बहराइच:10मौतें,40 अस्पताल;अपने बच्चों की हत्या का बदला ले रहे भेड़िए?

अपने बच्चों की जान लिए जाने का बदला तो नहीं ले रहे भेड़िये
ड्रोन, पिंजड़े, शिकार…फिर भी ऑपरेशन भेड़िया विफल, आखिर कैसे खत्म होगा आतंक

बहराइच में इन दिनों भेड़ियों ने आंतक मचा रखा है. वन विभाग की तरफ से भेड़ियों को पकड़ने को ड्रोन, पिंजडे और जाल इस्तेमाल किये जा रहे है. लेकिन अभी तक भेड़िये पकड़े नहीं जा सके हैं. जिसके चलते क्षेत्रीय जन भयभीत हैं.

बहराइच,03 सितंबर 2024,बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र के लोग मार्च से भेड़ियों के आतंक का सामना कर रहे हैं. बरसात के मौसम में हमले बढ़े हैं और जुलाई माह से लेकर सोमवार रात तक इन हमलों से नौ बच्चों सहित 10 लोगों की मौत हो चुकी है. महिलाओं, बच्चों और वृद्धों सहित करीब 40 लोग अस्पतालों में हैं.

उत्तर प्रदेश के बहराइच में नरभक्षी भेड़ियों के बढ़ते हमलों के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि भेड़िये बदला लेने वाले जानवर होते हैं और संभवत: पूर्व में इंसानों के उनके बच्चों को नुकसान पहुंचाने के प्रतिशोध के रूप में ये हमले किए जा रहे हैं.

बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र के लोग मार्च से भेड़ियों के आतंक का सामना कर रहे हैं. बरसात के मौसम में हमले बढ़े हैं।

भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी और बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वनाधिकारी रह चुके ज्ञान प्रकाश सिंह   अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि भेड़ियों में बदला लेने की प्रवृत्ति होती है और पूर्व में इंसानों ने उनके बच्चों को किसी ने किसी तरह हानि पहुंचाई होगी, जिसके बदले में ये हमले हो रहे हैं.

सेवानिवृत्ति के बाद ‘वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ के सलाहकार सिंह ने पूर्व के एक अनुभव का जिक्र करते हुए बताया, “20-25 साल पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में सई नदी के कछार में भेड़ियों के हमलों में 50 से अधिक इंसानी बच्चों की मौत हुई थी. पड़ताल करने पर पता चला था कि कुछ बच्चों ने भेड़ियों की एक मांद में घुसकर उनके दो बच्चे मार डाले थे. भेड़िया बदला लेता है और इसीलिए उनके हमले में इंसानों के 50 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई. बहराइच में भी कुछ ऐसा ही मामला लगता है.”

ज्ञान प्रकाश सिंह ने कहा कि जौनपुर और प्रतापगढ़ में भेड़ियों के हमले की गहराई से पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि अपने बच्चे की मौत के बाद भेड़िये काफी उग्र हो गए थे. वन विभाग के अभियान में कुछ भेड़िये पकड़े भी गए थे, लेकिन नरभक्षी जोड़ा बचता रहा और बदला लेने में सफल भी होता गया. हालांकि, अंतत: नरभक्षी भेड़िये चिह्नित हुए और दोनों को गोली मार दी गई, तब भेड़ियों के हमले भी बंद हो गये.”

ज्ञान प्रकाश सिंह के अनुसार, बहराइच की महसी तहसील के गांवों में हो रहे हमलों का पैटर्न भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है. उन्होंने कहा, “इसी साल जनवरी-फरवरी में बहराइच में भेड़ियों के दो बच्चे किसी ट्रैक्टर से कुचलकर मर गए थे. तब उग्र भेड़ियों ने हमले शुरू किए तो हमलावर भेड़ियों को पकड़कर 40-50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया. संभवतः यहीं थोड़ी गलती हुई.”

सिंह ने बताया, “चकिया जंगल में भेड़ियों का प्राकृतिक वास नहीं है. ज्यादा संभावना यही है कि यही भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी किनारे अपनी मांद के पास लौट आए हों और बदला लेने को हमले कर रहे हों. अभी तक जो चार भेड़िये पकड़े गए हैं, वे सभी नरभक्षी हमलावर हैं, इसकी उम्मीद बहुत कम है. हो सकता है कि एक नरभक्षी पकड़ा गया हो, मगर दूसरा बच गया हो. शायद इसीलिए पिछले दिनों तीन-चार हमले हुए हैं.”

