73 साल पहले: नेहरू ने तो सोमनाथ मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा में बाकायदा अड़ाया था अड़ंगा
Somnath Temple Consecration Nehru Absence And Rajendra Prasad’s determination
सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा: नेहरू का न आना और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को रोकना, वो कहा नी क्या है?
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के न्योते को कांग्रेस की ओर से ठुकराए जाने के बाद राजनीति गरमा गई है। भाजपा ने कांग्रेस को राम विरोधी करार दिया है। उसने इसका कनेक्शन करीब सात दशक पहले सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह से जोड़ दिया है। तब नेहरू ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने से रोका था।
नई दिल्ली 12 जनवरी: कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में नहीं जाने का फैसला किया है। राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से पार्टी को कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला था। कांग्रेस ने इसे भाजपा और आरएसएस का इवेंट बताकर अस्वीकार किया है। न्योते को ठुकराए जाने के बाद राजनीति गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इसका कनेक्शन 73 साल पहले सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से जोड़ दिया है। इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस में वार-पलटवार शुरू हो गया है। भाजपा ने कांग्रेस पर राम विरोधी होने का आरोप लगाया है। सात दशक पहले की याद दिलाते हुए उसने पूरे मामले में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी लपेट लिया है। तब नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने से रोका था। दोनों के बीच इसे लेकर खुलकर मतभेद सामने आ गए थे। क्या था वो किस्सा? आइए, यहां जानते हैं।
सोमनाथ मंदिर,नेहरू और प्रसाद
राम मंदिर में कांग्रेस की ना पर भाजपा ने सुना दिया नेहरू-पटेल वाला किस्सा
बात सात दशक पहले की है। वातावरण आज से भिन्न था लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का रवैया ठीक वही था जो आज सोनिया गांधी और खड़गे का है। तारीख थी 11 मई 1951। गुजरात में सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन था। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। आक्रमणकारियों ने कई बार इस मंदिर को तहस-नहस किया था। औरंगजेब के आदेश पर इसे ढहा दिया गया था। आजादी के बाद इसका दोबारा पुनर्निर्माण हुआ। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को इसका श्रेय जाता है।
11 मई 1951 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ही मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था। कार्यक्रम में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के शामिल होने पर नेहरू ने आपत्ति जताई थी। नेहरू ने स्वयं इसमें शामिल होने से साफ मना कर दिया था। नेहरू ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को चिट्ठी लिखकर अप्रसन्नता जाहिर की थी। साथ ही उनसे यह भी कहा था कि वह भी कार्यक्रम में भाग न लें।
नेहरू ने डॉक्टर प्रसाद को लिखी थी चिट्ठी
सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम से करीब तीन महीने पहले नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी थी। यह चिट्ठी 13 मार्च 1951 को लिखी गई थी। उन्होंने लिखा था- अगर आपको लगता है कि निमंत्रण अस्वीकार करना आपके लिए सही नहीं होगा तो मैं दबाव नहीं डालूंगा। नेहरू ने लिखा था कि डॉक्टर प्रसाद की सोमनाथ मंदिर यात्रा राजनीतिक महत्व ले रही है। यह सरकारी कार्यक्रम नहीं है। इसलिए, उन्हें इसमें नहीं जाना चाहिए।
दरअसल, नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद किसी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बनें। नेहरू को लगता था कि इससे जनता में गलत मैसेज जा सकता है। इसी के चलते नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति को रोकने की कोशिश की। यह और बात है कि डॉक्टर प्रसाद ने नेहरू की एक नहीं सुनी और सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए।
पुनरोद्धार के पहले लोग मंदिर के ध्वंसावशेष देखने जाया करते थे
राजेंद्र प्रसाद ने दिया था चिट्ठी का जवाब
नेहरू की चिट्ठी के जवाब में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भी पत्र लिखा था। डॉक्टर प्रसाद ने लिखा था- मैं अपने धर्म को बहुत मानता हूं और इससे खुद को अलग नहीं कर सकता। फिर न केवल वह उद्घाटन में शामिल हुए बल्कि कार्यक्रम के अनुसार, शिवलिंग की स्थापना भी की। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा था। इसे लेकर उन्होंने महात्मा गांधी को पत्र लिखा था। गांधी ने इस प्रस्ताव की सराहना की थी। लेकिन, शर्त रखी थी कि इसमें सरकारी धन खर्च नहीं होना चाहिए। पटेल ने इस शर्त का अक्षरश: पालन किया था।
नेहरू डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा में सम्मिलित होने से इतने नाराज़ थे कि उन्होंने राष्ट्रपति के शिवलिंग स्थापना कार्यक्रम में दिये भाषण का प्रसारण आल इंडिया रेडियो पर नहीं होने दिया था। कहा जाता है कि इसका बदला नेहरू ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की सेवानिवृत्ति के बाद उनकी उपेक्षा और उनका देय तक रोक कर लिया। राष्ट्रपति रहे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को अपने अंतिम समय आवास और उपचार तक की सुविधा नहीं मिली थी। रूग्णावस्था में ही उन्होंने आखिरी सांस ली।