एससी-एसटी आरक्षण उपवर्गीकरण विरोधी याचिकाएं सुको से निरस्त

Supreme Court Sub-classification Scheduled Castes for quota review of judgment plea dismissed

‘फैसले में त्रुटि नहीं’, अदालत में एससी-एसटी के उपवर्गीकरण के आदेश पर समीक्षा याचिकाएं निरस्त

नई दिल्ली 06 अक्टूबर 2024 । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति के उपवर्गीकरण से जुड़े मामले में उसके आदेश में कोई गलती नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने समीक्षा याचिकाएं निरस्त कर दी। अदालत ने एक अगस्त को पारित फैसले में शीर्ष अदालत ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उपवर्गीकृत करने की अनुमति दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त के अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं निरस्त कर दी। फैसले में राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को उपवर्गीकृत करने की अनुमति दी गई थी ताकि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में उनके बीच वंचित समूहों को वरीयता दी जा सके। सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि फैसले में रिकॉर्ड को देखते हुए कोई त्रुटि नहीं दिखती है।

सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे। पीठ ने कहा कि समीक्षा याचिकाओं का अवलोकन करने के बाद अभिलेखों में कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 के तहत समीक्षा के लिए कोई मामला स्थापित नहीं हुआ है। इसलिए, सभी दो दर्जन समीक्षा याचिकाएं निरस्त की जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, समीक्षा याचिका पर दस्तावेज के माध्यम से वकील की उपस्थिति के बिना न्यायाधीशों के कक्ष में विचार किया जाता है। मामले में एक अलग असहमति वाला फैसला लिखने वाली जस्टिस त्रिवेदी भी बहुमत से सुनाए गए फैसले पर पुनर्विचार का मांग करने वाली याचिकाएं निरस्त करने वाली पीठ का हिस्सा थीं। पीठ ने पुनर्विचार याचिकाओं को खुली अदालत में सुनवाई करने के आवेदन को भी निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने मामले में खुली अदालत में सुनवाई के आवेदन को भी निरस्त कर दिया। आदेश 24 सितंबर का है जिसे शुक्रवार को वेबसाइट पर अपलोड किया गया।

कोर्ट ने कहा था, राज्यों को आरक्षण में उपवर्गीकरण करने का अधिकार
सात सदस्यीय संविधान पीठ ने एक अगस्त को 6:1 के बहुमत से दिए फैसले में कहा था कि राज्यों के पास अधिक वंचित जातियों के उत्थान-कल्याण को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए निर्धारित आरक्षण में उपवर्गीकरण करने का सांविधानिक अधिकार है। एससी/एसटी के बीच भी क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू करने का समर्थन किया था। पीठ ने 6:1 के बहुमत से ‘ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2004 का फैसला निरस्त कर दिया था। इसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समरूप समूह हैं और इसलिए राज्य इन समूहों में अधिक वंचित तथा कमजोर जातियों के लिए कोटा के भीतर कोटा देने को उन्हें उप-वर्गीकृत नहीं कर सकते।

जस्टिस त्रिवेदी ने कहा था, छेड़छाड़ नहीं कर सकते
अपने 85 पेज के असहमति वाले आदेश में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने कहा था कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 341 में अधिसूचित अनुसूचित जाति सूची से छेड़छाड़ नहीं कर सकते। राज्यों की सकारात्मक कार्यवाही संविधान की परिधि में होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि आरक्षण देने के राज्य के नेक इरादों से उठाए कदम को भी अनुच्छेद 142 में शक्तियों का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट की ओर से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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