हलाल सर्टिफिकेशन अब उप्र में अवैध, उम्रकैद तक की सजा
उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर प्रतिबंध, पकड़े जाने पर हो सकती है उम्रकैद; मुख्यमंत्री योगी ने दिए कठोर निर्देश
Halal Banned in UP – उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाणन (सर्टिफाइड) उत्पादों की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है। बिना किसी अधिकार के खान-पान औषधि व सौंदर्य प्रसाधन के उत्पादों का हलाल प्रमाणन किया जा रहा था। नियम विरुद्ध ढंग से हो रहे प्रमाणन पर कठोरता के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद इस पर रोक लगाए जाने की अधिसूचना जारी कर दी गई।
लखनऊ 18 नवंबर। उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाणन (सर्टिफाइड) उत्पादों की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है। बिना किसी अधिकार के खान-पान, औषधि व सौंदर्य प्रसाधन के उत्पादों का हलाल प्रमाणन किया जा रहा था।
नियम विरुद्ध ढंग से हो रहे प्रमाणन पर कठोरता करने के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने इस पर रोक लगाए जाने की अधिसूचना जारी कर दी है।
अपर मुख्य सचिव ने जारी की अधिसूचना
अपर मुख्य सचिव, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन व आयुक्त अनीता सिंह की ओर से शनिवार को रोक लगाए जाने की अधिसूचना जारी कर दी गई है। अब किसी व्यक्ति के हलाल प्रमाणन युक्त खानपान की वस्तुएं, औषधि, चिकित्सा के लिए प्रयुक्त अन्य सामग्री व प्रसाधन सामग्रियों के विनिर्माण, भंडारण, वितरण एवं क्रय-विक्रय करते हुए पाए जाने पर उसके खिलाफ विधिक कार्रवाई होगी।
जानिए किन धाराओं में होगी कार्रवाई
औषधियों, चिकित्सा में प्रयुक्त अन्य सामग्री व सौंदर्य प्रसाधन की लेबलिंग संगत नियमों में निर्धारित प्रावधान के अनुसार न करने, लेबल पर गलत व भ्रामक तथ्य छापने की दशा में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, वर्ष 1940 की धारा-17 और धारा-17 सी के अंतर्गत मिथ्याछाप की श्रेणी में आता है।
यही नहीं, अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि हलाल प्रमाणीकरण का अंकन उत्पादों के लेबल पर किया जाए। ऐसे में अगर इन वस्तुओं पर हलाल प्रमाणीकरण से संबंधित किसी भी तथ्य का प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अंकन किया जाता है, तो वह इस अधिनियम में मिथ्याछाप होगा।
धारा-27 में दंडनीय अपराध
ऐसे में मिथ्याछाप औषधि, चिकित्सा में प्रयुक्त अन्य सामग्री व प्रसाधन सामग्रियों के विनिर्माण, भंडारण, वितरण, एवं क्रय-विक्रय किया जाना इस अधिनियम की धारा-18 के प्रतिबंधित है और धारा-27 में दंडनीय अपराध है। ऐसे में इसका विनिर्माण व बिक्री इत्यादि करने पर कठोर विधिक कार्रवाई होगी।
आजीवन कारावास व 10 लाख तक का जुर्माना
मिथ्याछाप वस्तुओं की बिक्री करने पर संस्था का लाइसेंस निरस्त किए जाने और नकली पदार्थ बेचने पर आजीवन कारावास व 10 लाख तक के जुर्माने की व्यवस्था है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग जल्द इसके खिलाफ जिलों में छापेमारी अभियान शुरू करेगा।
निर्यात पर नहीं लगाई गई रोक
हलाल प्रमाणित खाद्य पदार्थ, औषधियों, चिकित्सा में प्रयुक्त अन्य सामग्रियों व सौंदर्य प्रसाधनों के निर्यात पर किसी भी तरह की रोक नहीं लगाई गई है। निर्यातक इसे आसानी से निर्यात कर सकते है।
हलाल लिखे खाद्य उत्पादों व दवाओं की बिक्री भी हुई प्रतिबंधित
