496वीं जयंती: जीते-जी मुगलों के हाथों पड़ने से बचने को रानी दुर्गावती ने बीच युद्ध भूमि किया था आत्मघात

…………………………………………. चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है। 🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🌹🌹🙏 *रानी दुर्गावती * 🙏🌹🌹

✍️ राष्ट्रभक्त मित्रों, आज हम बात करेंगे शौर्य वीरता और साहस की प्रतीक रानी दुर्गावती की। महोबा कलिंजर के राजा कीरतराय के यहाँ एकमात्र सन्तान के रूप में कन्या का जन्म हुआ । दुर्गाष्टमी के दिन पैदा होने से कन्या का नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही दुर्गावती बचपन से ही बन्दूक, तलवार, घुड़सवारी में दक्ष होने के साथ ही उनके तेज सुंदरता और वीरता की प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई जिसे सुनकर गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम सिंह के वीर पुत्र दलपतराय ने विवाह का प्रस्ताव भेजा। दलपतराय की बहादुरी से प्रभावित दुर्गावती भी विवाह करना चाहती थी, लेकिन दोनों की जाति अलग होने से अड़चन आ रही थी, लेकिन कुछ समय बाद दोनों का विवाह हो गया। विवाह के एक वर्ष पश्चात नारायण नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही दलपतराय का निधन हो गया और अबोध बेटे के साथ साथ सपूर्ण राज्य की जिम्मेदारी रानी पर आ गई, जिसे उन्होंने बहुत दक्षता से निभाया।

📝 रानी दुर्गावती की बढ़ती लोकप्रियता से उनके राज्य को जीतने के लिए मालवा के मुस्लिम शासक बाजबहादुर ने कई बार आक्रमण किया लेकिन पराजित हुआ। मुगल सम्राट अकबर भी रानी की सुंदरता से प्रभावित था और उनके राज्य को अपने राज्य में मिलाकर हरम की शोभा बढाना चाहता था। उसके लिए दबाव बनाने को उसने रानी के वफादार वजीर आधारसिंह एवं प्रिय सफेद घोड़े सरमन को अपने पास भेजने को कहा जिसे रानी ने कठोरता पूर्वक ठुकरा दिया ।इससे क्रुद्ध होकर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खां को गढमण्डल पर चढ़ाई करने भेजा लेकिन रानी के युद्ध कौशल से कई बार पराजित हुआ। बार – बार के युद्ध से रानी की शक्ति क्षीण हो रही थी । कई सैनिक मारे गए थे। दूसरी ओर मुगल सेना प्रचंड शक्ति से हमला कर रही थी । रानी बुरी तरह घायल हो चुकी थी। जबलपुर के नरइ नाले के पास भयंकर युद्ध हुआ । रानी पुरुष वेष में सेना का संचालन करके दुर्गा बनी रक्तपान कर रही थी । घायल अवस्था में एक तीर रानी की बांह में लगा जिसे उन्होंने निकाल कर फेंक दिया । तभी एक तीर उनकी आँख में लगा । उसे भी निकालकर फेंक दिया लेकिन उसकी नोंक आँख में फंसी रह गई। इतने में एक तीर उनकी गर्दन में लगा जिससे रानी निढाल हो गई । जीते जी दुश्मन के हाथों लगने से स्वयं आत्मबलिदान करने के इरादे से अपने सेनापति से कहा कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन उड़ा दे लेकिन एक स्वामिभक्त के लिए ये असम्भव था । ऐसे में रानी अपनी कटार स्वयं अपने सीने में घोंपकर मातृवेदी पर बलिदान हो गई।

📝 अदम्य साहसी,शक्तिशाली,दुर्गा का अवतार रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर राष्ट्र एवं मातृभूमि सेवा संस्था की ओर से नतमस्तक होकर नमन करके श्रद्धासुमन समर्पण करता हूँ। रानी दुर्गावती के सम्मान में भारत सरकार ने 24 जून 1988 यानी बलिदान दिवस पर डाक टिकट जारी किया। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नामकरण रानी दुर्गावती के नाम पर किया गया। बुन्देलखण्ड में वीरांगना दुर्गावती का कीर्ति स्तम्भ, संग्रहालय, अभ्यारण, मदनमोहन किला एवं रानी ताल,चेरी ताल,आधार ताल एवं जबलपुर मंडला के बीच नरेला पहाड़ी पर रानी की समाधि जैसे कई दर्शनीय स्थल हैं।
पंद्रहवीं शताब्दी में शहंशाह अकबर के ध्वज तले मुग़ल साम्राज्य अपनी जड़ें पुरे भारत में फैला रहा था। बहुत से हिन्दू राजाओं ने उनके सामने घुटने टेक दिए तो बहुतों ने अपने राज्यों को बचाने के लिए डटकर मुकाबला किया।

