AtoZ:बहुत हुआ,बंद हों अब EVM पर सवाल,42 बार हो चुकी अग्निपरीक्षा

There Should Now Be A Full Stop On The Question Mark Of Evms And Etpbs, Which Has Already Passed The Ordeal 42 Times
EVM पर प्रश्नचिन्ह करें अब बंद,42 बार हो चुकी अग्निपरीक्षा
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ETPBS) को लेकर हाल ही में फिर विवाद खड़ा हो गया है। विपक्ष ने एक बार फिर ईवीएम पर संदेह जताया तो वहीं सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग ने इस मामले में फिर तस्वीर साफ की है। आइए-समझते हैं कि ETPBS क्या है और इसकी प्रक्रिया क्या है? यह भी समझते हैं कि क्या ईवीएम और ETPBS हैकिंग फ्री है।

मुख्य बिंदु
EVM और ETPBS पर विपक्ष बार-बार क्यों उठा रहा है उंगली
2017,2019 और 2024 में चुनाव आयोग ने साफ की तस्वीर
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग कई बार दे चुका है क्लीन चिट

नई दिल्ली 17 जून 2024: जून, 1977 , जब देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बनें शामलाल शकधर। पोलिंग बूथ लूटे जाने से उन्हें यह आइडिया आया कि देश में आम चुनाव भी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से हों। तब शकधर ने सरकार से चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के इस्तेमाल की संभावना तलाशने को कहा था। उनका यह विचार आखिरकार रंग लाया। केरल की पेरावायूर विधानसभा सीट पर मई, 1982 में चुनाव कराए गए, जिसमें इसके 123 पोलिंग बूथों में से 50 पर पहली बार परंपरागत बैलेट पेपर की जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) उपयोग हुई। हालांकि, तब से अब तक EVM की हैकिंग और उसकी सुरक्षा में सेंध को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बार-बार ईवीएम को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग तक ईवीएम को प्रमाणित कर चुके है। लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद विपक्षी दलों ने फिर ईवीएम कटघरे में खड़ी की है। विवाद तब शुरू हुआ, जब कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मुंबई में एनडीए के एक प्रत्याशी के सहयोगी का मोबाइल फोन ईवीएम से जुड़ा था। विवाद में इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट सिस्टम पर भी सवाल उठाए गए। इस विवाद में सरकार, विपक्ष, चुनाव आयोग और हजारों किलोमीटर दूर बैठे स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क भी कूद पड़े। समझते हैं पूरी कहानी।

क्या है इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम
इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ETPBS) सर्विस वोटर्स के लिए होता है। मतपत्रों की जगह इसका इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, वोट कभी इलेक्ट्रॉनिक रूप से नहीं भेजे जाते हैं। ETPBS से सर्विस वोटर्स को इलेक्ट्रॉनिक रूप से बैलेट पेपर इनक्रिप्टेड रूप में भेजे जाते हैं, जिसमें कई स्तरों पर पासवर्ड्स और पिन के इंतजाम होते हैं। रिसीव कर डाउनलोड करने पर पोस्टल बैलेट्स पर वोट अंकित होता है। इसे फिर पोस्ट से संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर को भेजा  जाता है।

सर्विस वोटरों के मतदान को पहले क्या होती थी प्रक्रिया
पहले हर सर्विस वोटर को एक बैलेट पेपर प्रिंट किया जाता था। फिर उसे लिफाफे में रखकर सर्विस वोटर के पते पर भेजा जाता था। इसमें काफी समय और पैसा लगता था। अब यही बैलेट मेल से एनक्रिप्टेड रूप में सर्विस वोटर को मिलता है।

आयोग के एक पोर्टल से शुरू होती है सर्विस वोटर के लिए प्रॉसेस
चुनाव आयोग ने ETPBS के लिए एक पोर्टल बनाया है, जिसे संबंधित चुनाव अधिकारी लॉग इन कर सकते हैं। पोर्टल पर लॉग इन करने को रिटर्निंग ऑफिसर संबंधित चुनाव अधिकारी के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी भेजता है। इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर पासवर्ड प्रोटेक्टेड पोस्टल बैलेट संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के लिए तैयार करता है, जहां इसे डाउनलोड कर लिया जाता है। इसके बाद वहां से इसे संबंधित सर्विस वोटर को भेजा जाता है।

