जयंती: लोकसभा में पहला अविश्वास प्रस्ताव लाये थे आचार्य कृपलानी

*जय मातृभूमि*

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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🇮🇳🇮🇳

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*जीवटराम भगवानदास कृपलानी(आचार्य कृपलानी)*
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आज हम भारतीय आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले एक ऐसे महान व्यक्तित्व का स्मरण करना चाहते हैं, जिन्होनें न केवल आजादी से पूर्व मुखर रूप से स्वाधीनता के संघर्ष में भाग लिया वरन आजादी उपरांत कांग्रेस पोषित एवं कोंग्रेस विरोधी दोनों ही खेमों में क्रमशःअपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया क्योंकि एक ओर यह अनन्य गांधीवादी थे तो दूसरी ओर नेहरू जी के साथ सदा ही एक प्रतिद्वंद्वी की भूमिका में रहे, जो अपनी विद्वत्ता के कारण आचार्य कहलाए एवं वयोवृद्ध अवस्था प्राप्त कर इन्होंने अंतिम सांस ली। *ऐसे ही महान स्वतंत्रता सैनानी एवम् राजनीतिज्ञ थे आचार्य जीवटराम भगवानदास कृपलानी*
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*आचार्य जे. बी. कृपालानी का जन्म हैदराबाद(सिन्ध) में 11 नवंबर, 1888 को हुआ*।उनके पिताजी एक राजस्व और न्यायिक अधिकारी थे। प्रारम्भिक शिक्षा सिंध से पूरी करने के बाद उन्होने मुम्बई के विल्सन कॉलेज में प्रवेश लिया। उसके बाद वह कराची के डी जे सिंध कॉलेज चले गए। उसके बाद पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से सन् 1908 में स्नातक हुए। आगे उन्होंने इतिहास और अर्थशास्त्र में एमए उतीर्ण किया। पढ़ाई पूरी के बाद कृपलानी जी ने सन् 1912 से 1917 तक बिहार में “ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज मुजफ्फरपुर”में अंग्रेजी और इतिहास के प्राध्यापक के रूप में अध्यापन किया। कुछ समय के लिए उन्होनें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया।
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*चंपारण सत्याग्रह के दौरान वे महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए,यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई* एवं उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की सदस्यता ली। *सन् 1920 से 1927 तक महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ के वे प्राधानाचार्य रहे। तभी से उन्हें आचार्य कृपलानी कहा जाता है।* गांधी जी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने उनके साथ लगभग सभी आन्दोलनों में हिस्सा लिया और अनेक बार जेल गये।
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*1936 में उनका विवाह सुचेता कृपलानी के साथ हुआ।* जिनका नाम उस दौर की कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण नेत्रियों में शुमार है।
आचार्य कृपलानी ने 1934 से 1945 तक कांग्रेस के महासचिव के रूप मे सेवा की तथा  *भारत के संविधान के निर्माण में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी।*
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*सन् 1946 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।नेहरू और पटेल से सम्बन्ध ठीक न होने के बावजूद आचार्य कृपलानी भारत की अजादी के समय 1947 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुने गए।*
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किन्तु जब 1950 में काग्रेस अध्यक्ष के लिए पुनः चुनाव हुए तो नेहरू ने आचार्य कृपलानी का समर्थन किया तो दूसरी ओर पुरुषोत्तम दास टण्डन थे जिनका समर्थन पटेल कर रहे थे। इसमें पुरुषोत्तम दास टण्डन विजयी हुए।अतः *1951में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया एवं अपने साथियों के सहयोग से किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनायी। यह दल आगे चलकर प्रजा समाजवादी पार्टी में विलीन हो गया।* उन्होंने ‘विजिल’ नाम से एक साप्ताहिक पत्र निकालना शुरू किया था।
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*वे सन 1952,1957,1963और1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लोकसभा चुनाव जीते। भारत-चीन युद्ध के ठीक बाद, अगस्त1963में आचार्य कृपलानी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाए जो लोकसभा में लाया गया पहला अविश्वास प्रस्ताव था।* कुछ दिनों बाद उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर स्वतंत्र नेता के रूप में कार्य किया।वे नेहरू की नीतियों और उनके प्रशासन की सदा आलोचना करते रहते थे। अपना बाद का जीवन उन्होने सामाजिक एवं पर्यावरण के हित के लिए लगाया।वे और विनोबा भावे, ‘गांधीवादी धड़े’ के नेता माने जाते थे। *विनोबा के साथ-साथ आचार्य कृपलानी भी 1970 के दशक के अन्त तक पर्यावरण एवं अन्य संरक्षणों में लगे रहे।*
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सन 1972-73 में आचार्य कृपलानी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी की बढ़ती हुई सत्तावादी नीति के विरुद्ध अनशन किया। कृपलानी और जयप्रकाश नारायण मानते थे कि इंदिरा गांधी का शासन निरंकुश हो गया है। जयप्राकाश नारायण और राममनोहर लोहिया सहित आचार्य कृपलानी ने पूरे देश की यात्रा की और लोगों से अहिंसक विरोध तथा नागरिक अवज्ञा करने का अनुरोध किया। जब आपातकाल लागू हुआ तो अस्सी वर्ष से अधिक वृद्ध कृपलानी *26जून1976 की रात में गिरफ्तार होने वाले कुछ पहले नेताओं में से थे।* बाद के दिनों में 1977 की गैर कॉंग्रेसी सरकार उन्हीं के सामने बनी।किन्तु राजनीति में उनकी सक्रियता निरंतर कम होती रही एवं अपने जीवन का अंतिम भाग उन्होनें पर्यावरण संरक्षण के नाम कर दिया।इसी दौर में उन्होनें अपनी आत्मकथा ‘माय टाइम्स’ भी लिखी जिसमें उन्होंने विभाजन के विषय में एवं नेहरू पटेल के साथ अपने मतभेदों का खुल कर जिक्र किया।
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*इस प्रकार इस बहुआयामी व्यक्तित्व ने 19मार्च1982 को 93 वर्ष की आयु में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में अंतिम सांस ली।*
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*मातृभूमि सेवा संस्था आचार्य जी के स्वतंत्रता प्राप्ति प्रयासों एवं सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए बहुमूल्य योगदानों के लिए उनकी 132वीं जयंती पर उनका शत शत वंदन करती है।*

*नोट:-* लेख में कोई त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।

✍️प्रशांत टेहल्यानी
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9351595785* 🇮🇳

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