हमें चाहिए अपने हीरो
हमें हमारे हीरो चाहिए
स्टॉलिनग्राड की लड़ाई सन 1942-43 के जाड़े में लड़ी गई थी | करीब तीस साल बाद 1973 में इसी लड़ाई के एक किरदार, एक रूसी स्नाइपर बन्दूकधारी वसीली जैत्सेव ने एनिमी एट द गेट्स नाम की किताब लिखी थी | सत्य घटना और असली किरदार पर आधारित इस किताब पर, इसी नाम (एनिमी एट द गेट्स) से 2001 में फिल्म बनाई गई थी |
फिल्म के शुरूआती दृश्य में रूसी स्टॉलिनग्राड की लड़ाई हार रहे होते हैं और हार रहे सिपहसलारों से मिलने एक बड़ा फौजी अफसर आया होता है | वो हारने वाले एक फौजी से, अकेले कमरे में बिठा कर पूछता है कि आखिर हार कर आये कैसे ? हारा सिपहसलार मुश्किलें गिनाने लगता है | हारा सिपहसलार कहता है दुश्मनों के पास मशीनगन तोपें हैं, बहुत से सिपाही, रसद-सर्दियों के कपड़े सब है | हमारे पास क्या था ?
जवाब मिलता है, तुम्हारे पास घुटने ना टेकने की ज़िम्मेदारी थी ! आखरी सिपाही और आखरी गोली तक तुम लड़े कैसे नहीं ? इतना कहकर सीनियर अफसर जूनियर के सामने एक पिस्तौल रखकर कमरे से बाहर निकल जाता है | बाहर वो बाकी सिपहसालारों की परेड ले ही रहा था कि कमरे से गोली की आवाज आती है | सब समझ जाते हैं कि हार का नतीजा मौत मिली है |
अब सीनियर बाकियों से पूछता है, बताओ आखिर क्या कमी रही है हममें जो हम हारते रहे ? किन जरूरतों को पूरा किया जाए ? आखिर हमारी फ़ौज को चाहिए क्या ? सब चुप्पी साधे रहते हैं | आखिर पीछे से किसी जूनियर की मिमियाती सी आवाज आती है | आगे वाले आँख से इशारा करते हैं कि आवाज किसकी थी | सीनियर जनरल जब पीछे पहुँचता है तो कोई प्रचार अधिकारी था जो बोला था |
वो अपनी बात दोहराता है | इस बार स्पष्ट कहता है, “हमें हमारे हीरो चाहिए” |
प्रचार अधिकारी को हीरो ढूँढने की ज़िम्मेदारी भी मिल जाती है | वो रूसियों में विख्यात और नाज़ियों में कुख्यात स्नाइपर वसीली को गुमनामी से निकाल लाता है | फिर हर रोज़ रूसियों के फौज़ी माइक पूछना शुरू करते हैं, आज स्नाइपर वसीली ने सौ जर्मन मारे, तुमने कितने मारे ? आज इतने मारे, तुमने कितने मारे ? हारती रूसी फौज़ को उसका खोया आत्मविश्वास वापस मिल गया था | बाकि सारी चीज़ें वही रही, सख्त मौसम, कम कपड़े, सीमित राशन, पुराने हथियार, सिर्फ आत्मविश्वास से वो जंग रूसियों ने जीती थी |
आज आप दोबारा पूछते हैं क्या होगा शिवाजी की 3600 करोड़ की मूर्ती लगा के ? जनाब 104 उपग्रह एक राउंड में अन्तरिक्ष में बिठा देने वाले लोग तो पहले ही यहीं हैं | सॉफ्टवेयर और सर्विस इंडस्ट्री के लिए दुनियां भर का धंधा खींच लाने वाले उद्योग भी हमारे ही हैं | जिन नदियों पर बाँध बना कर बिजली निकलेगी वो यहीं है, काम करने योग्य करीब 50 करोड़ युवा यहीं हैं | जिस मेडिकल टूरिज्म के लिए भारत जाना जाता है वो डॉक्टर यहीं हैं | तो कम क्या है ?
कम है तो बस खुद पर विश्वास | इतनी बार हमारी हार पढ़ाई हमें कि जीत भी सकते हैं ये सोचने में ही अजीब लगने लगा | We need our HEROES ! हमें हमारी जीत की कहानियां वापस चाहिए |
✍🏻आनंद कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित