ढीली पड़ रही है अमेरिकी दादागिरी दुनियाभर से

अमेरिकी दबदबे वाली दुनिया क्या कमज़ोर पड़ रही है? 2024 में क्या हैं संभावनाएं?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन

Author,फ्रैंक गार्डनर
1 जनवरी 2024
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मंच पर पिछले 12 महीनों में अमेरिका, यूरोप और अन्य प्रमुख लोकतंत्रों को कई झटके लगे.हालांकि इनमें से कोई भी विनाशकारी नहीं रहा, लेकिन वे अमेरिका-प्रभुत्व वाले पश्चिमी मूल्यों से बदलते शक्ति संतुलन की ओर इशारा करते हैं, जो सालों से प्रभावी रहे हैं.

कई मोर्चों पर पश्चिमी हितों के लिए हवा ग़लत दिशा में बह रही है. इस कहानी में बताया गया है कि क्यों और हो रहे बदलावों से अब भी क्या लाभ हो सकते हैं.

यूक्रेन का युद्ध
रूस युक्रेन युद्ध

काला सागर में हाल में मिली कुछ सफलताओं के बाद भी युद्ध यूक्रेन के लिए अच्छा नहीं चल रहा है.

इसका मतलब है कि यह नेटो और यूरोपीय संघ के लिए बुरा होगा, जिन्होंने यूक्रेन के युद्ध प्रयासों और इसकी अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर की मदद की है.
इसी समय पिछले साल नेटो को बहुत उम्मीदें थीं कि पश्चिमी देशों में आधुनिक सैन्य उपकरणों और गहन प्रशिक्षण के साथ यूक्रेन की सेना बढ़त वापस ले सकती है.

वह रूसियों के जब्त किए गए अधिकांश इलाक़ों से उन्हें बाहर धकेल सकती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.
समस्या समय निर्धारण की है. नेटो देशों को इस पर विचार करने में काफ़ी समय लग गया कि क्या वे ब्रिटेन के चैलेंजर 2 और जर्मनी के लेपर्ड 2 जैसे आधुनिक युद्धक टैंक यूक्रेन भेजने की हिम्मत करेंगे, क्या इससे वो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को जल्दबाज़ी में किसी जवाबी कार्रवाई को उकसा पाते हैं.

अंत में, पश्चिम ने टैंक तो दिए लेकिन राष्ट्रपति पुतिन ने कुछ किया नहीं. लेकिन जब जून में वे युद्ध के मैदान पर तैनात होने को तैयार हुए, तब तक रूसी कमांडरों ने मानचित्र देखा और इस बात का सटीक अनुमान लगाया कि यूक्रेन का मुख्य प्रयास कहाँ होगा.

उन्हें लगा कि यूक्रेन ज़ापोरिज्जिया क्षेत्र से होते हुए अज़ोव सागर की ओर दक्षिण की ओर बढ़ेगा, रूसी मोर्चे में सेंध लगाकर उन्हें दो हिस्सों में बाँट देगा और क्राइमिया को काट देगा.

रूसी सेना ने 2022 में कीएव पर कब्ज़ा करने के अपने प्रयासों में भले ही निराशाजनक प्रदर्शन किया हो, लेकिन जहाँ वह उत्कृष्ट है, वहां उसने मज़बूती दिखाई.

2023 की पहली छमाही में जब यूक्रेनी ब्रिगेड ब्रिटेन और अन्य जगहों पर प्रशिक्षित हो रही थी और जब टैंक पूर्वी मोर्चे पर भेजे जा रहे थे,तब रूस आधुनिक इतिहास में रक्षात्मक किलेबंदी की सबसे बड़े और सबसे व्यापक मोर्चे का निर्माण कर रहा था.

टैंक रोधी बारूदी सुरंगे, माइंस, सैनिक रोधी माइंस, बंकर, खाइयों, टैंकों का मकड़जाल, ड्रोन और तोपखाने मिलकर यूक्रेन की योजना विफल कर रहे हैं. इसका बहुप्रतीक्षित जवाबी हमला विफल हो गया.

रूस के मिसाइल हमले का शिकार एक रूसी शहर

यूक्रेन में गोला-बारूद और सैनिकों की भारी कमी है. अमेरिकी कांग्रेस 60 अरब डॉलर की सैन्य सहायता के पैकेज को आगे बढ़ाने के व्हाइट हाउस के प्रयासों को रोक रही है. हंगरी ने ईयू के 50 अरब यूरो के सहायता पैकेज को रोक रखा है.

अंततः इनमें से एक या दोनों सफल हो सकते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. यूक्रेनी सेना पहले से ही रक्षात्मक स्थिति में है. इस बीच रूस ने अपनी अर्थव्यवस्था  युद्ध स्तर पर खड़ा कर दी है.उसने अपने राष्ट्रीय बजट का एक तिहाई हिस्सा रक्षा को समर्पित कर दिया है. वहीं यूक्रेन के अग्रिम मोर्चों पर हज़ारों लोगों और हज़ारों तोपखाने के गोले फेंके हैं.

ज़ाहिर तौर पर यह स्थिति यूक्रेन के लिए बेहद निराशाजनक है. उसे उम्मीद थी कि अब युद्ध का रुख़ उसके पक्ष में हो जाएगा, लेकिन पश्चिम को इससे फ़र्क़ क्यों पड़ता है?

यह राष्ट्रपति पुतिन के लिए मायने रखता है, जिन्होंने क़रीब दो साल पहले निजी तौर पर इस हमले का आदेश दिया था.उन्हें जीत की घोषणा करने को केवल उस क्षेत्र (यूक्रेन का लगभग 18 प्रतिशत) पर कब्जा बनाए रखना है, जिसे उन्होंने हथियाया है.

नेटो ने अपने शस्त्रागार ख़ाली कर दिए हैं. उसने अपने सहयोगी यूक्रेन का समर्थन करने को स्वयं युद्ध में शामिल होने से बचने की पूरी कोशिश की है.

इस बीच, बाल्टिक देशों एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया और नेटो के सभी सदस्य आश्वस्त हैं कि यदि पुतिन यूक्रेन में सफल हो सकते हैं, तो वह अगले पाँच साल में उनके यहाँ आएंगे।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन

सैद्धांतिक रूप से रूसी राष्ट्रपति एक वॉन्डेट व्यक्ति हैं.

मार्च 2023 में, हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने उन्हें और उनके बाल अधिकार आयुक्त को यूक्रेनी बच्चों के ख़िलाफ़ किए गए युद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराया था.पश्चिमी देशों को उम्मीद थी कि इससे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अछूत बन जाएंगे.उन्हें अपने ही देश में बंध कर रह जाऐंगें.इससे वो हेग में गिरफ्तारी और निर्वासन के डर से यात्रा करने में असमर्थ हो जाएंगे.लेकिन ऐसा नहीं हुआ.तब से राष्ट्रपति पुतिन किर्गिस्तान, चीन, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की यात्रा पर गए .हर बार उनका भव्य स्वागत हुआ है.उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी वर्चुअली हिस्सा लिया.

माना जा रहा था कि यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों से रूसी अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ जाएगी. इससे पुतिन को अपना हमला उलटने को मजबूर होना पड़ेगा.लेकिन रूस इन प्रतिबंधों के सामने अप्रभावित दिखा. चीन और कज़ाख़स्तान जैसे देशों से वो कई उत्पादों की सोर्सिंग करता है.सच यह है कि पश्चिम ने बड़े पैमाने पर ख़ुद को रूसी तेल और गैस से दूर कर लिया है.लेकिन रूस को कम क़ीमत पर ही सही दूसरे ज़रूरतमंद ग्राहक मिल गए हैं.

तथ्य यह है कि पुतिन का यूक्रेन पर आक्रमण और कब्जा पश्चिमी देशों के लिए अवांछित है,लेकिन यह दुनिया के अन्य देशों के लिए ऐसा नहीं है.कई देश इसे यूरोपीय समस्या के रूप में देखते हैं. वहीं कुछ ने इसका दोषी नेटो को बताते हुए कहा कि इसने पूरब में बहुत दूर तक अपना विस्तार कर रूस को उकसाया है.
यूक्रेनवासियों के लिए निराशा है कि ये देश रूसी सैनिकों के बड़े पैमाने पर किए अत्याचार और दुर्व्यवहार से बेख़बर हैं.

इसराइल ग़ज़ा युद्ध

हाल ही में रियाद में एक शिखर सम्मेलन में अरब देशों के मंत्रियों ने कहा कि पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंड हैं.
ये सरकारें पाखंडी हैं. क्या पश्चिमी देश उम्मीद करते हैं कि हम यूक्रेन में नागरिकों की हत्या को रूस की निंदा करेंगे जबकि वें ग़ज़ा में युद्धविराम से इनकार करते हैं,जहाँ हज़ारों नागरिक मारे जा रहे हैं?

भस्मीभूत गजा

इसराइल-हमास युद्ध स्पष्ट रूप से सभी ग़ज़ावासियों और उन इसराइलियों के लिए विनाशकारी रहा है,जो सात अक्टूबर को दक्षिणी इसराइल में हमास के जानलेवा हमले से प्रभावित हुए थे.यह पश्चिम के लिए भी बुरा रहा है.
इस युद्ध ने वैश्विक ध्यान नेटो सहयोगी यूक्रेन से हटा दिया है, जो इस सर्दी में रूस को आगे बढ़ने से रोकने को संघर्ष कर रहा है.इसने अमेरिकी हथियारों को कीएव से दूर इसराइल की ओर मोड़ दिया है.

लेकिन इन सबसे बढ़कर दुनिया के कई मुसलमानों और अन्य लोगों की नज़र में इसने संयुक्त राष्ट्र में इसराइल की रक्षा करके अमेरिका और ब्रिटेन को ग़ज़ा के विनाश में भागीदार बना दिया है.
रूसी वायु सेना ने सीरिया के अलेप्पो पर बमबारी की थी, उसने सात अक्टूबर के बाद से मध्य-पूर्व में अपने समर्थन में बढ़ोतरी देखी है.
यह युद्ध पहले ही दक्षिणी लाल सागर तक फैल चुका है, जहाँ ईरान समर्थित हूती लड़ाके जहाजों पर हमले कर रहे हैं, इससे चीज़ों की क़ीमतें बढ़ रही हैं,क्योंकि दुनिया की प्रमुख शिपिंग कंपनियां अफ्रीका के दक्षिणी सिरे के चारों ओर अपना रास्ता बदलने को मजबूर हैं.

ईरान का बढ़ता दबदबा
ईरान पर गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित करने का संदेह है.इससे वो इनकार करता है.

पश्चिमी देशों के प्रयासों के बाद भी वह अलग-थलग होने से बहुत दूर है.उसने प्रॉक्सी मिलिशिया से इराक़, सीरिया, लेबनान,यमन और ग़ज़ा में अपने सैन्य जाल फैलाए हैं.इन मिलिशिया को वह धन,प्रशिक्षण और हथियार देता है.इस साल ईरान को रूस से क़रीबी गठबंधन बनाते देखा गया है.वह रूस को यूक्रेन के कस्बों और शहरों में लॉन्च करने को शहीद ड्रोन की लगातार आपूर्ति कर रहा है.
कई पश्चिमी देशों के ख़तरा बताए जाने के बाद भी ईरान ने मध्य पूर्व में ख़ुद को फ़लस्तीनी हमदर्द के रूप में स्थापित कर ग़ज़ा युद्ध से लाभ उठाया है.

नाइजर में तख्ता पलट के बाद सैन्य अधिकारी

पश्चिम अफ़्रीका के साहेल इलाक़े के देश एक-एक कर सैन्य तख्तापलट का शिकार हो रहे हैं.
इसमें यूरोपीय सेनाओं का बहिष्कार दिखा है,जो इस क्षेत्र में जिहादी विद्रोह से निपटने में मदद कर रहे थे.
माली, बुर्किना फासो और मध्य अफ्रीकी गणराज्य के पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश पहले ही यूरोपीय लोगों के ख़िलाफ़ हो गए थे, जुलाई में तख्तापलट के बाद नीजेर में एक पश्चिम समर्थक राष्ट्रपति हटा दिया गया.
अंतिम फ़्रासीसी सैनिक अब देश छोड़ चुके हैं,हालांकि 600 अमेरिकी सैनिक वहां के दो ठिकानों पर अब भी बने हैं.
फ्रांसीसी और अंतरराष्ट्रीय सेनाओं की जगह रूसी भाड़े के सैनिक वैगनर समूह ले रहे हैं,जो अगस्त में एक विमान दुर्घटना में अपने नेता येवगेनी प्रिगोझिन की रहस्यमय मौत के बावजूद अपने आकर्षक व्यापारिक सौदों पर टिके रहने में कामयाब रहे हैं.
इस बीच,दक्षिण अफ्रीका,जिसे कभी पश्चिमी देशों के सहयोगी के रूप में देखा जाता था,वह रूसी और चीनी युद्धपोतों के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास कर रहा है.

उत्तर कोरिया
माना जाता है कि डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया पर उसके प्रतिबंधित परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के कारण सख़्त अंतरराष्ट्रीय पांबदियां लगी हुई हैं.तब भी उसने इस साल रूस से घनिष्ठ संबंध बनाए हैं.उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने रूसी बंदरगाह शहर का दौरा किया.
इसके बाद उत्तर कोरिया ने यूक्रेन में लड़ रही रूसी सेनाओं को कथित तौर पर दस लाख तोप के गोले भेजे.उत्तर कोरिया ने कई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों का परीक्षण किया है,जो अब महाद्वीपीय अमेरिका के अधिकांश हिस्सों तक पहुँचने में सक्षम मानी जाती हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग

कुछ हद तक,2023 में सैन फ्रांसिस्को में राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग में काफ़ी हद तक सफल शिखर सम्मेलन के साथ,दोनों देशों में तनाव में कमी देखी गई.
लेकिन चीन ने दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर अपने दावों से पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया है.
उसने एक नया मानक नक्शा जारी किया,जो कई एशिया-प्रशांत देशों के समुद्र तट तक अपने दावों का विस्तार करता है.
उसने ताइवान पर अपना दावा भी नहीं छोड़ा.उसने ज़रूरत पड़ने पर ताइवान को बलपूर्वक वापस लेने की कसम खाई है.चीन ताइवान में चुनाव को दबाव बढ़ा रहा है.

आशावाद का कारण क्या है?

पश्चिम के देशों के लिए इस निराशाजनक पृष्ठभूमि में आशा की किरणें देखना शायद कठिन है,लेकिन उनके लिए सकारात्मक पहलू यह है कि नेटो गठबंधन ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से प्रेरित होकर अपने रक्षात्मक उद्देश्य को स्पष्ट रूप से फिर से खोज लिया है.
पश्चिम की अब तक दिखाई गई सर्वसम्मति ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है,हालांकि इसमें अब कुछ दरारें भी दिखने लगी हैं.

लेकिन यह मध्य पूर्व में है,जहाँ सुधार की सबसे अधिक संभावना है.यह आंशिक रूप से घटनाओं के भयावह पैमाने के कारण है जो ग़ज़ा-इसराइल सीमा के दोनों ओर सामने आए हैं.

सात अक्टूबर से पहले,भविष्य के फ़लस्तीनी राष्ट्र के सवाल के समाधान की खोज को काफ़ी हद तक छोड़ दिया गया था.

फ़लस्तीनियों से इसराइल के व्यवहार में एक निश्चित आत्मसंतुष्टि आ गई थी कि यह एक ऐसी समस्या थी जिसे सुरक्षा उपायों से किसी भी तरह से हल किया जा सकता था,बिना उन्हें अपना राज्य देने की दिशा में कोई गंभीर क़दम उठाए.
वह फॉर्मूला अब घातक रूप से त्रुटिपूर्ण साबित हो चुका. एक के बाद एक विश्व नेताओं ने घोषणा की है कि जब तक फ़लस्तीनियों की न्यूनतम मांग पूरी नहीं होती,तब तक इसराइली उस शांति और सुरक्षा में नहीं रह पाएंगे,जिसके वे हक़दार हैं.

इतिहास में किसी समस्या का उचित और टिकाऊ समाधान ढूंढना अविश्वसनीय रूप से कठिन होने वाला है.यदि इसे सफल होना है तो इसमें दोनों पक्षों के दर्दनाक समझौते और त्याग शामिल होंगे.अंतत: अब इस तरफ़ दुनिया का ध्यान गया है.

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