‘एक राष्ट्र,एक चुनाव’ समिति सदस्यता से अधीर रंजन चौधरी का इंकार

Adhir Ranjan Chowdhury Declines Invitation To Be Member Of High Level Committee To Examine One Nation One Election
यह पूरी तरह से धोखा है… अधीर रंजन चौधरी ने ‘एक राष्ट्र,एक चुनाव’वाली कमेटी में शामिल होने से किया मना
भारत सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जांच के लिए 8 सदस्यीय समिति का गठन किया है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, पूर्व राज्यसभा एलओपी गुलाम नबी आज़ाद और अन्य को समिति के सदस्य नियुक्त किया गया है।
मुख्य बिंदु
भारत सरकार ने 8 सदस्यीय समिति का गठन किया
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद समिति के अध्यक्ष होंगे
अन्य जन समिति के सदस्य  नियुक्त किये गये है

नई दिल्ली 02 अगस्त: कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर केंद्र की ओर से गठित 8 सदस्यीय समिति का हिस्सा बनने के निमंत्रण का अस्वीकार कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखे एक पत्र में चौधरी ने कहा कि उन्हें पता चला है कि उन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति का सदस्य नियुक्त किया गया है।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने पत्र में कहा, ‘ मुझे उस समिति में काम करने से इनकार करने में कोई झिझक नहीं है, जिसके संदर्भ की शर्तें उसके निष्कर्षों की गारंटी देने को तैयार की गई हैं। मुझे डर है कि यह पूरी तरह से धोखा है। इसके अलावा, आम चुनाव से कुछ महीने पहले संवैधानिक रूप से संदिग्ध, अव्यवहार्य और तार्किक रूप से लागू नहीं करने योग्य विचार को राष्ट्र पर थोपने का अचानक प्रयास सरकार के गुप्त उद्देश्यों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करता है। ’
कांग्रेस नेता ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को समिति से बाहर किए जाने पर भी खेद जताया। संसद की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘यह संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था का जानबूझकर किया गया अपमान है। इन परिस्थितियों में मेरे पास आपके निमंत्रण को अस्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’

इससे पहले, सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने पर गौर करने और जल्द से जल्द सिफारिशें देने को शनिवार को आठ सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना में कहा गया है कि समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे और इसमें गृहमंत्री अमित शाह, चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह सदस्य होंगे।
जानें कौन एक्सपर्ट्स शामिल हैं
उच्च स्तरीय समिति में पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी सदस्य होंगे। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में समिति की बैठकों में हिस्सा लेंगे, जबकि कानूनी मामलों के सचिव नितेन चंद्रा समिति के सचिव होंगे। अधिसूचना में कहा गया है कि समिति तुरंत ही काम शुरू कर देगी और जल्द से जल्द सिफारिशें करेगी, लेकिन इसमें रिपोर्ट सौंपने को किसी समयसीमा का उल्लेख नहीं है। कोविंद के अधीन एक समिति बनाने के निर्णय ने न सिर्फ मुंबई में अपना सम्मेलन आयोजित करने में जुटे विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को चौंकाया बल्कि राजनीतिक गर्मी भी बढ़ा दी। विपक्षी गठबंधन ने इस फैसले को देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा बताया था।

 क्या करेगी समिति?
समिति संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और किसी भी अन्य कानून और नियमों की पड़ताल करेगी और उन विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करेगी, जिसकी एक साथ चुनाव कराने के उद्देश्य से आवश्यकता होगी। समिति को चुनावों को एक साथ कराने की रूपरेखा का सुझाव देने और ‘विशेष रूप से उन चरणों और समयसीमा का सुझाव देने का भी काम सौंपा गया है, जिनके भीतर एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं, यदि चुनाव एक बार में नहीं कराए जा सकते…।’ समिति यह भी पड़ताल करेगी और सिफारिश करेगी कि क्या संविधान में संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी। संविधान में कुछ संशोधनों के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

ये संभावित समाधान भी सुझाएगी समिति
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन से संबंधित विधेयक के संसद में पारित होने के बाद 50 प्रतिशत से अधिक राज्यों ने इसका अनुमोदन किया था। समिति एकसाथ चुनाव की स्थिति में खंडित जनादेश, अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने या दलबदल या ऐसी किसी अन्य घटना जैसे परिदृश्यों का विश्लेषण करेगी और संभावित समाधान भी सुझाएगी। समिति को ‘एक साथ चुनावों के चक्र की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों की सिफारिश करने और संविधान में आवश्यक संशोधनों की सिफारिश करने के लिए भी कहा गया है ताकि एक साथ चुनावों का चक्र बाधित न हो।’ साजोसामान का मुद्दा भी समिति के एजेंडे में है क्योंकि इस व्यापक कवायद के लिए अतिरिक्त संख्या में ईवीएम और पेपर-ट्रेल मशीन, मतदान और सुरक्षा कर्मियों की आवश्यकता होगी।
क्या सिफारिश कर सकती है समिति?
यह समिति लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों में मतदाताओं की पहचान के लिए एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र के उपयोग के तौर-तरीकों की भी पड़ताल और सिफारिश करेगी। एक संसदीय समिति ने हाल ही में कहा था कि एक सामान्य मतदाता सूची खर्चों को कम करने में मदद करेगी और उस काम के लिए जनशक्ति को लगाने से रोकेगी जिस पर कोई अन्य एजेंसी पहले से ही काम कर रही है। समिति उन सभी व्यक्तियों, अभ्यावेदनों और संवाद को सुनेगी और उन पर विचार करेगी जो उसकी राय में उसके काम को सुविधाजनक बना सकते हैं और उसे अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में सक्षम बना सकते हैं। संसदीय और विधानसभा चुनाव कराने का अधिकार निर्वाचन आयोग को है जबकि राज्य निर्वाचन आयोग को स्थानीय निकाय चुनाव कराने का अधिकार है। निर्वाचन आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग संविधान के तहत अलग-अलग निकाय हैं।
समझिए पूरा मामला
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई क़ुरैशी के अनुसार, मूल प्रस्ताव लोकतंत्र के तीनों स्तरों – लोकसभा (543 सांसद), विधानसभा (4,120 विधायक) और पंचायतों/नगर पालिकाओं (30 लाख सदस्य) के लिए एक साथ चुनाव कराने का था। शनिवार की अधिसूचना में बताया गया कि 1951-52 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव ज्यादातर एक साथ होते थे, जिसके बाद यह चक्र टूट गया और अब, लगभग हर साल और एक साल के भीतर भी अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं, जिसके परिणाम सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा बड़े पैमाने पर व्यय के तौर पर सामने आते हैं। इसमें कहा गया है कि इससे ऐसे चुनावों में लगे सुरक्षा बलों और अन्य निर्वाचन अधिकारियों का अपने प्राथमिक कर्तव्यों से लंबे समय तक ध्यान भटक जाता है। इसमें कहा गया है कि बार-बार होने वाले मतदान से आदर्श आचार संहिता के लंबे समय तक लागू रहने के कारण विकास कार्य बाधित होते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *