कुतुब मीनार परिसर में खुदाई करेगा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
UNION CULTURE MINISTRY GAVE INSTRUCTIONS ASI TEAM TO EXCAVATE QUTUB MINAR COMPLEX
कुतुब मीनार परिसर में होगी खुदाई, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने ASI टीम को दिए निर्देश
कुतुब मीनार को लेकर छिड़े विवाद के बीच एतिहासिक परिसर में खुदाई के निर्देश दिए गए हैं. ये निर्देश केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने दिए हैं. मंत्रालय ने कुतुब मीनार में रखी हिंदू देवताओं की प्रतिमाओं की Iconography करने का आदेश जारी किया है.
नई दिल्ली22मई: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने दिल्ली में मौजूद ऐतिहासिक कुतुब मीनार परिसर की खुदाई के निर्देश दिए हैं. मंत्रालय ने कुतुब मीनार में रखी हिंदू देवताओं की प्रतिमाओं की Iconography करने का आदेश जारी किया है. ASI अब यहां खुदाई का काम करेगी. संस्कृति मंत्रालय के सचिव और अधिकारीयों ने कुछ दिन पहले ही कुतुब मीनार का निरीक्षण किया था, जिसके बाद यहां पुरातत्व विभाग को सर्वेक्षण करने के निर्देश दिए गए हैं. बताया गया है कि कुतुब मीनार के दक्षिण में और मस्जिद से 15 मीटर दूरी पर खुदाई का काम शुरू होगा. बता दें कि मंत्रालय ने न सिर्फ कुतुब मीनार बल्कि अनंगटाल और लालकोट किले पर भी खुदाई करने के निर्देश दिए हैं.
बता दें कि खुदाई के निर्णय से पहले संस्कृति सचिव गोविन्द सिंह मोहन ने 12 अधिकारीयों की टीम के साथ कुतुब मीनार का दौरा किया था. जिस टीम में तीन इतिहासकार, चार ASI अधिकारी और खोजी दल मौजूद था. ASI अधिकारीयों ने बताया है कि इससे पहले साल 1991 में कुतुब मीनार की खुदाई का काम हुआ था, उसके बाद अब होने जा रहा है.
कुतुब मीनार का विवाद क्या है ?
हिंदू संगठन का दावा है कि कुतुब मीनार असल में विष्णु स्तम्भ है और मुस्लिम आक्रांताओं ने यहां मौजूद दर्जनों जैन-हिंदू मंदिरों को तोड़ा था और वहां मस्जिद का निर्माण करवाया था. मुस्लिम आक्रांताओं ने उस वक़्त हिन्दुओं के हौसले को तोड़ने के लिए मंदिरों में रखी भगवान की मूर्तियों को खंडित कर दिया था और उन्हें सलाखों के पीछे रख कर शैतान बताया था. सुप्रीम कोर्ट में कुतुब मीनार में रखी भगवान गणेश की प्रतिमा को अन्यत्र स्थान में ले जाकर विधिवत स्थापित करने की याचिका लगाई गई थी. लेकिन कोर्ट ने किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ पर रोक लगा दी थी. बीते कुछ महीनों से हिंदू समर्थित दलों ने कुतुब मीनार के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ भी शुरू कर दिया था. लोगों का कहना है कि कुतुब मीनार विष्णु स्तम्भ था और इस स्थान का नाम बदल देना चाहिए
कुतुब मीनार बनाया किसने?
जैसा कि हम सब जानते हैं कि मौहम्मद कासिम के आक्रमण से भारत में विदेशी लुटेरों का आना शुरू हो गया था। उन्ही लुटेरों में से एक था मोहम्मद गौरी जिसने पृथ्वीराज को हराकर दिल्ली को दोनों हाथों से लूटा और वह सोमनाथ मंदिर तक पहुंच गया। मोहम्मद गौरी की मृत्यु पोलो खेल खेलते समय घोड़े से गिरकर लाहौर में मौत हो गई
मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक था उसी ने विचार किया कि क़ुतुब मीनार बनाया जाए।किंतु कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल का निर्माण करवाया था की उसकी मृत्यु हो गई। कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात उसके दमाद इल्तुतमिश ने अधूरे काम को पूरा किया जो आज विश्व का सबसे ऊंचा टावर के रूप में प्रसिद्ध है। मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन के बयान से स्पष्ट होता है कि क़ुतुब मीनार की आधार हिंदू मंदिरों के विध्वंस पर टिकी है।
कुत्तुब्बुद्दीन ने मीनार की दीवारों पर लिखवाया था कि उसने कुतुब परिसर का निर्माण 27 मंदिरों को गिराकर करवाया था , और उसी के मलबे से मीनार का निर्माण किया यह माना जाता है कि उस समय मीनार का प्रयोग नमाज के लिए किया जाता था।
‘ कुतुब ‘ शब्द का अर्थ है – ‘ स्तंभ ‘ जो न्याय संप्रभुता का प्रतीक है।
कुतुब मीनार महरौली में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान जहां कुतुब परिसर है , वह सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्न रहे वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था। जिसका समय के साथ नाम बदलकर महरौली हो गया। वराहमिहिर एक विख्यात खगोलशास्त्री थे उन्होंने यहां खगोल विद्या , व नक्षत्रों के अध्ययन के लिए स्तंभों व 27 मंदिरों का निर्माण करवाया था। उसी स्तंभ व 27 मंदिर को तोड़कर कुतुब मीनार का निर्माण किया गया।
स्तंभ में उकेरे गए देवी-देवताओं की मूर्तियों , संस्कृत में लिखे गए श्लोकों को क्षति पहुंचाई गई और दीवारों व वीथिकाओं पर हिंदू देवी देवताओं के अवशेषों को मिटाया गया। अथवा प्रसिद्ध विष्णु मंदिर को भी नष्ट किया गया जिसका अवशेष लौह स्तंभ , कुतुब मीनार के ठीक सामने 2000 वर्ष से गवाही देता है। जिस पर ब्राह्मी व संस्कृत में हिंदू मंदिर व हिंदू परिसर होने का साक्ष्य उपलब्ध है।
कुतुबमीनार के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह बारहमिहिर द्वारा कराए गए निर्माण में से ही एक है , क्योंकि नमाज के लिए ऐसे मीनार का निर्माण नहीं करवाया जा सकता , क्योंकि आवाज ऊपर से नीचे की ओर इतनी दूर तक नहीं आ सकती। ध्यान देने वाली बात यह है कि उस समय यांत्रिक उपकरण व ध्वनि विस्तारक यंत्र नहीं हुआ करते थे। यह मीनार मंदिर परिसर का ही एक अंग था जो 7 मंजिल का हुआ करता था। इस स्तंभ के सातवें मंजिल पर ब्रह्मा जी की मूर्ति थी जो हाथों में वेद को धारण किए हुए थी। अथवा विष्णु जी की मूर्ति छठी मंजिल पर स्थित थी। उन दोनों मंजिलों को नष्ट कर दिया गया। अब केवल 5 मंजिल ही बची है कदाचित उन हिंदू अवशेषों को नष्ट करने के लिए ही 2 मंजिल को गिराया गया।
आपको स्मरण रहना चाहिए कि यह मीनार विष्णु ध्वज , विष्णु स्तंभ या ध्रुव स्तंभ के नाम से प्रसिद्ध था। इसके ठीक सामने लौह स्तंभ गरुड़ध्वज के रूप में शुद्ध लोहे को ढालकर बनाया गया था जिसपर ब्राह्मी लिपि अथवा संस्कृत भाषा में लिखा गया है , जो इसका एक प्रमाण है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। 2000 वर्ष से लौह स्तंभ अब भी जंग रहित है और शायद इसी कारण इस्लामी शासक चाहते हुए भी उसे मिटा न सके हो। सम्राट चंद्रगुप्त ने राजा चंद्र की याद में इसका निर्माण करवाया था। इस लोहे की शुद्धता व जंग रहित होने के कारण आज भी विज्ञान को चुनौती देता है स्मरण रहे की लौह स्तंभ की आयु लगभग 2000 वर्ष है।