ज्ञान:कोई चीज छूने पर क्यों लगता है करंट? बचें कैसे?

आजकल कोई चीज़ छूने पर ‘करंट’ सा क्यों लगता है?

दरवाज़ा छू लो तो करंट! डेस्क से मोबाइल उठाओ तो करंट!

किसी के कंधे पर हाथ लगा तो करंट!

किसी से हाथ मिलाने की कोशिश करो तो करंट!

सामने वाला पूछ ही लेता है, ”क्या भाई, आजकल बड़ा करंट मार रहा है?”बात भले मज़ाक में कही जाती है, लेकिन हमारे दिमाग़ में भी ये सवाल आता ज़रूर है.और इस सवाल का एक ही जवाब है: स्टेटिक चार्ज या स्टेटिक इलेक्ट्रिसिटी.

आजकल अगर आप भी ये महसूस कर रहे हैं कि अलग-अलग सामान छूने या किसी इंसान से हाथ मिलाने पर करंट सा लगता है, तो इसके लिए यही स्टेटिक चार्ज ज़िम्मेदार है. लेकिन ये है क्या?

इसे समझाने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि इसके पीछे भी वही विज्ञान काम करता है जो बचपन में हमारे ‘गुब्बारे वाले जादू’ में किया करता था. वही जादू, जिसमें हम गुब्बारे को सिर से रगड़ते  थे और वो दीवार पर चिपक जाया करता था.

स्टेटिक चार्ज होता क्या है?
एटम की संरचना देखेंगे तो स्टेटिक चार्ज की वजह समझना आसान हो जाएगी.

किसी भी सामान, चीज़ या ऑब्जेक्ट की सतह पर बनने वाले इलेक्ट्रिक चार्ज को स्टेटिक चार्ज कहते हैं. यहां चार्ज से मतलब इलेक्ट्रॉन के ट्रांसफ़र से है.

ये तब पैदा होता है जब इलेक्ट्रॉन किसी एक मेटेरियल से दूसरे मेटेरियल पर आते-जाते हैं. ऐसा फ़्रिक्शन (रगड़ने) या कॉन्टैक्ट (संपर्क में आने) से होता है.

अगर हम एटम की संरचना को देखेंगे तो समझना काफ़ी आसान हो जाता है कि इलेक्ट्रॉन ही क्यों ट्रांसफ़र होते हैं.

दरअसल, इलेक्ट्रॉन (नेगेटिव चार्ज) एटम के आउटर ऑर्बिट के क़रीब घूमते हैं. ऐसे में अगर आउटर इलेक्ट्रॉन को पर्याप्त एनर्जी मिल जाती है तो वो एटम से चले जाते हैं और दूसरी बॉडी (यानी वस्तु) पर ट्रांसफ़र हो जाते हैं.

जबकि, प्रोटोन (पॉजिटिव चार्ज) एटम के न्यूक्लियस में मज़बूती से बंधे होते हैं, इसलिए आसानी से इधर से उधर नहीं जा सकते.

जब इलेक्ट्रॉन किसी एटम से चले जाते हैं तो वो न्यूट्रल नहीं रह जाता क्योंकि अब उसमें नेगेटिव चार्ज की तुलना में पॉजिटिव चार्ज ज़्यादा है.

ग़ुब्बारे वाले जादू से इसे समझा जा सकता है.

जब हम सिर पर ग़ुब्बारा रगड़ते हैं तो बाल पॉजिटिवली चार्ज हो जाते हैं और ग़ुब्बारा नेगेटिवली चार्ज हो जाता है.

अब आप ग़ुब्बारे को अपने बालों के क़रीब लाएंगे और दूर ले जाएंगे तो पाएंगे कि आपके बाल और ग़ुब्बारा एक-दूसरे की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं.

स्टेटिक चार्ज
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ हरियाणा में फ़िज़िक्स की प्रोफ़ेसर डॉक्टर सुनीता श्रीवास्तव ने बीबीसी को बताया कि सूखे मौसम में एटम के साथ अटैच होने वाले इलेक्ट्रॉन को काफ़ी एनर्जी मिल जाती है और वो किसी भी चीज़ की सतह के ऊपर इकट्ठा हो जाते हैं.

और जब ये इलेक्ट्रॉन रबिंग (रगड़ने) या संपर्क (कॉन्टैक्ट में आने की वजह) से एक बॉडी से दूसरी बॉडी तक ट्रांसफ़र होते हैं तो शॉक लगता है, जो आजकल हम में से कई लोग महसूस कर रहे हैं.