विदेश में निर्यात होने वाले मांस और उससे निर्मित उत्पादों पर हलाल प्रमाण पत्र जारी होता रहा है। स्थिति यह हुई कि धीरे-धीरे तेल,साबुन,घी सहित सभी उत्पादों पर हलाल प्रमाणन की मुहर लगाया जाना शुरू हो गया।
Any product written Halal will be ban in Uttar Pradesh.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। –
उत्तर प्रदेश में किसी भी उत्पाद पर हलाल प्रमाणन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। यह पाबंदी खाद्य उत्पाद के साथ ही दवाओं पर भी लागू होगी। ऐसे उत्पाद के निर्माण, भंडारण, वितरण एवं विक्रय पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा। इतना जरूर है कि विदेश भेजे जाने वाले उत्पाद के लिए छूट रहेगी। इस संबंध में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की अपर मुख्य सचिव अनीता सिंह ने आदेश जारी कर दिया है। सभी खाद्य एवं औषधि निरीक्षकों को निरंतर निगरानी के निर्देश दिए गए हैं।
विदेश में निर्यात होने वाले मांस और उससे निर्मित उत्पादों पर हलाल प्रमाण पत्र जारी होता रहा है। स्थिति यह हुई की धीरे-धीरे तेल, साबुन, घी सहित सभी उत्पादों पर हलाल प्रमाणन की मुहर लगाने लगी। एक तरह से इस प्रमाणन के जरिए उत्पाद को बेचने का हथकंडा अपनाया जाने लगा। मामले की जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम से स्थिति की जानकारी ली। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद इसे रोकने की रणनीति बनाई गई। शनिवार को इस पर प्रदेश में पाबंदी लगा दी गई है। प्रदेश में हलाल प्रमाणन वाले किसी भी खाद्य उत्पादों एवं दवाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा। शनिवार को संबंधित आदेश हो गया है। यदि कोई हलाल प्रमाणन उत्पाद मिला तो निर्माता पर भी कार्रवाई होगी। निर्माण के साथ ही भंडारण, वितरण, विक्रय पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया है।
निर्यात को रहेगी छूट
यदि राज्य में कार्यरत कोई निर्यातक अपने खाद्य उत्पाद अथवा दवा उन देशों के लिए तैयार करता है, जहां हलाल प्रमाणन खाद्य उत्पाद ही स्वीकार किए जाते हैं तो उसे छूट रहेगी। वह दूसरे देश के लिए तैयार होने वाले उत्पाद का निर्माण, भंडारण एवं वितरण कर सकेगा।
क्या है नियमावली
प्रदेश नियमावली में हलाल प्रमाणीकरण का कोई नियम नहीं है। सिर्फ गुणवत्ता, पैकिंग, लेबलिंग सही होनी चाहिए। नए आदेश बाद यदि कोई हलाल प्रमाणीकरणयुक्त दवाओं, प्रसाधन सामग्री व खाद्य सामग्री निर्माण अथवा भंडारण व वितरण करता है तो उसके खिलाफ अधिनियम 1940 व तत्संबंधी नियमावली में कार्रवाई होगी। इसमें तीन साल का कारावास, एक लाख रुपये जुर्माना और नियम 18 ए में छह का कारावास अथवा 25 हजार का जुर्माना हो सकता है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
यदि कोई भी कंपनी उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाण पत्र प्रदर्शित करते हुए अपने उत्पाद बेचती है तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी। इस पर प्रदेश में पूरी तरह से पाबंदी लगी है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की नियमावली में किसी भी उत्पाद पर हलाल प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।- अनिता सिंह, अपर मुख्य सचिव खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन।
हलाल सर्टिफिकेट भी तुष्टिकरण की पैदाइश: जो काम सरकारी, उसमें मजहबी मुहर की घुसपैठ क्यों?
हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर काफी चर्चा चलती रही है। पिछली कई रिपोर्टों में हमने बताया कि कैसे हलाल मांस उद्योग गैर-मुस्लिमों से भेदभाव करता है और अंततः हलाल प्रक्रिया की मजहबी आवश्यकताओं को बनाए रखने को गैर-मुस्लिमों को नौकरियों और रोजगार से अलग-थलग कर देता है क्योंकि हलाल मुस्लिम ही कर सकता है।
कई कंपनियों, मुस्लिमों और हलाल समर्थकों ने स्पष्टीकरण दिया है कि गैर मांसाहारी खाद्य पदार्थों, सौंदर्य प्रसाधन और अन्य एफएमसीजी सामानों जैसे शाकाहारी उत्पादों को भी हलाल एक प्रमाणपत्र है। कुछ ने यह भी दावा किया कि हलाल प्रमाणन केवल ‘शुद्धता और प्रामाणिकता’ प्रमाणीकरण है और हलाल प्रमाणीकरण (गैर-मांस उत्पादों पर) का अर्थ केवल यह है कि उत्पाद ‘अच्छा’ है।
बहस में उतरा क्विंट का पत्रकार
फिर भी हमें हलाल सर्टिफिकेट की जरूरत क्यों है? और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मजहब के अलावा इस प्रमाणन के पीछे क्या औचित्य है?
इस दावे से कई सवाल उठते हैं।
सरकार के मौजूदा प्रमाणपत्र
अगर हम उत्पादों पर हलाल प्रमाणपत्र स्वीकार करना शुरू करते हैं, तो क्या इसका मतलब यह है कि आईएसआई और एफएसएसएआई जैसे उपभोक्ता उत्पादों पर मौजूदा सरकारी प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं हैं? क्या कोई पारदर्शी, वैज्ञानिक और अच्छी तरह से परिभाषित विधि है जो उत्पादों की तथाकथित शुद्धता, या अच्छाई तय करती है? इसका उत्तर नहीं होगा क्योंकि हलाल प्रमाणन धार्मिक इस्लामी संगठन जारी करते हैं, उदाहरण को, भारत में जमीयत उलमा-ए-हिंद, जिसकी विशेषता के क्षेत्रों में आतंकवादियों और हत्यारों को कानूनी सहायता देना शामिल है।
हलाल प्रमाणन विशुद्ध रूप से इस्लामिक है,मजहबी है,यहाँ तक कि गैर मांसाहारी उत्पादों में भी,क्योंकि यह मानता है कि उक्त उत्पादों में कोई ऐसी सामग्री है जो इस्लाम में निषिद्ध है। यह विचार अपने आप में भेदभावपूर्ण है क्योंकि यहाँ प्रमाणन का आधार एक मजहबी मान्यता है,चाहे इस्लाम में उस व्यक्ति की कोई आस्था,‘अनुमति’ है या नहीं।
यह कहाँ रुकेगा?
हम पहले बता चुके हैं कि कैसे हलाल प्रमाणन का पूरा विचार अन्य समुदायों से भेदभावपूर्ण है। यह गैर-मुस्लिमों पर इस्लामी विश्वास थोपता है। हलाल प्रमाणन समानांतर अर्थव्यवस्था प्रोत्साहित करता है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में,जहाँ 80% से अधिक आबादी हिंदू है और जहाँ कई संस्कृतियों के साथ-साथ कई धार्मिक मान्यताएँ पनपती हैं,हलाल का विचार ही भेदभावजनक,अपमानजनक है।
यदि गैर मांसाहार उत्पादों के लिए हलाल प्रमाणपत्र है और जनसंख्या का बड़ा वर्ग सौंदर्य प्रसाधन,गैर मांसाहारी खाद्य पदार्थों और अन्य एफएमसीजी उत्पादों जैसे उत्पादों की एक श्रृंखला चाहता है,तो यह कहाँ रुकता है? क्या होगा यदि प्रमाणन की यह आवश्यकता रेलवे स्टेशन भवनों, बसों, कपड़ों,रबर,पेट्रोलियम उत्पादों पर भी बढ़ा दी जाए?
यदि एक समुदाय की उत्पादों पर हलाल प्रमाणन की माँग को सरकार अनुमति देती है,तो अन्य समुदायों को समान प्रमाणपत्रों की माँग करने से कौन रोकेगा? क्या होगा अगर सिख,जैन और बौद्ध उपभोक्ता वस्तुओं को ‘प्रमाणित’ करने की माँग करते हैं,जब उनकी संस्थायें उन्हें ठीक करार दें? क्या होगा अगर बहुसंख्यक हिंदू भी इसकी माँग करें?
