हरिद्वार में बाल भिक्षा का है कोई समाधान?
CHILD BEGGARY CASES INCREASING IN HARIDWAR OF UTTARAKHAND
हरकी पैड़ी पर भीख मांगते मिले भाई-बहन, जानिए आखिरकार हरिद्वार में सैकड़ों मासूम क्यों फैलाते हैं हाथ?
हरिद्वार के चौराहों और गंगा घाटों पर अबोध बच्चे भीख मांगते दिख जाते हैं. बड़ा सवाल है कि आखिरकार इनकी क्या मजबूरी है कि खेलने-कूदने की इस उम्र में भीख मांगनी पड़ रही है. बाल भिक्षावृत्ति रोकने को तमाम कोशिशें होती है, लेकिन एक दो दिन के अभियान के बाद स्थिति जस की तस हो जाती है. हरिद्वार में ज्यादातर बच्चे वो हैं, जिन्हें अपने घर के बारे में भी नहीं पता है. कुछ ऐसे हैं, जो भिक्षावृत्ति करते-करते बड़े हो गए और यहीं पर अपना धंधा चला रहे हैं. जानिए आखिरकार हरिद्वार में बच्चे क्यों मांगते हैं भीख…
हरिद्वार 19 दिसंबर। हिंदुओं के सबसे बड़े तीर्थ स्थल में सम्मिलित हरिद्वार अपने आप में विशिष्ट है. यहां देश और दुनिया से लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाने पहुंचते हैं. माना जाता है कि गंगा में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है. सामान्य भाषा में कहें तो यहां लोग अपने पाप धोने आते हैं, लेकिन इसके इतर कई लोग अपनी गुजर बसर करने भी पहुंचते हैं. यहां दान दक्षिणा होती है तो भिक्षावृत्ति भी खूब फल और फूल रही है.स्थिति ये है कि सैकड़ों बच्चे गंगा तटों पर भीख मांगते नजर आते हैं, जो एकाएक आपके पैर छूएंगे या फिर हाथ जोड़ आपके सामने खड़े हो जाएंगे.असल में इन बच्चों को भिक्षा चाहिए होती है. इनमें कई बच्चे ऐसे होते हैं, जिन्हें न तो अपने घर के बारे में पता होता है, न ही अपने मां बाप के बारे में. कुछ बच्चे ऐसे होते हैं, जो घर से नाराज होकर यहां आ जाते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं, जो घरवालों से बिछड़ कर यहां पहुंच जाते हैं. यही वजह है कि कई बार हरिद्वार में ऐसे बच्चे भी बरामद होते हैं, जिन्हें या तो अगवा कर यहां छोड़ा गया था या फिर वो किसी गिरोह का शिकार हो गए. ऐसे में कई बच्चे तो मजबूरी में भीख मांगते हैं. जबकि, कई बच्चों को भीख मांगने को मजबूर कर दिया जाता है.
पुलिस ने बच्चों को परिजनों से मिलवाया
दिल्ली के दो बहन भाई पहुंच गए हरिद्वार:
हाल ही में हरिद्वार की हरकी पैड़ी स्थित सुभाष घाट से दो बच्चे बरामद हुए, जो आपस में भाई और बहन थे. जिनकी उम्र महज 10 और 14 साल थी. पुलिस की मानें तो दोनों अपने घर दिल्ली से भाग कर हरिद्वार आ गए थे. यहां दो दिनों तक वो भीख मांग कर गुजरा करते रहे. गनीमत रही कि मानव तस्करी निरोधक दस्ते को इन बच्चों की जानकारी मिली. दस्ते ने दोनों बच्चों को अपने कब्जे में लिया. पूछताछ में पता चला कि दोनों बच्चे दिल्ली से खुद भाग कर आए हैं.
