कन्हैया का गला काटने में 20 सैकेंड, सज़ा में लग सकते हैं 20 साल

भास्कर एक्सक्लूसिव20 सेकेंड में गला काटा, सजा में लगेंगे 20 साल:इकलौता हत्याकांड, जिसके करोड़ों गवाह; 1 साल बाद भी तय नहीं- कन्हैयालाल के हत्यारे कौन

 

उदयपुर 30 जून।  उदयपुर का तालिबानी हत्याकांड राजस्थान का शायद इकलौता मामला होगा, जिसके करोड़ों गवाह हैं। घिनौने हत्याकांड के कुछ ही घंटों में इसका वीभत्स वीडियो करोड़ों मोबाइल तक पहुंच गया था। जिसने भी वीडियो देखा, वो जानता है- कब, किसने, क्यों और कैसे मारा?

लेकिन एक साल बीतने के बावजूद कन्हैयालाल के हत्यारों को सजा मिलना तो दूर मुख्य ट्रायल तक शुरू नहीं हुआ है। कन्हैयालाल का परिवार निर्दोष होते हुए भी नर्क जैसी जिंदगी जी रहा है।

चश्मदीद गवाह राजकुमार का परिवार तबाह हो गया, लेकिन कन्हैयालाल की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर हथियार लहराते दिखे हत्यारे गौस मोहम्मद और रियाज सहित 11 आरोपियों को अब तक सजा नहीं हुई है।

हर उदयपुरवासी, हर राजस्थानी और हर भारतीय के मन में एक ही सवाल है- 20 सेकेंड से भी कम समय में इस घिनौने हत्याकांड को अंजाम देने वाले हत्यारों को कब मिलेगी सजा?

कब मिलेगा कन्हैयालाल को इंसाफ? इंसाफ जिसकी आस में कन्हैयालाल का एक बेटा पिछले एक साल से नंगे पैर घूम रहा है। इंसाफ जिसका इंतजार कन्हैयालाल की अस्थियां कर रही हैं।

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने विधि विशेषज्ञों से बात की।

पहले जानिए कहां तक पहुंचा मामला

पिछले 28 जून को उदयपुर में मालदास स्ट्रीट इलाके में भाजपा नेता नुपूर शर्मा का सोशल मीडिया पर समर्थन करने पर कन्हैयालाल साहू की गौस मोहम्मद और रियाज ने धारदार हथियार से गर्दन काट दी थी।

29 जून को राजस्थान पुलिस ने FIR दर्ज की । आतंकी कनेक्शन होने से जांच NIA को सौंपी गई।

घटना के 177 दिन बाद 12 दिसम्बर, 2022 को NIA ने 11 को आरोपित बनाया और उनके खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में पेश की। फिलहाल, कन्हैयालाल हत्याकांड पर अभी NIA कोर्ट में चार्ज फ्रेम बहस चल रही है।

क्या होता है चार्ज फ्रेम

कोर्ट में इस चार्जशीट में लगाए गए आरोपों (धाराओं) को लेकर चार्ज फ्रेम बहस चल रही है। इसमें NIA की ओर से अपॉइंट वकील टीपी शर्मा आरोपितों पर लगाई गईं धाराओं की पैरवी करेंगे।

इस दौरान सभी आरोपितों के बचाव पक्ष के वकील को जो अनुचित लगता है, वे उन धाराओं का विरोध करेंगे।

बहस निपटने के बाद कोर्ट चार्ज फ्रेम करेगा और आरोपितों को उन पर लगे आरोप धाराओं के साथ सुनाए जाएंगे।

इसे ही चार्ज फ्रेम बहस पूरी होना कहते हैं। इसके बाद मुख्य ट्रायल शुरू होता है। साधारण शब्दों में कहें तो अभी तक कोर्ट में यह तय नहीं हुआ है कि कन्हैयालाल की हत्या किसने की?

 

देरी की वजह : वकील ही नहीं मिल रहा था पहले

घटना को एक साल होने को है, NIA कोर्ट में 20 ही पेशी हुई हैं। कारण कि 10 महीने तक गौस व रियाज का केस लड़ने को कोई वकील ही नहीं मिला था।

वकीलों ने इस हत्याकांड के विरोध में तय किया था कि वे गौस और रियाज का केस नहीं लड़ेंगे।

कोर्ट ने हर पेशी पर गौस और रियाज से पूछा- कोई वकील है तो बताओ। क्या  सरकारी वकील चाहिए?

हर बार गौस व रियाज ने कोर्ट से कहा कि- हम प्रयास कर रहे हैं, अभी वकील नहीं मिला है। लेकिन हम अपनी पैरवी को खुद का वकील करवाएंगे।

इसके बाद कोर्ट ने अप्रैल से पहले फिर पूछा कि क्या कोई वकील तैयार हुआ? गौस-रियाज ने कहा कि अभी तो कोई वकील नहीं मिला है, शायद वकील हमारे प्रयास से नहीं हो पाएगा।

इसके बाद कोर्ट ने इंतजार नहीं किया। अप्रैल में कोर्ट ने लीगल एड को पत्र लिखा कि गौस और रियाज को वकील दिया जाए।

कोर्ट के पत्र के बाद दोनों आरोपितों को लीगल एड देने को विधिक सेवा प्राधिकरण को पत्र लिखा। इसके बाद प्राधिकरण ने दोनों की पैरवी को एक वकील मई में उपलब्ध करवा दिया, जो पिछली पेशी पर कोर्ट में उपस्थित हुआ।

10. सलमान (कराची, पाकिस्तान)

11. अबू इब्राहिम (कराची पाकिस्तान)

आसान नहीं हत्यारों को सजा तक पहुंचाना…

300 से ज्यादा गवाह

मुख्य ट्रायल शुरू होने के बाद NIA के वकील अपने गवाह पेश करेंगे। गवाहों से सवाल-जवाब बचाव पक्ष के वकील करेंगे।

फिर, बचाव पक्ष भी अपने गवाह पेश करेगा और NIA वकील इनके गवाहों से सवाल-जवाब करेंगे। एक्सपर्ट्स के अनुसार जितने ज्यादा गवाह, उतनी ही लंबी प्रक्रिया।

NIA ने कोर्ट में इस मामले में 166 लोगों को गवाह बनाया है। इसके बाद मुख्य आरोपितों सहित हत्या षड्यंत्र के 9 आरोपित हैं।

इनके वकील भी अपने-अपने गवाह पेश करेंगे। बचाव पक्ष के वकील के गवाहों की संख्या भी 100 से अधिक होगी। ऐसे में इस मामले में करीब 300 गवाहों की गवाही हो सकती है।

गवाही में बीत जाएंगे 3 साल

गवाहों काे कोर्ट में आने में भी कई मुश्किलें होती हैं। कई गवाह कोर्ट आते नहीं है, इसके बाद कोर्ट उन्हें नोटिस भेजती है। इसके बाद भी नहीं आने पर समन भेजता है।

समन तामील पुलिस करवाती है। कोर्ट अगर बहुत तेजी से भी काम करेगा तो भी काफी अधिक गवाह होने से गवाह बुलाने की प्रक्रिया ही 3 साल से अधिक का समय लेगी।

दो आरोपित पाकिस्तानी, जिनके लिए चलेंगे चिट्ठियों के दौर

उदयपुर हत्याकांड के कुल 11 आरोपित हैं। गौस, रियाज सहित षड्यंत्र में शामिल 9 आरोपित अजमेर की हाई सिक्योरिटी जेल में बंद हैं। सभी को अलग-अलग बैरक में रखा जा रहा है।

इन सभी को न्यायिक हिरासत में रखा जा रहा है। वहीं 2 आरोपित पाकिस्तानी हैं। इनके नाम हैं सलमान (कराची, पाकिस्तान) और अबू इब्राहिम (कराची पाकिस्तान)। इन दोनों पर कन्हैया लाल की हत्या के लिए गौस व रियाज को उकसाने और षडयू के आरोप हैं।

पाकिस्तान में बैठे आरोपितों को हिरासत में लेना आसान नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का मामला है। ऐसे में केंद्रीय गृह विभाग के स्तर पर हस्तक्षेप होगा।इनकी गिरफ्तारी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच चिट्ठियां चलेगी। इस मामले में सबसे अधिक समय इन दो आरोपितों तक पहुंचने में लगेगा।

हालांकि NIA के पास देश के बाहर भी जांच करने की पावर है। जरूरत पड़ने पर NIA जांच को पाकिस्तान, नेपाल या दूसरे अरब देशों में भी जा सकती है।

सजा में लग सकते हैं 20 साल!