बहराइच के प्रभागीय वन अधिकारी अजीत प्रताप सिंह का भी कहना है, “शेर और तेंदुओं में बदले की प्रवृत्ति नहीं होती, लेकिन भेड़ियों में होती है. अगर भेड़ियों की मांद से कोई छेड़छाड़ होती है, उन्हें पकड़ने या मारने की कोशिश की जाती है या फिर उनके बच्चों को किसी तरह का नुकसान पहुंचता है, तो वे इंसानों के शिकार में बदला लेते हैं.”

देवीपाटन के मंडलायुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने कहा कि अगर नरभक्षी भेड़िये पकड़ में नहीं आते हैं और उनके हमले जारी रहते हैं, तो अंतिम विकल्प में उन्हें गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में भेड़िये पकड़ने को थर्मल ड्रोन और थर्मोसेंसर कैमरे लगाए गए हैं. जिम्मेदार मंत्री, विधायक और वरिष्ठ अधिकारी या तो क्षेत्र में डटे हुए हैं या मुख्यालय से स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं.
नौ बच्चों समेत 10 लोगों को दे चुके मौत

उत्तर प्रदेश के बहराइच में इन दिनों भेड़ियों के आतंक से बहराइच के 35 गांव भयभीत हैं. अब तक आदमखोर भेड़ियों के हमले में 9 बच्चों सहित 10 लोगों की मौत हो चुकी है. कई लोग हमले में घायल भी हैं. भेड़िये पकड़ने को 5 वन प्रभागों बहराइच, कतर्नियाघाट वाइल्ड लाइफ, श्रावस्ती, गोंडा और बाराबंकी की लगभग 25 टीमें लगी हैं.

भेड़िये पकड़ने को मुख्यमंत्री योगी के स्तर से भी वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश हैं. तब से वनविभागीय अधिकारी मैदान में डटे हुए हैं. लेकिन भेड़ियों की समस्या का अभी तक कोई समाधान नहीं निकल  सका है.

पिंजरे में रखी जा रही हैं बकरियां

वन विभाग की तरफ से भेड़िये पकड़ने को  पिंजरे प्रयोग किया जा रहे हैं. ड्रोन से उनकी हर गतिविधि पर नजर रखने की कोशिश हो रही है और पिंजरे में बकरी रखी जा रही हैं, ताकि लालच में भेडिया अंदर आकर फंस जाए. इसके अलावा भेड़िये पकड़ने को  जाल का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.

लाठी लेकर घूम रहे हैं लोग

नरभक्षी भेड़िये के आतंक से ग्रामीण भयभीत हैं. दिन में भी अ खेतों में जाते हैं तो लाठी-डंडे लेकर साथ ले चल रहे हैं. ताकि भेड़िये हमला करे तो उससे बच सके.

बच्चे ही हो रहे हैं शिकार

भेड़िये 14 वर्ष तक के बच्चों को ही अपना शिकार बना रहे है. ग्रामीणों ने बताया कि भेड़िया बच्चों को पकड़ गर्दन मुंह से दबा देता है. जिससे बच्चों की आवाज नहीं निकलती और वो बच्चों को जंगलों की तरफ लेकर भाग जाते हैं।

Government Estimates May Be Wrong, There May Be More Than 100 Ferocious Wolves In The River Bed Here

गलत हो सकते हैं सरकारी अनुमान, यहां नदी के कछार में हो सकते हैं 100 से भी ज्यादा खूंखार भेड़िए
यूपी के बहराइच जिले में भेड़ियों का आतंक है। अब तक अकेले हरदी थाना क्षेत्र में भेड़ियों ने नौ जानें ले ली हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां नदी के कछारों में सौ से ज्यादा भेड़िए हो सकते हैं।

जिले के हरदी थाना क्षेत्र में भेड़ियों ने अब तक नौ जानें लेने व 31 लोगों को घायल किया है। विलुप्ति की कगार पर पहुंचे भेड़ियों को नदी की कछार बेहद पसंद है। ग्रामीणों का दावा है कि वे कई सालों से यह यहां मांद बनाकर रह रहे हैं। नदी की कछार में इनकी 50 से अधिक मांदें होने व संख्या 100 से अधिक होने का दावा है। इससे ग्रामीणों में दहशत है, लेकिन विभागीय जिम्मेदार ड्रोन में कैद दो भेड़ियों को ही जिम्मेदार बता रहे हैं।
एक मांद में दो से 20 तक की संख्या में रहते हैं भेड़िये
बहराइच वन प्रभाग में सेवाएं देने व जिले के कतनिर्याघाट वन्यजीव प्रभाग से सेवानिवृत डीएफओ ज्ञान प्रकाश सिंह ने बताया कि भेड़ियों को जंगल के बजाए कछार व गन्ने का इलाका ज्यादा रास आता है। सरयू की कछार में 50 से अधिक मांदें हो सकती हैं। एक मांद में दो से 20 की संख्या में भेड़िये रहते हैं। इनके बड़े पैर व 50 से 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार इन्हें सबसे ज्यादा घातक बनाती है।

इलाकों को तबाह करने की रखते हैं क्षमता, मुखिया महत्वपूर्ण
पूर्व डीएफओ ज्ञान प्रकाश सिंह ने बताया कि झुंड में 20 से ज्यादा भेड़िये हो सकते हैं। इनकी एकता, अनुशासन, रेकी करने की क्षमता व मुखिया का संरक्षण इन्हें खतरनाक शिकारी बनाता है। महसी क्षेत्र में रहने वाले भेड़ियों में से कोई एक समूह हमला कर रहा है। ऐसे में ट्रैप कैमरे से समूह के साथ उसके मुखिया का चिह्नांकन भी जरुरी है, क्योंकी समूह के सभी भेड़िये मुखिया के निर्देशन में सारे कार्य करते हैं। उन्होंने बताया कि एक भेड़िया 18 से 80 किलो वजन तक हो सकता है।

ग्रामीण बोले- 100 से अधिक भेड़िये, पहले कभी नहीं किया हमला

भेड़ियो को लेकर भगवानपुर निवासी राजितराम मिश्रा ने बताया कि क्षेत्र में 100 से अधिक भेड़िये रहते हैं। उनके पिता जी के समय से गन्ने के खेतों के आसपास सैकड़ों बार दिखे हैं, लेकिन कभी हमला नहीं किया। पचदेवरी निवासी कृष्णकांत शुक्ला ने बताया कि पहले ग्रामीणों को देखकर खुद भेड़िये भाग जाते थे। इस बार पता नहीं क्यों हमले कर रहे हैं। सिकंदरपुर निवासी उमेश मिश्रा ने बताया कि खेतोंं में टहलते-घूमते अक्सर भेड़िये दिखते हैं, लेकिन अब हमले कर रहे हैं। मांझा निवासी शुभम शुक्ला ने बताया कि यहां सैकड़ों भेड़िये रहे, लेकिन हमले सिर्फ कुछ कर रहें हैं। ऐसा क्या है इसकी जांच होनी चाहिए।

पकड़े जा रहे भेड़िये, लेकिन हमले नहीं रुके
हमलावर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग की 25, राजस्व की 32 टीमों के साथ-साथ 200 पीएसी जवान तैनात हैं। वहीं क्षेत्रीय पुलिस कर्मियों के साथ-साथ रिजर्व पुलिस लाइन की टीमें भी पहुंच रही हैं। वहीं मुख्य वन संरक्षक लखनऊ रेनु सिंह कैंप कर रही हैं और मंडलायुक्त समेत आला अधिकारियों का आना-जाना लगा है, लेकिन इन सबके बीच हमले नहीं थम रहे हैं। इससे ग्रामीण वन विभाग पर बिना झुंड व झुंड के मुखिया को ट्रैक किए अंधेरे में तीर चलाने का भी आरोप लगा रहे हैं।

वायरल वीडियो में दिख रहे कई भेड़िये, वन विभाग दो पर अटका
वन विभाग के अधिकारियों समेत वन मंत्री भी चार भेड़ियों के पकड़े जाने के बाद दो के बचने व उन पर नजर रखने की बात कह चुके हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर अलग-अलग वायरल हुए मोबाइल व ड्रोन के वीडियो में इनकी संख्या दो से अधिक लग रही है।

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आदमखोर भेड़िया 20 किलोमीटर दूर से कैसे सूंघ लेता है शिकार, अल्फा वुल्फ एक वार में उखाड़ लेता है 9 किलो मांस
भेड़िया आया…भेड़िया आया…आपने बचपन से ये कहानी तो जरूर सुनी होगी। मगर, आजकल यही भेड़िया आदमखोर बन चुका है। यूपी के बहराइच जिले में अब तक 10 लोगों को अपना शिकार बना चुका है। इनको पकड़ने के लिए यूपी सरकार ने ऑपरेशन भेड़िया भी चलाया हुआ है, मगर ये भेड़िए हर रोज किसी न किसी इंसान को अपना शिकार बना रहे हैं। आखिर भेड़िए आदमखोर क्यों बनते जा रहे हैं? वो जंगल या पहाड़ छोड़कर मैदानी इलाकों की तरफ क्यों आ रहे हैं। ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब एक्सपर्ट के जरिए जानते हैं।​

