धूम मचा दे !!, अफसर से सीधे चपरासी-चौकीदार डिमोशन
योगी आदित्यनाथ ने एक और असरदार फैसला लिया है चलिए सबक लीजिए
Yogi Adityanath के एक और फैसला उदाहरण बन गया ,शासनकला का पाठ बन गया. योगी आदित्यनाथ ने चार अधिकारियों का नियम विरुद्ध प्रमोशन देखा तो उनका प्रमोशन की जगह उनका डिमोशन कर देना ही बेहतर समझा. योगी आदित्यनाथ के बेहतरीन फैसलों की लिस्ट में एक फैसला यह भी शामिल हो गया.
मशाहिद अब्बास @masahid.abbas
योगी आदित्यनाथ आए दिन सुर्खियों में रहा करते हैं. उनको अपने कड़े तेवर दिखाने हों, या फिर सख्त फैसले लेने हों. वह देरी करना तो जानते ही नहीं हैं. वो कहते हैं न ऑन द स्पाट फैसला, जी हां वही करते हैं उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ. याद कीजिए। लव जिहाद पर बहस छिड़ी थी मध्य प्रदेश में, उधर बहसा-बहसी ही जारी थी कि, इधर योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट में लव जिहाद को लेकर कानून भी बना दिया था. योगी आदित्यनाथ की इस तेज़ी और मुस्तैदी पर खूब चर्चाएं हुयी थी. विकास दूबे वाला मामला भी याद होगा और हाथरस गैंगरेप वाला मामला भी, सीबीआई को जांच सौंपना हो या फिर उत्तर प्रदेश पुलिस से काम लेना हो, योगी आदित्यनाथ हर मामले में अव्वल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस दिन गुजरात में सरदार पटेल की सबसे बड़ी मूर्ती का उद्घाटन किया था, उसी दिन योगी आदित्यनाथ ने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ती भगवान श्री राम जी की अयोध्या में बनवाए जाने का वायदा भी कर डाला था. शहरों का नाम बदलना हो या फिर अपराधियों के घर बुल्डोजर चला उसे नेस्तनाबूद कर देना हो, योगी आदित्यनाथ एक झटके में फैसला करते नज़र आते हैं. हालांकि उनके कुछ फैसलों पर विपक्ष उंगली ज़रूर उठाता है लेकिन उनके काम करने के तरीके से लगभग सभी राज्यों के मुख्यमंत्री उनसे प्रभावित होते नज़र आते हैं.
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अपने द्वारा लिए गए सख्त फैसलों के लिए जाने जाते हैं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ
गाज़ियाबाद के श्मशान घाट में हुए हादसे के मुख्य आरोपी जब पकड़े गए और सामने आया कि श्मशान घाट की गैलरी की छत के निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ था और घूस खाई गई थी तो सबको लगा अब तो कानूनी कार्यवाई होगी। लेकिन योगी आदित्यनाथ सबकी तरह नहीं सोचते। वह कुछ बड़ा सोचते हैं. योगी आदित्यनाथ ने उन आरोपियों पर कानूनी कार्यवाई तो की ही साथ ही श्मशान घाट की गैलरी पर हुए निर्माण के नुकसान की भरपाई भी उन्हीं आरोपियों से किए जाने का ऐलान कर दिया. योगी आदित्यनाथ के इस फैसले को लोगों ने खूब पसंद भी किया.
हालांकि ऐसी कार्यवाई योगी आदित्यनाथ अन्य मामलों में भी कर चुके हैं फिर वो सीएए एऩआरसी वाला मामला रहा हो या फिर फर्जी शिक्षकों का मामला, वह नुकसान की भरपाई भी उन लोगों से ही करने का फरमान सुना देते हैं जो उन्हें गलत नज़र आता है.
योगी आदित्यनाथ के अलग थलग फैसलों में एक फैसला और जोड़ लीजिए, ये फैसला कैसा भी हो लेकिन इसे आप गलत फैसला तो नहीं करार दे पाएंगें, दरअसल उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग में चार अपर जिला सूचना अधिकारियों का प्रमोशन हुआ था, इन सबका प्रमोशन गलत पाया गया था जो सामने आया तो योगी आदित्यनाथ ने इनको वापिस वहीं भेज दिया जहां से इन्होंने शुरुआत की थी.
इनमें पहले अधिकारी का नाम है श्री नरसिंह जोकि अपर जिला सूचना अधिकारी, बरेली के पद पर तैनात थे. अब इनको चपरासी के पद पर तैनात कर दिया गया है. दूसरे अधिकारी हैं अपर जिला सूचना अधिकारी, फिरोजाबाद श्री दयाशंकर इनको चौकीदार बना दिया गया है. तीसरे अधिकारी हैं श्री विनोद कुमार शर्मा जो अपर जिला जिला सूचना अधिकारी, मथुरा की पद पर तैनात थे इनको सिनेमा आपरेटर कम प्रचार सहायक बना दिया गया है.
जबकि चौथे अधिकारी हैं श्री अनिल कुमार सिंह जोकि अपर जिला सूचना अधिकारी, भदोही की पद पर थे इनको भी सिनेमा आपरेटर कम प्रचार सहायक के पद पर भेज दिया गया है. योगी आदित्यनाथ का ये फैसला बेहद सख्त और तल्ख है उन लोगों के लिए जो भ्रष्टाचार करते हुए पाए जाते हैं. इन चारों अफसरों के प्रमोशन में खेल हुआ तो योगी आदित्यनाथ ने इनका डिमोशन ही कर दिया है.
इन चारों अधिकारियों पर आरोप है कि इन लोगों ने नियम के विरुद्ध प्रमोशन हासिल किया था इसकी सूचना मुख्यमंत्री को लगी तो इन चारों अधिकारियों को इनके मूल पद पर वापिस भेज दिया गया. योगी आदित्यनाथ का ये फैसला सीख है नज़ीर है और एक सबक भी है, एक मुखिया के तौर पर योगी आदित्यनाथ के फैसले उनको और मज़बूत बना रहा है.
मशाहिद अब्बास @masahid.abbas
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं