2024 के पहले 2023 में नौ राज्यों में होगी भाजपा -कांग्रेस में कुश्ती
9 राज्यों के चुनाव और भाजपा-कांग्रेस में सीधा मुकाबला, क्या 2024 की बिसात 2023 में ही बिछ जाएगी?
2022 में कई राज्यों में चुनाव हुए और इसके नतीजों को देश में भावी राजनीति के लिए बड़े संकेत की तरह देखा गया। वहीं यह भी माना जा रहा है कि 2023 की राजनीतिक गतिविधियां और चुनावी नतीजे 2024 के लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे। इस बीच कई ऐसे मुद्दे हैं जिनको राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से आगे बढ़ा रहे हैं।
हाइलाइट्स
1-2023 की राजनीतिक गतिविधियां 2024 के लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे
2-अगले साल देश में कुल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, नतीजों पर रहेगी नजर
3-कांग्रेस के प्रदर्शन से तय होगी 2024 की चुनावी तस्वीर, क्या भाजपा को मिलेगी चुनौतीनई दिल्ली 26 दिसंबर: पिछले दिनों हुए विभिन्न चुनावों को देश में भावी राजनीति के लिए बड़े संकेत की तरह देखा गया। जहां भाजपा के अश्वमेघी घोड़े को दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) ने MCD चुनाव में खूंटे से बांधकर रोक दिया, तो कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में उस घोड़े को सत्ता के पहाड़ की तलहटी में खड़ा कर दिया। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में भाजपा रेकॉर्ड बनाती हुई निकल गई। लेकिन भाजपा भी जानती है कि इस ऐतिहासिक जीत के लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़े। हाल के परिणामों को 2023 के चुनावी साल के लिए आधार तरह देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि 2023 की राजनीतिक गतिविधियां और चुनावी नतीजे 2024 के लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे।
नौ विधानसभा चुनाव तय करेंगे दिशा
अगले साल देश में कुल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से चार राज्यों में साल के शुरू में और पांच राज्यों में साल के आखिर में चुनाव होने हैं। इनमें देश के हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़, दो दक्षिण भारत कर्नाटक और तेलंगाना और चार नॉर्थ ईस्ट के राज्यों मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और मिजोरम में चुनाव होना है।
– सामान्य चुनाव से ऐन पहले ये चुनाव देश की राजनीति की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा दांव भाजपा और कांग्रेस का लगा है। उसके बाद तमाम छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों के हित भी महत्वपूर्ण हैं।
चार राज्यों में सीधा मुकाबला
चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है। हालांकि, कर्नाटक में जेडीएस भी मुकाबले में है। लेकिन सत्ता की आजमाइश कांग्रेस और भाजपा के बीच होनी है। इन चार राज्यों में से दो राज्यों में भाजपा और दो में कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में भाजपा की कोशिश रहेगी कि अपने इन दोनों किलों को बचाकर कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई जाए। वहीं, कांग्रेस का उद्यम अपने किले बचाकर बाकी दो राज्यों में सत्ता वापसी का रहेगा।
– अगर कांग्रेस इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करती है तो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को टक्कर देने वाले एक मजबूत विपक्षी धुरी के तौर पर उभर कर सामने आएगी। अगर भाजपा का प्रदर्शन बेहतर हुआ तो आम चुनावों में उसे मनोवैज्ञानिक फायदा होगा।
मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम राज्य भी होंगे महत्वपूर्ण
