बंगाल के जलियांवाला बाग कांड हिजली फायरिंग में बलिदान हुए थे तारकेश्वर और संतोष मित्र
…… चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🇮🇳 *संतोष कुमार मित्रा* & *तारकेश्वर सेनगुप्त* 🇮🇳
✍️ राष्ट्रभक्त साथियों, 1925 से 1935 का काल भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष-काल की दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण काल रहा है। इस समयावधि के दौरान क्रांतिकारियों ने अति महत्वपूर्ण क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। अनेक ब्रिटिश उच्चाधिकारियों की हत्या हुई। क्रान्तिकारी घटनाओं ने ब्रिटिश सरकार को अन्दर तक हिलाकर रख दिया था। इसी दौर में हिजली नजरबंद कैम्प में एक घटना घटी जिसमे महान क्रान्तिकारी संतोष कुमार मित्रा व तारकेश्वर सेनगुप्त ब्रिटिश सिपाहियों की गोलीबारी में बलिदान हुए।
राष्ट्रभक्त साथियों आज बात करेंगे शंखरीटोला हत्या केस में गिरफ्तार क्रांतिकारी संतोष कुमार मित्रा की, जिनका जन्म 16 सितम्बर, 1900 को कोलकाता के 9C, हलधर बर्धन लेन, बाउबाजार के एक मध्यवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था। उन्होंने कोलकाता के हिन्दू स्कूल से मैट्रिकुलेशन की शिक्षा पूरी की तथा कोलकाता के कोलकाता यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे एम.ए. तथा एलएलबी की पढ़ाई करने के उपरांत, कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए तथा वर्ष 1922 में जुगांतर के क्रान्तिकारी भूपति मजूमदार द्वारा संचालित हुगली विद्या मंदिर से जुडे़ और स्वराज्य सेवक संघ की स्थापना की।
📝 संतोष कुमार मित्रा विद्यार्थी जीवन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के *सहपाठी (classmate)* थे। इनकी धर्मपत्नी का नाम ज्योत्सना मित्रा था। सन् 1922 में असहयोग आन्दोलन को महात्मा गाँधी जी द्वारा स्थगित करने से नाराज़ संतोष कुमार मित्रा उग्र-राष्ट्रवादी विचारधारा के क्रान्तिकारी संगठन से जुड़ गए। विद्या मंदिर क्रांतिकारी गतिविधियों/बैठकों का प्रमुख स्थल बन चुका था। बिपिन बिहारी गांगुली ने इस दौर में सेंट्रल कोलकाता के लिए उग्र-क्रान्तिकारी गतिविधियों को संपादित कराया। *सन् 1923 में शंखरीटोला हत्या केस* में संतोष कुमार मित्रा को पकड़ लिया गया, लेकिन महान स्वतंत्रता सेनानी व वकील यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त ने अपनी प्रतिभा से इन्हें रिहा कराया। वर्ष 1923 में पुनः द्वितीय अलीपुर केस (Alipore Case II) मेें गिरफ्तार किया गया और पुनः यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त की प्रतिभा व दलील ने मुक्ति दिलाई। ब्रिटिश सरकार की नीयत ठीक नहीं थी। सरकार ने भारतीय दंड संहिता या 1818 का बंगाल विनियमन III में इन्हे हिजली नजरबंद कैम्प (Hijli Detention Camp) में कैद कर लिया, जहाँ आज खड़गपुर आईआईटी संस्थान चलता है।
📝 *भारतीय दंड संहिता या 1818 का बंगाल विनियमन III* के अन्तर्गत मात्र सन्देह के आधार पर ब्रिटिश सरकार किसी को भी अनेक वर्षों तक जेल में नजरबंद कर सकती थी और मुकदमा भी नहीं चला सकते थे। इसी कैम्प में कनाईलाल भट्टाचार्य द्वारा अलीपुर कोर्ट में क्रांतिकारी दिनेश गुप्ता तथा रामकृष्ण बिस्वास को फाँसी की सज़ा सुनाने वाले जज रॉल्फ रेनॉल्ड गलिक को मौत के घाट उतारने की खबर पहुँची तो क्रान्तिकारी खुशी प्रकट करने लगे। इसी बीच तीन क्रान्तिकारी नलिन दास, फानी दास तथा चिंतामणि दास कैम्प से भाग निकले। जेल इंस्पेक्टर मार्शल इन सब घटनाओं से क्रोधित था। उसने सिपाहियों के साथ मिलकर 16 सितम्बर, 1931 को नजरबंद क्रांतिकारियों पर गोलीबारी करवा डाली, जिसमे *29 राउंड गोलियाँ चलीं। इस गोलीबारी में संतोष कुमार मित्रा तथा तारकेश्वर सेनगुप्त बलिदान हुए तथा 100 क्रान्तिकारी घायल हुए। इस घटना को हिजली फायरिंग (Hijli Firing) के नाम से जाना जाता है। 25 क्रान्तिकारी गंभीर रूप से घायल हुए।*
📝 इस घटना के उपरान्त नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तथा जे एम सेनगुप्त इन दोनों बलिदानियों के शव को लाने हिजली कैम्प गए थे। यह स्थान अब हिजली शहीद भवन के नाम से जाना जाता है। क्रांतिकारियों को सम्मान सहित कोलकाता के कियोराटोला श्मशान मैदान में अंतिम संस्कार किया गया। 19 सितम्बर को कोलकातावासियों ने इस दुखद घटना (हत्या) के विरोध में कोलकाता में हड़ताल रखी थी। राष्ट्रभक्त साथियों, संतोष कुमार मित्रा के साथ बलिदान हुए तारकेश्वर सेनगुप्त *चटगाँव शस्त्रागार छापा* (Chittagong Armoury Raid) में सक्रिय व मास्टरदा सूर्य सेन के क्रान्तिकारी साथी थे। इनके परिवार के सदस्य शुरू से ही क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुडे़ हुए थे। *मातृभूमि सेवा संस्था आज इन महान बलिदानियों के 89वें बलिदान दिवस पर इनके आदर व सम्मान में नतमस्तक है।*🌹🌹
✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