ये रहा कम्युनिस्टों का राष्ट्रविरोधी विचार दर्शन, रणनीति और रणनीति

बहुत से लोग भूल चुके है कि 62 के युद्ध मे वामपंथियों ने चीनी सेना के स्वागत के लिए कमेटियाँ भी बना ली थी.

उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा पर भारतीय सेना की पहुँच सुगम करने व् लॉजिस्टिक्स सप्लाई लाइन सुदृढ़ करने हेतु चल रहे सड़कों के निर्माण को एक एनजीओ “सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून” ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पर्यावरण का हवाला देते हुए रुकवाने का आग्रह किया है।

इस एनजीओ के वकील कॉलिन गोंजालेस और मोहम्मद आफताब ने कोर्ट में तर्क दिया है कि “भारतीय सेना युद्ध में हवाई मार्ग का उपयोग कर सकती है”,

जबकि यथार्थ यह है कि किसी भी युद्ध मे कोई भी सेना उतनी ही प्रभावी होती है जितनी मजबूत उसकी लॉजिस्टिक्स सप्पलाई लाइन हो जिसके माध्यम से आवश्यकता पड़ने पर तीव्र गति से वह फॉरवर्ड पोस्ट्स पर अधिकाधिक फोर्सेज़, वेपन, एम्युनिशन, मिलिट्री इक्विपमेंट भेज सके, और उसके लिए सर्वाधिक आवश्यक है फॉरवर्ड पोस्ट्स तक ऑल वेदर रोडस की कनेक्टिविटी,

और यहाँ हमारे ही देश का क्रिस्लामोकौमि कबाल और एनजीओ ब्रिगेड खुलेआम डेमोक्रेसी और ज्यूडिशियल राइट्स का दुरुपयोग कर चीनी बॉर्डर से लगने वाली सीमाओं पर भारतीय सेना को कमज़ोर करने के षड्यंत्र रचने में जुटे हैं,

यदि चीन में किसी एनजीओ ने इसी प्रकार की याचिका भारतीय सीमा के संदर्भ में दी होती तो अभी तक उस एनजीओ के एक एक सदस्य व उसके घरवालों को ट्रीज़न के चार्ज में बुक कर चीनी वामपंथियों ने फायरिंग स्क़वाड के आगे खड़ा कर दिया होता,किन्तु क्योंकि यहाँ हम लोग “टू मच डेमोक्रेसी” और ### हुए ज्यूडिशियल सिस्टम के शिकार हैं अतः हमारा सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार की याचिकाएं तत्काल फाड़कर डस्टबीन में फेंकने तथा याचिका दायर करने वालों व उनके वकीलों पर रासुका में कार्यवाही के बदले उन याचिकाओं पर सुनवाई भी करने बैठ जाता है।

✍🏻आर डी अमरुते

भारत पुरे LAC को डेवलप कर रहा है, रोड़ से लेकर सीमा पर बसे गांव तक का. लेकिन इससे चीन बहुत चीढ़ा हुआ है, क्यूंकी सीमा पर मूलभूत बुनियादी ढांचे में बदलाव होने से चीन और अतिक्रमण नहीं कर पा रहा है !! इसलिए चीन अब भारत में बैठे अपने गुलामों के जरिए LAC पर बन रही सडकों का विरोध करना कर रहा है ! भारत में बैठे चीन के गुलाम कॉलिन गोंजालेस और मोहम्मद आफताब ने एक तथाकथित NGO संस्था ‘सिटीजन फॉर ग्रीन दून’ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा पर सड़कों के निर्माण को पर्यावरण का हवाला देते हुए रोकने को कहा हैं कि भारतीय सेना युद्ध के दौरान वीना रोड के हवाई मार्ग का इस्तेमाल कर सकती हैं ! तो आप लोग सोच सकते हैं कि चीन की पैठ भारत में कितनी गहरी तक है. भारत में रह रहे यह वामपंथी गद्दार भारत के बदले चीन के लिए कितनी वफादार हैं !

✍🏻जीवन आनन्द

देश की आजादी के आन्दोलन के समय 1942 में कम्युनिस्टों ने स्वयं को महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से अलग रखा। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय भी चीन के साथ खड़े होकर डिंफेस और टेली कम्यूनिकेशन में हड़ताल का आह्वान किया। कम्युनिस्ट संगठनों द्वारा चाइना को मुक्ति वाहिनी घोषित करना देश के साथ गद्दारी ही थी। जब देश युद्ध के संकट में हो तब ‘चाहे जो मजबूरी हो, मांगें हमारी पूरी हो’ जैसे नारे देना, यह देश के साथ विश्वासघात करना था।

पीछे चलें तो 1916 में एक तरफ विश्व युद्ध चल रहा था, रूस के राजा निकोलस द्वितीय सैनिको का उत्साहवर्धन करने के लिये साइबेरिया गए हुए थे।
ठीक इसके विपरीत रूस की कम्युनिस्ट पार्टी देशद्रोह करते हुए राजा के खिलाफ बगावत कर चुकी थी।
रूसी सेना ने कम्युनिस्टों की लाल सेना को खदेड़ दिया और उनका नेता व्लादिमीर लेनिन भागता फिरा मगर एक साल में सब कुछ बदल गया। रूस के आधे से ज्यादा सैनिक जर्मनी से लड़ रहे थे। ऐसे में लाल सेना की विजय हुई।
राजा निकोलस द्वितीय परिवार के साथ बंदी बना लिया गया और साइबेरिया लाया गया। वहाँ उन्हें एक बंगले में नजरबंद किया गया, खाने के लिये उन्हें ब्रेड ही मिलती थी। कम्युनिस्ट उनका बार- बार अपमान करते रहते थे।लेकिन उन्हें एक ही आशा थी कि उनका चचेरा भाई जॉर्ज पंचम जो कि ब्रिटेन का राजा है वह उन्हें बचा लेगा। जॉर्ज पंचम ने शुरू में तो कई प्रयास किये कि निकोलस और उनके परिवार को छुड़ा ले मगर जब उन्होंने विचार किया कि निकोलस के चक्कर मे कही रूस की क्रांति ब्रिटेन ना पहुँच जाए तो उन्होंने निकोलस को भगवान भरोसे छोड़ दिया।

जब जॉर्ज पंचम की संभावित मदद की बात रूस पहुँची तो कम्युनिस्टों ने 16 से 17 जुलाई 1918 के आसपास राजपरिवार को जगा एक कमरे में ला बेरहमी से गोली मार दी । उनके शवों को क्षत विक्षत किया गया और किसी अनजान जगह दफन कर दिया।
रूसी साम्राज्य का नाम बदल सोवियत संघ कर दिया, 1977 में राजपरिवार के अवशेष लोगों को मिले और 1998 में उनकी 80वी वर्षगांठ पर परिवार का दाह संस्कार ईसाई परंपरा के अनुसार हो सका। रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने इसमें भाग ले पहली बार दुख प्रकट किया।
लेकिन यह सब हुआ ही क्यों? कम्युनिस्ट चाहते थे कि एक व्यक्ति की तानाशाही खत्म हो, क्या वो हो गयी? आज भी रूस में वन पार्टी रूल है, भ्रष्टाचार खत्म हुआ ? उसमें भी रूस शीर्ष पर है।

कम्युनिस्टों का आरंभ से यही ढंग रहा है कि पहले बना हुआ कपड़ा फाड़ दो और उसे फिर से अपने ढंग से बुनो।

रूस के इतिहास का यह काला अध्याय सदा ही मानव को कम्युनिस्टों का घिनौना चेहरा याद दिलाता रहेगा। ज्ञातव्य हो त्रिपुरा में जब कम्युनिस्टो की सरकार थी तब उन्होंने व्लादिमीर लेनिन की ही मूर्ति बनवाई थी फिर जब बीजेपी सत्ता में आयी तो बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के नेताओ ने उसे धराशायी कर दिया।
हमे इसी तरह

कम्युनिस्टों से देश को बचाना है अन्यथा रूस का अतीत भारत का भविष्य हो सकता है।

✍️परख सक्सेना

एक वामपंथी पुस्तिका है – Strategy and tactics of the Indian revolution – जो बताती है कि किस तरह वामपंथी हमारे सैनिकों की हत्या करना चाहते हैं, अपने पुलिस को मार डालना चाहते हैं क्योंकि उनके हिसाब से वें क्रांति की राह में रोड़े हैं । ये सैनिक, पुलिस और सरकारी कर्मचारी, आप के पिता, भाई, मित्र, पति, माँ, बहन या पत्नी हो सकते हैं लेकिन आप के कामरेड दोस्त उन्हें शत्रु मानते हैं और बस सही मौके की तलाश में हैं ।

उसी पुस्तिका में यह भी कहा गया कि भारत अलग अलग राष्ट्रों के नागरिकों के लिए एक कैदखाना है । मतलब भारत एक राष्ट्र नहीं और सभी भारतीय अलग – अलग राष्ट्र हैं ।

हत्याओं की बात है तो अगर आप क्रान्ति का विरोध करेंगे – कर सकते हैं अगर आप मुफ्तखोरी का विरोध करते हैं, या कोई आप की संपत्ति पर ऐसे ही क्रांति के नाम से खुद का दावा करें – तो हत्याओं में आप का भी नंबर है ही ।

और भी कई योजनाएँ हैं । जैसे आप के बच्चों को अपने जाल में फँसाने की योजनाएँ । उन्हें किस तरह से आप से गोपनीयता सिखाएँ यह भी। वैसे एक बात पता न हो तो बता दूँ, ये लोग गोपनीयता आदि बहुत गंभीरता से लेते हैं । रहस्य भेद की सजा मृत्युदंड होती है और यह कोई मज़ाक नहीं ।

क्रान्ति को यशस्वी बनाने को देश की अर्थव्यवस्था किस कदर खोखली करनी है, झगड़े करने हैं आदि विस्तार से बताया गया है । कुल मिलाकर यह कि उसे पढ़ने के बाद किसी भी भारतीय के हाथ शांत रहना मुश्किल हैं।

बस एक बात जान लीजिए । शिक्षा व्यवस्था को इन्होंने इनफेक्ट कर रखा है । आप अगर किसी युवा या कन्या के अभिभावक हैं तो उसके करियर के लिए आप ने जो सोच रखा है, उसमें जरा इनका हस्तक्षेप भी जोड़ रखिएगा। प्रतिभावान लड़के और सुंदर कन्याओं पर इनकी विशेष नज़र रहती है ।

अगर कोई वामी आप से कहे कि यह सब झूठ है तो आप कृपया यह पुस्तिका खुद सर्च कर के डाउन लोड कीजिये । Strategy and tactics of the Indian revolution – मुफ्त है । हाथ कँगन को आरसी क्या ?

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