40 पहले: जब अडाणी की तरह मंदड़ियों के जाल में फंसे सही सलामत निकले थे धीरुभाई अंबानी
जब अडाणी जैसी सिचुएशन में फंसे थे धीरूभाई अंबानी:रिलायंस को बचाने और पलटवार का 40 साल पुराना रोचक किस्सा
अनुराग आनंद
अडाणी मुसीबत में हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद उनकी कंपनियों के शेयर्स औंधे मुंह गिरे हैं। दुनिया के अमीरों की लिस्ट में वो तीसरे नंबर से 17वें नंबर पर खिसक गए हैं। लोगों के मन में एक ही सवाल है- अडाणी बाउंस बैक कैसे करेंगे।
हमने शेयर मार्केट के इतिहास के पन्ने टटोले तो पता चला कि कुछ ऐसी ही सिचुएशन में एक बार धीरूभाई अंबानी भी फंसे थे। जब कोलकाता के बियर कार्टल ने रिलायंस के शेयर गिराने की पूरी कोशिश की थी।
यहां जानेंगे कि क्या है धीरूभाई अंबानी से जुड़ा 1982 का किस्सा…
इस स्टोरी की ज्यादातर बातें ऑस्ट्रेलिया के पत्रकार हामिश मैक्डोनाल्ड की लिखी किताब ‘अंबानी एंड संस’ और गीता पीरामल की किताब ‘बिजनेस महाराजास’ से ली गई हैं।
शेयर बाजार में एंट्री करते ही अंबानी ने कमाया था 7 गुना ज्यादा मुनाफा
नवंबर 1977 की बात है। धीरूभाई अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस को शेयर मार्केट में रजिस्टर करने का फैसला किया। इस वक्त रिलायंस ने 10 रुपए शेयर की दर से करीब 28 लाख इक्विटी शेयर जारी किए। किसी शेयर को बेचने की शुरुआत इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी IPO से होती है। IPO जारी होते ही रिलायंस के शेयरों ने धमाल मचा दिया ।
अपनी कंपनी के शेयर में लोगों की दिलचस्पी को देखते हुए अंबानी का इरादा और ज्यादा मजबूत हो गया। जल्द ही अंबानी शेयर बाजार की बारीकियों को समझ गए। शेयर बाजार में कंपनी और दलाल जो खेल करते थे, उन्हें पता चल गया।
एक साल बाद 1978 में रिलायंस कंपनी के शेयर की कीमत 5 गुना ज्यादा बढ़कर 50 रुपए हो गई। फिर 1980 में एक शेयर की कीमत 104 और 1982 आते-आते 18 गुना बढ़कर 186 रुपए हाई पर पहुंच गई। यही वो समय था, जब अंबानी देश और दुनिया के शेयर दलालों की नजरों में खटकने लगे। फिर कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद अंबानी शेयर बाजार के मसीहा बन गए थे…
जब कोलकाता के शेयर दलालों ने अंबानी का अडाणी जैसा हाल कर दिया था
शेयर बाजार के बड़े दलालों के लिए दो शब्द खूब इस्तेमाल होते हैं। एक बियर यानी भालू और दूसरा बुल यानी बैल। अब पहले इन दोनों के बारे में जान लीजिए…
शेयर मार्केट का बियर यानी भालू
शेयरों की कीमत गिराकर उसे दोबारा खरीदने से मुनाफा कमाते हैं, उन्हें अंग्रेजी में ‘बियर’ यानी भालू कहा जाता है।
शेयर मार्केट का बुल यानी बैल
जो लोग शेयर खरीदकर उनके दाम बढ़ाते हैं और फिर उसे ऊंची कीमत पर बेचकर मुनाफा कमाते हैं, उन्हें अंग्रेजी में ‘बुल’ यानी बैल कहा जाता है।
1982 में रिलायंस के शेयर की कीमत धूम मचा रही थी। रिलायंस कंपनी के साथ 24 लाख से अधिक निवेशक जुड़ चुके थे। इसी समय रिलायंस ने निवेशकों से पैसे उधार लेने के लिए डिबेंचर्स जारी किए। दरअसल, डिबेंचर्स कंपनियों के लिए कर्ज के जरिए पूंजी जुटाने का तरीका है। डिबेंचर्स खरीदने वालों को कर्ज देने के बदले उनके पैसे पर एक निश्चित ब्याज मिलता है।
इस तरह बिजनेस बढ़ने से रिलायंस के शेयरों का प्राइस जितना बढ़ता, निवेशकों से लिया उनका कर्ज उतना ही कम हो जाता। धीरूभाई अंबानी को उम्मीद थी कि अगले कुछ सालों तक उनके शेयर इसी तरह बढ़ते रहेंगे, लेकिन तभी कोलकाता में बैठे बियर यानी शेयर बाजार के कुछ दलालों ने रिलायंस के शेयर को गिराने का फैसला किया।
18 मार्च 1982 को अचानक रिलायंस के शेयर की कीमत गिरने लगी। ये सब कुछ शेयर बाजार के दलालों के पहले से सुनियोजित प्लानिंग की वजह से हो रहा था। वह रिलायंस के शेयर की कीमत गिराकर लाभ कमाना चाहते थे। ऐसा करने के लिए बियर्स ने रिलायंस के शेयरों की शॉर्ट सेलिंग शुरू कर दी।
अंबानी के शेयर को गिराने वाला शॉर्ट सेलिंग तरीका क्या है?
शॉर्ट सेलिंग शेयर को खरीद या बेचकर लाभ कमाने का एक तरीका है। रिलायंस के शेयर की कीमत को गिराने के लिए दलाल शॉर्ट सेलिंग कर रहे थे। इसमें शेयर मार्केट के दलाल बड़ी संख्या में ब्रोकरेज के जरिए रिलायंस के शेयर दूसरों से उधार लेकर बाजार में धड़ाधड़ बेचने लगे। इससे कंपनी के शेयर की कीमत तेजी से कम होने लगी। दलालों का प्लान था कि वो ब्रोकरेज से उधार लिए शेयर को कम कीमत होने पर बाजार से खरीदकर लौटा देंगे और मुनाफा कमाएंगे।
इस तरीके में एक नियम ये भी होता है कि अगर उधार लिया गया शेयर तय समय पर नहीं लौटाया गया तो 50 रुपए प्रति शेयर उसे हर्जाना देना होता है। 18 मार्च 1982 के दिन शेयर बाजार शुरू होने के आधे घंटे बाद ही बियर्स ने साढ़े 3 लाख शेयर शॉर्ट सेलिंग के जरिए बेच दिए। एक साथ इतने ज्यादा शेयर बिकने की वजह से रिलायंस के एक शेयर की कीमत 131 से गिरकर 121 रुपए पर आ गई। कोलकाता के दलालों को लगा था कि डूबते शेयर को कोई बड़ा शेयर मार्केट का दलाल नहीं खरीदेगा।
इस तरह शेयर की कीमत में लगातार कमी आएगी और बाजार में भगदड़ मचने से शेयर की कीमत पूरी तरह से टूट जाएगी। ये कुछ वैसा ही था जैसे अभी हिंडनबर्ग अडाणी की कंपनी के साथ कर रहा है। ऐसे में तब रिलायंस का डूबना तय लग रहा था।
फिर धीरूभाई अंबानी ने बियर्स के दांव को ही पूरी तरह से पलट दिया
धीरूभाई अंबानी को इस बात की जानकारी मिल गई थी कि कोलकाता में बैठे शेयर मार्केट के दलाल रिलायंस के शेयरों की कीमत तोड़ रहे हैं। इसके बाद देर किए बिना अंबानी ने दुनियाभर के टॉप बुल दलालों से संपर्क किया।
