गांधी नहीं चाहते थे सुभाष चंद्र बोस बनें कांग्रेस अध्यक्ष,जीतने के बाद भी छोड़ना पड़ा था पद

Subhash Chandra Bose Had To Resign From The Post Of Congress President. Parted Ways With Gandhi
जब चुनाव जीत कर भी सुभाष चंद्र बोस को छोड़ना पड़ा था  कांग्रेस अध्यक्ष पद , गांधीजी से अलग कर लिए थे रास्ते
1939 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को महात्मा गांधी और कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ मतभेदों के कारण कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा। गांधीजी अबुल कलाम आज़ाद को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन उनके इनकार के बाद पट्टाभि सीतारमैया को मैदान में उतारा गया।

1939 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा
गांधी और बोस के बीच वैचारिक मतभेद थे
त्रिपुरी अधिवेशन में हुआ था जोरदार हंगामा
Subhash Chandra Bose and Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी नहीं चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष बनें

नई दिल्ली 29 अप्रैल 2025 : नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इसकी वजह थी महात्मा गांधी और कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ उनका मतभेद। नेताजी 1938 में निर्विरोध कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। लेकिन 1939 में दोबारा अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल, गांधी जी चाहते थे कि अबुल कलाम आजाद अध्यक्ष बनें। लेकिन, जब आजाद ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, तो गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया को मैदान में उतारा। चुनाव में नेताजी की जीत के बाद भी, गांधी जी और उनके समर्थकों के विरोध के कारण उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच विचारधारा को लेकर मतभेद थे। नेताजी गरम दल के नेता थे। वहीं, गांधी जी शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले नेता थे। फरवरी 1938 में नेताजी पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने। यह चुनाव निर्विरोध हुआ था। इसके बाद, 1939 में भी वह अध्यक्ष चुने गए, लेकिन, कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना  पड़ा।

इन लीडर्स ने भी किया था बोस का विरोध
29 जनवरी, 1939 को कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद का चुनाव होना था। पिछली बार सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष चुने गए थे। इस बार भी वह अध्यक्ष पद को खड़े थे। गांधी के साथ-साथ वर्किंग कमेटी के सदस्य वल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, जयराम दास दौलत राम, जेवी कृपलानी, जमना लाल बजाज, शंकर राव देव और भूला भाई देसाई भी सुभाष के अध्यक्ष बनने के खिलाफ थे।

बोस के खिलाफ नहीं लड़ना चाहते थे कलाम
सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया। बारडोली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में मौलाना अबुल कलाम आजाद की उम्मीदवारी घोषित की गई। लेकिन, बाद में कलाम ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। गांधीजी के कहने पर भी वह सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। इसकी वजह यह थी कि दोनों कलकत्ता से आते थे। वह नहीं चाहते थे कि बंगाल के ही दो लोगों में अध्यक्ष पद को मुकाबला हो।

चुनाव लड़ने पर दोबारा सोचने की अपील
मौलाना आजाद के चुनाव नहीं लड़ने पर गांधी जी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को चुनाव लड़ने को मनाने की कोशिश की। नेहरू के भी मना करने पर महात्मा गांधी ने आंध्र प्रदेश के पट्टाभि सीतारमैया का नाम तय किया। 29 जनवरी 1939 को चुनाव होना था। मतदान से कुछ दिन पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सात सदस्यों ने बयान जारी कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर दोबारा सोचने की अपील की। वे चाहते थे कि पट्टाभि सीतारमैया निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाएं। बोस ने पटेल और वर्किंग कमेटी के अन्य सदस्यों के बयान पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि किसी एक का पक्ष लेना ठीक नहीं है।

परिणाम से कांग्रेस में मची हलचल
29 जनवरी, 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ। सुभाष चंद्र बोस को 1580 वोट मिले। पट्टाभि सीतारमैय्या को 1377 वोट मिले। इस नतीजे से कांग्रेस में हलचल मच गई। बोस को बंगाल, मैसूर, उत्तर प्रदेश , पंजाब और मद्रास से बहुत समर्थन मिला। चुनाव के बाद महात्मा गांधी ने खुलकर कहा कि पट्टाभि सीतारमैया की हार, उनसे ज्यादा मेरी हार है क्योंकि मैंने ही डॉक्टर पट्टाभि को चुनाव से पीछे नहीं हटने को कहा था।

बोस ने गांधीजी को भेजा था टेलीग्राम
सुभाष चन्द्र बोस दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गांधी समर्थकों का ही दबदबा था। चुनाव के बाद कड़वाहट और भी ज्यादा बढ़ गई। मार्च 1939 में जबलपुर के पास त्रिपुरी में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन होना था। उससे पहले 20-21 फरवरी को वर्धा में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग होनी थी। बोस तब बीमार थे। उन्होंने पटेल को टेलीग्राम भेजकर वर्किंग कमेटी मीटिंग वार्षिक अधिवेशन तक को टालने का अनुरोध किया। उन्होंने गांधीजी को भी एक टेलीग्राम भेजकर नई बनने वाली वर्किंग कमेटी के सदस्य अपने हिसाब से चुनने का अनुरोध किया। बोस ने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की कि पार्टी के भीतर टकराव रोका जाए। लेकिन पटेल, नेहरू समेत वर्किंग कमेटी के 13 सदस्यों ने बोस पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए वर्किंग कमेटी छोड़ दी।

अधिवेशन में स्ट्रेचर पर पहुंचे थे बोस
सुभाष चन्द्र बोस की तबीयत खराब थी, फिर भी कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन, 1939 शुरू हुआ। यह 8 से 12 मार्च तक चला। महात्मा गांधी इससे दूरी बना राजकोट चले गए। अधिवेशन में कड़वाहट ही रही। बीमार होने से बोस अधिवेशन में स्ट्रेचर पर पहुंचे। कड़वाहट का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बोस विरोधी खेमे के एक कांग्रेसी ने यहां तक कह दिया कि चेक किया जाना चाहिए कि कहीं वह कांख के नीचे प्याज तो नहीं रखे हैं। ऐसे बोस की बीमारी का भी मजाक उड़ाया गया।

त्यागपत्र का मन बना चुके थे बोस
त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष समर्थकों और विरोधियों में जमकर हंगामा हुआ। आचार्य कृपलानी ने अपनी आत्मकथा, ‘माई लाइफ’ में लिखा है कि बोस के बंगाली समर्थकों ने राजेन्द्र प्रसाद के कपड़े फाड़ दिए। इस हंगामे की खबर पूरे देश में फैली। टैगोर ने गांधी से हस्तक्षेप करने को कहा। लेकिन गांधी तब अनशन पर बैठे थे। नेहरू ने बीच-बचाव की कोशिश में सुभाष से कहा कि वो अपना कार्यकाल पूरा करें, लेकिन अब तक सुभाष त्यागपत्र देने का मन बना चुके थे। 29 अप्रैल 1939 को उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया। 3 मई 1939 को उन्होंने कलकत्ता की एक रैली में फॉरवर्ड ब्लॉक की घोषणा की । ऐसे उनकी राह कांग्रेस और गांधी से अलग हो गई।
—-×+अक्षय श्रीवास्तव

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