहा है यहां, अफगानिस्तान किसी के बाप का थोड़ी है?
सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर राहत इंदौरी ने अपनी राय रखते हुए कहा था कि यह देश किसी व्यक्ति विशेष, पार्टी या धर्म की संपत्ति नहीं है. इसे उन्होंने शायरी में कहा था कि ‘सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.’। इसमें गलत और सही क्या है, इसे समझने के लिए हमें इतिहास में काफी पीछे जाना होगा
712 ईसवी
१७ साल की उम्र में मुहामद बिन कासिम १०००० सैनिको के साथ बलूचिस्तान पर आक्रमण करता है, बलूचिस्तान जीतने के बाद वो सिंध पर अपना ध्यान लगाता है, इतिहासकारों के अनुसार इस्लाम के प्रवेश के पहले सिंध में बौद्ध एवं हिन्दू यहाँ के राजधर्म थे । सिंध के राजा दाहिर और मोहमाद बिन कासिम के बीच रावार में युद्ध होता है, “चचनामा” नामक ऐतिहासिक वर्णन के अनुसार सिन्ध के राजा दाहिरसेन का बेरहमी से कत्ल कर उसकी पुत्रियों को बंधक बनाकर ईरान के खलीफाओं के लिए भेज दिया गया था। कासिम ने सिन्ध के बाद पंजाब और मुल्तान को भी अपने अधीन कर लिया ।
मुहम्मद बिन क़ासिम के तहत भारतीय उपमहाद्वीप में उमय्यद खिलाफत का विस्तार
उस दौर में अफगानिस्तान में हिन्दू राजशाही के राजा अरब और ईरान के राजाओं से लड़ रहे थे। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया। 6ठी सदी तक यह एक हिन्दू और बौद्ध बहुल क्षेत्र था । यहां के अलग-अलग क्षेत्रों में हिन्दू राजा राज करते थे। हिन्दू राजाओं को ‘काबुलशाह’ या ‘महाराज धर्मपति’ कहा जाता था। इन राजाओं में कल्लार, सामंतदेव, भीम, अष्टपाल, जयपाल, आनंदपाल, त्रिलोचनपाल, भीमपाल आदि उल्लेखनीय हैं । इन काबुलशाही राजाओं ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिन्धु नदी पार करके भारत के मुख्य मैदान में नहीं घुसने दिया, लेकिन 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद यहां के हिन्दू और बौद्धों का जबरन धर्मांतरण अभियान शुरू हुआ। सैकड़ों सालों तक लड़ाइयां चलीं और अंत में 1019 में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खा गया। ‘काफिरिस्तान’ को छोड़कर सारे अफगानी लोग मुसलमान बन गए।
312 साल बाद (1024 ईस्वी)
312 साल बाद सुल्तान मेहमूद गजनी, ने राजपूत राजशाहियों के विरुद्ध तथा धनवान हिन्दू मंदिरों पर छापामारी की एक श्रृंखला आरंभ की तथा भावी चढ़ाइयों के लिए पंजाब में अपना एक आधार स्थापित किया। वर्ष 1024 में सुल्तान ने अरब सागर के साथ काठियावाड़ के दक्षिणी तट पर अपना अंतिम प्रसिद्ध खोज का दौर शुरु किया, जहां उसने सोमनाथ शहर पर हमला किया और साथ ही अनेक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों पर आक्रमण किया ।
1175 ईस्वी
मोहम्मद गोरी ने मुल्तान और पंजाब पर विजय पाने के बाद 1175 में भारत पर आक्रमण किया, वह दिल्ली की ओर आगे बढ़ा। उत्तरी भारत के बहादुर राजपूत राजाओं ने पृथ्वी राज चौहान के नेतृत्व में 1191 में तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित किया। एक साल चले युद्ध के पश्चात मोहम्मद गोरी अपनी पराजय का बदला लेने दोबारा आया। वर्ष 1192 के दौरान तराइन में एक अत्यंत भयानक युद्ध लड़ा गया, जिसमें राजपूत पराजित हुए और पृथ्वी राज चौहान वीरगति को प्राप्त हुए। तराइन का दूसरा युद्ध एक निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ और इसमें उत्तरी भारत में मुस्लिम शासन की आधारशिला रखी।
उत्तर भारत में 1192 से 1750 तक इस्लामी हुकूमत चली जिसे बाद में वीर मराठों ने और फिर अंग्रेज़ों ने कब्ज़ा लिया, इन 550 सालों के युद्ध, लूटपाट के प्रकरण में जाने कितने मंदिर तोड़े गए, कितने घर जलाये गए, कितनो को इस्लाम न मानने पर मौत के घाट उतार दिया गया, कितनों का जबरन इस्लामिक धर्मान्तरण हुआ, कितनों को बगदाद, सीरिया के बाज़ारो में ग़ुलाम बना के बेच दिया गया और शुरू हुआ इस्लामिक हुकूमत का दौर । आज के अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान का इलाका हिन्दू और बौद्ध बाहुल्य था पर 1000 साल के युद्ध और लूटपाट के प्रकरण में आश्चर्यजनक रूप से जनसांख्खीकिया बदलाव आये और पूरा इलाका मुस्लिम बाहुल्य हो गया ।
प्रमुख मंदिर जो तोड़े गए: मार्तण्ड सूर्यदेव मंदिर, सोमनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, कृष्णा जन्मभूमि मंदिर, रूद्र महालया मंदिर, भोजशाला मंदिर, आदिनाथ मंदिर, भद्रकाली मंदिर, जैन मंदिर ( जहा क़ुतुब मीनार बनाई गयी), गोविन्देव मंदिर, भीमा देवी मंदिर, मिनाक्षी मंदिर, राम जन्मभूमि मंदिर आदि ।
caa कानून शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए है, इसमें किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं। वहां धर्म के नाम पर बहुसंख्यक मुस्लिमों का उत्पीड़ित नहीं होता है, जबकि इन देशों में हिंदुओं समेत अन्य समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जाता है। इसलिए इन देश के मुस्लिमों को नागरिकता कानून में शामिल नहीं किया गया है । जाहिर है दिवंगत इन्दोरी साहब से यह तो पूछना बनता ही था कि किसका खून और किसका पसीना शामिल है इस देश कि मिटटी में ( यहां देश सिर्फ हिंदुस्तान नहीं है पूरा भारतवर्ष है जोकि है हिंदुस्तान – पाकिस्तान – बांग्लादेश)।
सनातन धर्म म्यांमार से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था , हिन्दू-सिख-जैन-फ़ारसी-क्रिस्चियन-बौद्ध अल्पसंख्यक तो वैसे भी अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में आटे में नमक जितने है, मुस्लिम धर्म के लोगो के लिए तो वैसे भी पूरा मध्य एशिया पड़ा है लेकिन कोई सनातनी हिन्दू भारत देश आना चाहे तो इसमें गलत क्या है, यह भगवान् राम-कृष्णा की पावन जन्मभूमि में अगर यह अल्पसंख्यक यहाँ पूजा करने नहीं आएंगे तो कहां जायेंगे और हिंदुस्तान के रग-रग में भगवान् राम कृष्णा की आत्मा बसती है, मतलब 1000 साल में धर्मान्तरण करवा के आपने पाकिस्तान-बांग्लादेश बनवा लिए धर्म के आधार पर , उसमें भी आप अल्पसंख्यकों को उनके धर्माधिकार नहीं दे रहे हैं, जब हिंदुस्तान उन अल्पसंख्यकों के लिए caa ला रहा है, तो उसमें आपको समस्या है, एक फेसबुक की पोस्ट से आपका धर्म खतरे में आ जाता है और चलते है शहर को आग लगाने, इन अल्पसंख्यको का बाप तो हिन्दुस्तान ही है, 1000 साल की जो गलतिया अगर आज नहीं सुधारी तो आने वाली पीढ़िया हमे माफ़ नहीं करेंगी, वही गलतियां जो आज इन अल्पसंख्यको के साथ पाकिस्तान-बांग्लादेश में हो रही है । आज जब मैं पाकिस्तान – बांग्लादेश में लोगों को यह कहते हुए देखता हूं कि हम हिंदुस्तान को गज़वा-ए-हिन्द बना देंगे तो तरस आता है यह सोचकर कि वो हमारे १००० साल के बिछड़े हुए भाई है जो शायद इस सनातनी संस्कृति को शायद कभी समझ भी नहीं पाएंगें।
दरअसल पहले सब कुछ हिंदुस्तान यानि भारत ही था। पाकिस्तान या बांग्लादेश जैसा कुछ था ही नहीं। फिर विदेशी आक्रांताओं ने यहाँ के लोगों को लुटा, मारा, काटा, बलात्कार किया, कन्वर्ट किया। उसके बाद अलगाववादी कम्युनिटी पैदा हुई। उसने पाकिस्तान और बांग्लादेश के नाम पर भारत की जमीन हथिया ली। यानि वो उनकी और उनके बाप की जमीन हो गई। अलगाववादी इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए। बहुत से अलगाववादी भारत में ही रह गए। वो भारत की और जमीन हथियाना चाहते हैं। इसलिए ये लोग कहते हैं कि किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है। ये सब ब्रेनवॉशड लोग हैं जो हिंदुस्तान का नामोनिशान मिटाकर अरब की संस्कृति और अरब की गुलामी वाली स्थिति लाने की कोशिश में हैं।