पृष्ठभूमि: तो क्या सिर्फ अफीम ही है मणिपुर हिंसा के पीछे? मूल है भूमि अधिकार

अफीम, जमीन और आरक्षण की लड़ाई… आखिर मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय आमने-सामने क्यों हैं?
मणिपुर में मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST)  का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई रैली के दौरान भड़की हिंसा अब तक नहीं थमी है. महीने भर से मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. ऐसे में जानते हैं कि अफीम, जमीन और आरक्षण की लड़ाई कैसे दो समुदायों के बीच दुश्मनी की वजह बन गई?

मणिपुर में तीन मई से हिंसा हो रही है.

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. तीन मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में अब तक 80 लोग मारे जा चुके हैं.

मणिपुर में ये हिंसा नगा-कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हो रही है. हिंसा रोकने और कानून व्यवस्था बनाए रखने को राज्य में सेना और असम राइफल्स के भी 10 हजार से ज्यादा जवान तैनात हैं.
ये सारा बवाल तीन मई को तब शुरू हुआ, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला. इसी रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय के बीच झड़प हो गई, जो बाद में हिंसा में बदल गई. ये रैली मैतेई समुदाय की जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई थी.

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हिंसा के पीछे मैतेई समुदाय की ओर से की जा रही आरक्षण की मांग और नगा-कुकी की तरफ से इसके विरोध को तो माना ही जा रहा है. साथ ही साथ ये लड़ाई ड्रग्स और जमीन से भी जुड़ी है.

ड्रग्स की लड़ाई…?

– मणिपुर में अफीम की अवैध खेती जबरदस्त तरीके से होती है. मणिपुर में लगभग साढ़े 15 हजार एकड़ की जमीन पर अफीम की खेती होती है.

– इसमें से 13 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर कुकी-चिन समुदाय अफीम की खेती करता है. करीब 2300 एकड़ जमीन पर नगा खेती करते हैं. बाकी 35 एकड़ जमीन पर दूसरे समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं.

– सरकार ने 2017 में इसके खिलाफ क्रैकडाउन शुरू किया था. इसी महीने कुछ आंकड़े सामने आए थे. इसमें  था कि 2017 से 2023 के बीच ड्रग्स के सिलसिले में किस समुदाय के कितने लोगों को गिरफ्तार हुए हैं.

– सामने आया कि राज्य में एनडीपीएस एक्ट में ढाई हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किये गये हैं. इनमें 873 लोग कुकी-चिन समुदाय के थे. एक हजार से ज्यादा मुस्लिम और 381 मैतेई समुदाय से जुड़े थे. 181 लोग दूसरे समुदायों के थे.

– मणिपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अंगोम दिलीप कुमार सिंह के अनुसार कुकी समुदाय लंबे समय से अफीम की खेती करता आ रहा है, जिससे मणिपुर में बड़ा ड्रग कल्चर पनपा है. सरकार ने उसे नष्ट किया तो समुदाय में आक्रोश पैदा हो गया और हिंसा शुरू हो गई.

जमीन की लड़ाई कैसे?

– पूरा मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसका 2,238 वर्ग किलोमीटर यानी 10.02% इलाका ही घाटी है. जबकि 20,089 वर्ग किलोमीटर यानी 89% से ज्यादा इलाका पहाड़ी है.

– यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय हैं. पहला- मैतेई, दूसरा- नागा और तीसरा- कुकी. इनमें नागा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं. जबकि, मैतेई गैर-आदिवासी हैं.

– मणिपुर में अभी की हिंसा ‘कब्जे का युद्ध’ भी माना जा रहा है. ऐसे समझें, मैतेई आबादी यहां 53 प्रतिशत से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं. वहीं, पहाड़ क्षेत्र में एकाधिकार किये नगा और कुकी आबादी लगभग 40 प्रतिशत है.

– मणिपुर के कानून में वनवासी जनजाति को विशेषाधिकार हैं. इसमें, पहाड़ों में सिर्फ नगा और कुकी ही बस सकते हैं. मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में नहीं है, इसलिए वो पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी चाहें तो घाटी में बस सकते हैं.

– अब नगा-कुकी समुदाय चिंतित है कि मैतेई को भी जनजाति श्रेणी मिलती है तो उन्हें पहाड़ी इलाकों में रहने- बसने की कानूनी अनुमति मिलेगी.उन्हें अपनी जमीनें छिनने का डर है.

आरक्षण पर क्या है विवाद और संघर्ष?

– मैतेई यहां सबसे बड़ा समुदाय है. राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी मैतेई हैं.

– मैतेई समुदाय का तर्क है कि इतनी बड़ी जनसंख्या के बावजूद वे सिर्फ 10 प्रतिशत क्षेत्र में सीमित रह गये हैं. जबकि, 40 प्रतिशत जनजाति समुदाय का कब्जा 90 प्रतिशत क्षेत्र पर है.

– मैतेई समुदाय से मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसमें अनुसूचित जनजाति श्रेणी का विषय उठा था. याचिका मे तर्क था कि 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बना था. उससे पहले तक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था. लेकिन बाद में उसे एसटी सूची से बाहर कर दिया गया.

– इसी पर 20 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वो चार हफ्तों में मैतेई समुदाय की ओर से अनुजा श्रेणी की मांग पर विचार करे.

– अतिक्रमण हटाओ अभियान और मैतेई समुदाय की ओर से अनुजा का दर्जा दिए जाने की मांग से पहले ही तनाव था. हाई कोर्ट के आदेश से आदिवासी समुदाय और ज्यादा भड़क गया.

– मैतेई की जनजाति के दर्जे की मांग के विरोध में 3 मई को रैली निकली. ‘आदिवासी एकता मार्च’ रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) की ओर से निकाली गई थी. इसमें कुकी और नगा  शामिल थे.

– वनवासी संगठन के इस रैली की घोषणा से ही आशंका थी कि इससे तनाव बढ़ेगा. और हुआ भी ऐसा ही. रैली में वनवासी और मैतेई समुदाय भिड़ गए. पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. हालात इतने बेकाबू हुए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स को भी उतारना पड़ गया.

 

मैतेई और कुकी समुदाय के क्या हैं तर्क?

– मैतेई समुदायः एसटी श्रेणी की मांग करने वाले संगठन का कहना है कि ये सिर्फ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का विषय नहीं है, बल्कि ये पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान का विषय है. संगठन के अनुसार मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों के अवैध प्रवासियों से खतरा है. ऑल मैतेई काउंसिल के सदस्य चांद मीतेई पोशांगबाम का दावा है कि कुकी म्यांमार की सीमा पार कर यहां आए हैं और मणिपुर के जंगल कब्जा रहे हैं. उन्हें हटाने को राज्य सरकार अभियान चला रही है.

कुकी समुदायः ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहिसियाल के अनुसार, ‘ विरोध का कारण ये था कि मैतेई अनुसूचित जनजाति श्रेणी चाहते थे. उन्हें एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिला तो वो हमारी सारी जमीन हथिया लेंगे.’ कुकी समुदाय को संरक्षण की जरूरत थी क्योंकि वो बहुत गरीब थे, वे अशिक्षित थे और वो सिर्फ झूम की खेती पर निर्भर थे.

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