वहीं, पुलिस ने दोनों को उत्तर पूर्वी दिल्ली में उनके पिता को सौंप दिया. बच्चों के पिता ने बताया कि वो किसी काम के सिलसिले में बाहर गए हुए थे. ऐसे में घर पर कोई बड़ा सदस्य मौजूद नहीं था. क्योंकि, उसकी पत्नी की मौत हो चुकी है. इसी बीच उनके दोनों बच्चे कहीं चले गए. मकान मालिक ने उन्हें बताया कि उसके बच्चे 5 दिनों से घर नहीं आए हैं. जिसके बाद उन्होंने अपने दोनों बच्चों की तलाश में खाक छानी. इसी बीच पुलिस की टीम ने उनके दोनों बच्चों को हरिद्वार से बरामद कर घर पहुंचा दिया. ये दोनों बच्चे खुशनसीब थे, जो सकुशल घर पहुंच गए, लेकिन कई बच्चे ऐसे हैं, जिनके बारे में कोई कुछ नहीं जानता. कई ऐसे बच्चे हैं, जिनको अपराधी यहां छोड़ गए.
अक्सर हरिद्वार में मिलते हैं बाहर के बच्चे:
मुंबई के सीएसटी से प्रियंका (बदला हुआ नाम) की बच्ची को एक युवक सोते हुए उठा ले गया था. कुछ दिनों बाद उसकी बरामदगी हरिद्वार में हुई थी. मुंबई के ही ठाणे से एक 10 साल के बच्चे को अगवा कर लिया गया था, उसकी बरामदगी भी हरिद्वार से ही हुई थी. बच्चा चोरी के ये कुछ ऐसे मामले हैं, जिन्होंने देशभर का ध्यान हरिद्वार की ओर खींचा. इन घटनाओं से धर्मनगरी हरिद्वार का नाम ऐसी लिस्ट में भी जुड़ गया, जहां देश के अलग-अलग हिस्सों से बच्चा चोरी कर हरिद्वार लाए जाते हैं.इन तमाम मामलों ने तब भी उच्चाधिकारियों के कान खड़े कर दिए थे. हरिद्वार में अनजान दिखते बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है. मामले में पुलिस बीते कुछ सालों से गंभीर तो हुई है, लेकिन सीजन में अचानक बच्चों की बढ़ती संख्या चिंता बढ़ा रही है. हरिद्वार में भीख मांगते बच्चों के झुंड और कूड़ा बीनते बच्चों की फौज को देखकर आशंका और सवाल उठ रहा है कि ये बच्चे किसी गिरोह के शिकार तो नहीं हैं?
कौन हैं मां बाप? किसी को पता ही नहीं:
दरअसल, सब काम पुलिस करें ये भी जरूरी नहीं है. हरिद्वार में जगह-जगह भीख मांगते इन बच्चों से कभी किसी समाजसेवी ने भी ये जानने की कोशिश नहीं की है कि आखिरकार ये भीख मांग क्यों रहे हैं? ये पूछना तो दूर इन बच्चों के सिर पर शायद ही कभी किसी ने ममता भरा हाथ रखा हो. हरिद्वार में भीख मांगते इन बच्चों को ये भी नहीं पता है कि वो आए कहां से हैं? उनके मां बाप कौन हैं? इतना ही नहीं कई बच्चों को तो अपने नाम ही नहीं पता? ज्यादातर बच्चों के नाम भी यहां आने वाले यात्रियों ने भीख के साथ ही दे दिए और अब ये नाम ही इनकी पहचान है.ज्यादातर बच्चों को कोई उठा कर हरिद्वार ले आया और उसे घाटों पर भीख मांगने के लिए यहीं पर छोड़ दिया. साल 2014 की ही बात है, जब हरकी पैड़ी के सेवा समिति के दफ्तर के बाहर ही एक बच्चा लावारिस हालत में मिला था. बच्चे ने स्कूल की यूनिफॉर्म पहनी हुई थी. कंधे पर स्कूल का बैग भी था. जब लोगों ने उससे पूछा कि वो कहां से आया है तो वो न तो अपना और अपने मां बाप नाम बता पाया, न ही अपना पता ठिकाना बता पाया. इसके बाद तो उसका पता ठिकाना हरिद्वार के ये घाट बनकर रह गए.
क्या कहती है गंगा सभा:
हरिद्वार की हरकी पैड़ी की सबसे प्रमुख संस्था गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ कहते हैं कि यह समस्या पुरानी और गंभीर है, जिसे कई बार बैठकों में उठाया जा चुका है. बात सिर्फ बच्चों की नहीं है, बड़े भिक्षुक की भी है. सबसे पहले और जरूरी काम इनके सत्यापन का होना चाहिए. किसी को ये तक नहीं पता है कि ये लोग कहां के रहने वाले हैं और किस धर्म से ताल्लुक रखते हैं? इसके अलावा सुरक्षा से खिलवाड़ भी है.
कई बार भिक्षुक को पकड़ लिया जाता है, लेकिन फिर वो कुछ दिन बाद वहीं पर दिखाई देने लग जाता है. इसमें सबसे बड़ी समस्या भिक्षुक गृह की सीमित कैपिसिटी है. ऐसे में नए भिक्षुक आते हैं तो पुराने रिलीज हो जाते हैं. जबकि, उनको किसी काम धंधे से जोड़ा जाए या उनके लिए कुछ बेहतर किया जाए तो काफी हद तक इस समस्या का समाधान हो सकता है. उन्होंने फिर से सत्यापन पर जोर देते हुए कहा कि पुलिस प्रशासन को सभी भिखारियों का सत्यापन करना होगा.
क्या कहते हैं स्थानीय लोग:
हरिद्वार के गंगा घाटों पर पले बड़े ये बच्चे सालों से स्थानीय लोगों ने यहां पर देखें है. जिसे छोटे में देखा था, वो अब बड़ा हो गया है. किसी ने अपना काम धंधा यहीं पर शुरू कर लिया तो कोई गंगा घाटों पर ही बड़ा हुआ और यहीं पर दम तोड़ बैठा. हरकी पैड़ी पर रहने वाले तीर्थ पुरोहित कन्हैया खेवड़िया कहते हैं कभी हरिद्वार के मोती बाजार में एक अनाथालय चलता था, वो काफी छोटा था. यह अनाथालय उन बच्चों के लिए था, जो गंगा घाटों पर रह रहे थे या फिर किसी ने उन्हें छोड़ दिया या वो खुद भाग कर यहां आए.
कन्हैया खेवड़िया बताते हैं कि उन बच्चों के साथ वो खुद खेला और पढ़ाई करते थे. देखते ही देखते उन बच्चों में से किसी ने अपनी दुकान खोल दी तो किसी ने अपना कोई दूसरा काम शुरू कर लिया. इसकी वजह ये हो सकती है कि उस समय उन्हें अच्छी शिक्षा या दिशा मिली. उनका कहना है कि भीमगोड़ा से लेकर रेलवे स्टेशन तक गिनती करें तो 150 से ज्यादा बच्चे घूमते दिख जाएंगे. ऐसे में कोई ऐसा केंद्र बनाया जाना चाहिए, जिसमें उन्हें भेजा और रखा जा सके. कई बच्चियां 10 से 15 साल की भी हैं, जो रात के समय गंगा घाटों पर घूमती दिख जाती हैं. ऐसे में उनकी सुरक्षा की भी बात है.
पुलिस करती है ये काम:
उत्तराखंड के कार्यवाहक डीजीपी अभिनव कुमार कहते हैं कि समय-समय पर इस तरह के धार्मिक स्थलों पर बड़े पैमाने पर सत्यापन अभियान चलाकर उन्हें हटाने की कार्रवाई होती है. सभी जानते हैं कि धार्मिक स्थल कितने महत्वपूर्ण हैं. घाटों पर रहने वालों बच्चों को उनके माता पिता तक पहुंचाने को पुलिस काम भी करती है. किसी बिछड़े बच्चे को उसके परिजनों से मिलवाया भी जाता है.
कोई बच्चा दिखे तो एक बार उसके बार पूछिए:
सालों से गंगा तटों के अलावा हरिद्वार शहर में इन अनजान से बच्चों का बचपन यूं ही दम तोड़ रहा है. इतना ही नहीं भीख मांगते-मांगते कब इनके नन्हें कदम अपराध की दुनिया की ओर बढ़ जाएं, किसी ने शायद ही कभी इसकी परवाह की हो. नासूर बन चुकी ये समस्या कब खत्म होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है. अगर आपको भी कोई बच्चा भीख मांगते हुए या फिर कूड़ा उठाता दिखाई दे तो एक बार उससे ये जानने की जरूर कोशिश करें कि वो नन्हा मेहमान है कौन और आया कहां से? क्या पता आपके पूछने से उसको घर मिल जाए.