स्टेटिक चार्ज के तीन कारण हो सकते हैं-

1. फ़्रिक्शन: जब दो मेटेरियल आपस में रगड़े जाते हैं तो इलेक्ट्रॉन एक से दूसरे पर ट्रांसफर होते हैं, जिससे चार्ज असंतुलन पैदा होता है.

2. कॉन्टैक्ट: दो मेटेरियल को एक-दूसरे के कॉन्टैक्ट में लाने पर भी चार्ज ट्रांसफ़र हो सकता है.

3. इंडक्शन: कोई चार्ज्ड ऑब्जेक्ट बिना सीधे संपर्क में आए भी क़रीब के ऑब्जेक्ट में चार्ज को इंड्यूस यानी पैदा कर सकता है.

और इस चार्ज को स्टेटिक क्यों कहा जाता है?
स्टेटिक चार्ज
डॉक्टर सुनीता श्रीवास्तव बताती हैं कि इन्हें स्टेटिक इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये मूव नहीं होते. हवा जब बहुत सूखी और गर्म होती है तो इलेक्ट्रॉन को पर्याप्त एनर्जी मिल जाती है, जिससे वो सरफ़ेस पर आ जाते हैं. वो सरफ़ेस को छोड़कर तो नहीं जा सकते, लेकिन एक्यूमलेट यानी इकट्ठा हो जाते हैं.

इसके बाद जब रबिंग होती है, तो ये एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं, जिसे हम स्टेटिक चार्ज कहते हैं. लेकिन फिर ये मूव नहीं होते, बल्कि वहीं रहते हैं यानी स्थिर बने रहते हैं और यहीं से इन्हें नाम मिला है स्टेटिक.

एमिटी, नोएडा में फ़िजिक्स के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉक्टर अनूप कुमार शुक्ला इसे एक और उदाहरण से समझाते हैं.

फ़र्ज़ कीजिए कि आप किसी ग्लास रॉड को सिल्क के कपड़े पर रगड़ दें तो ग्लास रॉड पॉजिटिवली चार्ज हो जाती है, इसका मतलब हुआ कि उस पर से कुछ इलेक्ट्रॉन निकलकर सिल्क पर चले गए, तो सिल्क नेगेटिवली चार्ज हो जाता है, ग्लास पॉजिटिवली चार्ज हो गया. दोनों को मिलाकर देखें तो चार्ज पैदा होता है.

और सवाल उठता है कि शॉक क्यों लगता है तो वो इसलिए लगता है कि जब हम दरवाज़ा छूते हैं, कपड़ा छूते हैं या हाथ मिलाते हैं तो हमारे शरीर पर अतिरिक्त चार्ज आ जाता है, जो शॉक की वजह बनता है. चार्ज ट्रांसफ़र की वजह से ऐसा होता है.

बचपन वाला जादू याद कीजिए. जब हम सिर से गुब्बारा रगड़ते हैं तो वो चार्ज हो जाता है, लेकिन दीवार न्यूट्रल होती है.

गुब्बारा दीवार के क़रीब ले जाने पर कुछ इलेक्ट्रॉन पीछे धकेल दिए जाते हैं, जिससे दीवार पर भी पॉजिटिव चार्ज बन जाता है. अब चार्ज गुब्बारा, न्यूट्रल दीवार से चिपक जाता है.

स्टेटिक चार्ज कौन से मौसम में ज़्यादा होता है?
स्टेटिक चार्ज

स्टेटिक चार्ज की आशंका गर्मी में ज्यादा होती है जब मौसम सूखा हो
वो दौर आपको भी याद होगा जब बारिश के दिनों में स्विच पर हाथ लगाने से पहले कुछ डर लगा करता था कि अर्थिंग या किसी और वजह से करंट ना लग जाए.

तो क्या ये वही वाला करंट है, जो गर्मियों में हमें तंग करने लौट आया है? क्या स्टेटिक चार्ज का ताल्लुक बारिश के मौसम से है?

जवाब है नहीं!

बल्कि बारिश के मौसम में स्टेटिक चार्ज की गुंजाइश बहुत कम बचती है. जब हवा बहुत ज़्यादा ड्राई या शुष्क होगी तो स्टेटिक चार्ज ज़्यादा होगा.

डॉक्टर अनूप कुमार शुक्ला ने  बताया कि स्टेटिक चार्ज की संभावना हमेशा सूखे मौसम में ज़्यादा होती है.

डॉक्टर शुक्ला ने कहा, ‘जब भी हवा में ह्यूमिडिटी (आर्द्रता या नमी) ज़्यादा होगी तो स्टेटिक चार्ज का ज़्यादा असर नहीं दिखाई देगा. इसकी वजह ये है कि ऐसे मौसम में ऑब्जेक्ट पर नमी की एक परत बन जाती है और वहां से चार्ज लीकऑफ हो जाता है और स्टेटिक नहीं रहता. इसलिए शॉक नहीं लगेगा. बारिश के मौसम में, ठंड में, या कोहरे के समय स्टेटिक चार्ज बहुत कम होता है और इसके लिए हवा का शुष्क होना बहुत ज़रूरी है.’

वो कहते हैं कि आजकल भारत के बड़े हिस्से में ड्राई मौसम चल रहा है तो अगर दो चीज़ इंसुलेटर हैं तो रबिंग होने पर एक बॉडी से दूसरी बॉडी में चार्ज ट्रांसफर होता है.

उन्होंने कहा, “कपड़ा आप ओढ़ते हैं, या फिर पहनते वक़्त वो रगड़ता है या फिर ड्राई हेयर में कंघी करते हैं तो ये चार्ज महसूस होता है. ये चार्ज हम बना नहीं सकते, लेकिन ट्रांसफर हो सकता है. इसे हिंदी में कहते हैं आवेशित हो जाना.’

स्टेटिक चार्ज से बचने के लिए क्या कर सकते हैं?
बच्चों को स्टेटिक कंरट के बारे में समझाने के लिए ऐसी प्लाज़मा बॉल्स का प्रयोग किया जाता है.
ज़ाहिर है, भारत के बड़े हिस्से में अभी गर्मियों की शुरुआत हुई और आगे इसमें और वृद्धि होगी. ऐसे में स्टेटिक चार्ज हमें कुछ और महीने तंग करेगा. लेकिन क्या कोई जुगाड़ कर इससे बचा भी जा सकता है?

प्रोफ़ेसर डॉक्टर सुनीता श्रीवास्तव ने बताया कि आजकल स्टेटिक चार्ज बहुत ज़्यादा महसूस हो रहा है क्योंकि गर्मी बढ़ रही है. इससे बचने को कुछ उपाय किए जा सकते हैं. जैसे अपनी त्वचा ड्राई होने से बचाएं. इसको ख़ूब सारा पानी पिएं ताकि डिहाइड्रेशन ना हो. त्वचा ड्राइनेस से बचाने को मॉश्चराइज़र का इस्तेमाल कर सकते हैं.

कुछ लोग स्टेटिक चार्ज से बचने को केले ख़ूब खाते हैं, क्योंकि केले ज़्यादा वाटर कंटेंट से हाइड्रेशन के लिए बढ़िया माने जाते है. इसमें वाटर कंटेंट के अलावा पोटेशियम भी होता है, जो महत्वपूर्ण इलेक्ट्रोलाइट है.

डॉक्टर सुनीता श्रीवास्तव कहती हैं, “कपड़े ऐसे पहनने चाहिए, जिसमें ज़्यादा इलेक्ट्रिसिटी चार्ज ना पैदा होता हो, जैसे कॉटन या सिल्क, जो सिंथेटिक फ़ाइबर की तुलना में स्टेटिक चार्ज के लिए कम गुंजाइश बनाते हैं. या फिर आप कमरों में ह्यूमडिफ़ायर रख सकते हैं. हालांकि, बाहर तो ये मुश्किल है.”

इसके अलावा अब बाज़ार में एंटी-स्टेटिक स्प्रे भी उपलब्ध हैं, जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है.

एक सवाल और ज़हन में आता है कि क्या स्टेटिक चार्ज की वजह से लगने वाला शॉक इंसानी शरीर के लिए ख़तरनाक हो सकता है?

डॉक्टर अनूप कुमार शुक्ला इसके जवाब में कहते हैं, “आम तौर पर ऐसा नहीं होता. ये शॉक सामान्य तौर पर नुक़सानदायक नहीं होते, हां हल्का झटका ज़रूर देते हैं. लेकिन अगर आपको ये बार-बार तंग करते हैं तो इसके लिए उपाय किए जा सकते हैं.”

ये भले ख़तरनाक ना हों, लेकिन झटके ज़रूर देते हैं, इसलिए जब तक गर्मियां हैं, स्टेटिक चार्ज से ज़रा सावधान.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *