उत्तरकाशी सुरंग अपडेट: रेट होल माइनर्स और मद्रास सेपर्स के पराक्रम से निकल पाये श्रमिक

Uttarkashi Silkyara Tunnel 41 Workers Defeat Death Rat Miners Baba Bokhnag Big Role Rescue Mission Uttarakhand
उत्तराकाशी: 41 परिवारों ने आज मनाई दिवाली, जिस मलबे को काटने में मशीनें फेल हो गईं आखिर वो मिशन कैसे हुआ सफल

उत्तराखंड के उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल से सभी मजदूर  सुरक्षित निकाल लिये गये हैं। 17 दिनों तक अंधेरी सुरंग में रह योग और चिकित्सकीय सलाह से खाना खाने वाले 41 मजदूर स्वस्थ और पूरे जोश से टनल से बाहर आ गए। इनके बाहर आने की खुशी में उनके घरों में दीवाली मनाई जा रही है।
देहरादून/उत्तरकाशी 28 नवंबर: दीपावली की अमावस्या से उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन टनल में फंसे 41 मजदूर को कार्तिक पूर्णिमा के बाद ही उससे रिहाई नसीब हुई। जैसे-जैसे श्रमिकों को मलबे से पार लाया गया, वैसे-वैसे टनल के बाहर और देश-दुनिया में लोगों की धड़कनें बढ़ती गईं। इन 41 श्रमिकों में अंधेरी सुरंग से रिहाई की खुशी साफ झलक रही थी। इस खुशी ने इन 17 दिनों की टेंशन को भी दूर कर दिया। मजदूरों के निकलने की खुशखबरी जैसे ही बाहर टकटकी लगाए बैठे अपनों तक पहुंची तो खुशी के मारे आंखें छलक आईं और एक दूसरे को गले लगकर खुशी के मारे रो पड़े। अपने जिगर के टुकड़ों के सकुशल बाहर आने की सूचना जब उनके घरों तक पहुंची तो परिजनों ने मिठाई बांटी और जमकर पटाखे फोड़े।

उत्तरकाशी सिल्क्यारा टनल लाइव: बाहर निकले मजदूर ने लपककर छुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पैर, देखिए वीडियो

 

अभी मजदूरों के निकलने का सिलसिला शुरू ही हुआ था कि सभी श्रमिकों के घरों में दीपावली मनाई जाने लगी। सही मायनों में इन मजदूरों और उनके परिजनों की दीपावली आज हुई है जो 17 दिन में जिंदगी की जंग जीत कर बाहर आए हैं। अंधेरी सुरंग में 17 दिन काटने वाले इन श्रमिकों की सलामती के लिए देश और दुनिया में पूजा-पाठ और दुआओं का दौर चल रहा था। आखिरकार देर रात सफलता मिली तो उसकी खुशी मुख्यमंत्री धामी के साथ ही केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह के चेहरे पर भी साफ दिखाई दी। वीके सिंह और धामी के नेतृत्व में, पीएमओ के अधिकारियों की मेहनत और रेस्क्यू कार्य में जुटे जवानों की मशक्कत के साथ ही रैट माइनर्स की टीम ने आखिरकार एक बड़ी चुनौती पर सफलता पाई।

जिस मलबे को काटने में अमेरिका की ऑगर मशीन भी दम तोड़ गई। वहीं इस चूहा तकनीक ने कुछ ही घंटे में मलबा खोदकर मजदूरों को बाहर निकालने में सफलता पाई। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से लोग अपने भाई, बेटे, पिता के सुरंग में फंसने की खबर सुनकर दौड़े आए। वहीं उत्तराखंड के एक युवा श्रमिक के टनल में फंसने से उनकी माता ने तो अन्न-जल ही त्याग दिया था। यहां तक कि उन्होंने सरकार से गुहार लगाई थी कि उनका घरबार ले लो, लेकिन उनके बेटे को बाहर ले आओ। एक मां की इस करूण गुहार ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी पिघला दिया। वह टनकपुर में परिवार से मिलने पहुंचे। उन्हें धैर्य बंधाया कि उनका बेटा जल्द ही घर वापस आ जाएगा।

यहां तक कि टनल के बाहर इंतजार में बैठे श्रमिकों के परिजनों और साथियों की भी सीएम और पीएमओ के अधिकारी लगातार हौसला अफजाई करते रहे। इस मोर्चे पर रेस्क्यू अभियान से जुडे हुए व्यक्ति ने एक सैनिक बनकर लड़ाई लड़ी। वहीं क्षेत्र के भूमियाल देवता बाबा बौखनाग की कृपा भी बनी रही। टनल में हुई दुर्घटना के बाद जब स्थानीय लोगों ने विरोध जताया था कि टनल बनाने वाली कंपनी प्रबंधन ने यहां से बाबा बाखैनाग का मंदिर हटा दिया था, यह दुर्घटना बाबा का प्रकोप है।

इसके बाद तकनीक का सहारा ले रही कंपनी ने आस्था को मान देते हुए टनल के बाहर बाबा बौखनाग का मंदिर स्थापित किया। बाबा की कृपा कहें या संयोग कि इस मंदिर की स्थापना के बाद कार्य बिना बाधा के आगे बढ़ा। दो दिन पहले फिर बाधा आई तो कंपनी प्रबंधन के अधिकारी बाबा बौखनाग के स्थान पर पहुंचे और मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए अर्जी लगाई। तब बाबा बौखनाग के पश्वा ने कहा था कि सभी मजदूर तीन दिन के भीतर टनल से बाहर आ जाएंगे। आज उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई।

