सहसपुर में कांग्रेस शासन ने बांटे 34 मुस्लिमों को अनुजा कोटे से पीएम आवास

उत्तराखंड: 2016 में कांग्रेस ने SC कोटे का हक मारकर मुस्लिमों को दिया PM आवास योजना का लाभ, CM धामी ने दिए जांच के आदेश

देहरादून 30 जून 2024 : देश में एससी कोटे को काट कर मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ दिए जाने की राजनीतिक बहस के बीच उत्तराखंड में 2016 के कांग्रेस शासन काल में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में ऐसा ही कुछ कारनामा कर डाला है।
देहरादून जिले में सहसपुर ब्लॉक में मुस्लिम समुदाय को “शेड्यूल कास्ट” दिखा कर उन्हें लाभार्थी बना दिया। अब धामी सरकार ने इस मामले की जांच पड़ताल के आदेश जारी किए हैं।

जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड में पछुवा देहरादून में डेमोग्राफी चेंज तेज़ी से हुआ है, माना जाता है कि 2015 और 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अपना वोट बैंक मजबूत करने को अपने ब्लॉक प्रमुखों, ग्राम प्रधानों, निगम पार्षदों के जरिए उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों के मुस्लिमों को यहां लाकर बसाया और उन्हें केंद्र व राज्य की लाभार्थी योजनाओं का लाभ भी दिया। 2016 में देहरादून की मलिन बस्तियों का नियमितीकरण भी इसी दूरगामी सोच का हिस्सा थी जिस पर बाद में भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही रोक लगा दी थी।

पीएम आवास योजना में 34 मुस्लिमों को एससी का लाभ दिया?
तुष्टिकरण की इस राजनीति में पछुवा देहरादून के सहसपुर ब्लॉक के सहसपुर ग्राम में 34 मुस्लिम परिवारों को अनुसूचित जाति में दिखा कर उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिया गया है। जानकारी के अनुसार, ये योजना ग्रामीण क्षेत्र के लिए थी।

बताया जाता है कि इस मामले की शिकायत केंद्र में पीएमओ और गृह मंत्रालय तक पहुंची तो उत्तराखंड सरकार ने पड़ताल शुरू की । ऐसा बताया गया है कि सहसपुर में रुखसाना, परवीन, रहिबा, खातून, संजीदा,मुमताज, रिहाना,खालिदा, रियाना जहीर, समीना, मनीषा इस्लाम,कालू, इसराना, मानिबा ,मसरूफा, शानू, फरीदा, मुन्नी, अर्शा खातून, शाहराज, हसीना, फरजाना, रहीसा खातून,नाजमा, अमीना, वाकिला, फारमीदा, आयना, समेत अन्य 38 मुस्लिम महिलाओं के नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना ( ग्रामीण) का लाभ मिला।

लेकिन, इन सभी को ग्राम प्रधान और विभागीय अधिकारियों ने मिली भगत करके उन्हे शेड्यूल कास्ट कैटेगरी का लाभ दिया । जबकि इसी गांव में अन्य 341 मुस्लिम लाभार्थियों को अल्पसंख्यक (मायनर्टी ) कैटेगरी में दर्ज किया गया। इससे ये साफ झलकता है कि यहां ग्राम प्रधान या प्रधान पति की भूमि संदिग्ध है। बताया गया है कि ये मामला उभरने के बाद दलील ये दी गई कि ऐसा कोई आरक्षण इस योजना में नही था तो सवाल ये भी सामने है कि फिर लाभार्थियों को उनके मूल स्वरूप यानि अल्पसंख्यक दर्जे में ही क्यों नही रखा गया? उनके आगे एससी कैसे क्यों और किसने दर्ज कराया ?

जानकारी के अनुसार, 2016 में सहसपुर ग्राम के निवर्तमान प्रधान अनीस अहमद की पत्नी इशरत जहां ग्राम प्रधान थी। ऐसा भी जानकारी में आया है कि निवर्तमान प्रधान अनीस अहमद ने जो अपने प्रपत्र पिछले चुनाव में लगाए थे वो फर्जी पाए गए थे। वह खुद सहारनपुर मूल निवासी है। इसकी जांच पड़ताल चल रही है और कोर्ट में मामला विचाराधीन है।

2016 से पहले से ही सहसपुर में बाहर से आए लोगों को अवैध रूप से बसाने का षड्यंत्र चलता आ रहा है। ग्राम सभाओं की जमीनें खुर्दबुर्द करने का खेल चलता रहा है। इसकी जांच भी अलग से हो रही है।
अभी पछुवा देहरादून में ये एक सहसपुर ग्राम का मामला पकड़ में आया है, यदि धामी सरकार अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्र और राज्य पोषित योजनाओं की जांच करवाए तो ऐसे मामले बड़ी संख्या में प्रकाश में आयेंगे जहां ग्राम प्रधानों ने मुस्लिम आबादी बाहर से लाकर यहां कब्जे कराने फिर उनके फर्जी दस्तावेज बना कर उन्हें लीगल तरीके से बसाने और अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का षड्यंत्र रच उनकी कैटेगरी भी बदली, ताकि सरकारी दस्तावेजों में ये दिखाई देता रहे कि यहां सभी समुदायों को लाभ दिया जा रहा है।

सहसपुर, के साथ-साथ जीवन गढ़, तिमली, हसनपुर कल्याण पुर, केदारवाला, सरबा , सभावाला, शंकर पुर आदि ग्राम जो राज्य बनने के वक्त हिंदू बाहुल्य थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। दिलचस्प बात ये है कि यहां के मुस्लिम ग्राम प्रधान, प्रधान पति लगातार यहां की डेमोग्राफी चेंज करने का अभियान  चलाए हुए हैं।

ग्राम सभा की जमीनों पर इनकी बसावट हो रही है। नदी श्रेणी, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई ,राजस्व विभाग की जमीनों पर पहले अवैध कब्जे कराए जाते है । बाद में उन्हें नियमित कराने का खेल खेला जा रहा है। ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी प्रपत्रों से ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कारवाई में लटके हुए हैं। इन्हें राजनीति संरक्षण सत्ता और विपक्ष दोनों का मिला क्योंकि ये उनके स्वार्थ की पूर्ति करते रहे हैं।

मुख्यमंत्री धामी ने दिए जांच के आदेश
सहसपुर में हुए प्रधानमंत्री आवास योजना मामले में हुए गड़बड़झाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कार्यालय से इस बारे में जांच करने के आदेश दिए हैं। जानकारी के मुताबिक, शासन और जिला प्रशासन में इस प्रकरण को लेकर हलचल मची हुई है और पुराने प्रपत्र खंगाले जा रहे हैं।

मार्च में राशिद और अनीस की प्लाटिंग ध्वस्त की थी मदेविप्रा ने
एमडीडीए के बुल्डोजरों ने सहसपुर क्षेत्र में अवैध प्लाटिंग कर बसाई जा रही अवैध कॉलोनी को ध्वस्त कर दिया। ये प्लाटिंग राशिद नाम के व्यक्ति द्वारा की जा रही थी, जिसके बारे में कहा जाता रहा है कि उसने पश्चिम उत्तर प्रदेश, बिहार, असम आदि के मुस्लिमों को यहां लाकर अवैध रूप से बसाया और अब वो यहां मुस्लिम सेवा संगठन के जरिए अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को तैयार कर रहा है।

सूत्रों के मुताबिक, ये वही राशिद पहलवान है जिस पर शिव भक्त कांवड़ियों पर पत्थर फेंकने का आरोप है और उस पर पुलिस ने गैंगस्टर लगाई थी। राशिद और अनीस अहमद मिलकर पछुवा देहरादून की सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने में लगे हुए हैं। एमडीडीए ने जो कार्रवाई की वो सहसपुर के सभावाला के 40 बीघा अवैध कब्जे पर की है। यहां कभी आम का बाग था उसे उजाड़ दिया गया। यहां राशिद पहलवान अवैध रूप से प्लाट बनाकर बेच रहा था, एमडीडीए सूत्रों के मुताबिक, इस भूमि तक जो रास्ता बनाया जा रहा था वो सहसपुर के ग्राम प्रधान अनीस अहमद की अवैध प्लाटिंग के आगे से जा रहा था, इस मार्ग को भी एमडीडीए ने ध्वस्त कर दिया है।अनीस अहमद के जन्म और शिक्षा दस्तावेजों को लेकर भी मामला चल रहा है।

