जर्मंनी से उच्च शिक्षित डॉ. लोहिया ने छेड़ा था’अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन

डॉ॰ राममनोहर लोहिया (जन्म – मार्च २३, इ.स. १९१० – मृत्यु – १२ अक्टूबर, इ.स. १९६७)। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता
डॉक्टर राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद में (वर्तमान-अम्बेड़कर नगर जनपद) अकबरपुर में हुआ था। उनके पिताजी श्री हीरालाल अध्यापक , गांधी के अनुयायी व सच्चे राष्ट्रभक्त थे। ढाई वर्ष की आयु में ही उनकी माताजी (चन्दा देवी) का देहान्त हो गया। गांधी जी की पुकार पर 10 वर्ष की आयु में स्कूल त्याग दिया।
1930 जुलाई को लोहिया अग्रवाल समाज के कोष से पढ़ाई को इंग्लैंड और वहां से वे बर्लिन गए। विश्वविद्यालय के नियमानुसार उन्होंने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर बर्नर जेम्बार्ट को अपना प्राध्यापक चुना। 23 मार्च को लाहौर में भगत सिंह को फांसी के विरोध में लीग ऑफ नेशन्स की बैठक में बर्लिन में पहुंचकर सीटी बजा दर्शक दीर्घा से विरोध प्रकट किया। 1932 में लोहिया ने नमक सत्याग्रह विषय पर अपना शोध प्रबंध पूरा कर बर्लिन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। पटना में 17 मई 1934 को आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में देश के समाजवादी अंजुमन-ए-इस्लामिया हॉल में इकट्ठे हुए। यहां लोहिया ने समाजवादी आंदोलन की रूपरेखा प्रस्तुत की।
लोहिया ने महायुद्ध के समय युद्धभर्ती का विरोध, देशी रियासतों में आंदोलन, ब्रिटिश माल जहाजों से माल उतारने व लादने वाले मजदूरों का संगठन तथा युद्धकर्ज मंजूरी तथा अदा न करने, जैसे चार सूत्रीय मुद्दों को लेकर युद्ध विरोधी प्रचार शुरू कर दिया। 1939 के मई महीने में दक्षिण कलकता की कांग्रेस कमेटी में युद्ध विरोधी भाषण पर उन्हें 24 मई को गिरफ्तार किया गया। कलकत्ता के चीफ प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट के सामने लोहिया ने स्वयं अपने मुकदमे की पैरवी की। 14 अगस्त को उन्हें रिहा कर दिया गया।
7 जून 1940 को डॉक्टर लोहिया को 11 मई को दोस्तपुर (सुल्तानपुर) में भाषण के कारण गिरफ्तार किया गया। उन्हें कोतवाली में सुल्तानपुर ले जाकर हथकड़ी पहनाकर रखा गया। 1 जुलाई 1940 को दो साल की सख्त सजा हुई। सजा सुनाने के बाद उन्हें 12 अगस्त को बरेली जेल भेज दिया गया। 4 दिसम्बर 1941 को अचानक लोहिया को रिहा कर दिया गया।सन् 1942 में इलाहाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जहां लोहिया ने खुलकर नेहरू का विरोध किया। इसके बाद अल्मोड़ा जिला सम्मेलन में लोहिया ने ‘नेहरू को झट पलटने वाला नट’ कहा।

भारत छोड़ो आन्दोलन

9 अगस्त १९४२ को गांधी जी व अन्य कांग्रेस नेता गिरफ्तार कर लिए गए, तब लोहिया ने भूमिगत रहकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को पूरे देश में फैलाया। लोहिया, अच्युत पटवर्धन, सादिक अली, पुरूषोत्तम टिकरम दास, मोहनलाल सक्सेना, रामनन्दन मिश्रा, सदाशिव महादेव जोशी, साने गुरूजी, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अरूणा आसिफअली, सुचेता कृपलानी और पूर्णिमा बनर्जी आदि नेताओं का केन्द्रीय संचालन मंडल बनाया गया। लोहिया पर नीति निर्धारण का कार्यभार सौंपा गया। भूमिगत रहते हुए ‘जंग जू आगे बढ़ो, क्रांति की तैयारी करो, आजाद राज्य कैसे बने’ जैसी पुस्तिकाएं लिखीं। 20 मई 1944 को लोहिया जी को बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद लाहौर किले की एक अंधेरी कोठरी में रखा गया जहां 14 वर्ष पहले भगत सिंह को फांसी दी गई थी। पुलिस ने लगातार उन्हें यंत्रणा दी, 15-15 दिन तक उन्हें सोने नहीं दिया जाता था। किसी से मिलने नहीं दिया गया। 4 महीने तक ब्रुश या पेस्ट तक भी नहीं दिया गया। हर समय हथकड़ी बांधे रखी जाती थी। लाहौर के प्रसिद्ध वकील जीवनलाल कपूर के हैबियस कारपस की दरखास्त लगाने पर उन्हें तथा जयप्रकाश नारायण को स्टेट प्रिजनर घोषित कर दिया गया। सरकार को लोहिया को पढ़ने-लिखने की सुविधा देनी पड़ी। पहला पत्र लोहिया ने ब्रिटिश लेबर पार्टी के अध्यक्ष प्रो॰ हेराल्ड जे. लास्की को लिखा जिसमें उन्होंने पूरी स्थिति का विस्तृत ब्यौरा दिया। 1945 में लोहिया को लाहौर से आगरा जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर गांधी जी तथा कांग्रेस के नेताओं को छोड़ दिया गया। केवल लोहिया व जयप्रकाश ही जेल में थे। इसी बीच अंग्रेजों की सरकार और कांग्रेस की बीच समझौते की बातचीत शुरू हो गई। इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बन गई सरकार का प्रतिनिधि मंडल डॉक्टर लोहिया से आगरा जेल में मिलने आया। इस बीच लोहिया के पिता हीरालाल जी की मृत्यु हो गई। किन्तु लोहिया जी ने सरकार की कृपा पर पेरोल पर छूटने से इंकार कर दिया।

गोवा मुक्ति आन्दोलन

स्वतंत्रता बाद 11 अप्रैल 1946 को लोहिया को आगरा जेल से रिहा कर दिया गया। 15 जून को लोहिया ने गोवा के पंजिम में ‘गोवा मुक्ति आंदोलन’ की पहली सभा ली। लोहिया को 18 जून को गोवा मुक्ति आंदोलन के शुरूआत के दिन ही गिरफ्तार कर लिया गया।
1949 को सोशलिस्ट पार्टी ने लोहिया के नेतृत्व में नेपाली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला के आमरण अनशन तथा नेपाल में राणाशाही के अत्याचार के खिलाफ नेपाली दूतावास की ओर जुलूस बढ़ा तो लाठीचार्ज किया गया। लोहिया को गिरफ्तार किया गया। 20 जून को देशभर में लोहिया दिवस मनाया गया। मुकदमे में दो महीने की कैद हुई। 3 जुलाई को उन्हें रिहा कर दिया गया।

सन् 1949 में पटना में सोशलिस्ट पार्टी का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन में लोहिया ने ‘चौखंभा राज्य’ की कल्पना प्रस्तुत की। पटना में ‘हिन्द किसान पंचायत’ का अध्यक्ष लोहिया को चुना गया। 25 नवम्बर 1949 को लखनऊ में एक लाख किसानों ने विशाल प्रदर्शन किया। 26 फ़रवरी 1950 को रीवा में ‘हिन्द किसान पंचायत’ का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। दिल्ली में 3 जून 1951 को जनवाणी दिवस पर प्रदर्शन किया गया। ‘रोजी-रोटी कपड़ा दो नहीं तो गद्दी छोड़ दो’, प्रदर्शनकारियों का मुख्य नारा था। 14 जून 1951 को सागर स्टेशन में लोहिया को गिरफ्तार कर बेंगलूर के हवालात में बंद कर दिया गया। 3 जुलाई को लोहिया छूटे। 24 जुलाई को वे विश्व सरकार के समर्थकों के सम्मेलन में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम गए। 17 साल बाद वे पुन: बर्लिन पहुंचे। लोहिया इंग्लैंड, पश्चिम अफ्रीका, दक्षिण पश्चिम एशिया के कई देशों में गए; इस्रायल से होकर 15 नवम्बर को स्वेदश लौटे।
1951 में लोहिया को 3 जुलाई को समाजवादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बुलाया गया। सम्मेलन में जर्मनी, युगोस्लाविया,अमेरिका,हवाई,जापान,हांगकांग,थाईदेश,सिंगापुर मलाया,इंडोनेशिया तथा लंका भी गए। लोहिया ने अमरीका में सैकड़ों स्थानों पर भाषण किया।

