तबलीगी जमात ने बनाया नूंह को कट्टर पाकिस्तान

 

How Mewat Meo Muslims Left Hindu Lineage And Adopted Radical Islam Resulted In Nuh Violence

तबलीगी जमात और मेवात के मेव मुसलमान, कट्टरपंथ और पिछड़ेपन का तड़का है नूंह में भड़की हिंसा
Nuh Violence : हरियाणा के मेवात इलाके में शांति लौट रही है। नूंह से शुरू हुई हिंसा की लपटें थमी हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि वर्षों से शांत रहे इस इलाके में नफरत भड़की कैसे?

मेव मुसलमानों को किसने भड़काया?
जलाभिषेक यात्रा पर किसने किया अटैक?
दिल्ली से 85 KM दूर कट्टरपंथ का गढ़
सबसे पिछड़ा कैसे रह गया मेवात
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नूंह की हिंसा के लिए कट्टरपंथ भी जिम्मेदार है

नूंह यानी मेवात को वो इलाका जहां मेव मुसलमान रहते हैं। देश की राजधानी से महज 85 किलोमीटर की दूरी लेकिन देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार। यही मेवात की पहचान है। हैरोल्ड लास्की से लेकर रोमिला थापर और इम्तियाज अहमद जैसे जाने-माने इतिहासकारों और अर्थशास्त्रियों की दिलचस्पी इस इलाके में रही है जो फिर से अचानक जल उठा। आग तो थम गई है लेकिन नूह से भड़की हिंसा ने इस इलाके में सामाजिक खाई चौड़ी कर दी है। लंबे अरसे बाद अचानक मेवात में नफरत की मवाद किसने भरी, ये कहना मुश्किल है। हां, इसमें दो राय नहीं कि शुरुआत बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा पर पत्थरबाजी से हुई। फिर सोशल मीडिया ने नफरती हिंसा में घी डाला। लपटें मिलेनियम सिटी गुरुग्राम और फरीदाबाद तक पहुंच गई। 2014 के बाद पहली बार इस तरह दो समुदाय आमने-सामने आ गए।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रसाद से मुख्यमंत्री बने मनोहरलाल खट्टर ने इसे गहरी साजिश बताया है।
इनके इस्लामीकरण का इतिहास हजार साल पुराना है। बीसवीं सदी के शुरू में ये तब तेज हुआ जब आर्यों के शुद्धि अभियान के जवाब में तबलीगी जमात मेवात में सक्रिय हो गया।

नूह देश का 14 वां ऐसा जिला है जिसकी आबादी में मुसलमानों की भागीदारी सबसे ज्यादा है। लगभग 79.2 प्रतिशत। हां, अगर हिंदू-मुसलमान कर चुनाव लड़ना है तो नूह से इतर बाकी इलाकों और राजस्थान में कहीं कुछ असर हो जाए जहां इस साल ही चुनाव होने हैं। जरा इन आंकड़ों को देख लीजिए। आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी वाले टॉप 15 जिले –

शोपियां – 98.5 प्रतिशत
कुलगाम – 98.5
अनंतनाग – 98
गंदरबल – 97.7
बडगाम – 97.7
बांदीपुर – 97.4
लक्षद्वीप – 96.6
पुलवामा – 95.5
श्रीनगर – 95.2
बारामूला – 95.2
कुपवाड़ा – 94.6
पूंछ – 90.4
धुबरी – 79.7
नूह – 79.2
करगिल – 76.9
मेव मुसलमान
जब भी मेवात की बात होती है तो यहां के मेव मुसलमानों के इतिहास पर चर्चा जरूर होती है। तरह-तरह के थियरी मेव मुसलमानों के सामाजिक इतिहास को लेकर है। ये खुद को आर्यों के आक्रमण से जोड़ कर देखते हैं और असली क्षत्रिय बताते हैं। पर ये सैंकड़ों साल पुरानी बातें हैं। तब कुछ समुदाय खुद को तोमर और कछवाहा राजपूत के वंशज होने का दावा करते रहे। बीसवीं सदी के शुरू में इस्लाम से इनका कनेक्शन गहराता गया। इसमें बाकी जातियों का भी योगदान रहा। कुछ स्कूलों के नाम देख लीजिए – जाट हाई स्कूल होडल, अहीर हाई स्कूल रेवाड़ी।  एक थियरी ये भी है कि मेव दरअसल मीणा और अन्य आदिवासी समुदाय से आते थे। खैर, इनके इस्लामीकरण का इतिहास हजार साल पुराना है। बीसवीं सदी के शुरू में ये तब तेज हुआ जब आर्यों के शुद्धि अभियान के जवाब में तबलीगी जमात मेवात में सक्रिय हो गया।