पोस्टल बैलेट की गणना ईवीएम से पहले की जाती है
पोस्टल बैलेट की गणना ईवीएम से पहले होती है। काउंटिंग से पहले बैलेट पेपर के लिफाफे पर लिखे यूनीक सीरियल नंबर्स का मिलान किया जाता है। इसके बाद काउंटिंग ऑफिसर ETPBS में लॉग इन करता है।

EVM को लेकर आयोग ने क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट में
चुनाव आयोग ने 2017 में ऐसे ही आरोपों के जवाब में एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा था कि ईवीएम कंप्यूटर कंट्रोल नहीं है। यह मात्र एक मशीन है, जो इंटरनेट या किसी नेटवर्क से कभी भी जुड़ी नहीं होती है। ऐसे में रिमोट डिवाइस से ईवीएम की हैकिंग नहीं की जा सकती है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी अलग-अलग मीडिया प्लेटफॉर्मों पर ईवीएम में हैकिंग की बात को निराधार बता चुके हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और चुनाव विश्लेषक राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि पहली बार 1982 में ईवीएम का इस्तेमाल होना शुरू हुआ था, तब से अब तक करीब 42 साल हो चुके हैं। हालांकि, इस दौरान ईवीएम को कम से कम 42 बार अग्निपरीक्षा भी देनी पड़ी। बार-बार ऐसे आरोपों या सवालों से संवैधानिक संस्थाएं कमजोर होती हैं। अब यह रुकना चाहिए, क्योंकि देश अब बैलेट पेपर से चुनाव कराने को पीछे नहीं लौट सकता है।
2019 में चुनाव आयोग ने विपक्ष के आरोपों पर क्या कहा था
2019 में विपक्ष के ईवीएम की हैकिंग के आरोपों पर जवाब देने को पोल पैनल का गठन हुआ था। तब पोल पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ईवीएम टेंपर प्रूफ है। इससे छेड़छाड़ तभी संभव है, जब इस तक फिजिकली पहुंच हो और ईवीएम की सीलिंग प्रॉसेस रोकी जाए। हैदराबाद में मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी (MANNU) में प्रोफेसर और CSDS से जुड़े निशिकांत कोलगे के अनुसार, ईवीएम में छेड़छाड़ किसी भी सूरत में संभव नहीं है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि इसे किसी इंटरनेट या वाई-फाई से कनेक्ट नहीं किया जा सकता है। इस पर अकारण विवाद होता  है। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग भी इसे कई बार हरी झंडी दे चुका है।

प्रत्याशी के रिश्तेदार का फोन ईवीएम से जुड़ा था : 
दरअसल, कांग्रेस ने मुंबई के एक प्रत्याशी को लेकर ट्वीट किया था कि EVM से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है। मुंबई में NDA के कैंडिडेट रवींद्र वायकर के रिश्तेदार का मोबाइल फोन EVM से जुड़ा था। NDA के इस कैंडिडेट की जीत सिर्फ 48 वोट से हुई है। ऐसे में सवाल है कि आखिर NDA के कैंडिडेट के रिश्तेदार का मोबाइल EVM से क्यों जुड़ा था? जहां वोटों की गिनती हो रही थी, वहां मोबाइल फोन कैसे पहुंचा? सवाल कई हैं, जो संशय पैदा करते हैं। चुनाव आयोग को स्पष्टीकरण देना चाहिए।
ईवीएम के लिए ओटीपी की जरूरत नहीं : मुंबई उत्तर-पश्चिम सीट निर्वाचन अधिकारी वंदना सूर्यवंशी ने कहा, ईवीएम के लिए किसी तरह के ओटीपी की जरूरत नहीं होती। आरोप गलत है। इसमें सिर्फ रिजल्ट बटन प्रेस करके काम होता है। इलेक्शन कमीशन ने अपनी प्रकिया का पालन किया है। सबंधित अखबार को डिफिमेशन का नोटिस दिया गया है।

