ईरानी शासकों का अंत: पतन,अपदस्थ और हत्यायें

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ईरान में इब्राहिम रईसी की मौत पर जश्न मनाने वाले लोग कौन हैं?
इब्राहिम रईसी
इमेज स्रोत,GETTY IMAGES
इमेज कैप्शन,इब्राहिम रईसी
….में
Author,फ़ारेन ताग़ीज़ादेह
पदनाम,बीबीसी फ़ारसी सेवा
21 मई 2024
ईरान के भीतर राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत के बाद मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है.

एक तरफ़ शोक और ग़म का माहौल है, तो दूसरी तरफ़ कई लोग जश्न भी मना रहे हैं.

रईसी की मौत के बाद सोशल मीडिया पर जो प्रतिक्रिया आ रही है, उनमें इसे महसूस किया जा सकता है.इब्राहिम रईसी के इंस्टाग्राम पेज पर श्रद्धांजलि की भरमार है. कई यूज़र्स ने उन्हें देश की सेवा के लिए धन्यवाद दिया है.एक यूजर ने लिखा है, ”हम सभी को आप पर गर्व है.’एक और यूजर ने लिखा है- आप एक महान हस्ती थे और देशवासियों की सेवा में ख़ुद को समर्पित कर दिया.

कुछ जाने-माने ईरानी कलाकारों और खिलाड़ियों ने इब्राहिम रईसी को श्रद्धांजलि दी है.

जैस फ़ुटबॉलर कमाल काम्याबिन्या ने रईसी की तस्वीर पोस्ट करते हुए एक श्रद्धांजलि में इस्लामिक संदेश लिखा.

कमाल के इंस्टाग्राम पर 24 लाख फ़ॉलोअर्स हैं. हेलिकॉप्टर क्रैश की ख़बर बाद तेहरान में सरकार समर्थक रईसी के लिए प्रार्थना करने जुटने लगे थे.

सोमवार को भी तेहरान में बड़ी संख्या में लोग रईसी के सम्मान में शामिल हुए.

लेकिन ईरान में सड़कों पर रईसी के सम्मान में सहज रूप से बड़ी संख्या में भीड़ नहीं जुटी.इसके साथ ही सोशल मीडिया पर कई सारी पोस्ट ऐसी दिखीं, जिनमें रईसी पर तंज़ था या ख़ुशी का प्रदर्शन था.एक्स पर कुछ लोगों ने रईसी की मौत पर जश्न का वीडियो और फोटो शेयर किया है.

इन वीडियो और फोटो में लोग आतिशबाज़ी करते दिख रहे हैं.

किनके लिए गुड न्यूज़?

यहाँ तक कि रईसी के इंस्टाग्राम पेज पर कॉमेंट में लोगों ने उनकी मौत को गुड न्यूज़ कहा.

एक व्यक्ति ने लिखा है, “उम्मीद करता हूँ कि हेलिकॉप्टर क्रैश में किसी पेड़ को कोई नुक़सान नहीं हुआ होगा.”

रईसी के ख़िलाफ़ कुछ कॉमेंट बाद में हटाए भी गए.

हालाँकि ईरान की बड़ी आबादी क्या सोचती है, इसका अनुमान सोशल मीडिया से नहीं लगाया जा सकता.

ईरान में सरकार का विरोध अक्सर युवा वर्ग करता है और यही वर्ग सोशल मीडिया पर ज़्यादा सक्रिय रहता है.ईरान में सभी बड़े सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे एक्स और इंस्टाग्राम पर प्रतिबंध है. यहाँ तक कि सरकार के कई लोगों का सोशल मीडिया अकाउंट है.ईरान में प्रतिबंध के बावजूद ज़्यादातर युवा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी वीपीएन से इस्तेमाल करते हैं.

ऐसे में यह बताना संभव नहीं है कि जिन ईरानियों ने सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट किया है, वो ईरान से किया है या ईरान के बाहर से.

रईसी को 1980 के दशक की उस कमेटी के लिए भी ख़ूब कोसा जाता है, जिसने हज़ारों लोगों को फाँसी की सज़ा सुनाई थी.तब रईसी इस कमेटी में डिप्टी प्रॉसिक्युटर थे. इस चार सदस्यीय कमेटी को डेथ कमेटी भी कहा जाता है. कमेटी ने ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़ुमैनी के फ़तवे पर हज़ारों राजनीति बंदियों को फाँसी पर लटका दिया था.

