गहरी बात: किसान आंदोलन में एक बार फिर कै.अमरिन्दर और राहुल आमने-सामने

राहुल गांधी और कैप्टन अमरिंदर में फिर टकराव हो ही गया!
कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और पंजाब के CM कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) एक बार फिर से आमने सामने हैं. ये टकराव किसान आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर दोनों के स्टैंड में विरोधाभास के चलते हो रहा है.

मृगांक शेखर @mstalkieshindi

किसान आंदोलन (Farmers Protest) से मुसीबत तो केंद्र की मोदी सरकार की बढ़ी हुई है, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा परेशान पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) हैं. 28 नवंबर से किसानों का जत्था दिल्ली बॉर्डर पर जमा हुआ है, लेकिन उसका सीधा साइड इफेक्ट पंजाब तक पहुंच रहा है.

बादल परिवार के अकाली दल और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की तरफ से किसान आंदोलन के साये में मिल रही चुनौतियों से तो कैप्टन दो-दो हाथ कर भी ले रहे हैं, कांग्रेस के भीतर से मिल रहा चैलेंज अलग से मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ा रहा है. किसान आंदोलन को लेकर राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं – और ऐसा लगता है जैसे वो किसानों के आंदोलन के लंबा खिंचने में भी राजनीतिक फायदा देख रहे हैं.

कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि बड़े दिनों बाद एक ऐसा मुद्दा उठा है जिस पर मोदी सरकार दबाव महसूस कर रही है, ऐसे में भला सरकार को घेरने का मौका जाने देना राजनीतिक चतुराई तो होगी नहीं. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और उनकी टीम नहीं चाहती कि किसानों का आंदोलन जल्दी खत्म हो, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को आंदोलन के लंबा खिंचने में नुकसान ही नुकसान नजर आ रहा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह चाहते हैं कि जल्दी से कोई रास्ता निकले और आंदोलन खत्म हो जाये – आखिर अगले साल होने जा रहे पंजाब विधानसभा चुनावों की तैयारी भी तो उनको करनी है.

राहुल गांधी तीनों कृषि कानूनों को वापस लिये जाने की मांग कर रहे हैं, जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह शुरू से ही किसानों के हक में समाधान खोजने की केंद्र सरकार से गुजारिश करते देखे गये हैं. राहुल गांधी किसानों के समर्थन में पंजाब और हरियाणा में ट्रैक्टर रैली से लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंच कर दो-दो बार ज्ञापन तक दे आये हैं – और सोशल मीडिया पर लगातार सरकार पर हमले बोल रहे हैं.

कांग्रेस आलाकमान से उलट कैप्टन अमरिंदर सिंह, एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, परदे के पीछे आंदोलन खत्म कराने की कवायद में जुटे हुए हैं, जबकि राहुल गांधी तीनों कानूनों को संसद का विशेष सत्र बुलाकर रद्द कराने की मांग पर – और फिलहाल यही मसला राहुल गांधी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच टकराव की नयी वजह बन रहा है.

राहुल गांधी मौका कैसे हाथ से जाने दें?
ठीक पांच साल बाद राहुल गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तकरार के उसी मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले रहे. तब तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को राहुल गांधी के करीबी एक ही नेता से जूझना पड़ा था, इस बार टीम राहुल के कई नेता उनके लिए बार बार मुश्किलें पैदा कर रहे हैं.

किसानों के आंदोलन को लेकर पहले तो यही समझा गया कि कैप्टन अमरिंदर ने बड़ी ही चतुराई से दिल्ली भेज दिया था. कैप्टन अमरिंदर सिंह को लगा था कि आंदोलनकारी किसान जब तक पंजाब में रहेंगे उनके लिए चुनौती तो बने ही रहेंगे, ऊपर से अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल अपनी राजनीति चमकाने के लिए अलग परेशानी बनेंगे. साथ ही साथ, आम आदमी पार्टी वाले भी अपने लिए राजनीतिक फायदे का मौका खोजेंगे.

