राहुल गांधी पर कार्रवाई बाद जागे कांग्रेस के विधि विशेषज्ञ मुकदमें में कहां थे?
छिन सकता है सरकारी आवास, सजा न हुई कम तो 8 साल चुनाव भी नहीं लड़ पाएँगे: सांसदी जाने से खत्म नहीं हुई राहुल गाँधी की मुसीबतें
देहरादून 24 मार्च। आपराधिक मामले में 2 साल की सजा होने के दो दिन बाद लोकसभा सचिवालय द्वारा कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी की सदस्यता रद्द करने को लेकर बवाल हो गया है। कॉन्ग्रेस इसे अधिनायकवादी व्यवस्था बता रही है तो भाजपा इस फैसले का स्वागत कर रही है। राहुल की सदस्यता रद्द होने के साथ ही संसद की वेबसाइट से उनका नाम हटा दिया गया है।
भाजपा भले कहे कि इसमें उसकी कोई भूमिका नहीं है, लेकिन लगभग सारे विपक्षी दल कॉन्ग्रेस के साथ एकजुटता दिखाते हुए इसके लिए भाजपा को दोषी ठहरा रही है। कॉन्ग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के बीच रिश्तों पर सदन में बहस और संयुक्त संसदीय समिति बनाने की माँग के कारण राहुल गाँधी को सजा दी गई है।
कॉन्ग्रेस ने इस एक्शन की वैधानिकता पर भी सवाल उठाया है। पार्टी ने कहा कि राष्ट्रपति ही चुनाव आयोग के साथ विमर्श कर किसी सांसद को अयोग्य घोषित कर सकते हैं। कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक में राहुल गाँधी के बयान पर गुजरात में FIR पर भी सवाल उठाया है। कॉन्ग्रेस का तर्क है कि अगर कोई मामला संबंधित न्यायालय के न्यायाधिकरण क्षेत्र में नहीं आता है तो उसे इस पर जाँच करानी होती है। सूरत की अदालत ने ऐसा नहीं किया।
आरोप-प्रत्यारोप और कानून
कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि सभी जानते हैं कि राहुल गांधी संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह निडर होकर बोलते रहे हैं. वह इसकी कीमत चुका रहे हैं. सरकार बौखला गई है. यह सरकार उनकी आवाज दबाने के लिए नई तरीके खोज रही है। वहीं, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है।
दरअसल, राहुल गाँधी ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को चुनावी रैली में कहा था, “सारे चोर मोदी सरनेम वाले ही क्यों होते हैं….नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी।” राहुल गाँधी के इस बयान को लेकर भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ गुजरात में धारा 499 और 500 में आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कराया था।
कॉन्ग्रेस नेताओं का आरोप है कि राहुल गाँधी से सरकार डर गई थी। कॉन्ग्रेस नेताओं का स्पष्ट कहना है कि सूरत की अदालत ने राहुल गाँधी को 2 साल की सजा सुनाई थी और तुरंत जमानत भी दे दी थी। इसके साथ ही उन्हें 30 दिन अवधि ऊपरी अदालतों में अपील के भी दी थी। ऐसे में भाजपा ने कोर्ट के आदेश के विपरीत जाकर दो दिन में ही सदस्यता रद्द करा दी।
वहीं, भाजपा का कहना है कि राहुल गाँधी ऊपरी कोर्ट में अपील करना ही नहीं चाहते थे। वे मोदी सरकार के खिलाफ खुद को शहीद दिखाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सजा देने के दो दिन बाद भी ऊपरी अदालतों में अपील नहीं की। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने यह भी तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों में अगर कोर्ट द्वारा 2 साल या उससे अधिक सजा दे दी जाती है तो सदस्यता तुरंत निलंबित मानी जाती है।
कॉन्ग्रेस के नेताओं ने इस पर तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली और दूसरी बार इसमें रियायत दी है। इन दोनों स्थितियों में अपील करने की अवधि दी है। लेकिन, अगर कोई ऐसा तीसरी बार करता है तभी सदस्यता तुरंत निलंबित हो सकती है।
इसको लेकर कॉन्ग्रेस के नेताओं ने कहा कि अपने फैसले में सूरत की अदालत ने 30 दिन का समय दिया था। इसके अलावा, उन्हें कोर्ट के फैसले की कॉपी नहीं मिली थी। कॉपी मिलते ही अपील करने की तैयारी की जा रही थी। इसी बीच भाजपा ने लोकसभा स्पीकर के माध्यम से उनकी सदस्यता रद्द करा दी।
क्या हो सकता है आगे
कानून के जानकारों का कहना है कि राहुल गाँधी के पास अब सेशंस कोर्ट में जाना होगा। वहाँ से मामला खारिज होने के बाद उनके पास गुजरात हाईकोर्ट में अपील का विकल्प है। अगर संबंधित फैसले के स्थान वाले हाईकोर्ट, गुजरात में उनकी अपील खारिज हो जाती है तो उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प रहेगा। राहुल गाँधी के पास संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का भी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट का देश के सभी अदालतों एवं ट्रिब्यूनलों पर अपीलीय क्षेत्राधिकार होता है।
अगर सुप्रीम कोर्ट भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखता है तो राहुल गाँधी 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएँगे। इसके साथ ही वे 2 साल तक उन्हें जेल की सजा भी काटनी होगी। इतना ही नहीं, राहुल गाँधी को अपना सरकारी बंगला भी खाली करना पड़ सकता है। हालाँकि, यह गृह मंत्रालय द्वारा उनकी सुरक्षा को लेकर लिए जाने वाले निर्णय पर निर्भर करेगा।
बता दें कि लोकसभा सचिवालय ने राहुल गाँधी की संसदीय सीट केरल के वायनाड को खाली घोषित कर दिया है। लोकसभा की वेबसाइट से उनका नाम भी हटा दिया गया है। ऐसे में चुनाव आयोग इस सीट पर चुनाव कराने का ऐलान कर सकता है। आयोग यह चुनाव अभी करा सकता है या फिर अगले साल होने वाले देश भर में लोकसभा चुनावों के साथ करा सकता है।
अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट सूरत की अदालत के फैसले पर स्टे लगा देता है या फिर उसके निर्णय को बदल देता है तो राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो सकती है।
कब जा सकती है सांसद-विधायकों की सदस्यता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में राहुल गाँधी की सदस्यता को रद्द किया गया है। संसद या विधानसभा की सदस्यता की जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) में अगर संसद या विधानसभा का कोई सदस्य लाभ का कोई पद लेता है, दिमाग़ी रूप से अस्वस्थ है, दिवालिया है या फिर वैध भारतीय नागरिक नहीं है तो उसकी सदस्यता को रद्द किया जा सकता है।
सांसद और विधायकों की अयोग्यता से संबंधित दूसरा नियम संविधान की 10वीं अनुसूची में दी गई है। इस कानून में अगर किसी सदस्य को दल-बदल के आधार पर दोषी ठहराया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी।
इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी सांसदों या विधायकों की सदस्यता जा सकती है। इस कानून में किसी सदस्य को आपराधिक मामलों कम-से-कम 2 साल की सज़ा होने पर सदस्यता रद्द हो जाएगी।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) में अगर कोई सदन सदस्य दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देता है, रिश्वत लेता या फिर चुनाव में अपने प्रभाव का ग़लत इस्तेमाल करता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है।
इसी तरह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (2) में जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी, खाद्य पदार्थों में मिलावट या फिर दहेज निषेध अधिनियम में दोषी ठहराए जाने और कम-से-कम छह महीने की सज़ा मिलने पर सदस्यता रद्द हो सकती है।
इसी अधिनियम की धारा 8 (3) में अगर किसी सांसद या विधायक को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सज़ा मिलती है तो उसकी सदस्यता जा सकती है। इसमें अंतिम निर्णय सदन के स्पीकर पर छोड़ा गया है। हालाँकि, साल 2018 में इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सदस्यता जाएगी ही.
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सुधीर गहलोत
पत्रकार और इतिहास प्रेमी