अतीत का हवाला
ईरान के कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स ने रईसी का एक वीडियो भी पोस्ट किया है, जिसमें वह तुर्की के राष्ट्रपति के साथ जाने-माने ईरानी कवि हाफ़िज़ की कविता की एक चर्चित लाइन बोल रहे हैं.रईसी ने फ़लस्तीनियों के लिए यह लाइन बोली थी. लाइन थी- ख़ुश रहो कि ज़ालिम कभी घर नहीं पहुँचेगा.

कुछ लोगों ने यूक्रेन इंटरनेशनल एयरलाइंस की फ्लाइट PS752 में 167 लोगों की जान गँवाने वाली घटना की भी याद दिलाई.इस विमान को जनवरी 2020 में ईरान की रिवॉल्युशनरी गार्ड कोर ने मार गिराया था.तब आईआरजीसी ने कहा था कि उसने ग़लती से मिसाइल यूक्रेन के प्लेन पर दाग दिया था.

बाद में इस मामले में ईरान ने 10 लोगों को जेल की सज़ा दी थी लेकिन पीड़ितों के परिवारों का कहना था कि सारे निचले दर्जे के अधिकारी थे.इनका कहना था कि जिनकी मुख्य रूप से जवाबदेही बनती है, उन्हें कोई सज़ा नहीं मिली.

ईरान के हमाद इस्माइलियन ने यूक्रेन प्लेन हादसे में अपनी बेटी और पत्नी को खोया था.हमाद अभी कनाडा में रहते हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा, ”रईसी को मानवता के ख़िलाफ़ अपराध में निष्पक्ष अदालत के कठघरे में खड़ा करना चाहिए था.”

इस्माइलियन अब एक एक्टिविस्ट हैं. वह 1980 के दशक में ईरान में हज़ारों लोगों की फाँसी का संदर्भ देते हैं.यहाँ तक कि यूक्रेन के प्लेन को ईरान ने जब मार गिराया तब रईसी सुप्रीम नेशनल सिक्यॉरिटी काउंसिल के सदस्य थे.

इस्माइलिन कहते हैं कि पीड़ितों को इंसाफ़ का हक़ नहीं दिया गया लेकिन रईसी का नाम हमेशा इतिहास में हमेशा अंधकार और अपराध से जुड़ा रहेगा.2022 में माशा अमीनी की मौत के बाद ईरान में भड़के विद्रोह का भी लोग हवाला दे रहे हैं.

रईसी इसी साल ईरान के राष्ट्रपति बने थे. 22 साल की माशा अमीनी की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी.माशा अमीनी को 2022 में हिजाब के नियम का उल्लंघन के मामले में गिरफ़्तार किया गया था.

ईरान के विदेश मंत्री अमीर-अब्दुलाहियन की भी हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई.

उनकी एक टिप्पणी रीपोस्ट किया गया है, जिसमें उन्होंने एक रिपोर्टर से कहा था, ”ईरान में विरोध-प्रदर्शन में किसी भी मौत नहीं हुई है.”

हालाँकि मानवाधिकार समूहों का कहना है कि 2022 के विरोध प्रदर्शन में ईरान में 500 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी.

एक्स पर जाने-माने इन्फ्लुएंसर @Banafshehviola ने रविवार की रात कहा था कि अगर रईसी की मौत होती है तो वह एक न्यूड फोटो शेयर करेंगी.बाद में उन्होंने लिखा, अरे, ये तो सच में मौत हो गई.

 

इस्लामी क्रांति के बाद ईरान के शासकों का हाल: हत्या, बेदखली और पतन
ईरान के शासनाध्यक्षों का अंत
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के 45 वर्षों के इतिहास में, मौजूदा सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई को छोड़कर, सभी राष्ट्राध्यक्षों को किसी न किसी मुसीबत का सामना करना पड़ा है.

या तो वे सत्ता में रहते हुए मर गए या उन्हें राजनीतिक रूप से निशाना बनाया गया है. कई तो राष्ट्रपति बनने के बाद दोबारा चुनाव लड़ने से बेदख़ल कर दिए गए

मोहम्मद अली राज़ई के बाद, इब्राहिम रईसी दूसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनका कार्यकाल किसी घातक दुर्घटना के कारण समाप्त हुआ है.

इब्राहिम रईसी रविवार को पूर्वी अज़रबैजान प्रांत में बांध का उद्घाटन करके लौट रहे थे तभी उनका हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया था.

मौत की पुष्टि सोमवार को घटनास्थल पर पहुँचने के बाद की गई. इस हादसे में राष्ट्रपति और विदेश मंत्री समेत नौ लोगों की मौत हुई है.

ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी

उन्हें गुरुवार को मशहद में दफ़नाया जाएगा. यह वही शहर है जहां साल 1960 में रईसी का जन्म हुआ था.

अब आइए एक नज़र डालते हैं 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से अब तक ईरान के शासकों और उनके राजनीतिक करियर के अंत पर.

मेहदी बज़ारगान: इस्तीफा

1979 में इस्लामी क्रांति के बाद सरकार के पहले (अस्थायी) प्रधानमंत्री मेहदी बज़ारगान को पहले दिन से ही शिकायतें थीं. वे अपने पद के लिए अधिक शक्तियां चाहते थे.

जब उन्हें तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा होने सहित कई बाधाओं का सामना करना पड़ा और वे कुछ भी करने में असमर्थ हो गए, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

मेहदी बज़ारगन ने अपने इस्तीफे के दो दिन बाद देश की जनता को संबोधित एक संदेश में कहा था कि जब एक प्रधानमंत्री को भी किसी से मिलने के लिए धर्मगुरु की अनुमति की जरूरत पड़ती है, तो एक असहनीय दर्द महसूस होता है.

मोहम्मद मोख़बर: ‘समंदर में उतरकर भी न भीगने वाले

अबुल हसन बनी सद्र: बर्खास्तगी और पलायन

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के पहले धर्मगुरु अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी ने देश के राष्ट्रपति के रूप में एक साधारण व्यक्ति अबुल हसन बनी सद्र को प्रत्याशी बनाया.

और अबुल हसन ने 75% से अधिक वोटों से चुनाव जीता.

युद्ध मामलों के प्रबंधन के उनके तरीके और इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी के थोपे गए प्रधानमंत्री मोहम्मद अली राजाई से उनके विरोध ने मतभेदों को बढ़ा दिया.

उन्होंने इराक़ के साथ युद्ध में सेना की भूमिका पर जोर दिया, लेकिन इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी आईआरजीसी (रिपब्लिकन गार्ड्स) की बड़ी भूमिका चाहती थी.

उस वक्त के सुप्रीम लीडर खुमैनी ने उन पर इस हद तक भरोसा किया कि, संविधान को दरकिनार करते हुए बनी सद्र को सामान्य बलों की भी कमान सौंप दी.

अबुल हसन बनी सद्र और ईरानी मजलिस में बहुमत वाली इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी के बीच संघर्ष के कारण आख़िरकार उनकी बर्खास्तगी हुई.

ईरानी कैलेंडर के मुताबिक जून 1981 में ईरान के पहले राष्ट्रपति को उनकी “राजनीतिक अक्षमता” की बिनाह पर संसद के निर्णायक वोट द्वारा पद से हटा दिया गया.

महाभियोग की सुनवाई के दौरान अली ख़ामेनेई समेत उनके विरोधियों ने, उनके खिलाफ़ जोरदार भाषण दिए.

उनकी बर्खास्तगी के बाद, बनी सद्र को “देशद्रोह और शासन के खिलाफ साजिश” के आरोप में गिरफ्तारी वारंट का सामना करना पड़ा.

वह फ्रांस भाग गए और अपने जीवन का बाकी वक्त वहीं बिताया.

मोहम्मद अली रजाई: बमबारी

बनी सद्र की बर्खास्तगी के बाद, मोहम्मद अली राज़ई राष्ट्रपति बने.

उनका कुछ हफ्तों का राष्ट्रपति का कार्यकाल कोई ख़ास नहीं था. उन्होंने दो अगस्त 1981 को पदभार संभाला था.

उसी साल प्रधानमंत्री कार्यालय में हुए विस्फोट में देश के प्रधानमंत्री मोहम्मद जवाद बहनार के साथ उनकी मृत्यु हो गई थी.

