एक रास्ता बंद तो दूसरा खुला…भारत-ब्रिटेन डील डन,अमेरिका से मिलेगी कुछ सुरक्षा

India UK trade deal: एक रास्ता बंद तो दूसरा खुला…भारत-ब्रिटेन डील डन,अमेरिका से यूं मिलेगी सुरक्षा

ब्रिटेन से ट्रेड डील होने से अमेरिकी टैरिफ मार का असर घटेगा। भारत ब्रिटेन में सेवाक्षेत्र में बेहतर करेगा। ब्रिटेन से हो रहा यह व्यापार समझौता- जो अगले साल जुलाई तक लागू हो सकता है, भारत की निर्यात विविधिकरण रणनीति मजबूत करेगा।
नई दिल्ली 09 अक्टूबर 2025 । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  कहा है कि भारत और ब्रिटेन स्वाभाविक साझेदार हैं और दोनों देशों में साझेदारी वैश्विक स्थिरता एवं आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण आधार बन रही है। भारत आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर से व्यापक वार्ता के बाद मोदी ने कहा कि भारत-ब्रिटेन संबंधों का आधार लोकतंत्र, स्वतंत्रता और कानून के शासन जैसे मूल्यों में साझा विश्वास है।

India UK trade deal

प्रधानमंत्री मोदी ने यह बात ऐसे समय कही है, जब अमेरिका के भारतीय उत्पादों पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ ने भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्रों खासकर श्रम-प्रधान उद्योगों पर गहरा असर डाला है। इससे निवेश अनिश्चितता बढ़ी है। वहीं, वियतनाम, बांग्लादेश और यहां तक कि चीन जैसे देशों पर कम टैरिफ होने से भारत की प्रतिस्पर्धा कमजोर हुई है। हालांकि अमेरिका से भी  समझौता वार्ता हो रही है, लेकिन ब्रिटेन से होने वाला यह व्यापार समझौता-जो अगले साल जुलाई तक लागू हो सकता है, भारतीय निर्यात विविधिकरण रणनीति मजबूत करेगा। साथ ही, यह दुनिया की सबसे विकसित सेवाक्षेत्र अर्थव्यवस्थाओं में से एक ब्रिटेन के साथ भारत के आर्थिक संबंधों को गहराई देगा।

ब्रिटिश बाजार में भारत को नए अवसर

अमेरिकी टैरिफ से लगे झटके की भरपाई भारत को आने वाले वर्षों में ही हो पाएगी, क्योंकि इसके लिए वैश्विक स्तर पर नए बाजार तलाशने होंगे। भारत को हर साल लगभग 40 अरब डॉलर के अमेरिकी निर्यात का नुकसान झेलना पड़ रहा है। ऐसे में ब्रिटेन से यह समझौता भारत के श्रम-प्रधान उद्योगों को कुछ राहत दे सकता है। समझौता लागू होने के बाद भारत के उत्पाद ब्रिटेन में अन्य प्रतिस्पर्धी देशों के समान स्तर पर पहुंच जाएंगे खासकर टेक्सटाइल सेक्टर में। ब्रिटेन हर साल करीब 27 अरब डॉलर के टेक्सटाइल प्रोडक्ट आयात करता है, जबकि भारत का ब्रिटेन को कुल निर्यात 2024 में 13.5 अरब डॉलर का था।

हालांकि, रत्न और आभूषण क्षेत्र को सीमित लाभ ही मिलेगा। इसमें भारत से अमेरिका को निर्यात 9 अरब डॉलर का था, जिस पर भारी टैरिफ लगा है, जबकि ब्रिटेन को निर्यात केवल 941 मिलियन डॉलर का है। ब्रिटेन का कुल रत्न-आभूषण आयात मात्र 3 अरब डॉलर होने से लाभ सीमित रहेगा। इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में भारत के लिए बड़ा अवसर है। ब्रिटेन का इसमें वार्षिक आयात  7 0 अरब डॉलर से अधिक का है। 0 से 18 प्रतिशत तक के आयात शुल्क हटने से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स को वहां नई पहुंच मिलेगी। एप्पल जैसी कंपनियों के निवेश से भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पहले ही तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, इस क्षेत्र में चीन अभी भी सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी है।

स्टील और इंजीनियरिंग उत्पादों में भी भारत को लाभ हो सकता है। फिलहाल ब्रिटेन में लोहे और स्टील पर 10 प्रतिशत तक शुल्क है। भारतीय निर्यात इस श्रेणी में बढ़ सकता है। ब्रिटेन का स्टील बाजार 2024 में 32.13 अरब डॉलर का था और 2033 तक इसके 42.74 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, ब्रिटेन का प्रस्तावित कॉर्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकैनिज्म (CBAM) भारतीय स्टील निर्यात पर रोक भी लगा सकता है, जिससे भारतीय उद्योगों को डिकार्बोनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन घटाने) को मजबूर होना पड़ सकता है। बड़ी कंपनियां यह बदलाव कर सकती हैं, लेकिन बिना सरकारी मदद के एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) को यह चुनौतीपूर्ण होगा।

सेवाक्षेत्र बनेगा बड़ा विजेता

भारत-ब्रिटिश समझौते के सबसे ज्यादा सर्विस सेक्टर के लाभान्वित होने की संभावना है। अमेरिका के H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ाने और सर्विस सेक्टर में नई बाधाएं खड़ी करने के बीच, ब्रिटेन से यह समझौता भारत के लिए राहत ला सकता है। भारत की ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में सर्विस सेक्टर का योगदान 55 प्रतिशत है, जबकि ब्रिटेन में यह 81 प्रतिशत तक है।

भारत-ब्रिटिश डील पर वाणिज्य मंत्रालय का कथन

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, ब्रिटेन ने कंप्यूटर संबंघित सेवा में पूर्ण प्रतिबद्धता जताई है, जिससे ब्रिटेन में निवेश करने की सोच रही भारतीय कंपनियों की उलझनें दूर होंगीं। मंत्रालय ने कहा कि यह समझौता भारत के हाई-वैल्यू सर्विसेज हब बनने के लक्ष्य के अनुकूल है। ब्रिटेन से निवेश और सहयोग बढ़ने से भारत के डिजिटल इकॉनमी, स्किल डेवलपमेंट और इनोवेशन क्षेत्रों को गति मिलेगी। इस समझौते से ब्रिटिश कंपनियां भारत को केवल “लो-कॉस्ट बैक-ऑफिस डेस्टिनेशन” नहीं देखेंगी, बल्कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट, एनालिटिक्स, साइबर सिक्योरिटी और नई टेक्नोलॉजीज में एक रणनीतिक साझेदार समझेंगी। भारत पहले ही 1,700 से अधिक ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) का केंद्र है, जिनमें 19 लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। ये सेंटर ब्रिटेन समेत कई देशों की कंपनियों की डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और वैश्विक सेवायें संचालित करते हैं।

कुल मिलाकर अमेरिकी व्यापार नीतियों से पैदा हुई चुनौतियों के बीच भारत-यूके व्यापार समझौता भारत को न केवल एक वैकल्पिक बाजार मुहैया कराएगा, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन और सेवाक्षेत्र में नई भूमिका भी देता है। यह समझौता भारत को “मेक इन इंडिया” और “विकसित भारत 2047” के लक्ष्यों की दिशा में एक और कदम आगे ले जा सकता है।

वरुण शैलेशलेखक वरुण शैलेश

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