क्या यह जबरन वसूली के समान नहीं है? ‘हफ्ता वसूली’ की ‘प्रमाणित’ प्रणाली?
पहले से ही सरकार के निर्दिष्ट मानदंड, गुणवत्ता मानदंड और नियामक आवश्यकताएँ मौजूद हैं जिन्हें कंपनियों को अपने उत्पादों को विपणन को प्रमाणित करने को पूरा करना होता है तो क्यों उन्हें एक विशेष समुदाय को ‘प्रमाणित’ करने की यह समानांतर प्रणाली जारी है? सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है और इसे जनादेश नहीं है। क्या यह सिर्फ एक खास समुदाय की माँगें पूरा करने को वह प्रमाणपत्र ‘खरीदने’ को कंपनियों से भारी पैसा बनाने का साधन नहीं है? क्या यह “हमें हर महीने 25,000 रुपए भुगतान करें, या आप हमारे क्षेत्र में अपनी दुकान नहीं खोल सकते” का एक बदला हुआ रूप नहीं है?
सरकार इसकी अनुमति भी क्यों देती है?
FSSAI हलाल सर्टिफिकेट नहीं देता है। भारत में,कई धार्मिक निकाय उत्पादों को तथाकथित प्रमाण पत्र जारी करते हैं, इस्लामी विश्वास के अनुसार उनकी ‘शुद्धता’ तय करते हैं। भारत में मुख्य हलाल प्रमाणन निकाय हैं
हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र (जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई)
जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट
इसलिए,एक संपूर्ण समानांतर प्रमाणन प्रक्रिया है जो संबंधित राज्य और राष्ट्रीय प्राधिकरणों के दायरे से बाहर चलती है। भारत सरकार मजहब से संबद्ध निकायों को उपभोक्ता उत्पादों को कथित मजहबी शुद्धता और स्वीकार्यता की गुणवत्ता जारी करने की अनुमति देती रही है।
क्या यह माल की गुणवत्ता और मानक को सरकारी निकाय की प्रमाणन प्रक्रिया के पूरे विचार को कमजोर नहीं करता है? एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की सरकार,जहाँ हिंदू बहुसंख्यक हैं और ईसाई,सिख,जैन और बौद्ध जैसे कई पंथ महत्वपूर्ण संख्या में हैं,एक विशेष धर्म को अपना प्रमाणन व्यवसाय चलाने की अनुमति क्यों दे रही है?
क्या अकाल तख्त शुल्क के बदले उपभोक्ता वस्तुओं को अपनी मुहर और प्रमाणन देता है? क्या कंपनियों को अपने उत्पादों को ईसाइयों के उपभोग को मंजूरी देने को वेटिकन को भुगतान करने की आवश्यकता है? क्या तिब्बती बौद्धों के उपयोग किए जाने वाले उत्पादों पर दलाई लामा अपनी मुहर जारी करते हैं? और हिंदू कहाँ आवेदन करते हैं?
‘धर्मनिरपेक्ष’ भारत में, विशेष रूप से एक समुदाय के लिए,सरकार की नाक के नीचे समानांतर अर्थव्यवस्था की व्यवस्था क्यों है? सिर्फ इसलिए कि वे इसकी माँग करते हैं? आखिर इसे कैसे न्यायसंगत ठहराया जा सकता है?
निष्कर्ष
मुसलमानों को अपने उत्पाद विक्रय करने को हलाल प्रमाणपत्र की माँग करने वाली निजी कंपनियों को लक्षित करना निरर्थक और यहाँ तक कि अनुचित भी है। इस मुद्दे की जिम्मेदारी सरकार पर है, या तो यह आदेश कि किसी भी कंपनी को अपना सामान बेचने को सरकारी प्रमाणन पर्याप्त है या यह समझाना होगा कि उन्होंने एक विशेष समुदाय को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष देश में समानांतर प्रमाणन तंत्र की माँग और स्थापना करने की अनुमति क्यों दी है?