ये घटना 30 अगस्त 1981 को हुई थी.

इस बमबारी का आरोप पीपल्स मोजाहिदीन संगठन (साज़मान ए मुजाहिदीन ए खल्क) पर लगा, हालाँकि इस संगठन ने आधिकारिक तौर पर इस बमबारी की ज़िम्मेदारी नहीं ली.

राज़ई के बाद अली खामेनेई राष्ट्रपति बने. राष्ट्रपति कार्यकाल के अंत में और अयातुल्ला खुमैनी की मृत्यु के बाद उन्हें नेता के रूप में चुना गया था.

ख़ामेनेई, ईरानी क्रांति के बाद सरकार के एकमात्र प्रमुख हैं जो अपने कार्यकाल के अंत में एक उच्च पद पर पहुँचे और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में जीत हासिल की.

मीर हुसैन मोसवी: कारावास

ख़ामेनेई, अली अकबर वेलायती को अपना प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन संसद में वेलायती विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए. आख़िरकार, उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध मीर हुसैन मोसवी का नाम संसद में प्रस्तुत करना पड़ा.

उनके तनावपूर्ण रिश्तों के कारण, एक बार मीर हुसैन मोसवी को इस्तीफा देना पड़ा था.

ख़ामेनेई के नेतृत्व में और 1980 के दशक में संविधान के संशोधन के बाद प्रधानमंत्री का पद खत्म कर दिया गया.

इसके बाद मोसवी राजनीति से अलग हो गए और बीस साल तक सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं दिखे.

बीस साल सियासी चुप्पी तोड़ते हुए मोसवी ने 2009 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने की हामी भरी. लेकिन वे इस अभियान में सफल नहीं हुए.

इस चुनाव के बाद प्रदर्शनकारियों ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद को हटाने के लिए मुहिम छेड़ी. इसे ग्रीन मूवमेंट का नाम दिया गया.

इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान टकराव के कारण मोसवी को नज़रबंद कर दिया गया.

अरब जगत में मची उथल पुथल के बाद दो फ़रवरी 2013 को मोसवी को गिरफ़्तार कर लिया गया. वे अब भी जेल में बंद हैं.

अकबर हाशमी रफ़संजानी: पूल में ‘संदिग्ध’ मौत

साल 1989 में रफ़संजानी ईरान के राष्ट्रपति बने. उनके कार्यकाल के शुरुआती चार साल तनावपूर्ण थे.

हिज़्बुल्लाह जैसे संगठनों ने उनकी सांस्कृतिक नीतियों का विरोध करना शुरू कर दिया था.

साल 1993 में शुरू हुए रफ़संजानी के दूसरे कार्यकाल में अयातुल्ला खामेनेई ने “अभिजात वर्ग और मुक्त बाजार नीति” का खुले तौर पर विरोध किया.

अकबर हाशमी रफसंजानी को खुमैनी के बाद ईरान की सत्ता का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था.

वे 2005 के चुनावों के दूसरे दौर में महमूद अहमदीनेजाद से हार गए थे, लेकिन उनके राजनीतिक निष्कासन की प्रक्रिया में निर्णायक मोड़ 17 जुलाई 2009 को आया.

उस साल अहमदीनेजाद ने चुनाव तो जीता था लेकिन लोगों ने धांधली के आरोप लगाए थे. तेहरान समेत देश के कई शहरों में इसका विरोध भी हुआ था.

17 जुलाई को हाशमी ने तेहरान में शुक्रवार की प्रार्थना के दौरान अपना अंतिम राजनीतिक उपदेश दिया. इसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया और महमूद अहमदीनेजाद के चुनाव परिणाम को ‘संदिग्ध’ बताया.

इसके बाद 2013 में उन्होंने एक बार फिर राष्ट्रपति बनने के लिए नामांकन भरा. ये हैरान करने वाली ख़बर थी.

पूर्व सुधारवादी राष्ट्रपति मोहम्मद ख़ातमी ने उनका समर्थन किया, लेकिन 21 मई 2013 को ईरान की गार्डियन काउंसिल ने उनका नामांकन रद्द कर दिया.

लेकिन दो साल बाद वे ईरानी संसद के ऊपरी सदन यानी मजलिस ए खोब्रगान के चुनाव में तेहरान से भारी बहुमत से जीते.

8 जनवरी 2017 को स्विमिंग पूल में नहाते हुए उनकी मौत हो गई. इस मौत को संदिग्ध माना जाता है.

2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने रफ़सनजानी की मौत को दोबारा इन्वेस्टिगेट करने का आदेश दिया.

परिवार का आरोप था कि उनके शरीर में आम व्यक्ति से 10 गुना अधिक रेडियोएक्टिविटी थी.

मोहम्मद खातमी: सुधारों पर ज़ोर

मोहम्मद ख़ातमी 23 मई 1997 को दो करोड़ से अधिक वोटों के साथ ईरान के राष्ट्रपति चुने गए थे, लेकिन शुरुआती महीनों से ही सरकार में तनाव के संकेत साफ दिखाई देने लगे थे.

साल 2001 में ईरान के सर्वोच्च नेता ने सुधारवादी प्रेस को ‘दुश्मन का डेटाबेस’ कहा और दर्जनों प्रकाशन बंद कर दिये गए.

राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी ने कहा कि उनकी सरकार को हर 9 दिन में एक बार संकट का सामना करना पड़ता है.

2004 के संसदीय चुनावों के नतीजों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की घटनाओं के बाद, ईरान के अंदर मीडिया में ख़ातमी की तस्वीर छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

फ़ार्स समाचार एजेंसी के मुताबिक उनके देश छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

भले ही उन्हें ईरान में राजनीतिक गतिविधियों से हटा दिया गया था लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ सुधारवादियों के विरोध के बावजूद लोगों को पिछले चुनावों में भाग लेने को आमंत्रित किया.

महमूद अहमदीनेजाद: गुस्सैल नेता

अहमदीनेजाद 2005 में राष्ट्रपति बने थे. उनके चुनाव के बाद आयतुल्लाह ख़ामेनेई और उनके करीबी मौलवियों के बयानों से ऐसा लगा था कि ईरान को राष्ट्रपति पद को अपना सबसे उपयुक्त व्यक्ति मिल गया है.

लेकिन यह राजनीतिक दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली. अहमदीनेजाद ने 2009 में दूसरी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता.

उन्होंने शपथ समारोह में ईरानी नेता(धर्मगुरु) के हाथ के बजाय कंधे को चूमा. ईरान में ऐसा कोई रिवाज़ नहीं है.

कुछ दिनों बाद, उन्होंने असफनदियार रहीम मशाई को प्रथम डिप्टी के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन ख़ामेनेई ने एक निजी पत्र में कहा कि वह इस तरह के विकल्प को सही नहीं मानते हैं.

लेकिन अहमदीनेजाद ने तब तक अपना निर्णय नहीं बदला जब तक ईरान के सुप्रीम लीडर ख़ामेनेई के कार्यालय ने इस ख़त को सार्वजनिक नहीं किया.

इसके बाद ख़ामेनेई ने सूचना मंत्री हैदर मोस्लेही की बर्खास्तगी का विरोध किया, लेकिन राष्ट्रपति इस विरोध से प्रभावित नहीं हुए.

गुस्से के संकेत के तौर पर वे 11 दिनों तक राष्ट्रपति कार्यालय में नहीं गए. महमूद अहमदीनेजाद तीसरे कार्यकाल के लिए एक बार फिर 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में कूद पड़े, लेकिन गार्डियन काउंसिल ने उनकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया.

हसन रूहानी

हसन रूहानी 2013 का राष्ट्रपति चुनाव जीतकर सत्ता में आए थे. उन्हें सबसे सुरक्षित राजनीतिक शख्सियतों में से एक माना जाता है.

अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही, रूहानी ने ख़ामेनेई का विश्वास हासिल करने की कोशिश की.

हालाँकि, अमेरिका के साथ बातचीत करने की कोशिश और ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (जेसीपीओए) नामक एक अन्य समझौते की तैयारी करने के लिए खामेनेई की ओर से कई बार आलोचना हुई.

हसन रूहानी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ कई आर्थिक अपराध के आरोप लगाए गए. जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे उनमें उनके भाई हसन फरीदून भी शामिल थे.

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