बरसी: 23 गोलियां खाकर भी कसाब की गर्दन नहीं छोड़ी थी निहत्थे तुकाराम ने
निहत्थे थे फिर भी पकड़ लिया कसाब के एके-47 का बैरल, 23 गोली खाकर भी नहीं छोड़ी गर्दन: तुकाराम ओंबले के बलिदान ने बचाई कई जिंदगियाँ
शहीद तुकाराम ओंबले और आतंकी कसाब
मुंबई में हुए 26/11 आतंकी हमले की आज 13वीं बरसी है। साल 2008 में पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी में इसी तारीख को इतना हाहाकार मचाया था कि पूरा देश उससे दहल उठा था। हर आतंकी के पास एके-47 थी। तमाम सुरक्षाबल सिर्फ इसी कोशिश में जुटे थे कि किसी तरह आतंकियों को दबोचा जाए। हालाँकि अंत में जो जिंदा पकड़ा गया वो सिर्फ अजमल कसाब था और जिसने उसे पकड़वाया वो बहादुर सिपाही तुकाराम ओंबले थे।
हमले के बाद 10 आतंकियों में से किसी एक का पकड़ा जाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद जरूरी था, लेकिन जैसे सारे आतंकी मुंबई की सड़कों पर खूनी खेल को खेल रहे थे, किसी को लगा ही नहीं था कि वे पकड़े जाएँगे। सुरक्षाबल की भी पहली अप्रोच जवाबी कार्रवाई ही थी। जगह-जगह पुलिस वाले तैनात थे।
27 नवंबर को डीबी मार्ग पुलिस को करीब 10 बजे सूचना मिली कि 2 हथियारबंद आतंकी गाड़ी में बैठकर आतंक मचा रहे हैं। इसके बाद 15 पुलिसकर्मियों को डीबी मार्ग से चौपाटी की ओर मरीन ड्राइव पर बैरिकेडिंग के लिए भेजा गया। जब आतंकियों की गाड़ी उस रास्ते आई तो वो 40-50 फीट पहले रुकी।
चारों ओर पुलिस को देख आतंकी घबरा गए और पुलिस पर फायरिंग शुरू हुई। पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की और एक आतंकी को मार गिराया। वहीं कसाब ने मरने की एक्टिंग करनी शुरू कर दी। सभी को लगा कि दोनों आतंकी ढेर हो गए हैं लेकिन फिर भी पुष्टि के लिए किसी को आगे बढ़ना था। पुलिसकर्मियों की भीड़ से तुकाराम आगे बढ़े और गाड़ी के पास हाथ बढ़ाया। इतनी ही देर में कसाब ने अपनी एके-47 उठाई और ओंबले पर दागने चला। ओंबले ने फौरन कसाब की बंदूक की बैरल पकड़ी, मगर फिर भी उसने ट्रिगर दबा दिया। अब गोलियाँ ओंबले के पेट और आंत के आर-पार थीं। लेकिन बावजूद इसके उन्होंने कसाब की गर्दन दबोची तो उसे मरते दम तक नहीं छोड़ा।
ओंबले की बहादुरी कहिए या कुछ और…जिस समय परमबीर सिंह जैसे तमाम बड़े पद के पुलिस अधिकारी आतंकियों का सामना करने के नाम पर पीछे हट गए थे, उस समय पर ओंबले अपनी लाठी लेकर आगे बढ़े और जब गोली लग गई तब भी उन्होंने उस आतंकी को नहीं छोड़ा। इस बहादुरी का नतीजा क्या हुआ ये बाद में पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश मारिया की किताब ‘Let me say it now’ से खुला।
राकेश मारिया की किताब बताती है कि जब ओंबले पर गोली चली तो साथी पुलिस वाले आवेश में आकर जवाबी कार्रवाई करने जा रहे थे। लेकिन डीबी मार्ग पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर संजीव गोविलकर ने उन्हें कहा कि उसे मत मारो ,वही तो सबूत है। 26/11 हमला करके पाकिस्तानी आतंकियों का एक मकसद हिंदुओं को बदनाम करना था। अगर उस रात कसाब न जिंदा बचता या भाग जाता तो शायद हम ये बात नहीं जान पाते है कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा चाहते थे कि अजमल बतौर समीर चौधरी मरे। ताकि दुनिया हिंदुओं पर ऊँगली उठाए और इस पूरे हमले को भगवा आतंक करार दिया जा सके। इस साजिश को अंजाम देने के लिए आतंकियों के हाथ में कलावे बांधे गए थे। साथ ही उन्हें भारतीय पते और हिंदू नाम वाले पहचान पत्र मुहैया करवाए गए थे।
आज उस हमले की 13वीं बरसी है। बलिदानी तुकाराम ओंबले की बहादुरी के कारण आज उन्हें इस दिन बड़े-बड़े अधिकारी नमन करते हैं। उनका वो गाँव जहाँ कोई व्यक्ति पुलिस बल का हिस्सा नहीं था, वहाँ 13 युवा पुलिस में भर्ती हो चुके है। वहीं भारत सरकार भी ओंबले को बलिदानी होने के उपरांत अशोक चक्र पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। इसके अलावा वैज्ञानिक क्षेत्र में भी ओंबले को सम्मान मिला है। उनके नाम पर एक मकड़ी का नाम-आइसियस तुकारामी रखा गया है।