किसानों को पंजाब की धरती से दूर कर दिल्ली की सीमा पर पहुंचाने की कैप्टन अमरिंदर सिंह की रणनीति तो कामयाब रही, लेकिन आगे की चीजें मन मुताबिक नहीं हो पा रही हैं. आंदोलन के लंबा खींचे जाने से कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी चुनावी मुहिम भी नहीं शुरू कर पा रहे हैं.

priyanka gandhi vadra with congress leaders
राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में जंतर मंतर पर धरना दे रहे कांग्रेस सांसदों से मिल कर आगे की रणनीति तैयार कर रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा

किसानों के आंदोलन का शुरुआती दौर से ही समर्थन कर रहे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने अब कानून व्यवस्था बनाये रखने में भी मुश्किल आ रही है. याद कीजिये जब किसानों का भारत बंद हुआ था तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शांति के साथ विरोध की अपील करते हुए कहा था कि पुलिस किसी के भी खिलाफ केस नहीं दर्ज करेगी.

लेकिन कानून व्यवस्था को लेकर नयी नयी चुनौतियां पेश आने लगी हैं. हाल ही में किसान आंदोलन के समर्थकों ने पंजाब में जियो टावर्स पर धावा बोल दिया था – और काफी नुकसान पहुंचाया. पंजाब के मुख्यमंत्री ने पहले तो अपील की लेकिन जब काम नहीं चला तो थोड़ी सख्ती भी दिखायी.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने डबल चैलेंज खड़ा हो गया है – अगर आंदोलनकारियों के खिलाफ एक्शन लेते हैं तो किसान नाराज होंगे और अगर यूं ही जाने देते हैं तो कानून व्यवस्था को लेकर हालात खराब होंगे.

राहुल गांधी ने जो पॉलिटिकल लाइन ले रखी है, उनके करीबी कांग्रेस नेता भी उसी लाइन पर आगे बढ़ रहे हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह के कट्टर विरोधी रहे राज्य सभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है. बाजवा ने पत्र में लिखा है कि ये समय दरियादिली दिखाने का है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर से अब अपने घर लौट जायें. 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रताप सिंह बाजवा ही पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे. कैप्टन ने बाजवा के खिलाफ लंबी मुहिम चलायी और कांग्रेस नेतृत्व पर लगातार दबाव बनाये रखा. आखिरकार, सोनिया गांधी तक ये मैसेज भी पहुंच गया कि अगर बाजवा को हटाकर कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमान नहीं सौंपी गयी तो वो पार्टी तोड़ कर अलग दल बना लेंगे. 2019 में हरियाणा चुनाव से पहले एक बार फिर कांग्रेस में यही तरकीब अपनायी गयी और सफल रही – दूसरी बार हरियाणा के जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दबाव में सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के करीबी अशोक तंवर को हटाकर कमान तो हुड्डा को सौंप दी, लेकिन एक पेंच भी फंसा दिया था – अपनी पसंद की नेता कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर.

बाजवा ने तो सिर्फ पत्र ही लिखा है, लुधियाना से सांसद रवनीत बिट्टू तो खून-खराबे की धमकी तक दे चुके हैं. रवनीत बिट्टू कह चुके हैं कि कांग्रेस आखिर तक किसानों की लड़ाई लड़ेगी, भले ही इस लड़ाई में खून बहे या फिर लाशों की ढेर लग जाये. रवनीत बिट्टू को भी राहुल गांधी की टीम का सदस्य माना जाता है, फिर तो स्वाभाविक है वो भी कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोधी ही हुए.

रवनीत सिंह बिट्टू कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल हैं जो 7 दिसंबर से किसानों के समर्थन में जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं. शशि थरूर और सलमान खुर्शीद जैसे नेता भी कांग्रेस सांसदों के धरने में शामिल हो चुके हैं. जंतर मंतर पर धरना दे रहे कांग्रेस सांसदों ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात भी की है और दोहराया गया है कि किसानों के सपोर्ट में कांग्रेस आखिर तक डटी रहेगी.

कांग्रेस नेतृत्व का स्टैंड पंजाब के मुख्यमंत्री के रुख से पूरी तरह खिलाफ जा रहा है – क्योंकि खबर आई है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह तो किसानों के बीच अलग ही खिचड़ी पका रहे हैं.

कैप्टेन शाह के मददगार क्यों बन गये?

किसानों का आंदोलन दिल्ली पहुंचने के फौरन बाद ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली का रुख किया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. बाद में पत्रकारों ने बातचीत में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बाकी बातों के अलावा देश की सुरक्षा पर असर की बात भी की थी. साथ ही, पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना रहा कि किसानों के मुद्दे पर पंजाब सरकार का स्टैंड दोहराते हुए उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री से मसले को जल्द से जल्द सुलझाने की गुजारिश की थी – क्योंकि किसानों की आंदोलन की वजह से पंजाब की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है.

कैप्टन अमरिंदर के बयान का एक अर्थ ये भी निकाला गया कि वो किसानों के आंदोलन के उग्र हो जाने की तरफ इशारा कर रहे हैं, लेकिन असल बात ये समझ में आयी कि पंजाब के मुख्यमंत्री सूबे के अतीत को देखते हुए ऐसी चिंता जतायी थी. मीटिंग को लेकर आयी खबरों से मालूम होता है कि अमित शाह ने भी कैप्टन अमरिंदर से बातचीत से समस्या का हल खोजने में आ रहे गतिरोध को दूर करने में सहयोग की अपील की थी.

अमित शाह की अपील का कैप्टन अमरिंदर सिंह पर कितना असर हुआ है, ये तो द प्रिंट वेबसाइट की एक रिपोर्ट से मालूम होता है. रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब सरकार ने अपने तीन सीनियर अफसरों को सिंघु बॉर्डर पर तैनात कर रखा है – और ध्यान देने वाली बात ये है कि ये तैनाती भी तभी की है जब गृह मंत्री से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री पंजाब लौटे थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, ये अफसर अब तक अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सके हैं और उसका कारण है आंदोलन का लगातार बदल रहा स्वरूप. अफसरों में दो आईपीएस और एक कृषि विशेषज्ञ हैं. टास्क ये मिला था कि किसान नेताओं के बीच से ऐसे मजबूत लोगों को तलाशा जाये जिनसे बातचीत संभव हो सके. बातचीत में किसानों को बताना था कि वे केंद्र सरकार की पेशकश को स्वीकार कर लें और तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद्द छोड़ दें.

सिंघु सीमा पर मौजूद पंजाब सरकार के अफसरों ने जो बात बतायी है वो काफी चौंकाने वाली है. एक पुलिस अधिकारी का कहना रहा, ‘हम यहां बॉर्डर पर पूरी तरह अनधिकृत रूप से तैनात हैं. हम किसानों और उनके नेताओं, दोनों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि समझ सकें कि दरअसल वो चाहते क्या हैं और अपनी मांगों में वो कितनी कमी कर सकते हैं.’

अफसर की मानें तो किसानों का आंदोलन शुरू के मुकाबले काफी बदल चुका है. अफसर कहता है, ‘हम यहां पर जो समझ पा रहे हैं, वो ये है कि अब यहां एक भीड़ है – और वो भीड़ ही किसान नेताओं की भी अगुवाई कर रही है, बजाय इसका उलटा होने के – और ये भीड़ अब तीनों कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है.’

सवाल ये उठता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद अमित शाह की मदद क्यों करने लगे?

आम धारणा तो यही रही कि कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के आंदोलन का सपोर्ट कर रहे हैं – और सपोर्ट का मतलब तो यही होता है कि जो भी उनकी मांगें हैं उसके साथ उसके पक्ष में खड़े रहें, लेकिन ये तो मालूम हो रहा है कि केंद्र की बीजेपी सरकार की मदद में कांग्रेस की पंजाब सरकार अंदर ही अंदर अभियान चला रही है.

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