एलन मस्क के एक ट्वीट से शुरू हुआ बवाल
दरअसल, ईवीएम पर यह बहस स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क के एक पोस्ट से शुरू हुई। मस्क की यह पोस्ट भारत को लेकर नहीं थी। मस्क ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी के भतीजे और आगामी अमेरिकी चुनावों में इंडिपेंडेंट उम्मीदवार रॉबर्ट एफ केनेडी की सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में एक पोस्ट की। उसमें रॉबर्ट एफ केनेडी ने अमेरिका के प्यूर्टोरिको में हुए प्राइमरी इलेक्शन में ईवीएम की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे और कहा था कि सौभाग्य से वहां पेपर ट्रेल था, जिससे समस्या की पहचान हो सकी। इस पर मस्क ने कहा था कि हमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को खत्म कर देना चाहिए। मनुष्य या एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) इसे हैक कर सकते हैं। इसे हैक करने का जोखिम काफी ज्यादा है।
मस्क को चंद्रशेखर का जवाब, ईवीएम में ब्लूटुथ नहीं
पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मस्क के बयान के विरोध में पलटवार कर कहा कि इस बयान में कोई सच्चाई नहीं है। ईवीएम में कोई कनेक्टिविटी नहीं, कोई ब्लूटुथ नहीं, वाई-फाई नहीं, इंटरनेट नहीं, कोई रास्ता नहीं है। फैक्टरी-प्रोग्राम किए गए ऐसे कंट्रोलर होते हैं, जिन्हें फिर से प्रोग्राम नहीं किया जा सकता। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें भारत ने अच्छी तरह से डिजाइन की है। ईवीएम हैक करने की आशंका अमेरिका समेत दूसरे देशों में हो सकती हैं, जहां इंटरनेट से जुड़ी वोटिंग मशीनें बनाने को स्टैंडर्ड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, मस्क ने चंद्रशेखर की पोस्ट पर जवाब देते हुए कहा-कुछ भी हैक किया जा सकता है।
भारत में ईवीएम ब्लैक बॉक्स जैसा: राहुल गांधी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि भारत में ईवीएम एक ‘ब्लैक बॉक्स’ की तरह है, जिसकी जांच करने की अनुमति किसी को भी नहीं है। हमारे देश की चुनावी प्रक्रिया के पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। जब संस्थाओं में जवाबदेही की कमी होती है, तो लोकतंत्र एक दिखावा बन जाता है और धोखाधड़ी का शिकार हो जाता है।

अखिलेश बोले- भविष्य में चुनाव बैलेट पेपर से हों
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ईवीएम को लेकर कहा- कोई टेक्नोलॉजी समस्याओं को दूर करने को होती है। अगर वही मुश्किलों की वजह बन जाए, तो उसका इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। अखिलेश पहले भी ईवीएम को लेकर सवाल करते रहे है। आज जब विश्व के कई चुनावों में EVM को लेकर गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है और दुनिया के जाने-माने टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स EVM में हेराफेरी के खतरे की ओर खुलेआम लिख रहे हैं, तो फिर EVM के इस्तेमाल की जिद के पीछे की वजह क्या है। ये बात भाजपाई साफ करें। भविष्य सभी चुनाव बैलेट पेपर (मतपत्र) से कराने की अपनी मांग को हम फिर दोहराते हैं।
‘जिसे मान रहे थे EVM की सबसे बड़ी कमी, वो बाद में बन गई सबसे बड़ी खूबी’, जानिए क्यों ऐसा बोले राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग अध्यक्ष राजीव करंदीकर
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग अध्यक्ष राजीव करंदीकर ने ईवीएम को लेकर विस्तार से बात करते हुए बताया कि ईवीएम को हैक नहीं किया सकता है

लल्लनटॉप के ‘गेस्ट इन न्यूजरूम’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग अध्यक्ष राजीव करंदीकर ने ईवीएम पर तमाम सवालों के जवाब दिए.

करंदीकर 2018 में, चुनाव आयोग की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से संबंधित शिकायतों की जांच को बनाई तीन सदस्यीय समिति के सदस्य थे जिसकी रिपोर्ट अप्रैल 2019 में ईवीएम के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट के निरस्त करने का आधार बनी थी. इस साक्षात्कार में, करंदीकर ने ईवीएम और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपीएटी) के इतिहास और संचालन पर विस्तार से जानाकारी दी .

करंदीकर ने बताया कि किसी भी कैंडिडेट को श किसी तरह का संदेह होता है तो वह ईवीएम की रिकाउंटिंग की मांग कर सकता है. चुनाव निरस्त केवल एक्ट्रीम सिचुएशन में होता है. रिमोट से ईवीएम को हैक किया जा सकता है कि नहीं? इसके जवाब में कंरदीकर ने बताया कि ऐसा नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि अगर एक मशीन हैक हो सकती है तो फिर तो और भी मशीनें हैक हो सकती है.

ईवीएम के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए करंदीकर ने कहा, कि’ईवीएम एक नहीं बल्कि दो चीजें हैं, एक तो वह है जहां पर वोटर जाकर प्रेस करता है.दूसरा वो है जैसे आप बूथ के अंदर जाते हैं तो वहां दो-तीन जगह आपका वैलिडेशन होता है  कोई आपका नाम पूछता है, कोई स्याही लगाता है फिर लास्ट पर्सन सब कुछ देखकर कहता है जाइए, उसके पास एक मशीन रहती है, वो भी ईवीएम का ही पार्ट है. वह मशीन को इनेबल करता है ताकि मशीन एक और वोट एक्सेप्ट कर सके. वोट देते आपने अंदर रहते हुए 2-3 बटन एक साथ दबा दिए तो रिकॉर्ड में वहीं जाएगा जिस पर आपने सबसे पहले बटन दबाया. उसके बाद जो भी बटन दबाएंगे वो ब्लॉक हो जाएगा. बाहर बैठ कर्मचारी के पास कंट्रोल यूनिट है ईवीएम की. वीवीपैट लागू होने के बाद यह फीचर ऐड हुआ कि वोट देने वाला उसमें पर्ची देख सकता है कि सही उम्मीदवार को ही वोट गया है कि नहीं.’

जिसे समझा कमजोरी वहीं बना EVM की ताकत

कंरदीकर ने बताया कि ‘1977 में चुनाव आयोग ने वोटिंग मशीन को लेकर काम करना शुरू किया और 1982 में पहली बार केरल में चुनाव हुए जो बाद में रद्द हो गए क्योंकि कानून में उसका अप्रूवल नहीं था. 1989 में लॉ अमेंड हुआ. इसके बाद, 1989 में रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में संशोधन हुआ और EVM से चुनाव कराने की बात जोड़ी गई. उसके बाद 1999 में पहली बार चुनाव आयोग ने इसे शुरु किया.तब मैं पत्रकार था.जब चुनाव आयोग की इसे लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो मुझे भी लगा कि आज के जमाने में तो यह बड़ा बेकार डिजाइन है. आय़ोग ने तब पूरा प्रोसेस बताया था. मैंने सोचा था इसमें ना कोई नेटवर्किंग है और ना कुछ और है. मुझे लगा यह सब बेकार है…लेकिन आगे जाकर देखेंगे तो वहीं इसकी स्ट्रेंथ साबित हुए.’

नहीं हो सकती हैक

करंदीकर बताते हैं, ‘अगर EVM में नेटवर्किंग स्ट्रेंथ है तो कोई माइ का लाल ये सर्टिफाई नहीं कर सकता है कि ये हैक नहीं होगा. उदाहरण- जैसे कोई यह नहीं कह सकता है कि बिना चाबी के कोई ताला नहीं तोड़ सकता है. हैकिंग भी ऐसे ही चीज है जिसमें आप गारंटी नहीं दे सकते हैं कि नहीं हो सकती है.अगर नॉन नेटवर्किंग है तो फिर गारंटी है कि हैक नहीं हो सकती है. आयोग का क्लेम है कि इसमें कोई नेटवर्किंग डिजाइन नहीं है, उसमें कोई ब्लूटूथ नहीं है, उसमें वाईफाई नहीं है, कुछ नहीं कर सकते. वो आप सर्टिफाईड कर देंगे तो वह काफी है. यह पूरी तरह से स्टैंड अलोन डिवाइस है.

अमेरिका, फ्रांस जैसे कई वैश्विक देश जो पहले ईवीएम का प्रयोग कर रहे थे, वो वापस पेपर बैलेट पर आ गए हैं. जबकि भारत में ऐसा नहीं है, इस सवाल के जवाब में कारंदीकर ने बताया, ‘ये तो ऐसी तुलना हो गई कि वो एप्पल नहीं खा रहे हैं तो आप क्यों खा रहे हैं .उनके यहां के डिजाइन मॉर्डन थे. उनके यहां सबमें नेटवर्किंग है. मतलब अगर नेटवर्किंग हैं तो समस्या बनी रहेगी. जो वहां पर हुआ, उसके बाद जो मैं यहां अपनी वीकनेस मान रहा था, वो हमारी स्ट्रेंथ साबित हुई. उनके यहां सारी मशीनें नेटवर्किंग से जुड़ी हुई थी. वैसे ईवीएम अमेरिका में अभी भी कई जगहों पर यूज हो रही है.’

उन्होंने वोट देने के बाद की पर्ची मतदाता को देने की मांग का भी जवाब दिया. करंदीकर ने बताया कि अगर पर्ची दे भी दी जाए तो इससे तो खरीद फरोख्त को ही बढ़ावा मिलेगा. वोटर पर्ची लेकर उम्मीदवार को कहेगा कि आपको वोट दिया है, कीमत दो. दूसरा फिर ऐसा होता तो वीवीपैट के साथ मिलान कैसे होगा.

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एम3 मॉडल  आधारित भारतीय ईवीएम से छेड़छाड़ रोकने को  उन्नत सुरक्षा सुविधाओं के साथ डिजाइन किया गया है। मतदान प्रक्रिया की अखंडता कठोर परीक्षण और सीलिंग प्रक्रियाओं के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है। जहां तक टेस्ला के संस्थापक एलन मस्क की बात है तो उन्होंने भारत से इतर के ईवीएम के अनुभवों पर दावा किया कि इन्हें हैक किया जा सकता है।

मुख्य बिंदु 

ईवीएम हैक को लेकर एलन मस्क का दावा कितना सही?
एक्सपर्ट्स के अनुसार, भारत की ईवीएम हैक नहीं हो सकती
एम3 मॉडल पर आधारित ईवीएम मशीन बिल्कुल खास

ईवीएम पर एलन मस्क का दावा कितना सही?
दुनिया की प्रतिष्ठित टेक कंपनी टेस्ला के संस्थापक एलन मस्क ने दावा किया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को हैक की जा सकती हैं। इस पर पूर्व केंद्रीय सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि मस्क का दावा अमेरिका सहित दूसरे देशों की ईवीएम के लिए तो सही हो सकता है, लेकिन भारत के लिए नहीं। वहीं, भारतीय चुनाव आयोग ने भी कहा कि ईवीएम इंटरनेट, ब्लूटुथ या किसी और कम्यूनिकेशन सोर्स से जुड़ा हुआ नहीं होता है, इसलिए उसे हैक नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग ने कई मौकों पर ईवीएम पर उंगली उठाने वाले राजनीतिक दलों को चुनौती भी दी कि वो अपने आरोपों को साबित करें। लेकिन राजनीतिक दलों ने कभी चुनाव आयोग की चुनौती स्वीकार नहीं की। तो सवाल है कि आखिर विकसित देशों की ईवीएम हैक हो सकती हैं तो भारत की क्यों नहीं?

दरअसल, भारत में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम बनाने वाले इंजीनियर और एक्सपर्ट बताते हैं कि ये मशीनें बहुत ही जटिल होती हैं और इन्हें इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इनके साथ कोई छेड़छाड़ न हो पाए। हाल के लोकसभा चुनाव में 60 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं ने एम3 मॉडल की ईवीएम पर वोट डाला था। इस मॉडल में सुरक्षा की दृष्टि से कई नए फीचर जोड़े गए हैं, जो इसे और भी ज्यादा सुरक्षित बनाते हैं।

आईआईटी, गांधीनगर के डायरेक्टर और ईवीएम डिजाइन करने वाली टेक्निकल पैनल के सदस्य रजत मुना कहते हैं कि ईवीएम एक साधारण कैलकुलेटर जैसी ही होती है। उनके मुताबिक, ‘कोई भी ईवीएम हैक नहीं हो सकती है और न ही इनसे कोई छेड़छाड़ की जा सकती है।’ रजत मुना मानते हैं कि ईवीएम को लेकर बहस ज्यादातर राजनीतिक होती है, तकनीकी रूप से ‘भारतीय ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है।’

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बेहतरीन एम3 मॉडल पर आधारित हैं भारतीय ईवीएम
पिछले मॉडल की तुलना में एम3 मॉडल ज्यादा स्मार्ट है और इसमें कई काम अपने आप होते हैं। उदाहरण को, कंप्यूटर जब शुरू होता है, तो खुद-ब-खुद कुछ जांच करता है, ठीक उसी तरह एम3एम ईवीएम में भी शुरुआती जांच अपने आप होती है। एक्सपर्ट बताते हैं कि ‘अगर कोई ईवीएम से छेड़छाड़  की कोशिश करता है तो उसमें एक ऐसी तकनीक है जो उसे वापस फैक्ट्री सेटिंग पर ले आती है और मशीन काम करना बंद कर देती है।’ ये मशीनें न तो इंटरनेट से जुड़ी होती हैं और न ही इनमें ब्लूटूथ से कनेक्ट करने को आरएफ (रेडियो फ्रीक्वेंसी) होती है। यहां तक कि ये मशीनें बिजली के सॉकेट से भी नहीं जुड़ी होती।

एम3 मशीनें 2019 में पहली बार इस्तेमाल की गई थीं। भविष्य में कई राज्यों के चुनावों में भी इन्हीं मशीनों का इस्तेमाल होगा। इनकी लाइफ 15 साल की होती है, जिसके बाद इन्हें हटाकर नए वर्जन की मशीनें लगाई जाएंगी। एक्सपर्ट पैनल के एक सदस्य ने बताया, ‘हम एम4 मशीनों में नई तकनीक का इस्तेमाल करने के बारे में सोच रहे हैं।’

एलन मस्क का दावा और भारत से मिला जवाब
हाल ही में एलन मस्क ने ईवीएम को लेकर कहा था कि इन्हें हटा देना चाहिए क्योंकि ‘इंसानों या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हैकिंग का खतरा भले ही कम हो, फिर भी इतना है जिसे ज्यादा ही मना जाएगा।’ एलन मस्क ने यह बात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखी थी, जिसके जवाब में भारत के पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा था कि यह ‘बहुत बड़ा और गलत सामान्यीकरण’ है। एलन मस्क ने यह बात प्यूर्टो रिको में ईवीएम को लेकर किए गए एक पोस्ट के जवाब में कही थी।

रजत मुना का मानना है कि ईवीएम में सेंध लगाने के तरीकों को लेकर चल रही बातचीत ज्यादातर राजनीति प्रेरित है और वह इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहते। दिलचस्प बात यह है कि ‘पूरी तरह से स्वतंत्र’ रहने को ईवीएम की तकनीकी समिति का कोई भी सदस्य न तो कोई फीस लेता है और न ही वोटिंग मशीनों की डिजाइन या तकनीक के लिए कोई मानदेय स्वीकार करता है।

...ताकि दूर हो जाएं ईवीएम को लेकर सारे संदेह
बॉम्बे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (आईआईटी बॉम्बे) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में एमेरिटस प्रोफेसर और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक और सॉलिड स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स के विशेषज्ञ प्रोफेसर दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘हमें पता था कि सिर्फ यही एक तरीका है जिससे हम पूरी तरह से स्वतंत्र रह सकते हैं।’ हर चुनाव के बाद भारतीय ईवीएम और उन्हें कैसे हैक किया जा सकता है, इसको लेकर तरह-तरह की अफवाहें उड़ाई जाती हैं।

इन अफवाहों को दूर करने और लोगों के मन से शंकाएं मिटाने को दिनेश शर्मा ने दो घंटे का एक वीडियो तैयार किया है, जिसे लोग देख सकते हैं। वीडियो में उन्होंने बताया है कि दुनिया के बाकी हिस्सों में इस्तेमाल होने वाली वोटिंग मशीनों और भारत में इस्तेमाल होने वाली वोटिंग मशीनों में क्या अंतर है। वह जल्द ही एक और वीडियो जारी करने वाले हैं जिसमें नई मशीनों और उनमें मौजूद सुरक्षा सुविधाओं के बारे में बताया जाएगा ताकि लोगों के मन से संदेह दूर हो सके।
दुनिया से अलग हैं हमारी ईवीएम: एक्सपर्ट
अपनी वीडियो में प्रोफेसर दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘भारतीय ईवीएम दुनिया की दूसरी ईवीएम से अलग होती हैं। एम3 ईवीएम का किसी अन्य डिवाइस से कोई कनेक्शन नहीं होता है, यहां तक कि बिजली सप्लाई से भी नहीं। ईवीएम किसी अन्य डिवाइस से बात नहीं करती हैं। इन्हें सिर्फ वोटिंग को डिजाइन किया गया है और ये कोई सामान्य कंप्यूटर नहीं हैं जिनमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के लिए प्रोग्राम लोड किया गया हो। इसलिए, हमारी ईवीएम और कुछ नहीं कर सकती। इनमें कोई दूसरा प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर लोड नहीं किया जा सकता है।’