बताया जाता है कि अनीस उत्तराखंड का मूल निवासी नही है। उस पर भी मुस्लिमों को अवैध रूप से अपने क्षेत्र में बसाने और उनके उत्तराखंड संबंधी दस्तावेज बनाए जाने का आरोप लगता रहा है। बरहाल पछुवा देहरादून में एमडीडीए की कारवाई अभी रत्ती भर है, यदि यहां जिला प्रशासन एमडीडीए वन विभाग के साथ मिलकर संयुक्त आपरेशन चलाए तो कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगे और इन्हें राजनीतिक संरक्षण देने वाले भी सामने आने लगेंगे।

पछुवा देहरादून में जनसंख्या असंतुलन
हिमाचल और उत्तर प्रदेश सीमा के बीच बसा हुआ पश्चिम देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे ‘पछुवा दून’ भी कहते है। यहां डेमोग्राफी चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। उत्तर प्रदेश से आए मुस्लिम यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसावट करते जा रहे हैं। ग्राम सभा की जमीनों पर मुस्लिम आबादी को बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों, प्रधान पतियों की भूमिका सामने आई है।

बाहर से आई मुस्लिम आबादी ने पछुवा दून की नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए हैं और अब इनके आधार कार्ड, वोटर लिस्ट में नाम दर्ज किए जा रहे हैं और इनमें ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।

हिन्दू बाहुल्य रहे गांवों में मुस्लिम सबसे अधिक
पछुवा देहरादून के गांव के गांव जो कभी हिन्दू बाहुल्य हुआ करते थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए है। आबादी की घुसपैठ का ये खेल हरीश रावत कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो अब तक बराबर चल रहा है। इन ग्रामों में मुस्लिम प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं। उत्तर प्रदेश,बिहार,असम, बंगाल,यहां तक कि बंग्लादेशी,म्यामार के रोहिंग्या मुस्लिम आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई? ये बड़ा सवाल है।

देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमांचल के पोंटा साहिब तक जाने वाली शिमला बाई पास, चकराता रोड के आसपास के इलाकों में देवभूमि उत्तराखंड का सामाजिक, आर्थिक धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्गों पर फड़ खोको के कब्जे हैं। उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस चुकी हैं। सरकारी जमीनों पर सौ से ज्यादा मस्जिदों मदरसों की ऊंची मीनारें दिखाई देती हैं। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालों में ये इलाका एक दम बदल गया और यहां हिन्दू अल्पसंख्यक होता चला गया और मुस्लिम आबादी ने पूरा क्षेत्र घेर लिया।

क्या लचर भू-कानून की वजह से ऐसा हुआ ?
जानकारी के अनुसार उत्तराखंड उत्तर प्रदेश की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल से लगता है, हिमाचल ने सख्त भू कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कब्जे कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग बगीचे में कारोबार करने जाती है और अस्थाई रूप से रहती है और वापिस चली जाती है। किंतु उत्तराखंड में ऐसा नहीं है जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों के मुस्लिमों ने इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली और जहां मौका मिला वहां जमीनें कब्जा ली।

पहले कुछ मुस्लिम यहां हिन्दू बाहुल्य गांवों में आकर बसे धीरे-धीरे वो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाकर बसाने लगे फिर वो धन बल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले गए और उन्होंने ग्राम सभा की सरकारी जमीनों पर अपने और मुस्लिम रिश्तेदारों को लाकर बसाना शुरू कर दिया ताकि उनका वोट बैंक और मजबूत होता जाए, यहीं मस्जिदें बनी और मदरसे खुलते चले गए। यानि सरकारी जमीनों को कब्जाने का षड्यंत्र रचा गया जो आज भी जारी है।

अवैध कब्जे करने का खेल सरकार की सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर भी धन बल और वोट बैंक की राजनीति के दमखम पर आज भी चल रहा है और इसमें सत्ता पक्ष-विपक्ष के नेताओ का संरक्षण भी मिलता रहा है। राजनीतिक संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध-अवैध खनन है, जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओ को धन जन बल की आपूर्ति करते है।

उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनों की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई? ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने तीन चरणों में ये अतिक्रमण भी ध्वस्त किए और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाएं। उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन उन्हें तारबाड़ से सुरक्षित नहीं की, अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने हैं तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां एक हजार से ज्यादा मकान ध्वस्त किए। लेकिन यहां रहने वाली आबादी उत्तराखंड छोड़ कर नहीं गई वो आसपास ही मुस्लिम नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे कर रही है और इस बार वो पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर बस रही है।

इसी तरह सहसपुर, जीवन गढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, छरबा, सभावाला आदि ग्रामों की हालत है, जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है।

प्रधानों के फर्जी प्रपत्र 
ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी प्रपत्रों से ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कारवाई में लटके हुए हैं। इन्हें राजनीतिक संरक्षण सत्ता और विपक्ष दोनों का मिला क्योंकि ये उनके स्वार्थ की पूर्ति करते रहे हैं।

दिल्ली और देवबंद से चलता है धार्मिक संरक्षण का खेल
जानकार बताते हैं कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से यहां हो रहा है। इसके पीछे राजनीतिक हस्तियां ही नहीं धार्मिक शक्तियां भी काम कर रही हैं। दिल्ली देवबंद की इस्लामिक संस्थाएं यहां पूरी तरह से मस्जिदों मदरसों में सक्रिय है और जमात के जरिए यहां मुस्लिम समुदाय संचालित हो रहा है। मुस्लिम सेवा संगठन और अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीतिक-धार्मिक ताकत तेजी से बढ़ाई जा रही है। ग्राम सभाओं पर इनका नियंत्रण हो चुका है आगे जिला पंचायत, फिर विधान सभा सीटों में इनका असर दिखाई देगा। यहां बने मदरसों और धार्मिक स्थलों ने नदी नालों की जमीनों तक अवैध  कब्जे किए हुए हैं। यहां अवैध रूप से निर्माण कार्य चल रहे है, जिस पर प्रशासन खामोश है। ऐसे ही नही यहां यहां मुस्लिम राजनीतिक पार्टी या मुस्लिम यूनिवर्सिटी की आवाज़ पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान सुनाई दी थी। इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश दिखलाई देती है।

वन विभाग के अधिकारी खामोश
पछुवा देहरादून में नदियों किनारे अवैध रूप से बसाए गए लोगों को हटाने के आदेश कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय से दिए गए, किंतु इसका असर क्षेत्र के डीएफओ, वन निगम के अधिकारियों में नहीं दिखाई दिया, कभी फोर्स न होने देने का बहाना तो कभी वीआईपी ड्यूटी के बहाने ये अभियान ठंडे बस्ते डाल दिए जाते हैं। विभागीय लापरवाही का आलम ये है कि अभी तक सरकारी विभागों ने इन अवैध कब्जेदारों को नोटिस तक जारी करने की जहमत नहीं उठाई। एमडीडीए की एक दिन की कारवाई की नहीं कई माह तक लगातार कारवाई करने पर ही कोई परिणाम सामने आ सकते हैं।

हिन्दू समुदाय पर हमले
इसी इलाके में राशिद पहलवान और उसके साथियों ने कांवड़ियों पर पथराव किया था, राशिद पर गैंगस्टर लगी और उसकी जमानत भी हो गई। जमानत के बाद जिस तरह से क्षेत्र में जुलूस निकाला गया, उसके पीछे मंशा, हिन्दू समुदाय को अपना दबदबा दिखाने की थी। राशिद पहलवान, मुस्लिम सेवा संगठन का संयोजक है और यहां कथित रूप से अवैध खनन, सरकारी भूमि कब्जाने जैसे मामले में वो सक्रिय रहता है।

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