भेड़िया शिकार की तलाश में हर रोज 25 किलोमीटर तक चलता है
जबड़े इतने शक्तिशाली कि शिकार की हड्डियों का बना देते हैं चूरा
स्वभाव इतना अजीब कि कभी इन्हें पाला नहीं जा सकता है

उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़ियों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। सोमवार रात को भेड़िए ने 5 साल की बच्ची पर हमला कर उसे घायल कर दिया। लोगों का शोर सुनकर भेड़िया बच्ची को छोड़कर भाग गया। बच्ची की जान तो बच गई, मगर उसे बुरी हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। दहशत के माहौल में रहने को मजबूर बहराइच में भेड़ियों ने अब तक 9 बच्चों समेत 10 लोगों को मार डाला। आदमखोर बन चुके इन भेड़ियों को पकड़ने के लिए 5 वन प्रभागों बहराइच, कतर्नियाघाट वाइल्ड लाइफ, श्रावस्ती, गोंडा और बाराबंकी की तकरीबन 25 टीमें लगी हुई हैं। स्टोरी में एक्सपर्ट्स से जानते हैं कि भेड़िए कौन होते हैं। इनका नेचर क्या होता है और कब ये आदमखोर बन जाते हैं।

शिकार के लिए हर रोज 20-25 किमी तक चलते हैं भेड़िए
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार, भेड़िए शिकार के मामले में बेहद खूंखार होते हैं और अजीब भी। वो अपनी भूख मिटाने के लिए एक-एक दिन में 20 से 25 किलोमीटर तक चल लेते हैं। भेड़िए 20 किलोमीटर दूर से ही अपने शिकार की गंध पहचान लेते हैं।

जबड़े इतने खतरनाक कि एक बार 9 किलो मांस चबा लें
Natural Habitat Adventures के अनुसार, भेड़िए के जबड़े इतने खतरनाक होते हैं कि ये एक बार में शिकार पर हमला करके उसका 9 किलो मांस चबा सकते हैं। उनके कैनाइन दांत इतने खतरनाक होते हैं कि वो शिकार के मांस को फाड़ते हुए उसकी हड्डियां का चूरा बना डालते हैं और उसके बोन मैरो को पल भर में चट कर डालते हैं
भेड़िया इतना खतरनाक कि उसे पाला नहीं जा सकता
दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और वन्य जीव पर्यावरण पर काम करने वाली डॉक्टर सना रहमान के अनुसार, भेड़िया वैसे तो कुत्ते की दिखने वाला जानवर है, मगर साइंटिफिक रूप से यह कैनिडाई परिवार का सदस्य है। एक जमाने में भेड़िए पूरे यूरेशिया, उत्तरी अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में पाए जाते थे। इंसान की आबादी में बढ़ोतरी की वजह से इनका क्षेत्र सिमटता चला गया। कहा जाता है कि जिन भेड़ियों को पालतू बना लिया गया, उन्हीं से कुत्तों की नस्ल का विकास हुआ। आमतौर पर भेड़िए का शिकारी स्वभाव ऐसा होता है कि उसे पाला नहीं जा सकता है। फिलहाल इनकी 30 उप प्रजातियां हैं।

शेर को छोड़कर शिकार के मामले में सबसे आगे भेड़िया
शिकार के मामले में ये बस इंसान और शेर से ही पीछे हैं। भेड़ियों का शिकार करने का तरीका बेहद सामाजिक होता है। यह अकेले शिकार नहीं करते, बल्कि झुंड बनाकर हिरण-गाय जैसे जानवरों का शिकार करते हैं। भेड़िए की स्पीड वैसे तो 70 किलोमीटर प्रति घंटे तक है। 16 फीट तक छलांग लगा सकता है और 20 मिनट तक तेजी से पीछा कर सकता है। भेड़िए का पैर इतना बड़ा और लचीला होता है कि वह हर तरह के ऊबड़-खाबड़ इलाकों में भी आसानी से घूम-फिर सकता है।
भेड़िए के बच्चे को कोई उठा ले जाए तो पूरा इलाका तबाह
डॉक्टर सना रहमान बताती हैं कि भेड़ियों के बच्चों को कोई उठा लाए तो वह पूरे इलाका ही नष्ट कर देते हैं। ये शिकार में वृद्ध भेड़िया साथ नहीं ले जाते हैं। भूरे या ग्रे भेड़ियों का दुनिया में सबसे ज्यादा राज चलता है जो नॉर्थ पोल के बर्फीले इलाकों, जंगलों, रेगिस्तान और घास के मैदानों में मिलते हैं। भेड़ियों का रंग ज्यादातर काले, सफेद और भूरे रंग का होता हैं। आमतौर पर कोई भेड़िया 13 साल तक जीवित रह सकता है और 10 साल तक बच्चे पैदा करने में सक्षम होता है।

