जयंती: भेदियों के चलते हारे राघोजी भांगरे ,दो बार हुई फांसी
राघोजी भांगरे (8 नवंबर 1805-2 मई 1848) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। इनका जन्म एक क्रांतिकारी कोली परिवार में हुआ था। राघोजी भांगरे के पिताजी रामजी भांगरे जो मराठा साम्राज्य में सुबेदार थे। उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे और उनको अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह पर सेल्यूलर जेल में काले पानी की सजा सुनाई गई थी। साथ ही राघोजी भांगरे के दादाजी के सगे भाई वालोजी भांगरे भी क्रांतिकारी थे जिन्होने पेशवा के खिलाफ विद्रोह किया तो उन्हें तोप से उड़ा दिया गया ।इतना ही नही,राघोजी भांगरे के भाई वापूजी भांगरे ने भी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे और बलिदान दिया था ।
नाईक राघोजी राव भांगरे
नाईक राघोजी राव भांगरे की प्रतिमा,अहमदनगर,महाराष्ट्र
विकल्पीय नाम:वंडकरी
जन्म तिथि:8 नवंबर 1805
जन्म – स्थान:देवगांव, अकोले, मराठा साम्राज्य
मृत्यु – तिथि:2 मई 1848
बलिदान स्थल:अहमदनगर, ब्रिटिश भारत
आंदोलन:भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन
धर्म:हिन्दू कोली
प्रभावित किया:ज्योतिराव गोविंदराव फुले
1818 में जब मराठा साम्राज्य ब्रिटिश सरकार द्वारा हराया जा चुका था और ब्रिटिश राज स्थापित किया जा रहा था तो ब्रिटिश सरकार को महाराष्ट्र में जगह-जगह विद्रोहों का सामना करना पड़ा जिनमे से एक तरफ विद्रोह राघोजी भांगरे के पिताजी रामजी भांगरे का दहकाया हुआ था रामजी भांगरे की मृत्यु के पश्चात स्वतंत्रता की चिनगारी को राघोजी भांगरे ने व्यापक रुप दे दिया।
अंग्रेजों ने सह्याद्री के लोगों को गुलाम बना लिया। लोगों ने साहूकारों से धन उधार लेना शुरू कर दिया। मुद्रा के बदले में लोगों से भूमि हथियाना शुरू कर दिया। इसलिए राघोजी भांगरे ने ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। इसके बाद राघोजी भांगरे ने ब्रिटिश खजाना कई बार लोगों को बांट दिया। राघोजी भांगरे ने ब्रिटिश शासन से अपना क्षेत्र मुक्त घोषित कर दिया।
1838 में राघोजी भांगरे ने रतनगढ़ किले और सुनागढ़ किले को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने विद्रोहियों के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ परंतु कुछ समय पश्चात महाराष्ट्र के दो बड़े जातीय समुदाय अंग्रेजों के साथ हो गए और सारी जानकारी ब्रिटिश सरकार को दे दी। इसके बाद भांगरे ने अपने सभी साथी कई जिलों में फ़ैला दिए लेकिन ब्रिटिश सरकार ने सभी सड़कें बंद करवा दीं जिसके चलते राघोजी भांगरे के 80 साथी पकड़े गए जिसमे राघोजी भांगरे का भाई वापूजी भांगरे भी था। ब्रिटिश सरकार ने राघोजी भांगरे के सर पर जिंदा या मुर्दा 5000 रूपये का इनाम घोषित कर दिया ।
1843 में दोनों अवसरवादी समुदायों के कहने पर ब्रिटिश सरकार ने राघोजी भांगरे की मां को पूछताछ के दौरान प्रताड़ित किया जिसके बदले मे राघोजी भांगरे ने इन समुदायों के नाक और कान काट दिए जिसके चलते सभी गांव छोड़कर भाग गए और राघोजी भांगरे को डकैत घोषित कर दिया गया।
राघोजी भांगरे के पास अंग्रेजों से लडने लेने के लिए गुप्त रूप से पैसे की मदद आने लगी। 1844 और 1845 में राघोजी भांगरे के नेतृत्व में विद्रोह ने व्यापक रुप ले लिया जो शिगा तक फैल गया था। ब्रिटिश सरकार ने बड़ी ही चतुराई से राघोजी भांगरे और उसके साथियों के ठिकाने का पता लगाकर हमला बोल दिया। जुन्नर में राघोजी भांगरे और ब्रिटिश सेना के बीच लड़ाई हुई जिसमें हथियार कम और अंग्रेजों की तुलना में पुराने होने से क्रांतिकारी सेना हार गई लेकिन सरकार भांगरे को पकड़ने में असफल रही। राघोजी भांगरे गोशावी चले गयै जहां से उन्होंने क्रांतिकारी लोगों को एक किया और पुरंदर में फिर से विद्रोह की चिंगारी जला दी। लेखन पुरंदर मे लैफ्टेनैंट जैल की अगुवाई में ब्रिटिश रेजीमेंट से मुठभेड़ के दौरान भांगरे घायल हो गया और बंदी बना लिया गया।
ज्योतिराव गोविंदराव फुले भांगरे से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए उनकी लिखी गई किताबो में यह देखा जा सकता है।
दो बार फांसी
राघोजी भांगरे की फांसी 13 अप्रेल 1848 को तय की गई थी लेकिन उस दिन फांसी देते समय रस्सी टूट गई थी । इस कारण भांगरे को दो मई 1848 को दोबारा अहमदनगर की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई।
हर वर्ष महाराष्ट्र सरकार दो मई को राघोजी का बलिदान दिवस मनाती है । २०१४ में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राघोजी भांगरे के नाम एवं सम्मान में सर्किट हाउस का निर्माण किया।