भारत के खिलाफ अमेरिकी-कनाडाई ‘सबूतों’ पर क्या कह रहे हैं लोग
भारत के ख़िलाफ़ आरोप में कनाडा और अमेरिका की ख़ुफ़िया सूचना पर छिड़ी यह बहस
ट्रूडो और जस्टिन
नई दिल्ली 25 सितंबर। कनाडा में अमेरिका के राजदूत डेविड कोहेन ने शनिवार को कनाडा के न्यूज़ नेटवर्क सीटीवी से कहा कि ‘फ़ाइव आइज़ इंटेलिजेंस अलायंस’ से मिली साझी गुप्त सूचना के आधार पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में बयान दिया था.
ट्रूडो ने संसद में खालिस्तान समर्थक नेता और कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या के लिए भारत सरकार के एजेंट पर उंगली उठाई थी.
इसके बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के राजनयिक निकाल दिये । भारत ने तो कनाडा के लोगों को फ़िलहाल वीज़ा देना भी बंद कर दिया है.
फ़ाइव आइज़ इंटेलिजेंस अलायंस में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, ब्रिटेन और ख़ुद कनाडा है.
ये पाँचों देश आपस में ख़ुफ़िया सूचनाएं साझा करते हैं. कनाडा जी-7 समूह का भी सदस्य है. लेकिन जी-7 में अमेरिका और ब्रिटेन को छोड़ दें तो किसी ने कुछ ख़ास कहा नहीं है.
भारत का कहना है कि कनाडा ने निज्जर की हत्या में उसकी कथित भूमिका से जुड़े कोई प्रमाण साझा नहीं किये हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि कनाडा ने किसी भी तरह की गुप्त सूचना साझा नहीं की है.
जस्टिन ट्रूडो
ख़ुफ़िया सूचना की विश्वसनीयता पर सवाल
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़,भारतीय सुरक्षा अधिकारियों ने नाम नहीं ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा कि न तो कनाडा और न ही अमेरिका ने जी-20 समिट में निज्जर की हत्या से जुड़ी कोई गुप्त सूचना साझा की थी.
सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जुडी थॉमस की मुलाक़ात इंडियन इंटेलिजेंस प्रमुख और उनके समकक्ष अजित डोभाल से हुई थी लेकिन कोई प्रमाण नहीं दिया,जिससे पता चले कि निज्जर की हत्या में भारत शामिल था.
भारत पर आरोप के मामले में कनाडा जिन ख़ुफ़िया सूचनाओं या सबूतों का हवाला दे रहा है,उसे लेकर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
कई विशेषज्ञ अतीत में पश्चिमी देशों की ओर से दी गई ख़ुफ़िया सूचना की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं.
हरदीप सिंह निज्जर
ब्रिटिश साप्ताहिक पत्रिका द इकनॉमिस्ट में डिफेंस एडिटर शशांक जोशी ने ट्वीट कर कहा है, ”जब भी कोई पश्चिम की सरकार विवादित गुप्त दावा करती है तो हमेशा की तरह ‘वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन इन इराक़’ यानी इराक़ के पास महाविनाश के ख़तरनाक हथियार होने वाली गुप्त सूचना की बात सामने आ जाती है. कुछ वक़्त निकालकर यह सोचना चाहिए कि यह कितना निरर्थक था. सभी गुप्त सूचना अधूरी होती है.”
वो लिखते हैं, ”इसीलिए ख़ुफ़िया सूचना के मूल्यांकन में संभावित भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. यहाँ अनिश्चितताओं से बचना मुश्किल होता है. दावों में जो चीज़ें दिखती हैं, उसकी तुलना में ज़्यादा विश्वसनीय वो चीज़ें होती हैं, जो नहीं दिखती हैं. इराक़ से जुड़ी गुप्त सूचना में ऐसी कई तरह की कमियां थीं. बटलर की समीक्षा में इराक़ से जुड़ी इन खामियों को देखा भी गया था. इसके बाद मूल्यांकन प्रक्रिया परिवर्तित की गई. कहा गया कि नेता अगर चाहें तो हमेशा ख़ुफ़िया दावों को ग़लत तरीक़े से पेश कर सकते हैं.”
शशांक जोशी ने लिखा है, ”महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि क्यों और कैसे ग़लत तरीक़े से पेश किया जाता है. इराक़ पर हमले में जिन गुप्त सूचनाओं का इस्तेमाल किया गया, वैसी सूचनाओं के आधार पर अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से रूस को लेकर कुछ नहीं कहा गया और ये देश ऐसा करने से बचते दिखे.”
वो लिखते हैं- आप कनाडा के मामले में भी ऐसा कह सकते हैं. ये संभव है कि ट्रूडो सिख वोटर्स को ध्यान में रखकर ये बात कह रहे हैं. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि ट्रूडो ने ये बात सार्वजनिक स्तर पर कही क्योंकि ये बात ही ऐसी थी. भारत को फँसाती गुप्त जानकारी और सार्वजनिक विवाद उनके हित में नहीं है.”
वो लिखते हैं, ”ये सब उस ख़ुफिया जानकारी की मज़बूती और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए बिना हुआ, जिसके चलते कनाडा ने भारत को लेकर ऐसे दावे किए हैं. अगर ये निष्कर्ष सही या ग़लत हो सकते हैं लेकिन अगर वो ग़लत हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि इराक़ को लेकर जैसे दावे किए गए थे, वैसी बातें हर मौक़े पर काम आ जाए.”
शंशाक जोशी लिखते हैं, ”ये बातें इराक़ को लेकर किए दावों के नाकाम होने से संबंधित नहीं हैं. ये इस बारे में है कि कैसे गुप्त जानकारियां और नीतियां ग़लत तरीके से पेश करके बड़ा नुक़सान हो सकता है.”
शशांक जोशी
जस्टिन ट्रूडो, प्रधानमंत्री मोदी, जो बाइडन
‘भारत के साथ आरोप साझा किए हैं लेकिन सबूत नहीं’
भारत के जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने भी पश्चिम की गुप्त सूचना को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं.
ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है, ”कनाडा और अमेरिका ने भारत के साथ कोई भी सबूत साझा नहीं किए हैं. इसके बावजूद ये एक आतंकवादी की हत्या में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आरोप लगा रहे हैं. दोनों भारत से जाँच में सहयोग करने की अपील कर रहे हैं. मानो ये कह रहे हैं कि उनके पास भारत के ख़िलाफ़ आरोप है और भारत इसे नकार दे.”
चेलानी ने लिखा है, ”ट्रूडो ने ख़ुद कहा है कि उन्होंने भारत के साथ आरोप साझा किए लेकिन प्रमाण नहीं.
ट्रूडो ने पिछले हफ़्ते शुक्रवार को कहा था, ”कनाडा ने ठोस आरोप भारत के साथ साझा किया है. ऐसा हमलोगों ने कुछ हफ़्ते पहले भी किया था.”
ट्रूडो लगातार ‘क्रेडिबल एलिगेशन’ (ठोस आरोप) टर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं जो कि अपने आप में विरोधाभास है. आरोप तो आरोप होता है.”
चेलानी ने लिखा है, ”भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कनाडा ने न तो जस्टिन ट्रूडो के आरोप लगाने से पहले और न ही बाद में इससे जुड़ा कोई प्रमाण साझा किया है. अगर कनाडा के पास कोई प्रमाण है तो उसे सार्वजनिक रूप से जारी करना चाहिए. ट्रूडो को मीडिया में प्रमाणों से जुड़ी कहानियां गढ़ना बंद करना चाहिए.”
ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, ”अमेरिकी गुप्तचर से ट्रूडो को जिस तरह से भारत के साथ उलझने में साहस मिला है, उससे अमेरिका और भारत के संबंधों पर भी असर पड़ सकता है. भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता नहीं छोड़ेगा. पारस्परिक भरोसा कायम करना अब मुश्किल हो गया है. न तो अमेरिका और न ही कनाडा ने कोई वीडियो, ऑडियो या फॉरेंसिक प्रमाण पेश किया है, जिससे पता चले कि भारत इस हत्या में शामिल था.”
खालिस्तान के मुद्दे पर कई रक्षा विशेषज्ञ मोदी सरकार पर भी सवाल उठा रहे हैं. भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल हरचरणजीत सिंह पनाग ने इंडियन एक्सप्रेस में तवलीन सिंह के एक लेख का एक हिस्सा शेयर किया है जिेंसमें तवलीन सिंह ने लिखा , ”नरेंद्र मोदी की नीतियों को समझना कोई पहेली नहीं है कि उन्होंने खालिस्तान के मिथ को क्यों फिर से ज़िंदा किया है. उनकी सरकार अलगाववादी आंदोलनों के भूत को फिर से ज़िंदा करने के लिए इस कदर दृढ़ क्यों है?”
पनाग के इस ट्वीट के जवाब में भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा है, ”मोदी ने इसे ज़िंदा नहीं किया है.आईएसआई के समर्थन से खालिस्तान पंजाब से पश्चिम में शिफ़्ट कर गया है.कनाडा, यूके और यूएस में हमारे दूतावासों पर हमले और राजदूतों को धमकियां मिलीं.खालिस्तान जनमत संग्रह कराया गया.विदेशों में रह रहे खालिस्तानियों का संपर्क पंजाब में भी उन तत्वों से है.हालांकि ऐसे कुछ ही लोग हैं. क्या इनकी उपेक्षा की जा सकती है?”
जयशंकर
पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंड?
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा- दुनिया अभी भी डबल स्टैंडर्ड यानी दोहरे मापदंड से चल रही है.
उन्होंने कहा, ”जो देश प्रभावशाली हैं वे स्थिति में बदलाव का विरोध कर रहे हैं और ऐतिहासिक रूप से शक्तिशाली देश इन क्षमताओं का इस्तेमाल हथियारों की तरह कर रहे हैं.”
जयशंकर ने कहा, “मुझे लगता है कि बदलाव के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति से ज़्यादा राजनीतिक दबाव है. बदलाव की यह भावना ग्लोबल साउथ में बढ़ रही है, लेकिन राजनीतिक तौर पर इसे रोकने की कोशिश भी की जा रही है. हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सबसे ज्यादा देखते हैं कि जो लोग शक्तिशाली हैं, वे स्थिति में बदलाव का विरोध कर रहे हैं.”
जयशंकर ने कहा, ”जो लोग आज आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं, वे अपनी उत्पादन क्षमताओं का फ़ायदा उठा रहे हैं, वहीं जिन देशों के पास मजबूत संस्थाएं हैं या ऐतिहासिक रूप से प्रभावशाली हैं, वे अपनी उन क्षमताओं का इस्तेमाल हथियार के तौर पर कर रहे हैं.”
जयशंकर का बयान ट्रूडो समेत पश्चिमी देशों से जोड़कर देखा जा रहा है.
द हिंदुस्तान टाइम्स ने एक विश्लेषण छापा है. इस विश्लेषण में शिशिर गुप्ता ने लिखा है कि जब अमित शाह भाजपा अध्यक्ष थे, तब भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत से उनकी अकबर रोड स्थित घर पर मुलाक़ात हुई थी.
शाह राजदूत के साथ अच्छे से पेश आए लेकिन जैसे ही उन्होंने भारत में मानवाधिकार का मुद्दा उठाया, शाह ने कहा- अमेरिका को कोई हक़ नहीं है कि वो मानवाधिकार पर भारत को ज्ञान दे.ये कहते ही दोनों के बीच मुलाक़ात ख़त्म हो गई.
इस विश्लेषण में लिखा है कि पश्चिमी देशों के दोहरे मापडंद एक बार फिर सामने आ गए हैं, जब कनाडा और अमेरिका निज्जर की हत्या के पीछे भारत का हाथ साबित करना चाह रहे हैं.
शिशिर गुप्ता लिखते हैं, ”कनाडा और अमेरिका का प्रोपेगेंडा मीडिया निज्जर को बस खालिस्तान का प्रवक्ता बता रहे हैं. वो भी तब तब भारत ने निज्जर के ख़िलाफ़ कम से कम 10 एफ़आईआर की जानकारी अमेरिका और कनाडा संग साझा की हैं. ये एफ़आईआर भारत में भारतीयों पर किए हमले के चलते दर्ज की गई थीं.”
हिंदुस्तान टाइम्स में शिशिर गुप्ता लिखते हैं- निज्जर खालिस्तान आतंकवादियों की तस्वीरों को प्रदर्शित करने वाले गुरुद्वारे के अध्यक्ष बने. निज्जर 2013-14 में पाकिस्तान गए और आईएसआई के अधिकारियों से भी मिले.
सबूत देने की बजाय आरोप लगा रहा है कनाडा
द हिंदुस्तान टाइम्स के विश्लेषण में लिखा है कि ट्रूडो और उनकी विदेश मंत्री सबूत नहीं दे रहे हैं बल्कि मोदी सरकार को ऐसे अपराध के लिए घेर रहे हैं, जो उन्होंने किया ही नहीं है. इस आरोप में अमेरिका अपने भाई कनाडा का साथ दे रहा है.
अखबार में लिखा है, ”कनाडा और अमेरिका में अलगाववादी आंदोलन को अभिव्यक्ति की आज़ादी बताया जा रहा है. तथ्य ये है कि खालिस्तान की मांग करने वालों के लिए पश्चिमी देश लंबे वक़्त से पनाहगाह बने हुए हैं.”
अख़बार ने लिखा है, ”अमेरिका से मिली इंटेलिजेंस और प्रोपेगेंडा मीडिया के सहारे खालिस्तान को हथियार बनाकर भारत को बदनाम किया जा रहा है. इसी वजह से भारतीय इंटेलिजेंस के चीफ़ ने सीआईए डायरेक्टर से कहा था कि जीएस पन्नू के ख़िलाफ़ अमेरिका और कनाडा में कार्रवाई इसलिए नहीं हो रही है क्योंकि वो सीआईए के एजेंट हो सकते हैं. पन्नू के पास अमेरिका और कनाडा दोनों की नागरिकता है और वो खुले तौर पर भारत का विरोध करते रहे हैं.”
विश्लेषण में लिखा है कि बीते एक दशक में भारत ने अमेरिका और कनाडा को खालिस्तान समर्थकों को कई डोजियर दिए हैं लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.
”9/11 हमले के बाद पाकिस्तान के सरहद पार किए जाने वाले आतंकवाद को लेकर अमेरिका की आँखें खुली थीं. ठीक वैसे ही शायद अमेरिका खालिस्तान के उग्रवादियों की ओर से किसी हमले को किए जाने का इंतज़ार कर रहा है.”
अखबार में छपे विश्लेषण में कहा गया है, ”तालिबान चीफ मुल्ला मसूर अख्तर, ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी की किस आधार पर अमेरिका ने विदेशी ज़मीन पर हत्या की थी? आतंकवाद को ख़त्म करने के नाम पर अमेरिका दुनिया में जो करता रहा है, उस पर संयुक्त राष्ट्र या किसी देश ने कभी सवाल नहीं उठाया.”