अब अंबानी की तरफ से भी कई टॉप बुल दलाल शेयर बाजार में कूद चुके थे। अब एक तरफ कोलकाता में बैठे बियर्स दलाल धड़ाधड़ शेयर बेच रहे थे। वहीं, दूसरी ओर अंबानी के समर्थक बुल दलाल शेयर खरीद रहे थे।
18 मार्च की शाम को दिन खत्म होते समय शेयर 125 रुपए की कीमत पर जाकर बंद हुआ। धीरूभाई को इनपुट मिल गया था कि कोलकाता का दलाल एक सप्ताह के वादे पर शेयर की शॉर्ट सेलिंग कर रहा है।
ऐसे में अंबानी ने इस बात पर फोकस किया कि किसी भी तरह से एक सप्ताह तक शेयर की कीमत ज्यादा नहीं गिरे। ऐसा होने पर कोलकाता के दलालों को या तो ज्यादा कीमत में शेयर खरीदकर उधारी चुकानी पड़ती या फिर उधार लिए गए शेयरों पर हर्जाना भरना होता।
तीन दिनों के भीतर ही रिलायंस के 11 लाख शेयर बिक गए और इनमें से साढ़े आठ लाख के करीब अंबानी के दलालों ने खरीद लिए। अब कोलकाता के दलालों के होश उड़ गए। उनकी उम्मीद के उलट शेयर की कीमत 131 रुपए से भी ज्यादा बढ़ गई। अब शेयर चुकाने के लिए बियर्स को ऊंची कीमत पर शेयर खरीदना पड़ता। अगर वो ऐसा नहीं करते तो उन्हें प्रति शेयर 50 रुपए देने होते।
समझौता कराने के लिए 3 दिन तक बंद रखना पड़ा था शेयर मार्केट
धीरूभाई अंबानी के जाल में बियर्स पूरी तरह से फंस चुके थे। उन्होंने मामला सेटल करने के लिए बुल्स से समय मांगा, लेकिन अंबानी के दलाल बुल्स ने समय देने से मना कर दिया। इसके बाद खुद शेयर मार्केट के अधिकारियों को समझौता कराने के लिए बीच में आना पड़ा।
परिणाम ये हुआ कि 3 दिन तक शेयर मार्केट बंद रहा। अंबानी कोलकाता में बैठे बियर्स को सबक सिखाना चाहते थे, इसीलिए 3 दिनों तक वह अपनी जिद पर अड़े रहे। 10 मई 1982 को शेयर मार्केट में रिलायंस का शेयर आसमान छूने लगा था।
अब अंबानी शेयर मार्केट के मसीहा बन गए थे। गीता पीरामल ने अपनी किताब ‘बिजनेस महाराजास’ में लिखा है कि इसका सबसे ज्यादा फायदा रिलायंस में पैसा लगाने वाले निवेशकों को मिला।
अपने दोनों बेटे मुकेश और अनिल के साथ धीरूभाई अंबानी।
अंबानी के शेयर खरीदने वाला ‘शाह’ कौन अब तक पता नहीं चला?
शेयर बाजार खुलने के बाद कई दिनों तक अंबानी के शेयर में निवेशक पैसा लगाते रहे, इससे शेयर की कीमत हाई बनी रही। इसके बाद सवाल उठने लगे कि अंबानी को इस संकट से बचाने वाले बुल्स कौन थे?
बाद में इस बारे में संसद में उस वक्त के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जवाब दिया था कि 1982 से 1983 के बीच एक NRI ने अपने नाम का खुलासा किए बिना अंबानी के शेयरों में 22 करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए थे। उस समय ये काफी बड़ी रकम होती थी।
कुछ दिनों बाद पता चला कि फिकासो और लोटा नाम की कंपनियों के जरिए ये पैसा इन्वेस्ट किया गया था। इन कंपनियों के मालिक कोई ‘शाह’ नाम के व्यक्ति थे। ये शाह कौन था अब तक पता नहीं चला पाया है। हालांकि बाद में आरबीआई ने अपनी जांच में रिलायंस को क्लीन चिट दे दी थी।