मेवात का इस्लामीकरण

अब कुछ तथ्य बताते हैं। ये समझने के लिए कि कैसे पूरा इलाके का इस्लामीकरण हुआ।

1896 – अलवर में अंजुमन ए इस्लाम का गठन हुआ। बीसवीं सदी की शुरुआत में इसने पूरे इलाके में धार्मिक शिक्षा शुरू की।

1923- अंजुमन-ए-खादिम-उल-इस्लाम – यानी इस्लाम के नौकर। इसने उर्दू का खूब प्रचार प्रसार किया और सूद पर पैसे लेने को हराम बताया। तब मेवात के मेव मुसलमान खेती बारी के लिए हिंदू महाजनों से सूद पर पैसा लेते थे।

1923- इसी साल गुड़गांव के डिप्टी कमिश्नर फ्रैंक लुगार्ड ब्रायन ने मेयो हाई स्कूल की स्थापना की। अंग्रेज तो बांटों और राज करो के अलावा कुछ करते नहीं थे। आर्य समाज के बड़े इलाकाई कार्यकर्ता लाला देशराज ने ब्रायन की चालबाजी पर गांधी जी से विरोध दर्ज कराया था।

1932- 17 मई को पहली बार मुहर्रम के जुलूस के दौरान हिंसा भड़की। तब अलवर समेत पूरे मेवात के दलितों में तेजी से हिंदू भावना का उभार हुआ। दलित मेव मुसलमानों के खेतों में काम करते थे। लेकिन तबलीगियों के इस्लामीकरण से दोनों के बीच तनाव बढ़ता गया।

1932 – दिसंबर महीने में दिलावर खान ने अलवर स्टेट के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। 31 दिसंबर को हरसौली गांव में घेर लिए गए हिंदू महाजनों को छुड़ाने के लिए अलवर स्टेट ने सेना भेज दी। पूरा इलाका हिंसा की चपेट में आ गया।

1933- गोविंदगढ़ में मेव मुसलमानों के कब्जे से बनिया समुदाय के लोगों को छुड़ाने के लिए आर्मी को बल प्रयोग करना पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक 40 से 100 लोगों मारे गए।

आजादी के बाद मेव मुसलमान ज्यादातर मेवात में रह गए लेकिन ये राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी हैं। ये भी सही है कि अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह में इन मेव मुसलमानों ने गजब की दिलेरी दिखाई और रायसीना का विद्रोह इसका गवाह बना। यही नहीं बाबर की लाख कोशिशों के बावजूद हसन खान मेवाती ने राणा सांगा का साथ छोड़ने से इनकार कर दिया और लड़ते-लड़ते जान न्यौछावर कर दी।

अभिशप्त है मेवात
मेवात का पिछड़ापन एक रहस्य है। महज पैदल की दूरी पर मानेसर में गगनचुंबी इमारतें और दुनिया की नामी गिरामी कंपनियों के दफ्तर हैं। और मेवात के गांव आज भी विकास से हजारों कोस दूर है। ये इलाका खेतीबारी पर निर्भर रह गया। और हाल ही में दूसरा जामताड़ा बन गया। यही नहीं पूरे एनसीआर में हाई-वे गैंग के सरगना इसी इलाके से होते हैं। गुरुग्राम से लेकर गाजियाबाद तक के विकास में यहां के भटके युवाओं को अपराध का अवसर दिखाई देता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक एनसीआर के 35 जिलों में दूसरा सबसे गरीब जिला है नूंह। अगर धन संपत्ति की बात की जाए तो नूंह की तुलना में पलवल दस गुना, रेवाड़ी 15 गुना, फरीदाबाद 18 गुना और गुरुग्राम 19 गुना समृद्ध है। नूंह में चार परसेंट आबादी अभी भी कच्चे मकानों में रहती है। सिर्फ 20 परसेंट घरों में चूल्हा गैस से जलता है। सिर्फ 60 परसेंट घरों में पीने का पानी पाइप से पहुंचता है। यहां की महिलाएं अभी भी औसतन चार बच्चे पैदा करती है। हद तो अब देखिए। आधी आबादी का आधा हिस्सा यानी 51 प्रतिशत महिलाएं अशिक्षित हैं।

अब आप ही सोचिए, इस आबादी को उकसाना, भड़काना, लालच देकर कुछ करवा लेना कितना मुश्किल है? इनके साथ ये काम सौ साल से हो रहा है। जिसका कच्चा चिट्ठा हमने ऊपर बताया है। आर्थिक तौर पर ये इलाका बीमार है ।

तबलीगी जमात (Urdu: تبلیغی جماعت‎, Tablīghī Jamā‘at; Arabic: جماعة التبليغ‎, Jamā‘at at-Tablīgh; Bengali: তাবলীগ জামাত;) विश्व की सतह पर सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार आंदोलन है, जो मुसलमानों को मूल इस्लामी पद्दतियों की तरफ़ बुलाता है।  खास तौर पर धार्मिक तरीके, वेशभूषा, वैयक्तिक गतिविधियां। तब्लीगी जमात का जन्म १९२६-२७ के दौरान भारत में हुआ था। मौलाना मुहम्मद इलियास ने इस काम की नींव रखी। परंपराओं के अनुसार, मौलाना मुहम्मद इलियास ने लोगों को धार्मिक शिक्षा देकर दिल्ली से सटे मेवात में अपना काम शुरू किया। माना जाता है कि इस चिन्तन वाले लोगों की संख्या 12 और 15 करोड़ है। (दक्षिण एशिया में इनकी संख्या अधिक है, और 150 से 195 देशों में हैं।

तबलीग़ी जमात
تبلیغی جماعت‎

2009 तबलीग़ी जमात का मलेशियाई वार्षिक समागम
सेपांग सेलांगोर, मलेशिया

संस्थापक -मौलाना मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी

उल्लेखनीय प्रभाव के क्षेत्र
बांग्लादेश,भारत,पाकिस्तान,ग्रेट ब्रिटेन, इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, श्रीलंका, यमन, किर्गिज़स्तान, रूस, सोमालिया,नाईजीरिया,कनाडा,मेक्सिको,हॉन्ग कॉन्ग, फ़्रान्स,जर्मनी यूनाइटेड किंगडम

इस आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में शुरू किया था।  इस का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक इस्लाम को मुसलमानों तक पहुंचाना और फैलाना।  इस जमाअत के मुख्य उद्देश्य “छ: उसूल” (कलिमा, नमाज़, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग) हैं। यह एक धर्म प्रचार आंदोलन माना गया।

तब्लीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास कांधलवी एक ऐसा आंदोलन बनाना चाहते थे, जो कुरान के फरमान के अनुसार भलाई और बुराई पर रोक लगाएगा, जैसा कि उनके शिक्षक रशीद अहमद गंगोही का सपना था। इसकी प्रेरणा उन्हें 1926 में मक्का की दूसरी तीर्थ यात्रा के दौरान मिली। उनके पास विद्वानों की सीखने, उपस्थिति, करिश्मा या बोलने की क्षमता में कमी थी, उन्होंने उत्साह के लिए बनाया। उन्होंने शुरू में मेवाती मुसलमानों को इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए मस्जिद-आधारित धार्मिक स्कूलों का एक नेटवर्क स्थापित करने का प्रयास किया। कुछ ही समय बाद, वह इस वास्तविकता से निराश थे कि ये संस्थाएँ धार्मिक कार्यकत्र्ताओं का निर्माण कर रही थीं, लेकिन प्रचारक नहीं।

मुहम्मद इलियास ने सहारनपुर के मदरसा मजाहिर उलूम में अपने शिक्षण पद को त्याग दिया और मुसलमानों में सुधार के लिए एक मिशनरी बन गए (लेकिन उन्होंने गैर-मुस्लिमों को उपदेश देने की वकालत नहीं की)। वह दिल्ली के पास निजामुद्दीन में स्थानांतरित हो गया, जहाँ 1926 में औपचारिक रूप से यह आंदोलन शुरू किया गया था।

मेवात क्षेत्र जहाँ दिल्ली के आसपास तबलीग़ी जमात की शुरुआत हुई , मेस, एक राजपूत जातीय समूह का निवास था, जिनमें से कुछ इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे, और फिर उस समय हिंदू धर्म में परिवर्तित हो गए जब इस क्षेत्र में मुस्लिम राजनीतिक शक्ति में कमी आई, जिसमें आवश्यक तीक्ष्णता नहीं थी। (एक लेखक, बालार्ड के अनुसार) तबलीगी जमात के आगमन से पहले बहुसंख्यक हिंदुओं का सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव था ।

काकरैल मस्जिद ढाका बांग्लादेश में तब्लीगी जमात आंदोलन ज्यादातर यहीं आधारित है।
दिसम्बर २०२१ में सउदी अरब ने तबलीगी जमात पर यह कहकर प्रतिबन्ध लगा दिया कि वह आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है।

तब्लीगी जमात की रूढ़िवादी प्रकृति के कारण, उन्हें प्रतिगामी होने को आलोचना की गई है। आंदोलन में शामिल महिलाएं सख्ती से हिजाब पहनती हैं। तब्लीगी जमात को कुछ मध्य एशियाई देशों जैसे कि उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान में प्रतिबंधित कर दिया गया है, जहां इसके शुद्धतावादी प्रचार को चरमपंथी के रूप में देखा जाता है।

तब्लीगी जमात ने 2019-20 के कोरोनावायरस महामारी के दौरान मीडिया ने ध्यान आकर्षित किया।

27 फरवरी और 1 मार्च 2020 के बीच, आंदोलन ने मलेशिया के श्री पेटालिंग, कुआलालंपुर में एक मस्जिद में एक अंतरराष्ट्रीय सामूहिक धार्मिक सभा का आयोजन किया। तब्लीगी जमात सभा को 620 से अधिक COVID-19 मामलों से जोड़ा गया, जिससे यह दक्षिण पूर्व एशिया में वायरस के संचरण का सबसे बड़ा ज्ञात केंद्र बन गया। मलेशिया में कोविद -19 मामलों में श्री पेटलिंग की घटना में सबसे बड़ी वृद्धि हुई, मलेशिया में 673 में से लगभग दो तिहाई मामलों की पुष्टि 17 मार्च 2020 तक हुई।  ब्रुनेई में कोविद -19 के अधिकांश मामले यहां उत्पन्न हुए, और इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम और फिलीपींस सहित अन्य देशों ने इस घटना के अपने मामलों का पता लगाया है।

प्रकोप के बावजूद, तब्लीगी जमात ने इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी में मकसर के पास गोवा रीजेंसी में 18 मार्च को एक दूसरे अंतर्राष्ट्रीय जन सभा का आयोजन किया। हालाँकि, आयोजकों ने शुरू में सभा को रद्द करने के लिए आधिकारिक निर्देशों का खंडन किया, लेकिन उन्होंने बाद में सभा का अनुपालन किया और रद्द कर दिया।

तब्लीगी जमात के निज़ामुद्दीन गुट ने एक धार्मिक मंडली कार्यक्रम, निजामुद्दीन पश्चिम, दिल्ली में अल्लामी मशवरा इज्तिमा (कार्यक्रम) 14 से 16 मार्च 2020 में अखिल भारतीय कार्यक्रम के पहले अखिल भारतीय कार्यक्रम का ऐलान किया था जिसमें कई विदेशी वक्ताओं ने भाग लिया था और 2000 से अधिक सदस्य हैं। यह संदेह है कि इनमें से कुछ स्पीकर कोरोनावायरस से संक्रमित थे जो बाद में मंडलियों में फैल गए। मार्च के प्रत्येक सप्ताह में 16 मार्च तक इज्तेमा था। 13 मार्च 2020 को, दिल्ली सरकार ने आदेश दिया कि किसी भी सेमिनार, आईपीएल जैसे खेल आयोजनों, सम्मेलनों या किसी भी बड़े कार्यक्रम (200 से अधिक लोगों) को दिल्ली में अनुमति नहीं दी जाएगी।महामारी रोग अधिनियम, 1897 को लागू करके ये निवारक कदम उठाए गए थे।30 मार्च, 2020 तक पूरे निजामुद्दीन पश्चिम क्षेत्र को पुलिस द्वारा बंद कर दिया गया है और चिकित्सा शिविर लगाए गए हैं।TJ के प्रशासन ने कहा था कि वे अपने-अपने देश और राज्यों में सैकड़ों मिशनरी भेजने के लिए तैयार हैं, लेकिन जैसा कि लॉकडाउन में है वे असहाय हैं।

तब्लीगी जमात भारत के प्रमुख कोरोनोवायरस हॉटस्पॉट में से एक के रूप में उभरा, भारत में पहचाने गए 2,000 से अधिक मामलों के लगभग 20% सकारात्मक मामले (389 मामले) सामने आने के बाद, इसे तब्लीगी जमात से निकले पाए गया। तब्लीगी जमात भारत का पहला कोरोनोवायरस ‘सुपर-स्प्रेडर’ बन गया, क्योंकि 1023 कोरोनावायरस सकारात्मक मामले (30% सकारात्मक मामले ) 4 अप्रैल तक तब्लीगी जमात से जुड़े थे। 18 अप्रैल 2020 को, केंद्र सरकार ने कहा कि 4,291 मामले (या भारत में कोविद -19 के कुल 14,378 पुष्टि किए गए मामलों में से 29.8%) तब्लीगी जमात से जुड़े थे, और ये मामले 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हुए थे।

लेकिन जो फोरेनर्स भारत में तबलिगी जमात में शामिल हुए थे

उनको लॉकडाऊन बाद अपने देश लौटना मुमकिन नही था क्यूकी लॉकडाऊन के वक्त भारत में सभी बाहर देशो से आने वाली फ्लाईट बंद करा दी गयी थी । अब उन फोरनर्स जो की भारत में तब्लीग़ करने आये थे,भारत की सभी फ्लाईट बंद होने से भारत में ही रुकना पडा।उन फॉरेनर्स के लिये गवर्मेंट ने कुछ व्यवस्था ही नहीं की. जो ऑफिसर मोहम्मद इलियास  को अरेस्ट करने वाला था, उस ऑफिसर को ही अगळे दिन कोविड हो गया था.

दिल्ली सरकार ने तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन गुट के प्रमुख मुहम्मद साद कांधलवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की। ३१ मार्च 2020 को, मुहम्मद साद कांधलवी और अन्य के खिलाफ दिल्ली पुलिस अपराध शाखा ने महामारी रोग अधिनियम १ and ९ Cr और धारा २६ ९ की धारा ३ (अपराध के लिए दंड) में एफआईआर दर्ज की थी। संक्रामक रोग), 270 (घातक बीमारी फैलने की संभावना), 271 (संगरोध शासन की अवज्ञा) और 120 बी (आपराधिक साजिश )

 

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