डॉ राममनोहर लोहिया, मणि राम बागरी, मधु लिमये, एस एम जोशी
मई 1952 में पंचमढ़ी में सोशलिस्ट पार्टी का सम्मेलन हुआ। आम चुनाव में हार के बाद लोहिया ने चुनावों की पराजय की शव परीक्षा के बदले ठोस विचारों की ओर पार्टी को ले जाने का विचार दिया। गुजरात पार्टी सम्मेलन में इतिहास चक्र की नई व्याख्या लोहिया ने प्रस्तुत की । 24-25 सितम्बर 1952 में सोशलिस्ट पार्टी की जनरल कौंसिल बैठक में किसान-मजदूर प्रजा पार्टी और सोशिलिस्ट पार्टी के विलय का निर्णय लिया गया। इस तरह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। 29 से 31 दिसम्बर 1953 को प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का पहला सम्मेलन इलाहाबाद में हुआ। वहां लोहिया ने इलाहाबाद थीसिस प्रस्तुत की। लोहिया को उनके मना करने के बावजूद पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री चुना गया। 4 जुलाई 1954 को फारूखाबाद में वाणी स्वतंत्रता के संघर्ष को लेकर भाषण दिए जाने के कारण गिरफ्तार किया गया। नागपुर में 26-28 नवम्बर 1954 के बीच केरल गोली कांड पर विचार करने के लिए सम्मेलन हुआ। लोहिया केरल मंत्रीमंडल से इस्तीफा मांग चुके थे। 31 दिसम्बर 1955 तथा 1 जनवरी 1956 को सोशलिस्ट पार्टी का स्थापना हुई। लखनऊ में लोहिया के नेतृत्व में एक लाख किसानों का प्रदर्शन हुआ।
उर्वसियम (नेफा) से लोहिया ने पूर्वोत्तर में प्रवेश किया, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 17 अप्रैल 1960 को कानपुर के सर्किट हाउस में अनाधिकृत प्रवेश करने के कारण अपराध बताकर उन्हें पुन: गिरफ्तार किया गया। 1961 में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के दौरान लोहिया की सभा पर मद्रास में पत्थर बरसाये गए। 1962 में चुनाव हुआ लोहिया नेहरू के विरुद्ध फूलपुर में चुनाव मैदान में उतरे। 1963 के फारूखाबाद के लोकसभा उपचुनाव में लोहिया 58 हजार मतों से चुनाव जीते। लोकसभा में लोहिया की तीन आना बनाम पन्द्रह आना की बहस अत्यंत चर्चित रही, जिसमें उन्होंने 18 करोड़ आबादी के चार आने पर जिंदगी काटने तथा प्रधानमंत्री पर 25 हजार रुपए प्रतिदिन खर्च करने का आरोप लगाया। 9 अगस्त 1965 को लोहिया को भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया।

अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन
लोहिया जानते थे कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में अंग्रेजी का प्रयोग आम जनता की प्रजातंत्र में शत प्रतिशत भागीदारी के रास्ते का रोड़ा है। उन्होंने इसे सामंती भाषा बताते हुए इसके प्रयोग के खतरों से बारंबार आगाह किया और बताया कि यह मजदूरों, किसानों और शारीरिक श्रम से जुड़े आम लोगों की भाषा नहीं है। उन्होंने लिखा:
यदि सरकारी और सार्वजनिक काम ऐसी भाषा में चलाये जाएं, जिसे देश के करोड़ों आदमी न समझ सकें, तो यह केवल एक प्रकार का जादू-टोना होगा। लोहिया ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि अंग्रेजी हटाओ का अर्थ हिंदी लाओ कदापि नहीं है। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं की उन्नति और उनके प्रयोग की खुल कर वकालत की। उनके अनुसार अंग्रेजी हटाओ का अर्थ ‘मातृभाषा लाओ’ था।
उन्होंने लोकसभा में बल देकर अपनी बात रखते हुए कहा था:
अंग्रेजी को खत्म कर दिया जाए। मैं चाहता हूं कि अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बंद हो, लोकभाषा के बिना लोक राज्य असंभव है। कुछ भी हो अंग्रेजी हटनी ही चाहिये, उसकी जगह कौन सी भाषाएं आती हैं यह प्रश्न नहीं है। हिन्दी और किसी भाषा के साथ आपके मन में जो आए सो करें, लेकिन अंग्रेजी तो हटना ही चाहिये और वह भी जल्दी। अंग्रेज गये तो अंग्रेजी चली जानी चाहिये।
देहावसान
30 सितम्बर 1967 को लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में पौरूष ग्रंथि के आपरेशन के लिए भर्ती किया गया जहां 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया।

गैर-कांग्रेसवाद के शिल्पी
राम मनोहर लोहिया भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी थे और उनके अथक प्रयासों का फल था कि 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस की पराजय हुई,हालांकि केंद्र में कांग्रेस जैसे-तैसे सत्ता पर काबिज हो पायी। हालांकि लोहिया 1967 में ही चल बसे लेकिन उन्होंने गैर कांग्रेसवाद की जो विचारधारा चलायी उसी से आगे चलकर 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकारी बनी। लोहिया मानते थे कि अधिक समय तक सत्ता में रहकर कांग्रेस अधिनायकवादी हो गयी थी और वह उसके खिलाफ संघर्ष करते रहे।

जैसी कथनी वैसी करनी

लोहिया के समाजवादी आंदोलन की संकल्पना के मूल में अनिवार्यत: विचार और कर्म की उभय उपस्थिति थी- जिसके मूर्तिमंत स्वरूप स्वयं डॉक्टर लोहिया थे और आजन्म उन्होंने ‘कर्म और विचार’ की इस संयुक्ति को अपने आचरण से जीवन्त उदाहरण भी प्रस्तत किया।
अंग्रेजों से मुक्ति पाने पर वे उल्लसित तो थे लेकिन विभाजन की कीमत पर पाई गई इस स्वतंत्रता के कारण नेहरू और नेहरू की कांग्रेस से उनका रास्ता हमेशा के लिए अलग हो गया।
मौलिक एवं ठेठ देसी चिन्तक
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के राजनेताओं में लोहिया मौलिक विचारक थे। लोहिया के मन में भारतीय गणतंत्र को लेकर ठेठ देसी सोच थी। अपने इतिहास,अपनी भाषा के सन्दर्भ में वे कतई पश्चिम से कोई सिद्धांत उधार लेकर व्याख्या करने को राजी नहीं थे। सन् 1932 में जर्मनी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने वाले राममनोहर लोहिया ने साठ के दशक में देश से अंग्रेजी हटाने का आह्वान किया।
हालांकि लोहिया भी जर्मनी यानी विदेश से पढा़ई कर के आए थे, लेकिन उन्हें उन प्रतीकों का अहसास था जिनसे इस देश की पहचान है। शिवरात्रि पर चित्रकूट में रामायण मेला उन्हीं की संकल्पना थी, जो सौभाग्य से अभी तक अनवरत चला आ रहा है।
राजनीतिक शुचिता के पक्षधर
वे एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिन्होंने अपनी पार्टी की सरकार से खुलेआम त्यागपत्र की मांग की, क्योंकि उस सरकार के शासन में आंदोलनकारियों पर गोली चलाई गई थी। ध्यान रहे स्वाधीन भारत में किसी भी राज्य में यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी।

कर्मवीर

लोहिया जी केवल चिन्तक ही नहीं, एक कर्मवीर भी थे। सन १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उषा मेहता के साथ मिलकर उन्होने गुप्त रेडियो स्टेशन चलाया। १८ जून १९४६ को गोआ को पुर्तगालियों के आधिपत्य से मुक्ति दिलाने के लिये उन्होने आन्दोलन आरम्भ किया।

सप्त क्रान्तियाँ
लोहिया अनेक सिद्धान्तों, कार्यक्रमों और क्रांतियों के जनक हैं। वे सभी अन्यायों के विरुद्ध एक साथ जेहाद बोलने के पक्षपाती थे। उन्होंने एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया। वे सात क्रान्तियां थी ये थीं-

(१) नर-नारी की समानता के लिए क्रान्ति,
(२) चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आर्थिक और दिमागी असमानता के खिलाफ क्रान्ति,
(३) संस्कारगत, जन्मजात जातिप्रथा के खिलाफ और पिछड़ों को विशेष अवसर के लिए क्रान्ति,
(४) परदेसी गुलामी के खिलाफ और स्वतन्त्रता तथा विश्व लोक-राज के लिए क्रान्ति,
(५) निजी पूँजी की विषमताओं के खिलाफ और आर्थिक समानता के लिए तथा योजना द्वारा पैदावार बढ़ाने के लिए क्रान्ति,
(६) निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के खिलाफ और लोकतंत्री पद्धति के लिए क्रान्ति,
(७) अस्त्र-शस्त्र के खिलाफ और सत्याग्रह के लिये क्रान्ति
भारत-विभाजन पर लोहिया के विचार
उस समय की तमाम ऐसी घटनाओं और स्थितियों का जिनके प्रति एक आम भारतीय नागरिक के मन में बहुत स्पष्ट और तार्किक व्याख्या नहीं है, लोहिया ने अपनी पुस्तक ‘गिल्टी मैन एंड इंडियाज पार्टीशन’ (भारत विभाजन के गुनहगार) में परद दर परत रहस्यों को खोला है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि उस समय के पूरे आंखों देखे इतिहास को ही नहीं, बल्कि उसके एक सक्रिय, जीवंत पात्र रहे लोहिया की बातों को आजाद भारत में सत्तारूढ़ दल द्वारा एक विपक्षी नेता की ‘खीझ’ से ज्यादा नहीं समझने दिया गया, जबकि सच्चाई यह है कि सत्ता हस्तांतरण के खेल की असलियत संग्रहालयों में दफन दस्तावेजों से ज्यादा लोहिया जैसे नेताओं को भी मालूम थी जिसे होते हुए उन्होंने अपनी आंखों से देखा था।

लेखन

१९९७ में भारत सरकार ने लोहिया की स्मृति में डाकटिकट निकाला
डॉ राममनोहर लोहिया ने अनेक विषयों पर अपने विचार लेख एवं पुस्तकों के रूप में प्रकाशित कीं। उनकी कुछ रचनाएँ हैं-

अंग्रेजी हटाओ
इतिहास चक्र
देश, विदेश नीति-कुछ पहलू
धर्म पर एक दृष्टि
भारतीय शिल्प
भारत विभाजन के गुनहगार
मार्क्सवाद और समाजवाद
राग, जिम्मेदारी की भावना, अनुपात की समझ
समलक्ष्य, समबोध
समदृष्टि
सच, कर्म, प्रतिकार और चरित्र निर्माण आह्‌वान
समाजवादी चिंतन
संसदीय आचरण
संपूर्ण और संभव बराबरी और दूसरे भाषण
हिंदू बनाम हिंदू

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