गजनी और ख़िलजी के विध्वंस के बाद भी मोढेरा के सूर्य मंदिर की शान अनोखी
गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर
मोढेरा सूर्य मंदिर, PM मोदी ने शेयर की जिसकी वीडियो: प्रतिमा पर सबसे पहले पड़ती थी सूर्य की किरणें, गजनी-खिलजी ने किया था खंडित
मोढेरा का ये सूर्य मंदिर कोणार्क से भी पुराना (फोटो साभार: गुजरात टूरिज्म)
भारत के मंदिर शिल्पकला का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करते हैं, जिनकी चर्चा पूरी दुनिया में होती है। लेकिन, हमारे अपने ही देश में उन्हें वो सम्मान नहीं दिया जाता, जिनके वो अधिकारी हैं। जहाँ दक्षिण भारत के मंदिरों की चर्चा अक्सर होती आ रही है, शेष भारत में भी ऐसे-ऐसे मंदिर हैं, जो शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना पेश करते हैं। उन्हें में से एक है, गुजरात के पाटन से 30 किलोमीटर दक्षिण में स्थित मोढेरा सूर्य मंदिर।
गुजरात के मोढेरा सूर्य मंदिर का भूगोल
यही वो मंदिर है, जिसका वीडियो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार (अगस्त 26, 2020) को शेयर किया। उन्होंने ट्विटर पर इसका वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि मोढेरा का प्रतिष्ठित सूर्य मंदिर बारिश के दिनों में शानदार दिखता है, एक नजर डालिए। इसके बाद से ही इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई। यहाँ हम आपको बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास क्या है और ये कहाँ स्थित है। साथ ही इसके शिल्पकला के बारे में भी।
‘गुजरात टूरिज्म’ की वेबसाइट के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जब गुजरात की लम्बाई-चौड़ाई को मापने निकलता है तो उसका सामना सोलंकी वंश द्वारा बनवाई गई भव्य संरचनाओं से होता है, जो शिल्पकला की लिगेसी का बेहतरीन नमूना पेश करते हैं। उन स्मारकों को देख कर लोग मुग्ध हो जाते हैं। मेहसाणा से बहुचारजी देवी मंदिर की ओर जब आप बढ़ते हैं तो 35 किलोमीटर जाने पर मोढेरा गाँव से आपका सामना होता है।
गुजरात स्थित मोढेरा का सूर्य मंदिर (फोटो साभार: गुजरात टूरिज्म)
ये ऐसा क्षेत्र है, जो पुष्पवती नदी के किनारे बसा हुआ है और चारों तरफ से बगीचों से घिरा हुआ है। वैदिक देवी-देवताओं के दृश्य आपको भावविह्वल कर देंगे। बता दें कि ये मंदिर भी सोलंकी वंश के शासनकाल में बना था, जिसे राज्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। मंदिर परिसर में दीवारों पर उकेरी गई कलाकृतियाँ और अंदर स्थित कुंड आपको किसी अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी भी इसे शेयर करने से खुद को रोक नहीं पाए।
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Modhera’s iconic Sun Temple looks splendid on a rainy day 🌧!
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— Narendra Modi (@narendramodi) August 26, 2020
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कैसी हैं यहाँ की कलाकृतियाँ?
पूरे मंदिर को बनाने में हजारों कारीगर लगे थे। कई ऐसी चीजें थीं, जिसे महमूद गजनी के आक्रमण ने नष्ट कर दिया था। आप ये जान कर चौंक जाएँगे कि इसे ओडिशा के कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर से भी पहले बनाया गया था, जो काफी चर्चित है। पूरे मंदिर को कमल के फूल के आकर के पिलर के ऊपर बनाया गया है। इसके हर एक भाग पर आपको महीन और बारीकी से की हुई कलाकृतियाँ मिलेंगी।
पूरे मंदिर को तीन भागों में विभाजित किया गया है। मंदिर के सामने ही सूर्य कुंड (या राम कुंड) स्थित है। इसका इस्तेमाल प्राचीन काल में शुद्ध जल को जमा करने में किया जाता था। हालाँकि,आजकल तो इसमें बारिश का पानी ही जमा हो जाता है लेकिन पहले के जमाने में इसमें अंडरग्राउंड स्प्रिंग लगा हुआ था,ऐसा बताया जाता है। इन सबके अलावा एक सभा मंडल है,जहाँ पहले लोग जमा होते थे और श्रद्धालु जुटते थे।
सभा मंडप में लोगों के बैठने और आराम करने की भी व्यवस्था की गई थी। इसके बाद कई स्तम्भों को पार कर के आप प्रमुख मंडप के पास पहुँचेंगे,जो और भी भव्य हैं। यहीं पर भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थित थी,जिसे महमूद गजनी ने खंडित कर दिया और तोड़ डाला। इन सबके बावजूद दीवारों पर बनीं भगवान सूर्य के 12 महीने के 12 स्वरूपों की कलाकृतियाँ आपको मुग्ध कर देने के लिए काफी है।
इसे आप मृत्यु से मोक्ष की यात्रा के रूप में समझ सकते हैं, जैसा कि प्राचीन काल में माना जाता था। कुंड से गुडा मंडप तक की यात्रा को इसी रूप में देखा जाता रहा है। इसे चालुक्य या सोलंकी वंश के भीमदेव प्रथम (भीम-1) के राज में बनवाया गया था। 11वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बने इस मंदिर की चर्चा स्कन्द पुराण और ब्रह्म पुराण में भी है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम यहाँ आए थे। इस क्षेत्र को पहले धर्मारण्य के रूप में भी जाना जाता था, अर्थात- धर्म का वन।
आजकल इस मंदिर को ASI ने अपने नियंत्रण में रखा हुआ है, जो इसके जीर्णोद्धार और देखरेख के काम में लगी हुई है। 2014 में तो यूनेस्को ने भी इसे वर्ल्ड हेरिटेज की कैटेगरी में डाला था। अब बात विज्ञान की। साल में दो बार ऐसा होता है, जब पृथ्वी की भूमध्य रेखा से सूर्य के केंद्र का आमना-सामना होता है। इसे Equinox कहते हैं। 20 मार्च और 23 सितम्बर के आसपास हर साल यह होता है।
गुजरात: मोढेरा के सूर्य मंदिर के स्तम्भों पर कलाकृतियाँ
सीधे शब्दों में कहें तो यही वो मौका होता है जब सूर्य का केंद्र सीधा भूमध्य रेखा के ऊपर होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो आजकल की बातें हैं, इसका गुजरात के मोढेरा सूर्य मंदिर से क्या लेना-देना? दरअसल, ऐसा नहीं है। जब Equinox के दिन सूर्योदय होता था तो सूर्य की किरणें सबसे पहले यहाँ सूर्य की प्रतिमा के सिर पर स्थित हीरे के ऊपर पड़ती थी। इसके बाद पूरा मंदिर स्वर्ण प्रकाश से नहा जाता था। ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ की वेबसाइट के अनुसार:
“सूर्य भगवान को समर्पित यह मंदिर मोढेरा गांव में है, जो गुजरात के अहमदाबाद शहर से 101 किलोमीटर दूर पुष्पावती नदी के किनारे पर स्थित है। वर्तमान में इस मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं होती। इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है तथा यह यूनेस्को विश्व विरासत धरोहर की सूची में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण शिल्प एवं वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर किया गया था, जो वास्तुकला व बनावट का प्राचीन विज्ञान है। संपूर्ण मंदिर देखने में ऐसा लगता है मानो जल में कमल खिल रहा हो। इसका मुख्य परिसर तीन भागों में विभाजित है। मंदिर का प्रवेशद्वार जो सभा मंडप कहलाता है, अंतराल जो गलियार है तथा गर्भगृह इसका पवित्र स्थल है। मंदिर परिसर एवं मूर्तियों से सुसज्जित जलकुंड सोलंकी राजाओं के काल में बने भवनों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।”
इतना ही नहीं, मंदिर का निर्माण इस तरीके से हुआ था कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक सूर्य कहीं भी हो, गर्भगृह के पास स्थित दो स्तम्भ हमेशा उसके प्रकाश से नहाए रहते थे। ये था हमारे पूर्वजों का विज्ञान, जिसकी आज हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। सभा मंडप में जो 52 स्तम्भ हैं, वो साल के 52 सप्ताह की ओर इशारा करते हैं। सूर्य के साथ वायु, जल, पृथ्वी और अंतरिक्ष को दर्शाई गई कलाकृतियाँ आज भी मौजूद है।
मंदिर का इतिहास:
गजनी व खिलजी ने कर दिया था खंडित
सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनी के हमले को लेकर तो काफी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन मोढेरा में उसके हमले और मंदिर को तहस-नहस किए जाने को लेकर बहुत कम वर्णन मिलता है। सोलंकी सूर्यवंशी राजा थे और सूर्य की पूजा वो अपने कुलदेवता के रूप में करते थे। यही कारण था कि सूर्य को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। इस मंदिर पर अल्लाउद्दीन खिलजी ने भी हमला किया था।
मान्यता है कि रावण वध के पश्चात भगवान श्रीराम ने खुद को ब्रह्महत्या का दोषी माना था और उन्होंने ऋषि-मुनियों से इसके प्रायश्चित का विधान पूछा था। इसी दौरान उन्होंने गुरु वशिष्ठ से आत्मशुद्धि के लिए एक ऐसा स्थल बताने को कहा जो उपयुक्त हो। गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को यहीं आने की सलाह दी थी, जिसके बाद ये स्थल रामायण से भी जुड़ गया। मंदिर को इस्लामी आक्रांताओं द्वारा खंडित किए जाने के कारण यहाँ पूजा नहीं होती।