राजपुताना से होते हुए अकबर की नजर मध्यभारत तक भी जा पहुंची। लेकिन मध्यभारत को जीतना मुगलों के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा और खासकर कि गोंडवाना! इसलिए नहीं कि कोई बहुत बड़ा राज्य या राजा मुग़ल सल्तनत का सामना कर रहा था, बल्कि इसलिए क्योंकि एक हिन्दू रानी अपने पुरे स्वाभिमान के साथ अपने राज्य को बचाने के लिए अडिग थी।

वह हिन्दू रानी, जिसकी समाधि पर आज भी गोंड जाति के लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और जिसके नाम पर मध्य-प्रदेश के एक विश्विद्यालय का नाम भी है- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय।
दुर्गावती चंदेल वंश की थीं और कहा जाता है कि इनके वंशजों ने ही खजुराहो मंदिरों का निर्माण करवाया था और महमूद गज़नी के आगमन को भारत में रोका था। लेकिन 16वीं शताब्दी आते-आते चंदेल वंश की ताकत बिखरने लगी थी।
अकबरनामा में अबुल फज़ल ने उनके बारे में लिखा है, “वह बन्दुक और तीर से निशाना लगाने में बहुत उम्दा थीं। और लगातार शिकार पर जाया करती थीं।”

1542 में, 18 साल की उम्र में दुर्गावती की शादी गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुई। मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशज 4 राज्यों पर राज करते थे- गढ़-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला। दुर्गावती के पति दलपत शाह का अधिकार गढ़-मंडला पर था।
दुर्गावती का दलपत शाह के साथ विवाह बेशक एक राजनैतिक विकल्प था। क्योंकि यह शायद पहली बार था जब एक राजपूत राजकुमारी की शादी गोंड वंश में हुई थी। गोंड लोगों की मदद से चंदेल वंश उस समय शेर शाह सूरी से अपने राज्य की रक्षा करने में सक्षम रहा।
उन्होंने अपने शासन के दौरान अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

इतना ही नहीं, रानी दुर्गावती ने अपने राज दरबार में मुस्लिम लोगों को भी उम्दा पदों पर रखा। उन्होंने अपनी राजधानी को चौरागढ़ से सिंगौरगढ़ स्थानांतरित किया। क्योंकि यह जगह राजनैतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने अपने पूर्वजों के जैसे ही राज्य की सीमायों को बढ़ाया।
दरअसल, 1562 में अकबर ने मालवा को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया था। इसके अलावा रेवा पर असफ खान का राज हो गया। अब मालवा और रेवा, दोनों की ही सीमायें गोंडवाना को छूती थीं तो ऐसे में अनुमानित था कि मुग़ल साम्राज्य गोंडवाना को भी अपने में विलय करने की कोशिश करेगा।
1564 में असफ खान ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने खुद सेना का मोर्चा सम्भाला। हालांकि, उनकी सेना छोटी थी, लेकिन दुर्गावती की युद्ध शैली ने मुग़लों को भी चौंका दिया। उन्होंने अपनी सेना की कुछ टुकड़ियों को जंगलों में छिपा दिया और बाकी को अपने साथ लेकर चल पड़ीं।
जब असफ खान ने हमला किया और उसे लगा कि रानी की सेना हार गयी है तब ही छिपी हुई सेना ने तीर बरसाना शुरू कर दिया और उसे पीछे हटना पड़ा।
कहा जाता है, इस युद्ध के बाद भी तीन बार रानी दुर्गावती और उनके बेटे वीर नारायण ने मुग़ल सेना का सामना किया और उन्हें हराया। लेकिन जब वीर नारायण बुरी तरह से घायल हो तो रानी ने उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया और स्वयं युद्ध को सम्भाला।

रानी दुर्गावती की समाधि
24 जून 1564 को रानी ने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे ने युद्ध जारी रखा। लेकिन शीघ्र ही वह भी वीरगति को प्राप्त हुआ। जिसके बाद गढ़-मंडला का विलय मुग़ल साम्राज्य में हो गया।
वर्तमान भारत में, मंडला मध्य-प्रदेश का एक जिला है। जहाँ चौरागढ़ किला आज पंचमारी में सूर्योदय देखने के लिए प्रसिद्द टूरिस्ट जगह है। हर साल न जाने कितने ही टूरिस्ट देश-विदेशों से यहाँ आते हैं। लेकिन उनमें चंद लोग ही यहाँ की रानी दुर्गावती के इस जौहर से परिचित होंगें।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोंड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
✍️ *अशोक सोनी निडर जी*
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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