एक्सपट्‌र्स का कहना है कि कन्हैयालाल लाल के हत्यारों को सजा मिलने में 20 साल लग सकते हैं। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि मान लेते हैं कि NIA कोर्ट हत्यारों को फांसी की सजा सुना देती है।

उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। हाईकोर्ट भी अगर NIA कोर्ट का फैसला यथावत  रखता है तो आरोपित सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

अगर सुप्रीम कोर्ट भी हाईकोर्ट का फैसला यथावत रखता है तो राष्ट्रपति के पास भी दया याचिका लगाने का प्रावधान है। एक्सपट्‌र्स का कहना है कि इस प्रक्रिया में 20 साल लग सकता है।

अमेरिका में 3 साल में न्याय

ग्लोबल लॉ एक्सपर्ट समर्थ कुमार ने बताया कि भारत का ट्रायल सिस्टम बहुत ज्यादा लंबा है। हमारे यहां लोअर कोर्ट में एवरेज ट्रायल टाइम 2 से 5 साल है, जबकि दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। भारत में इसके बाद अपील व हायर कोर्ट्स का एवरेज ट्रायल टाइम तो 15-30 साल तक है।

उन्होंने बताया कि अमेरिका में लोअर कोर्ट्स में एवरेज ट्रायल टाइम 6 महीने है। घटना के अगले 9 महीने से 36 महीने में सभी हायर कोर्ट्स से फाइनल जजमेंट तक आ जाता है।

एडवोकेट अजय कुमार जैन ने बताया कि ब्रिटिश काल के  साल 1860 में लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले की बनाई भारतीय दण्ड संहिता (इंडियन पीनल कोड) देश में लागू थी।

ये बहुत पुराना है, हालांकि इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे है। हमारे देश में अमेरिका के फेडरल पीनल कोड की तुलना में अपराधों में दी जाने वाली सजा बहुत कम है।

NIA की सक्सेस रेट 90 प्रतिशत से ज्यादा

जिस तरह अमेरिका में FBI है, वैसे ही भारत में NIA है। NIA भारत ही नहीं, दुनिया के किसी भी कोने में जाकर जांच कर सकती है। भारत सरकार ने जब भी NIA को कोई जांच सौंपी है, तो सक्सेस रेट 90 प्रतिशत से ज्यादा रहा है।

NIA आतंकवाद, साइबर आतंकवाद, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, परमाणु ठिकानों से जुड़े अपराधों को डील करती है।

ये संस्था भारत के किसी भी हिस्से में आतंकी गतिविधि का खुद संज्ञान लेकर केस कर सकती है। किसी भी राज्‍य में घुसने, जांच करने और  गिरफ्तारी के लिए NIA को राज्‍य सरकार की अनुमति नहीं चाहिए।

देश से बाहर भी जांच करने के अधिकार है। अगर NIA कोर्ट में ट्रायल चल रहा है तो आरोपित को किसी और अदालत में, किसी और केस में पेश होने से रोका जा सकता है।

NIA केवल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी नहीं, बल्कि प्रॉसिक्यूशन एजेंसी भी है। यदि अदालत कमजोर सबूतों के आधार पर किसी को जमानत देना चाहे, तो NIA बंद लिफाफे में सबूत या अन्य जानकारी दे सकती है। सील्ड कवर में क्या दिया गया है, इसे बताना भी जरूरी नहीं और तत्काल अदालत से जमानत रद्द हो जाती है।

 

शाबाशी मिली, लेकिन सरकारी नौकरी और इनाम को भूली सरकार

कन्हैयालाल का सिर काटने के बाद जब गौस और रियाज बाइक से भाग रहे थे, तो राजसमंद जिला निवास श्याम सिंह चुंडावत व प्रहलाद सिंह चुंडावत ने अपनी जान पर खेलकर पकड़ा था।

श्याम व प्रहलाद ने लगातार बाइक दौड़ाकर 50 किलोमीटर तक उनका पीछा कर चलती बाइक पर ही पुलिस को सूचना दी थी।इसके बाद श्याम सिंह व प्रहलाद की बताई लोकेशन पर पहुंचकर पुलिस ने गौस व रियाज को अपनी जीप से टक्कर मारकर नीचे गिराया था। दोनों बहादुर युवकों की मदद से पुलिस ने आरोपित काबू किये।

सरकार की ओर से सरकारी नौकरी व बंदूक का लाइसेंस दिलाने का आश्वासन दिया गया। आज इस घटना को लगभग 1 साल पूरा हो गया है।

श्याम और प्रहलाद ने बताया कि अब तक उन्हें सरकार से कोई सहायता तो दूर, सुरक्षा को हथियार लाइसेंस तक नहीं मिला है।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और राजसमंद सांसद दीया कुमारी भी ये मुद्दा उठा चुके हैं कि जिन जाबांजों ने अपनी जान पर खेलकर कन्हैयालाल के हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की मदद की, उन्हें भुला दिया गया है।

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