24 साल में जंगल घटा 6%, वन सर्वेक्षण से मांगी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने रपट
23 Lakh Hectares Of Forest Where Disappear Area Reduced By 6 Percent Ngt Seeks Report
कहां गायब हो गए 23 लाख हेक्टेयर जंगल, फॉरेस्ट एरिया दिल्ली से छह गुना कमी, NGT ने मांगी रिपोर्ट
Uttarakhand Forest Area Reduced उत्तराखंड के वन क्षेत्र में कमी का मामला सामने आया है। इस मामले में हैरान करने वाली रिपोर्ट पर एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) ने संज्ञान लिया है। ट्रिब्यूनल ने एफएसआई को इस संबंध में विस्तृत सर्वे का निर्देश दिया है। वन क्षेत्र में कमी को कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। इसको लेकर अब एक्शन शुरू हुआ है।
मुख्य बिंदु
एनजीटी ने वन क्षेत्र में कमी पर एफएसआई से एक माह में मांगी विस्तृत रिपोर्ट
वर्ष 2000 से देश में 23 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र में आई है कमी
उत्तराखंड समेत देश के विभिन्न हिस्सों में वन क्षेत्र में आई कमी की अब जांच
देहरादून 03 दिसंबर 2024: उत्तराखंड के वन क्षेत्र में आई कमी पर चर्चा जोर पकड़ रही है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने इस साल शुरु एक में मीडिया रिपोर्ट का स्वयं संज्ञान लेते हुए देहरादून के भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI Dehradun) मुख्यालय को व्यापक रिपोर्ट प्रदान करने का निर्देश दिया है। रिपोर्ट में वर्ष 2000 से देश में 23 लाख हेक्टेयर तक वन क्षेत्र में कमी बताई थी। इस मामले की चल रही सुनवाई में एनजीटी ने पाया कि उद्धृत आंकड़ा दी गई अवधि के दौरान वृक्ष क्षेत्र में 6 प्रतिशत की कमी के बराबर है।
देश में घटते वन क्षेत्र की बात की जाए तो यह दिल्ली के क्षेत्रफल से करीब 15 गुना अधिक है। इसलिए, मामले को लेकर चिंता बढ़ गई है। दरअसल, समाचार एजेंसी पीटीआई की अप्रैल में आई रिपोर्ट में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के हवाले से 23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वन की कमी का आंकड़ा बताया गया था। फॉरेस्ट वॉच ने उपग्रह डेटा और अन्य स्रोतों का उपयोग करके लगभग वास्तविक समय में वन परिवर्तनों को ट्रैक कर अपनी रिपोर्ट दी।
60 प्रतिशत वन क्षेत्र में कमी
ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच डेटा में बताए गए 23 लाख हेक्टेयर के आंकड़े का रिपोर्ट में साल-दर-साल ब्यौरा नहीं दिया गया है, लेकिन बताया गया है कि 2001 से 2023 के बीच कुल फॉरेस्ट एरिया में 60% की कमी पांच पूर्वोत्तर राज्यों में हुई है। असम में सबसे अधिक 3,24,000 हेक्टेयर वृक्ष आवरण में कमी आई है, जबकि औसत 66,600 हेक्टेयर है।
रिपोर्ट के अनुसार, मिजोरम में 312,000 हेक्टेयर, अरुणाचल में 262,000 हेक्टेयर, नागालैंड में 259,000 हेक्टेयर और मणिपुर में 240,000 हेक्टेयर वृक्ष आवरण में कमी आई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में 2002 से 2023 तक 4,14,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन (4.1प्रतिशत ) की कमी आई है, जो इसी समय-सीमा के भीतर कुल वृक्ष आवरण में कमी का 18 प्रतिशत है।
वन क्षेत्र का जीवन में महत्वपूर्ण
एनजीटी ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वन कार्बन सिंक और स्रोत दोनों के रूप में कार्य करते हैं। पेड़ खड़े होने या पुनर्जीवित होने पर हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाते हैं। साफ या खराब हवा होने पर वे ऑक्सीजन छोड़कर वातावरण संतुलित करते हैं। एनजीटी ने उस रिपोर्ट पर भी चिंता व्यक्त की, जिसमें वन क्षेत्र की कटाई की बात संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से कही गई है।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़ों से पता चलता है कि देश की वनों की कटाई की दर 2015 और 2020 के बीच सालाना 3,668,000 हेक्टेयर थी। यह विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर है। इस मामले की शुरुआत में 20 मई को ग्रीन कोर्ट ने जांच की, जिसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण और वन मंत्रालय और भारतीय सर्वेक्षण विभाग को पक्षकार बनाया गया।
एफएसआई को जारी हुआ आदेश
ट्रिब्यूनल ने उस समय भारतीय सर्वेक्षण विभाग को निर्देश दिया था कि वह देश के वन क्षेत्र की स्थिति, विशेष रूप से उत्तर-पूर्व को 2000 से लेकर मार्च 2024 तक पांच साल के अंतराल पर दर्शाने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत करें। 18 नवंबर को सुनवाई के दौरान भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने कहा कि एफएसआई वन क्षेत्र की जानकारी रखता है। इसके बाद एनजीटी ने एफएसआई के महानिदेशक को एक महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। यह आदेश सुनवाई के दिन ही जारी कर दिया गया था, लेकिन पिछले सप्ताह उपलब्ध कराया गया।