1951 में चला गया था शत्रु क्षेत्र में पवित्र पौराणिक कैलाश मानसरोवर

 

 

Why Lord Shivas Sacred Kailash Mansarovar Under The Impure Control Of China Did A Hindu King Conquer This Region
भगवान शिव हमारे तो पापी चीन के कब्जे में क्यों है पवित्र कैलाश मानसरोवर, क्या हिंदू राजा ने जीता था यह क्षेत्र?
Kailash Mansarovar Yatra 2025: हिंदुओं के पवित्र तीर्थ कैलाश मानसरोवर यात्रा जल्द शुरू हो सकती है। हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चीन की यात्रा पर गए, जहां दोनों देशों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा के शुरू करने समेत 6 समझौतों पर दस्तखत हुए। जानते हैं कि कैलाश  मानसरोवर का महत्व कितनी है?

यह पवित्र क्षेत्र के किसके कब्जे में था?
किस हिंदू राजा के अधिकार में यह था क्षेत्र

नई दिल्ली : सदियों से कैलाश पर्वत को महादेव का निवास स्थान माना जाता रहा है। शिव पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास क्षेत्र है, जहां वह माता पार्वती के साथ विराजते हैं। मगर, अक्सर यह सवाल उठता है कि कैलाश पर्वत भारत में क्यों नहीं है? 1951 में तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद चीन कैलाश पर्वत की तीर्थयात्रा की अनुमति देता रहा है। 1954 के चीन-भारतीय समझौते ने तीर्थयात्रा की अनुमति दी। हालांकि, 1959 के तिब्बती विद्रोह और 1962 के चीन-भारत युद्ध के कारण कई बार सीमाएं और यात्रा बंद कर दी गईं। कोरोना महामारी के दौर में भी ये यात्रा बंद रही। अब भारत-चीन के बीच हुए एक अहम समझौते में इस यात्रा पर फिर से सहमति बनी है। ऐसे में 2025 में कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर शुरू हो सकती है। जानते हैं पूरी कहानी।

क्या है कैलाश मानसरोवर तीर्थ, कितनी ऊंची है चोटी
इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, कैलाश मानसरोवर तीर्थ को अष्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से ढंके 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जैन धर्म के भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। कहा जाता है कि इस पर्वत का निर्माण 30 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। कैलाश मानसरोवर यात्रा एक पवित्र तीर्थयात्रा है, जिसे मोक्ष का प्रवेश द्वार माना जाता है।

 

मानसरोवर झील से निकलती हैं ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सतलुज
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम और दक्षिण में मानसरोवर व राक्षसताल झील हैं। माना जाता है कि कैलाश पर्वत श्रृंखला का निर्माण हिमालय पर्वत श्रृंखला के शुरुआती चरणों के दौरान हुआ था। कैलाश पर्वतमाला के निर्माण के कारण हुए भूगर्भीय परिवर्तन से चार नदियां भी जन्मीं, जो अलग-अलग दिशाओं में बहती हैं-ये हैं सिंधु, करनाली, यारलुंग त्सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र और सतलुज। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है।

अभी क्या है कैलाश पर्वतमाला की स्थिति
डॉ. दानपाल सिंह बताते हैं कि कैलाश मानसरोवर का क्षेत्र तिब्बत में पड़ता है, जिस पर ब्रिटिश अभियान 1903 में शुरू हुआ और 1904 तक चला। अंग्रेजों ने राजधानी ल्हासा पर आक्रमण किया। अंग्रेजों को इस पर नियंत्रण पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। तिब्बत को 24 अक्टूबर, 1951 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने अपने अधीन कर लिया था। कैलाश पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटियों में से एक कैलाश पर्वत है, जो ट्रांस-हिमालय का एक हिस्सा है, जो चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है। यह पर्वत चीन, भारत और नेपाल के पश्चिमी ट्राई जंक्शन पर स्थित है। यात्रा का आयोजन विदेश मंत्रालय करता है।

मान्यता: जन्म-मरण के चक्र से मिल जाती है मुक्ति
कैलाश कई पर्वतों से बने षोडशदल कमल के बीचोंबीच स्थित है। यह हमेशा बर्फ से ढंका रहता है। इसकी परिक्रमा की काफी अहमियत है। तिब्बती लामा लोग कैलाश मानसरोवर की तीन या तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।

कैलाश पर्वत का हिंदू, बौद्ध और जैन तीनों के लिए महत्वपूर्ण
डॉ. दानपाल सिंह कहते हैं कि कैलाश पर्वत का विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में बहुत महत्व है। हिंदुओं के लिए यह भगवान शिव का पवित्र निवास है। बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को कांग रिनपोछे यानी बर्फ के अनमोल रत्न के रूप में नवाजा जाता है। जिसे ज्ञान और निर्वाण की प्राप्ति से जुड़ा एक पवित्र स्थल माना जाता है। बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को ‘मेरु पर्वत’ के नाम से जाना जाता है और इसे डेमचोक का निवास स्थान माना जाता है। जैनियों के लिए कैलाश पर्वत को अष्टपद के रूप में जाना जाता है। यह उनके पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ से जुड़ा हुआ है। यह आध्यात्मिक जागृति और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति के स्थान के रूप में महत्व रखता है।

ब्रह्मांड का केंद्र है कैलाश पर्वत, धरती और स्वर्ग के बीच पुल
तिब्बती बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को एक्सिस मुंडी या ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच पुल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वह बिंदु है जहां आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होती है, जो इसे अपार शक्ति और महत्व का स्थान बनाती है।

