‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ छोड़ विधायक अदिति भाजपा में,दो और आये
रायबरेली-आजमगढ़ में BJP की जबरदस्त सेंधमारी, MLA अदिति सिंह समेत तीन विधायक पार्टी में शामिल
लखनऊ 24 नवंबर। उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनौती बने रायबरेली और आजमगढ़ में भाजपा ने जबदस्त सेंधमारी की है। रायबरेली से कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह और आजमगढ़ की सगड़ी सीट से विधायक वंदना सिंह ने बुधवार को भाजपा का दामन थाम लिया। अदिति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की सदर सीट से विधायक हैं। इन दोनों के अलावा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने भी भाजपा की सदस्यता ली। राकेश प्रताप सिंह सोनिया गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले दिनेश प्रताप सिंह के छोटे भाई हैं।
भाजपा को आजमगढ़ और रायबरेली में लगातार निराशा हाथ लगी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। रायबरेली में दोनों बार कांग्रेस से सोनिया गांधी ने जीत हासिल की। आजमगढ़ में 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव ने जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर के बाद भी आजमगढ़ की 10 में से नौ सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। यहां पांच सीटे सपा और चार बसपा ने जीती थी। इन्हीं में से एक सीट सगड़ी पर बसपा के टिकट पर वंदना सिंह निर्वाचित हुई थीं। बाद में वंदना सिंह को मायावती ने निलंबित कर दिया था।
अदिति सिंह पिछले डेढ़ साल से कांग्रेस में विद्रोही रुख अपनाया हुआ था। अदिति सिंह पिछले कुछ समय से सीधे प्रियका गांधी के खिलाफ लगातार हमलावर हैं। चाहे वह लखीमपुर खीरी का मामला हो या फिर कृषि कानून वापसी का, उन्होंने हमेशा प्रियंका गांधी की राजनीति पर निशाना साधा। कांग्रेस ने उनके खिलाफ विधानसभा की सदस्यता निरस्त करने की अर्जी भी दी थी।
जब तक अखिलेश सिंह रायबरेली सदर से विधायक रहे, वह लगातार गांधी परिवार को चुनौती देते रहे। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर अदिति सिंह को 2017 में चुनाव लड़वाया और विधायक बनवाया। बावजूद इसके रायबरेली सदर की सीट कभी भी कांग्रेस की नहीं मानी गयी।
पिता के मौत के बाद अदिति सिंह भी उनकी दबंग छवि के साथ समझौता नहीं कर रही हैं। वे लगातार कांग्रेस की नीतियों को चुनौती दे रही हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी हर मुद्दे का राजनीतिकरण कर देती हैं। उन्होंने कहा कि लखीमपुर खीरी मामले की सीबीआई जांच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया है। अगर उनके इन संस्थाओं में ही विश्वास नहीं है तो मुझे समझ में नहीं आता कि उनका किस पर विश्वास है।
इस बात के कयास लंबे समय से लग रहे थे कि कांग्रेस की बागी विधायक अदिति सिंह किसी भी समय पार्टी छोड़ सकती हैं। पार्टी इस बात के लिए तैयार थी। यूपी में कांग्रेस के सात विधायकों में अदिति भी एक थीं, लेकिन जब भी विधायकों की गिनती होती थी, उनका नाम अलग कर दिया जाता था।
जिस बात की अटकलें लंबे समय से लग रही थीं, वह सच साबित हुई। रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस से विधायक अदिति सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई हैं। वे लंबे समय से कांग्रेस के विरोध में मोर्चा खोले हुई थीं और भाजपा की नीतियों का समर्थन कर रही थीं। किसान आंदोलन को लेकर वे खुलकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के खिलाफ कई बार बोल चुकी हैं। उन्होंने हाल ही में तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले पर बाद में प्रतिक्रिया देने पर प्रियंका गांधी की आलोचना की थी
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने केंद्र सरकार के कदम की तारीफ करने के अलावा वे योगी सरकार की भी प्रशंसक रही हैं। कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों के लिए जब कांग्रेस ने 1000 बसों का इंतजाम किया था तो अदिति सिंह इस विवाद में भी कूदी थीं और पार्टी नेतृत्व की आलोचना की थी। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में जब-जब वोटिंग के मौके आए अदिति सिंह ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला है।
कांग्रेस उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म करने को लेकर पहले ही विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख चुकी है। ऐसे में उनके भाजपा में शामिल होने को महज एक औपचारिकता माना जा रहा है। हालांकि अदिति का विकल्प ढूंढना पार्टी के लिए एक टेढ़ी खीर है, क्योंकि रायबरेली सदर की सीट ऐसी थी जहां भाजपा कमजोर थी और अदिति सिंह के परिवार ने यहां कांग्रेस का झंडा बुलंद कर रखा था। अदिति सिंह के शामिल होने से भाजपा कांग्रेस पार्टी की पारंपरिक गढ़ रायबरेली में पैठ बनाने की उम्मीद कर रही है।
उत्तर प्रदेश की एक महिला नेता ने बताया अदिति सिंह जिस तरह बात-बात पार्टी नेतृत्व और पार्टी की नीतियों की आलोचना कर रही थीं उससे यह साफ था कि वे देर-सबेर कांग्रेस छोड़ देंगी। उन्हें रेबेल ऑफ रॉयबरेली कहा जाने लगा और अक्सर उनसे पूछा जाता था ‘तो, आपकी स्थिति क्या है? क्या आप अभी भी कांग्रेस विधायक हैं, या आप 2022 के चुनाव से पहले बीजेपी या समाजवादी पार्टी में जा रही हैं?
अदिति सिंह बाहुबली अखिलेश सिंह की बेटी हैं। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली सदर से 2017 का चुनाव जीता और पहली बार विधायक बनी थी। अखिलेश सिंह ने 1993 से 2017 तक इस सीट पर कब्जा रखा था। 2019 में उनका निधन हो गया। बताया जा रहा है कि पिता के निधन के बाद से अदिति का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा और वे भाजपा में अपना भविष्य तलाशने लगीं।
पंजाब के विधायक से शादी की
उन्होंने अमेरिका में पढ़ाई की और 2019 में पंजाब के कांग्रेस विधायक अंगद सिंह सैनी से शादी की। ये दोनों क्रमशः उत्तर प्रदेश और पंजाब की विधानसभाओं में सबसे कम उम्र के विधायक माने जाते हैं। अंगद सिंह ने भी साल 2017 में ही राजनीति में कदम रखा था। माना जा रहा है कि अदिति सिंह पंजाब में भी भाजपा के लिए चुनाव प्रचार कर सकती हैं
रायबरेली सदर सीट पर यादवों और मुस्लिम मतदाताओं का अच्छा अनुपात है। पिछले तीन दशक से अदिति सिंह के परिवार की इस क्षेत्र में पकड़ के कारण माना यह जाता है कि यहां उनका परिवार जीतता है न की पार्टी। कहा जाता है कि अखिलेश सिंह रायबरेली लोकसभा सीट से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जीत में अहम भूमिका निभाते रहे।
समय के साथ बढ़ती गई दूरी
अदिति सिंह कभी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की करीबी माना जाती थीं। प्रियंका गांधी अपनी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र रायबरेली का काम देखती रही हैं और इस सिलसिले में अदिति सिंह उनके करीब आईं, लेकिन वक्त के साथ प्रियंका गांधी और अदिति सिंह में दूरी बढ़ती गईं और वे प्रियंका गांधी की धुर आलोचक बन गईं। अदिति सिंह का मानना था कि कांग्रेस को मजबूत करने के लिए प्रियंका गांधी को लखनऊ में ज्यादा समय देना चाहिए था।
सूत्र बताते हैं कि लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी ने अदिति सिंह को निलंबित कर दिया था लेकिन रायबरेली में उनके परिवार की लोकप्रियता को देखते हुए ही उनके खिलाफ आधिकारिक कार्रवाई करने से कतराती रही। लेकिन 2019 के अक्टूबर के बाद से कांग्रेस और उनके संबंधों में तनाव साफ देखा जा रहा था।
पिता की विरासत को बचाए रखने की चुनौती
अगर राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अदिति सिंह अपने पिता के वर्चस्व को बनाये रखते हुए अपने कैरियर को आगे बढ़ाना चाहती हैं। कांग्रेस के साथ रहकर यह संभव नहीं था क्योंकि उनके पिता की गांधी परिवार से अदावत छिपी नहीं है। अगर पिता के विरासत को आगे बढ़ाना है तो उन्हें अपनी राजनीति की राहें अलग करनी होगी। उनके पिता कांग्रेस का गढ़ होने के बावजूद निर्दलीय चुनाव जीतते रहे। अदिति सिंह यह बात बखूबी जानती हैं कि उन्हें भविष्य में किस राह को पकड़ना है।
योगी और भाजपा के साथ पहले भी दिखी नजदीकियां
अदिति सिंह की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा से काफी नजदीकी पहले से दिखी है। वो अक्सर कांग्रेस की नीतियों के विरुद्ध भाजपा सरकार के कामकाज की तारीफ करती नजर आती हैं। उन्होंने जम्मू कश्मीर से 370 हटाने का समर्थन किया था। इससे कांग्रेस को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। कांग्रेस ने अदिति सिंह की सदस्यता खत्म करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष के यहां अपील की थी।