तेलंगाना सहित बाकी के पूर्वोत्तर के राज्य क्षेत्रीय दलों के अलावा भाजपा और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं। तेलंगाना में भाजपा केसीआर की बीआरएस को सत्ताच्युत करने में लगी है। भाजपा की दृष्टि से त्रिपुरा भी महत्वपूर्ण है, जहां पिछली बार उसने लेफ्ट के किले को ध्वस्त कर अपनी सरकार बनाई थी। भाजपा की कोशिश इसे भी बचाने की रहेगी।
– अगर बाकी राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया तो देश में छोटे दलों का महत्व भी रहेगा।
विपक्षी एकजुटता प्रयास
देश में प्रधानमंत्री मोदी नीत भाजपा के सामने विकल्प पेश करने की कोशिशें हो रही हैं। एक स्वाभाविक विकल्प कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का है। लेकिन नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर जैसे नेता अपने-अपने स्तर पर लगातार विपक्षी एकता प्रयासों में जुटे हैं। अगले साल विपक्षी दलों की गोलबंदी में और तेजी आने की उम्मीद है। जहां देश की राजनीति में तेजी से अपनी जगह बनाती AAP भी कांग्रेस से नजदीकियों की कोशिश में लगी है।
– लोकसभा चुनावों में दिल्ली में भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए वह AAP कांग्रेस से हाथ मिलाना चाह रही है, ताकि भाजपा के खिलाफ वोट न बंट सकें। नीतीश कुमार भी जिस राज्य में जो क्षेत्रीय दल हैं, वहां उनकी संभावनाओं को देखते हुए बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन का फॉर्म्युला सामने रख आगे बढ़ने की विकल्प दे रहे हैं।बजट और आर्थिक मोर्चे पर राहत की उम्मीद
आने वाले चुनाव से पहले बजट महत्वपूर्ण रहने वाला है। इसके जरिए सरकार उन तमाम वर्गों को राहत पहुंचाने की कोशिश करेगी, जिनमें असंतोष और नाराजगी है। महंगाई और टैक्स की मार झेल रहे मध्य वर्ग को सरकार कुछ राहत दे सकती है। किसान वर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए कुछ लोकप्रिय कदम उठा सकती है। पेट्रोल और डीजल जैसी चीजों पर एक्साइज ड्यूटी कम कर मध्यम वर्ग सहित देश के बड़े वर्ग को राहत देने की कोशिश कर सकती है।
– केंद्र सरकार ने कोविड काल में गरीबों को फ्री राशन की सुविधा दी थी, उसे 2022 के दिसंबर तक बढ़ा दिया था। अभी तक के तमाम चुनावी नतीजों में फ्री राशन भाजपा के लिए गेम चेंजर साबित हुआ है। माना जा रहा है कि सरकार किस्तवार ढंग से इस योजना को अगले आम चुनावों तक खींचकर ले जा सकती है।रोजगार और पुरानी पेंशन स्कीम (OPS)
देश में मोदी सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा रोजगार और महंगाई का है। सरकार की कोशिश महंगाई पर काबू कर देश में रोजगार के क्षेत्र में कुछ योजनाओं का ऐलान कर युवाओं की नाराजगी दूर करने की भी रहेगी। इस साल के शुरू में प्रधानमंत्री मोदी ने देश में 10 लाख से ज्यादा खाली पड़े पदों को अगले 18 महीनों मे भरने की बात कही थी। ऐसे में आने वाले साल में केंद्र सरकारी पदों को भरने की प्रक्रिया में तेजी दिखाकर लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर सकता है।
– हालांकि, आने वाले समय में OPS एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। कई विपक्षी दल ओल्ड पेंशन स्कीम की बात कर सरकारी कर्मचारियों के जरिए मध्य वर्ग तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश के चुनावों में दिखाई दिया, जहां कांग्रेस ने OPS लागू करने की बात कही। इस मुद्दे ने हिमाचल के नजीजों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इससे पहले देश में राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब जैसे गैर-बीजेपी शासित राज्य पहले ही OPS लागू कर चुके हैं। हिमाचल में जल्द ही इसे लागू किया जाएगा। तमिलनाडु जैसे राज्य भी इस पर विचार कर रहे हैं। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश सहित और जगह सत्ता में आने के बाद इस योजना को लागू करने की बात कही है। ऐसे में भाजपा के लिए इसकी काट खोजना बड़ी चुनौती रहेगी।