पुण्य स्मृति:चटगांव कांड बाद बच निकले अनंत लाल सिंह ने साथियों के साथ को भोगा आजीवन कारावास
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बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏
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🔥🔥 *अनंता लाल सिंह जी* 🔥🔥
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📝राष्ट्रभक्त साथियों, आज *’मास्टरदा’ सूर्य सेन जी* के क्रांतिकारी साथी एवं *चटगाँव शस्त्रागार छापा* में सहयोगी अनंता लाल सिंह जी के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। मूलतः आगरा, उत्तर प्रदेश के निवासी गुलाब सिंह जी के घर 01 दिसंबर, 1903 को चटगाँव, बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में जन्मे अनंता लाल सिंह जी अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान निगम विद्यालय में ‘मास्टरदा’ सूर्य सेन जी से मिले और उनके अनुयायी बन गए। प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के अंतिम वर्षों में अनंता सिंह जी क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और अपने साहस और योग्यता से संगठन के प्रमुख सदस्य बन गए। बम और बंदूकों की गोलियाँ आदि बनाने में वे विशेष रूप से प्रवीण थे। वर्ष 1921 के *‘असहयोग आंदोलन’* में वे स्कूल से बाहर आ गए और देश की प्रमुख पार्टी ‘कांग्रेस’ के लिए काम करने लगे। लेकिन जब सन् 1922 में आंदोलन वापस ले लिया गया तो वे फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों मे संलग्न हो गए। वर्ष 1923 में जब क्रांतिकारियों ने विदेशियों की कम्पनी का असम, बंगाल रेलवे का ख़ज़ाना लूट लिया तो पुलिस को अनंता सिंह जी पर संदेह हुआ। अब वे अन्य साथियों को लेकर गुप्त स्थान पर रहने लगे। एक दिन जब उस स्थान को पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया, तब अनंता सिंह जी के नेतृत्व में क्रांतिकारी बलपूर्वक पुलिस का घेरा तोड़कर एक पहाड़ी पर चढ़ गए। वहाँ से बच निकलने के बाद अनंता सिंह जी कोलकाता (भूतपूर्व ‘कलकत्ता’) आ गए। लेकिन शीघ्र ही गिरफ़्तार करके उन्हें 04 वर्ष के लिए नज़रबंद कर दिया गया।
📝अनंता सिंह जी सन् 1928 में जेल से छुटकर फिर चटगाँव पहुँचे और लोगों को संगठित किया। इसके बाद ही क्रांतिकारियों ने चटगाँव के शस्त्रागार पर आक्रमण किया। अनंता सिंह जी फिर बचकर फ़्रैंच बस्ती चंद्रनगर चले आए, किन्तु ज्यों ही उन्हें पता चला कि ‘चटगाँव कांड’ के लिए उनके युवा साथियों पर मुकदमा चलाया जा रहा है, तब वे अपने साथियों के साथ खड़ा होने के लिए स्वंय पुलिस के सामने उपस्थित हो गए। उन सभी पर मुकदमा चलाया गया और कुछ अन्य साथियों के साथ उन्हें भी आजीवन कारावास की सज़ा देकर 1932 में अंडमान की जेल भेज दिया गया। अपनी गिरफ़्तारी के 14 वर्ष बाद सन् 1946 के अंत में ही अनंता सिंह जी जेल से बाहर आ सके। देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी अनंता लाल सिंह जी के आज 42वीं पुण्यतिथि पर मातृभूमि सेवा संस्था विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती है। 🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷
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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