27 नवंबर को बाबा बौखनाग के मंदिर के पीछे टनल की दीवार पर अचानक पानी रिसने लगा और वहां भगवान शिव की आकृति बन गई। इसके बाद लोगों में भगवान के प्रति और विश्वास बढ़ गया कि स्वयं भगवान ही इन 41 जिंदगियों केा बचाने के लिए इस रूप में आए हैं। इन सत्रह दिनों में टनल की ओर जैसे ही कोई हलचल होती तो मीडिया कर्मियों से लेकर मजदूरों के परिजन और तमाम साथी टनल की ओर दौड़ पड़ते कि शायद कोई खुशखबरी आई है। लेकिन जब पता चला कि फिर कोई अड़चन आई तो लोगों के चेहरों पर उदासी छा जाती। इस रेस्क्यू कार्य टीम ने कई उतार-चढ़ाव देखे। कई चुनौतियों से जूझे।

अपनों की चिंता में घुल रही एक मां, पत्नी, बेटी और बहन की आंखों से खुशियों के आंसू छलक उठे। टनल के आसपास नेटवर्क की समस्या होने के चलते अपनों की कुशलता का समाचार घर तक पहुंचाने के लिए लोग दूर तक भागते नजर आए। इनकी खुशी देख कर लगा रहा है कि कई दिनों के बाद चैन से खाना खा सकेंगे और सुकून की नींद भी सो सकेंगे।

क्या है रैट होल माइनिंग
रैट होल माइनर्स एक विशेषज्ञों की टीम है जो खोदाई में एक्सपर्ट होती है। मैन्युअल खोदाई शुरू होने के बाद एक मीटर प्रतिघंटा तक यह टीम खोदाई कर सकती है। उत्तरकाशी में टीम के दो सदस्य पाइप में घुसे। इनके पास छोटे फावड़े, छोटी ट्रॉली, ऑक्सीजन मास्क और हवा को सर्कुलेट करने के लिए एक ब्लोअर था। एक सदस्य ने खोदाई की और दूसरे ने ट्रॉली में मलबा भरकर बाहर भेजा। एक बार में ट्रॉली में छह से सात किलो मलबा ही बाहर आ सकता था, इसलिए इसमें समय लगने का अंदेशा था। हालांकि इस टीम ने सेना के मद्रास शैपर्स यूनिट की मदद से काम को बेहद फुर्ती से पूरा कर दिया।

10 घंटे में करती है अमेरिकी ऑगर मशीन 50 मीटर खुदाई
अमेरिकी ऑगर मशीनों को होरिजोंटल ऑगर मशीनें कहा जाता है। हिंदी में इसे बरमा भी कहते हैं। मिट्टी या चट्टानों में खुदाई के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है। ये वर्टिकल सुरंगों को खोदने में भी इस्तेमाल की जाती हैं। इसमें ढेर सारे घुमावदार ब्लेड्स होते हैं, जो न सिर्फ चट्टानों में जगह बनाते हुए खुदाई करते हैं बल्कि मलबे को हटाते भी रहते हैं। ये मशीनें सरफेस को डिस्टर्ब किए बिना वर्टिकल बोर या अंडकग्राउंड सुरंग बनाने के लिए एक खास उपकरण है।

इसमें आमतौर पर एक घूमने वाला पेचदार स्क्रू ब्लेड होता है, जिसे बरमा कहा जाता है। यह एक केंद्रीय शाफ्ट या ड्रिल से जुड़ा होता है, जो घूमते हुए मलबे में प्रवेश करता है। इन मशीनों को आमतौर पर पाइप या केबल बिछाने या फिर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में इस्तेमाल किया जाता है। मशीन के काम करने के लिए इसे बोर के स्टार्टिंग पॉइंट को सरफेस पर लगाया जाता है। इसमें एक ड्रिल हेड होता है जिसके साथ एक बरमा या ड्रिल स्ट्रिंग जुड़ी होती है। मशीन के सामने का बरमा घूमता है और अंडरग्राउंड मिट्टी, चट्टान या अन्य सामग्री को काटता जाता है। हाइड्रोलिक या मैकेनिकल सिस्टम इस रोटेशन को पावर देते हैं। बरमा सुरंग से मलबे को हटाते हुए आगे बढ़ता है।

सिलक्यारा में इसका इस्तेमाल क्यों?
सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग रेस्क्यू ऑपरेशन में इसी मशीन का प्रयोग किया गया क्योंकि सरफेस पर कम से कम गड़बड़ी के साथ मलबे के बीच से एक रास्ता बना सकती है। जैसे-जैसे मशीन मलबे में जगह बनाती जाती है, वहां मौजूद रेस्क्यू की टीम खाली जगहों पर पाइप फिट करती जाती है। इससे एक वैकल्पिक सुरंग का रास्ता तैयार होता है। काम पूरा हो जाने के बाद बरमा ब्लेड को वापस खींचा जा सकता है लेकिन उससे पहले ही मशीन का प्लैटफॉर्म क्षतिग्रस्त हो गया और उसके बरमा को काटकर निकालना पड़ा।

दरअसल, खुदाई के बाद रेस्क्यू की टीम ऑगर मशीनों को बाहर खींच रही थीं, ताकि पाइप में किसी बाधा की मैनुअल जांच की जाए। मशीन को बाहर लाने के दौरान 15 मीटर खींचने के बाद उसका ब्लेड वहीं फंसा रह गया और इससे ऑगर जॉइंट टूट गया। इसके बाद बरमा ब्लेड का तकरीबन 32 मीटर हिस्सा पाइपों के अंदर छूट गया, जिससे उसका रास्ता रुक गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *