आर्यन नस्ल की थ्योरी वेद नहीं, बाइबिल से निकली है
1859 में मैक्समुलर ने #आर्यन_अफवाहः नामक एक गल्प रची। यह अफवाहः भी बाइबिल की रेसिस्ट थ्योरी से उपजी है। यहूदियों के प्रति ईसाइयों की घृणा के कारण श्रेष्ठ पूर्वजता की काल्पनिक गप्प।
जिसे यूरोप और भारत के विश्वविद्यालयों में इंडोलॉजी, फिलोलोजी, और साइंस ऑफ लैंग्वेज के नाम से पढ़ाया गया।
यूरोप में इसका परिणाम हुवा – जेर्मन वासियों द्वारा यहूदियों का नरसंहार। लेकिन उसको हिटलर के मत्थे मढ़कर निजात पा लिया गया। यह किसी ने नहीं पूंछा कि वह #माइंड_सेट कैसे निर्मित हुवा जिसने इस नरसंहार की पृष्ठभूमि रची?
दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त होते होते भारत के एक बुद्धिजीवी ने उस अफवाह के खण्डन में एक अन्य अफवाहजनक ग्रन्थ की रचना किया – जिसको इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों ने बिना सोचे समझे एक सत्य की तरह प्रचारित करना शुरू किया।
#आर्यन_अफवाह_के_उत्पत्ति_का_स्रोत_बाइबिल :
ओल्ड टेस्टामेंट में एक कथा है टावर ऑफ बेबल के नाम से । उसके अनुसार महा प्रलय ( बाढ़ ) के बाद सम्पूर्ण मानवता का जन्म शिनार की भूमि ( बैबीलोनिया) में हुयी। ( जेनेसिस 11.1-9)
जेनेसिस के अनुसार बैबीलोनिया के निवासी प्रसिद्धि की प्राप्ति हेतु एक शक्तिशाली शहर और एक ऐसा टावर बनाना चाहते थे, जो स्वर्ग तक जाता हो। वे सब के सब एक ही भाषा बोलते थे।
इस माइथोलॉजी के अनुसार यह कथा मदृक मन्दिर के उत्तर में एक टावर से प्रेरित है, जिसको बैबीलोनिया में Bab-ilu ( Gate ऑफ गॉड) जो कि हिब्रू भाषा babel या Bavel से निकली है। इसका दूसरा अर्थ होता है कंफ्यूज करना।
गॉड नही चाहता था कि मनुष्य टावर बनाकर स्वर्ग में घुस जाय इसलिए जब बैबीलोनिया के निवासियों ने टावर बनाने की सारी तैयारी कर लिया तो गॉड ने उन लोगो को विभिन्न भाषाओं का ज्ञान देकर कंफ्यूज कर दिया। अब वे एक दूसरे की भाषा नही समझते तो टोवर का निर्माण किस तरह करते? इसलिए वे वहां से सारे संसार मे फैल गए।
ईसाइयत धर्म का निर्माण जीसस के अनुयायियों ने किया। जीसस स्वयं यहूदी थे और हिब्रू भाषा बोलते थे।
ईसाइयत एशिया से यूरोप गयी तो यूरोप के सारे देशों में फैली। उन्होंने रोमन और ग्रीक संस्कृति को नष्ट करके सबको ईसाई में धर्म परिवर्तित कर दिया।
लेकिन अब एक ईसाई बोलने वाले एक भाषा के न होकर अनेक भाषा बोलने वाले हो गए। सेल्ट्स, जर्मन, स्लावनियन, ग्रीक, इटैलियन आदि। बैबीलोनिया में पर्शियन बोली जाती थी इसलिए पर्शियन को भी शामिल किया जाना अनिवार्य था।
1500 वर्षो तक इन टावर ऑफ बेबल पर बहुत चर्चा नही हुई। लेकिन 1500 के बाद जब यूरोप के ईसाई पूरी दुनिया मे फैले तो इस कथा का महत्व बढ़ गया।
उन्होंने निर्णय लिया कि पूरे विश्व की मानवता और सभ्यता को बाइबिल के गप्पो ( गोस्पेल्स) के अनुरूप परिभाषित किया जाना चाहिए। और उन्होंने वही किया।
जब तक यहूदी थे और बाइबिल हिब्रू में थी तब तक तो कोई परेशानी नही थी, लेकिन अब इतनी अधिक भाषा बोलने वाले ईसाई पैदा हो चुके थे। साथ ही साथ इस्लाम का भी जन्म हो चुका था। कुरान के समस्त पैगम्बर बाइबिल के भी पैगम्बर हैं तो उनका भी ध्यान रखना था।
जब नग्रेजो ने फ्रेंच डच आदि को हराकर भारत पर संप्रभुता स्थापित किया तो लुटेरों के साथ साथ विलियम जोंस जैसे फैंटसी लेखक भी आये।
वह भारत आया था 1783 में। 1784 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल बनाता है,जिसमे कोई भी सदस्य एशिया या बंगाल से नही था। उसने 1786 में घोसित किया कि संस्कृत ग्रीक और लैटिन से श्रेष्ठ भाषा थी। और यूरोप की समस्त भाषाओ के साथ साथ, पर्शियन और संस्कृत का जन्म एक ही भाषा से जन्म हुआ था – प्रोटो इंडो आर्यन भाषा।
जो अब विलुप्त हो चुकी है।
जो भाषा विलुप्त हो चुकी है उसके बारे में एक धूर्त वकील कैसे जानता था ?
यह प्रश्न आज तक किसी ने नही पूंछा।
विलियम जोंस ने भारत के लगभग समस्त ऐतिहासिक पुरुषों, राम, कुश बुद्ध आदि को किसी न किसी बाइबिल के चरित्र से जोड़कर भारत के बारे में लिखना शुरू किया। जैसे वह लिखता है कि बुद्ध का जन्म इथोपिया में हुवा था। क्योंकि उनके बाल घुंघराले थे।
अब टावर ऑफ बेबल की वह इकलौती भाषा खोज ली गयी, जिसको बोलने वाले मानवता की शुरुवात में बोलते थे – प्रोटो इंडो आर्यन भाषा।
जिससे दुनिया की समस्त भाषाओ का जन्म हुआ था।
यह फैंटसी जब यूरोप में पहुची, तो यूरोप के विश्वविद्यालयों में इस फैंटेसी में, अपनी फैंटेसी जोड़कर लिखना पढना शुरू किया गया। इनको जिन डिपार्टमेंट में पढ़ाया जाता था उसे फिलोलोजी या इंडोलॉजी कहते हैं – फेक विज्ञान।
चूंकि यूरोप में नवचेतना आ रही थी जिसे Renesaw या पुनर्जागरण हो रहा था। तो जिन प्रश्नों के उत्तर बाइबिल नही दे पा रही थी वह भारत से गये संस्कृत साहित्य ( जिस भी फॉरमेट में भी वे उपलब्ध हों) वे दे रहे थे।
अब इन विभागों के विद्वान बाजार में उपलब्ध किसी भी भाषा मे उपलब्ध आधे अधूरे संस्कृत ग्रन्थ को अपनी नग्रेजी या जर्मन भाषा मे लिखकर उसको ओरिजिनल संस्कृत ग्रन्थ के नाम से छपवाने लगे – प्रिंट इट तो इंप्रिंट इट।
यूरोप के स्कॉलर्स ने अब यूरोप के ईसाइयों को आर्य घोसित करना शुरू कर दिया और आर्य का अर्थ हुवा – गोर रंग की नश्ल के ईसाई।
बाकी दुनिया के काले लोगों को नूह के श्राप से शापित उसके पुत्र हैम की संतति घोसित किया जाना शुरू किया गया – जहां से #Aparthied या #रंगभेद की नीति और अत्याचारी संस्कृति का जन्म हुआ।
न्यू टेस्टामेंट ईसाइयो का ग्रन्थ है।
ओल्ड टेस्टामेंट यहूदियों का ग्रन्थ है।
New टेस्टामेंट से यदि ओल्ड टेस्टामेंट को काट दिया जाय तो ईसाइयत का आधार ही खत्म हो जाय।
ईसाई धर्माधीशों ने यहूदियों को जीसस की हत्या का जिम्मेदार मानते हुए सृष्टि के अंत तक उनके कत्ल को जायज ठहरा रखा है।
2000 वर्षो की इस घृणा के कारण ईसाइयो को अपनी यहूदी पूर्वजता से मुक्त होने का एक सुनहरा अवसर मिला – आर्यन नश्ल के रूप में। जो यहूदियों से भी प्राचीन और श्रेष्ठ थे। इस सुनहरे अवसर को पूरे यूरोप के स्कॉलरों ने लपक करके वृहत फैंटेसी वाले साहित्य लिखे जो पूरे यूरोप में बेस्ट सेलर बने।
विलियम जोंस के बाद जन्म होता है दूसरे धूर्त स्कॉलर मैक्समुलर का। जो था तो मैट्रिक पास लेकिन उसको यूरोप के ईसाई स्कॉलरों ने डॉक्टर और प्रोफेसर की तरह बहु प्रचारित किया।
उसको ईस्ट इंडिया कंपनी ने 4 डॉलर प्रति पेज के हिसाब से कॉपी और collate करने का ठेका दिया।
उसने ऋग्वेद के दूसरे खण्ड में आर्यन अफवाह की फैंटेसी की रचना किया।
उस मूल फैंटेसी को प्रदोष अइछ ने अपनी पुस्तक Truth में छापा है।
उससे हमने अपनी पुस्तक में छापा है।
अब समय आ गया था कि अब्रम्हमिक धर्म के अनुसार दुनिया की मानवता को शुरू से ही तीन वर्ग में विभाजित करने का।
आर्यन
सेमेटिक अर्थात यहूदी
और
तुरानयन अर्थात मुसलमान।
फैंटेसीबाज मैक्समुलर लिखता है:
” …… एक समय था जब सेल्ट्स, जर्मन, स्लावोनयन, ग्रीक, इटालियन, पर्शियन और हिंदुओं के पूर्वज, सेमेटिक और तुरानीयन नश्लो से अलग, एक साथ रहते थे”।
टोटल फैंटेसी का सार यही मात्र है।
इस फैंटेसी को आधार बनाकर किस तरह ईसाइयो का माइंड मैनिपुलेट किया गया उससे आप अनभिज्ञ नही है। उन्होंने अपने पड़ोस में रहने वाले 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों का हिटलर के नेतृत्व में कत्ल कर दिया।
हिटलर हार गया इसलिये दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में ईसाई आर्यन सम्बन्धी फंतासी लिखना अपराध घोसित कर दिया गया।
उन सारी फैंटेसी को अब भारत की तरफ प्रेषित कर दिया गया।
अब इस फैंटेसी को जमेटिक्स से खारिज कीजिये या पुरातत्व से लेकिन कम से कम एक बार पढिये तो कि असली फैंटेसी थी क्या?
बाकी फैंटेसी आने वाले समय मे गढ़ी जाएंगी।
टावर ऑफ बेबल इंटरनेट पर उपलब्ध है पढ़ सकते हैं।
✍🏻डॉ त्रिभुवन सिंह