संपादकीयम: सहिष्णुता से ज्यादा जरूरी है जयिष्णुता, वरना….
सहिष्णुता से अधिक महत्वपूर्ण है जयिष्णुता
अत्यंत सारगर्भित और सामयिक पुरुषोत्तम तुल्सियन अग्रवाल जी की पोस्ट
यह दृश्य है भारत के कर्नाटक राज्य के एक मंदिर का और इसी प्रकार के दृश्य आपको दक्षिण भारत में और भी बहुत मिल जाएंगे जहां नंदी की खंडित प्रतिमा आपको मिलेगी।
क्योंकि कुछ लोग यहां आए थे जिन्हें यह पसंद नहीं था जब भी उन्हें कोई पसंद नहीं आता था वह उन्हें तोड़ दिया करते थे और पसंद आने पर उठा कर ले जाया करते थे। पसंद नहीं आने पर नालंदा को आग लगा दी जाती थी और पसंद आने पर औरतें उठा ली जाती थी।
आपको भारत में लगभग सभी राज्यों में ऐसे दृश्य देखने को मिलेंगे जहां पर टूटे हुए मंदिर और धरोहर आज भी मौजूद है।
क्योंकि कोई आया था यहां जिनको व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने वाली संस्कृति पसंद नहीं थी। आज भी क्या बदला है आज भी वही लोग फिर से वही सवाल लेकर तैयार खड़े हैं।
आप मंगलसूत्र क्यों पहनते हैं ?
आप दीपक क्यों जलाते हैं ?
आप शंख क्यों बजाते हैं ?
आप घंटी क्यों बजाते हैं ?
आप मंदिर क्यों जाते हैं ?
आप गाय को क्यों पूजते हैं ?
आप वृक्षों को क्यों पूजते हैं ?
आप नदियों को क्यों पूजते हैं ?
आप केवल उनके सवालों का जवाब देते रहते हैं लेकिन आखिर कब तक आप उनके सवालों का जवाब देंगे ना ही तो उनको आपकी ये परंपराएं पसंद है ना ही आपकी यह संस्कृति। अगर आपको यह लगता है कि वह केवल आपसे यह सवाल पूछ रहे हैं अनजाने में तो आप गलत है अभी वह केवल आपसे सवाल पूछ रहे हैं जल्द ही वह इन्हें खत्म करने की भी तैयारी कर रहे हैं। आपको समझना पड़ेगा कि वह इस भूमि को कभी भी अपनी मातृभूमि नहीं मानते ना ही आपके संस्कृति को अपना। आपको चाणक्य की बातों को याद करना चाहिए कि कितने सालों पहले ही चाणक्य ने इस बारे में बता दिया था कि अगर बाहरी लोगों को यहां आने दिया तो वह अपने आप को यहां आपके बीच में सुरक्षित करने के लिए सबसे पहले आपकी व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने वाली संस्कृति पर वार करेंगे उस पर आए दिन सवाल खड़े करेंगे।
देखिए आज वही फिर से होने लगा है वही सवाल फिर से हमारे बीच में है। और हम क्या कर रहे हैं या तो जाने अनजाने में हम उनके सवालों का जवाब देते हैं या फिर किसी पार्टी वाद की वजह से हमारे बहुत से लोग इन लोगों के साथ खड़े हो जाते हैं। आपको यहां समझना पड़ेगा कि यह लोग सबसे पहले हमारे समाज को तोड़ते हैं समाज जब टूटता है तो धर्म का पालन भी कम हो जाता है और जब धर्म आगे नहीं बढ़ता तो संस्कृति भी रुक जाती है और जब संस्कृति रूकती है तो राष्ट्र को मिटने से कोई नहीं रोक सकता और जब राष्ट्र नहीं रहेगा तो फिर आप कहां से बचेंगे आप चाहे किसी भी जाति से हो किसी भी पार्टी से हो फिर आप भी नहीं बचने वाले।
आपके पास इतना समय नहीं रह गया है आपसी मतभेदों को खत्म कर के आपकी संस्कृति पर हो रहे आघात वार को रोके और इनका जवाब दें। अगर ऐसा आपने नहीं किया तो ना ही तो आपको इतिहास माफ करेगा ना ही आपकी आने वाली पीढ़ियां……बात काशी और मथुरा की नही वैसे हजारों दृश्य है, लेकिन फिर भी चाटुकारों को तो भाई चारा निभाना है।