प्रोफेसर दिनेश शर्मा आगे बताते हैं कि अगर किसी ईवीएम में कोई खराबी आती है तो उस पूरी मशीन को बदलना पड़ता है। वह कहते हैं, ‘हर ईवीएम अपने आप में एक अलग इलेक्ट्रॉनिक आइलैंड की तरह होती है, और यही बात इन्हें सबसे सुरक्षित बनाती है।’ हर चरण पर ईवीएम के सॉफ्टवेयर की तीसरे पक्ष द्वारा समीक्षा होती है, जबकि उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कई बार मॉक पोलिंग की जाती है। इन जांचों के बाद मशीनों को नासिक सिक्यॉरिटी प्रिंटिंग प्रेस के ‘दुर्लभ’ कागज से सील कर दिया जाता है, जिस कागज का उपयोग भारतीय मुद्रा नोट छापने को किया जाता है।

जब भी मशीनों को सील किया जाता है या खोला जाता है तो यह चुनाव उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में किया जाता है। इसके अलावा, जब ईवीएम को मतदान के दिन से पहले ले जाया जाता है और भंडारण किया जाता है तो भंडारण कक्ष को कड़े मानदंडों को पूरा करना होता है, जैसे कि उसमें सिर्फ एक ही दरवाजा हो। दिनेश शर्मा बताते हैं, ‘उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों को मतदान के दिन तक 24 घंटे बाहर डेरा डालने की अनुमति देने का भी प्रावधान है।’

आज तक कभी नहीं मिली एक भी गलती
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सामान्य चुनावों के लिए 20,625 रैंडम चुने गए वीवीपैट की मतपत्र पर्चियों की गिनती की जाती है और उनकी कंट्रोल यूनिट के इलेक्ट्रॉनिक काउंट से मिलाया जाता है। एक्सपर्ट का कहना है कि अगर इतने बड़े नमूने में ईवीएम और वीवीपैट की गिनती के बीच कोई अंतर नहीं पाया जाता है तो यह लगभग निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता भंग नहीं होती है।

अब तक रैंडम चुने गए 41,629 वीवीपैट की मतपत्र पर्चियों की गिनती उनकी कंट्रोल यूनिट के इलेक्ट्रॉनिक काउंट से मिलान किया जा चुका है और ‘ए’ उम्मीदवार के लिए दिए गए वोट को ‘बी’ उम्मीदवार को ट्रांसफर करने का एक भी मामला नहीं पाया गया है। अगर गिनती में कोई अंतर पाया भी गया है, तो वह मानवीय भूल से होता है, जैसे कंट्रोल यूनिट से मॉक पोल वोट को डिलीट न करना या वीवीपैट से मॉक पोल स्लिप  न निकालना।

ईवीएम का इतिहास
भारत में पहली बार चुनाव आयोग ने 1977 में सरकारी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) को EVM बनाने का काम दिया. 1979 में ECIL  EVM का प्रोटोटाइप लाया, जिसे 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को दिखाया. इसके बाद, मई 1982 में पहली बार केरल में विधानसभा चुनाव EVM से कराए गए. उस समय EVM से चुनाव कराने का कानून नहीं था. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम से मतदान को चुनौती दी गई, जिसके बाद वे चुनाव निरस्त हो गये.इसके बाद, 1989 में रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट,1951 में संशोधन हुआ और EVM से चुनाव की बात जोड़ी गई.यद्यपि कानून बनने पर भी कई सालों तक EVM का इस्तेमाल नहीं हो सका.

1998 में मध्य प्रदेश,राजस्थान और दिल्ली की 25 विधान सभा सीटों पर EVM से चुनाव हुए. 1999 में 45 लोकसभा सीटों पर भी EVM से वोट डाले गए. फरवरी 2000 में हरियाणा के चुनावों में भी 45 सीटों पर EVM इस्तेमाल हुई.मई 2001 में पहली बार तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल की सभी विधानसभा सीटों पर EVM से वोट डाले गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में सभी 543 सीटों पर EVM से वोट पड़े. तभी से हर चुनाव में सभी सीटों पर EVM से वोट डाले जा रहे हैं

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