अपने सदस्यों को शिकार के बारे में बताने के लिए करते हैं शोर
डॉक्टर सना रहमान बताती हैं कि भेड़िए 20 किलोमीटर दूर से अपने शिकार की गंध सूंघ लेते हैं। ये 10 किलोमीटर दूर बैठे अपने साथियों को शिकार के बारे में बताने को तेज-तेज आवाजें निकालते हैं। जो बताता है कि भोज तैयार है, आ जाओ। भेड़िए की खास बात यह होती है कि वह अपनी चार उंगलियों पर ही तेजी से भाग सकता है। वह पांवों की गद्दियों का इस्तेमाल नहीं करता है।

रोमियो-जूलियट भी होते हैं भेड़िए
भेड़ियों का स्वभाव भले ही हिंसक हो, मगर उनका एक पहलू ये भी है कि वो अपने जीवनसाथी के प्रति जिंदगीभर वफादार होते हैं। यहां तक कि इस मामले में उन्हें रोमियो-जूलियट भी कहा जाता है। वो जितना हिंसक होते हैं, उतना ही वो जुनूनी हद तक प्यार भी करते ते हैं। इसीलिए नर भेड़िए को अल्फा वुल्फ भी कहा जाता है।

मुंह में शिकार को दबाकर भाग जाते हैं भेड़िए
डॉक्टर सना रहमान के अनुसार, भेड़िए को भूख लगती है तो वह अपने शिकार पर दबे पांव हमला करते हैं और मुंह में दबाकर भाग जाते हैं। वो इतने फुर्तीले होते हैं कि कुछ सेकेंड में किसी खरगोश या बकरी को अपना निवाला बना लेते हैं।

आदमखोर कब बनते हैं भेड़िए, क्यों हो जाते हैं खूंखार
डॉक्टर सना रहमान बताती हैं कि कोई भी जानवर आदमखोर तब बनता है, जब उनका इलाका खत्म होने लगता है। वो जंगलों और पहाड़ों से होकर मैदानों में चले आते हैं, जहां उन्हें आसानी से भेड़, बकरियां या गायें मिल जाती हैं। अपनी भूख मिटाने वे इंसान के बच्चे या जानवर के शिकार में अंतर नहीं करते हैं। वह अपने शिकार को शिकार करने वाली जगह पर नहीं खाता है। इसके लिए वह शिकार को लेकर 1-2 किलोमीटर दूर तक ले जाता है, जहां वह अपने शिकार को इत्मीनान से खाता है। ऐसे में वह इंसान के बच्चों को ज्यादातर निशाना बनाते हैं, जो प्रतिरोध नहीं कर पाते हैं। रात में खुले में सो रहे बच्चों को मुंह में दबाकर भाग जाते हैं।

झुंड में होती है शिकार करने की आदत
भेड़िए झुंड में शिकार करते हैं। इस झुंड में भेड़िए 2 से लेकर 8 तक हो सकते है। यहां तक कि उनका झुंड 40 भेड़ियों का भी हो सकता है। वो एक साथ शिकार करते हैं। वे खरगोश और युवा बकरियों जैसे छोटे जानवरों को निशाना बनाते हैं। उन्हें गर्दन से पकड़ लेते हैं और लंबी दूरी तय करने के बाद ही उन्हें एक निश्चित जगह पर खाते हैं। वे बाहरी इलाकों और जंगलों की गुफाओं में रहना पसंद करते हैं। जहां उन्होंने पहले शिकार का शिकार किया था, वहां से उनके अगले शिकार की दूरी लगभग 20 से 25 किलोमीटर हो सकती है। हर स्थान पर भेड़िए का शिकार भी अलग-अलग हो सकता है।

मानसून में मैदानी इलाकों में ज्यादा जाते हैं भेड़िए
सना रहमान बताती हैं कि मानसून में भेड़िए मैदानी इलाकों में चले जाते हैं, क्योंकि जंगलों और गुफाओं वाले इलाकों में पानी भर जाता है। जो कुछ भी आसानी से खाने को पा सकते हैं, उसका भेड़िये शिकार कर लेते हैं। उनके पास अपने अलग शिकार पैटर्न भी हैं।

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