मुगलों के दौर में हिंदू राजा ने किया था तिब्बत पर हमला
लेखक ओसी हांडा की किताब ‘हिस्ट्री ऑफ उत्तरांचल’ के अनुसार, मुगल बादशाहों के दौर में उत्तराखंड के कुमाऊं में चांद वंश के राजा बाज बहादुर का शासन (1638-1678) था। बाज बहादुर के मुगल बादशाहों शाहजहां और औरंगजेब से काफी अच्छे संबंध थे। उस वक्त पहाड़ों पर हूणों का आतंक था, जिसे खत्म करने के लिए बाज बहादुर ने तिब्बत पर हमला करने की योजना बनाई।

 

जब बाज बहादुर ने पूरे मानसरोवर क्षेत्र को कुमाऊं में मिलाया
डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, मनमोहन शर्मा की किताब ‘द ट्रेजेड़ी ऑफ तिब्बत’ में कहा गया है कि बाज बहादुर जुहार दर्रे के रास्ते अपनी सेना के साथ तिब्बत की ओर बढ़ा। तब बाज बहादुर ने हूणों के मजबूत गढ़ टकलाकोट पर कब्जा कर लिया। इतिहास में यह पहली बार था कि किसी भारतीय राजा ने तिब्बत के इस गढ़ पर कब्जा किया था। इसके बाद 1841 में जम्मू की डोगरा सेना पर इस पर कब्जा किया। बाज बहादुर ने देहरादून और मानसरोवर के पूरे इलाके को 1670 में कुमाऊं सम्राज्य में मिला लिया गया। हालांकि, कैलाश मनसरोवर पर कब्जे को लेकर इतिहास बहुत धुंधला है।

कैलाश पर्वत भगवान शिव का घर, संस्कृत साहित्य में जिक्र
भगवान शिव और जैनियों के भगवान आदिनाथ के कारण ही संसार के सबसे पावन स्थानों में है कैलाश पर्वत। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा गया है, जहां बर्फ में भगवान महादेव तपमें लीन बेहद शांत और निश्चल हैं। कैलाश पर्वत के बारे में संस्कृत साहित्य के कई काव्यों में जिक्र मिलता है। महाकवि माघ की लिखी शिशुपालवधम् महाकाव्य के प्रथम सर्ग में कैलाश का जिक्र मिलता है।

क्या कभी भारत के अधिकार क्षेत्र में था कैलाश मानसरोवर
पूर्व राजदूत पी स्टोबदान ने अपने एक आर्टिकल में लिखा है कि कैलाश मानसरोवर और इसके आसपास का इलाका 1960 के दशक तक भारत के अधिकार क्षेत्र में आता था। लद्दाख के राजा त्सावांग नामग्याल का शासन क्षेत्र कैलाश मानसरोवर के मेन्सर नाम की जगह तक था। ये पूरा इलाका भारत, चीन से लेकर नेपाल की सीमा तक फैला था। 1911 और 1921 की जनगणना में कैलाश मानसरोवर वाले इलाके के मेन्सर गांव में 44 घर होने की बात सरकारी रिकॉर्ड में है। 1958 के जम्मू-कश्मीर समझौते के मुताबिक मेन्सर चीन के कब्जे में चला गया। यह इलाका चीन कब्जे वाले लद्दाख तहसील के 110 गांवों में शामिल था।

जब चीन ने पहली बार कैलाश मानसरोवर को अपने हिस्से में दिखाया
1959 में पहली बार चीन ने अपने नक्शे में सिक्किम, भूटान से लगते कैलाश मानसरोवर के बड़े हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद के बाहर और भीतर इसका जोरदार विरोध दर्ज कराया। पूर्व राजदूत स्टोबदान ने लिखा है कि नेहरू ने ये जमीन भले ही चीन को सौंपी न हो, लेकिन वो इसे बचा नहीं पाए।

कैलाश के मेन्सर इलाके को क्या कश्मीर के राजा ने दिया था
1961 की आधिकारिक रिपोर्ट में कैलाश के पास के क्षेत्रों पर भारत के ऐतिहासिक, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारों का पूरा विवरण दिया गया था। चीन ने तब इसका विरोध नहीं किया था। 1947 में जम्मू-कश्मीर रियासत से किए गए समझौते में मेन्सर इलाके को चीन को दिए जाने का जिक्र नहीं है। मेन्सर इलाके पर दावे को लेकर कोई कानूनी हल नहीं हुआ है।

क्या भस्मासुर ने यहीं किया था तप और यहीं भस्म
कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी दूरी पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा है। इसके मध्य में पहले बायीं ओर मानसरोवर और दायीं ओर राक्षस ताल है। उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहां गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। मान्यता है कि भस्मासुर ने यहीं तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, राक्षस राजा रावण ने कैलाश मानसरोवर में भगवान शिव की स्तुति में ‘शिव तांडव स्तोत्र’ का पाठ किया था। कई वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने कैलाश पर्वत के रहस्य को जानने की कोशिश की है, खासकर इसकी चढ़ाई न होने की स्थिति के बारे में।

कैलाश से यात्री लाते हैं महकने वाली कैलाश धूप
कैलाश मानसरोवर यात्रा में आमतौर पर दो महीने लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पहले यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुगंधित वनस्पति होती है जिसे कैलास धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद के रूप में साथ लाते हैं।
दिनेश मिश्र

 

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