पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी के ‘भंवर,एक प्रेम कहानी’ से धामी को याद आया अपना राजनीतिक भंवर

CM Pushkar Singh Dhami Released Book ‘Bhanwar Ek Prem Kahani’ By Former DGP Anil
भंवर एक प्रेम कहानी: पूर्व डीजीपी की किताब को लेकर मुख्यमंत्री धामी ने कहा- वर्दीधारी अधिकारी की लिखी प्रेमकथा पढ़ना दिलचस्प

देहरादून 21 मई। पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी की पुस्तक का विमोचन करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि एक वर्दीधारी अधिकारी जब एक प्रेम कथा लिखते हैं, तो इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इनके हृदय में किस तरह के भाव होंगे। कहा कि उपन्यास के माध्यम से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने का सराहनीय प्रयास किया गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को सर्वे चौक स्थित आईआरडीटी सभागार में आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी द्वारा लिखित उपन्यास ‘भंवर एक प्रेम कहानी’ का विमोचन किया। अनिल रतूड़ी द्वारा लिखित 350 पृष्ठों का यह उपन्यास विनसर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया हैै।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उपन्यास के लेखक अनिल रतूड़ी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि एक वर्दीधारी अधिकारी जब एक प्रेम कथा लिखते हैं, तो इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इनके हृदय में किस तरह के भाव होंगे। इस उपन्यास में उन्होंने अपने जीवन में घटित सभी संस्मरणों एवं अनुभूतियों का वर्णन किया है।

अपने कार्यों के साथ उन्होंने जिस तरह अपनी साहित्यिक अनुभूतियों को बचाकर रखा वह प्रशंसनीय है। मुख्यमंत्री ने कहा की इस उपन्यास के माध्यम से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने का सराहनीय प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य तब ज्यादा अच्छा होता है, जब हम उस कार्य को करने के लिए स्वतंत्र हों।

कार्य की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है कि कोई भी व्यक्ति सुविधा का दास न बने। मुख्यमंत्री ने “भंवर एक प्रेम कहानी” उपन्यास के कुछ मुख्य अंशों का जिक्र भी किया।

BHANWAR COMES INTO EVERYONES LIFE SAYS PUSHKAR SINGH DHAMI ON BHANVAR EK PREM KAHANI NOVEL
Uttarakhand: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बोले- ‘मैं अब भी भंवर में फंसा हुआ हूं’, जानेंं पुस्तक विमोचन में मुख्यमंत्री के स्वत: स्फूर्त उद्गार

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चंपावत उपचुनाव में मैदान में है

Pushkar Singh Dhami: उत्तराखंड की चंपावत विधानसभा उपचुनाव के लिए 31 मई को मतदान होना है. इस बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में पूर्व प्रदेश पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी की पहली पुस्तक ‘भंवर : एक प्रेम कहानी’ का विमोचन करते हुए कहा कि मैं अब भी भंवर में ही फंसा हुआ हूं.
चंपावत में 31 मई को होने वाले विधानसभा उपचुनाव से पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को कहा कि वह अब भी भंवर में फंसे हुए हैं. उन्‍होंने देहरादून में पूर्व प्रदेश पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी की पहली पुस्तक ‘भंवर : एक प्रेम कहानी’ का विमोचन करते हुए कहा कि भंवर हम सबके जीवन में आता है. मैं कुछ दिन पहले भंवर में फंसा था और अब भी भंवर में ही फंसा हुआ हूं. धामी के यह कहते ही पूरा सभागार ठहाकों से गूंज उठा.

हालांकि मुख्यमंत्री पुष्‍कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव का जिक्र नहीं किया, जहां से वह विधायक बनने की दौड़ में शामिल हैं. मालूम हो कि फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत की दहलीज तक पहुंचाने वाले धामी खुद खटीमा सीट से हार गए थे.

‘उत्तराखंड फिर मांगे, मोदी-धामी की सरकार’

बहरहाल, ‘उत्तराखंड फिर मांगे, मोदी-धामी की सरकार’ के नारे पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने धामी पर एक बार फिर भरोसा जताते हुए मुख्यमंत्री पद की बागडोर उन्हें ही सौंपी. जबकि संवैधानिक बाध्यता के चलते उनको शपथ ग्रहण के छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना है. धामी ने 23 मार्च को दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. वहीं, उपचुनाव का मार्ग प्रशस्त करने के लिए चंपावत से भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने इस्तीफा दे दिया था.

‘भंवर : एक प्रेम कहानी’

धामी ने कहा कि एक वर्दीधारी अफसर जब प्रेमकथा लिखता है तो उसके हृदय में किस प्रकार की भावनाएं होंगी, यह रतूड़ी की पुस्तक में दिखता है. इस संबंध में मुख्यमंत्री ने प्रदेश के अपर मुख्य सचिव पद पर तैनात उनकी आईएएस पत्नी राधा रतूड़ी का भी जिक्र किया और कहा, ‘जहां राधा होंगी, वहां प्रेम तो होगा ही.’

धामी ने कहा कि पूर्व पुलिस अधिकारी ने अपनी पुस्तक में बचपन से लेकर अब तक के जीवन के अनुभवों और घटनाओं के बारे में लिखा है. साहित्य में अपनी दिलचस्पी का जिक्र करते हुए धामी ने कहा कि वह समझ सकते हैं कि काम और दायित्व के दबाव के बीच अपनी साहित्यिक अनुभूतियों और खुद को बचाकर रखना कितना कठिन है, लेकिन अच्छी बात यह है कि रतूड़ी एक अच्छे इंसान बने हुए हैं. विमोचन कार्यक्रम में मौजूद साहित्यकारों ने भी पुस्तक की प्रशंसा करते हुए इस बात का विशेष जिक्र किया कि रतूड़ी उस श्रेणी में आते हैं, जिनमें शामिल लेखकों ने अंग्रेजी माध्यम का छात्र होने के बावजूद साहित्य सृजन के लिए अपनी मातृभाषा हिंदी को चुना.

वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने लेखक की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पुस्तक के नायक को आईएएस अधिकारी के पात्र में पेश किया है, जो ईमानदारी से अपने कतर्व्यों के निर्वहन के दौरान सरकारी तंत्र से जूझता है.

पूर्व मुख्य सचिव नृप सिंह नपलच्याल, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉक्टर सुधा रानी पांडे एवं ललित मोहन रयाल ने उपन्यास ” भंवर एक प्रेम कहानी” की विस्तार से समीक्षा की।

पुस्तक समीक्षा – भंवर: एक प्रेम कहानी
Book Review Bhanwar ek Prem Kahani

भंवर: एक प्रेम कहानी- अनिल रतूड़ी का हाल ही में प्रकाशित उपन्यास है. उपन्यास में लेखक ने लोक-जीवन से भरपूर जितने चित्र और चरित्र उकेरे हैं, कुदरत के चित्र उससे कहीं कमतर नहीं दिखते. लेखक को जहां भी मौका मिला, कुदरत को शब्दचित्र देने में उन्होंने कंजूसी नहीं की. फलस्वरूप रचना में प्रकृति अपने पूरे साज-सिंगार के साथ आई है. स्त्री-पात्रों की जहां भी एंट्री होती है, उनके पहनावे और भंगिमा पर लेखक की खास नजर रहती है. कहा जाता है कि मानव शरीर से सबसे ज्यादा ऊर्जा आंखों से नि:सृत होती है. पात्रों के मनोभाव व्यक्त करने के लिए आंखों के रंग, आकार-प्रकार पर लेखक की विशेष दृष्टि रहती है. (Book Review Bhanwar ek Prem Kahani)

दरअसल लेखक विलियम वर्ड्सवर्थ से खासे प्रभावित दिखते हैं. चाहे बोर्डिंग स्कूल का अनुभव रहा हो या ननिहाल का अनुभव, कुदरत को उन्होंने अपने पूरे ऐश्वर्य के साथ देखा था. प्रकृति से ऐसा संवाद, जो मनुष्य के मूल चरित्र को उन्नत बनाने में बेहतर भूमिका निभाता हो, वर्ड्सवर्थ की रचनाओं में बारंबार अभिव्यक्त होता है.

340 सफों में फैले इस उपन्यास को लेखक ने फ्लैशबैक में लिखा है. बृहद् जीवनानुभवों को समेटने के लिए उन्होंने पर्वत, धारा और मेघ नाम से तीन रूपकों का इस्तेमाल किया है. पहले भाग में हरियाली, झरने और पहाड़ी शैली में बने मकान हैं. ननिहाल के बहाने पर्वतीय संस्कृति का भरपूर चित्रण है. दूसरे भाग में लखनऊ-दिल्ली जैसे शहरों का सरसरी चित्रण है, यारी-दोस्ती के किस्से हैं. कोई नायक का मनीऑर्डर छुड़वाकर उनका विश्वासभंग करता है तो कोई स्पर्धा में ऐन मौके पर स्वार्थी बन जाता है. इतना ही नहीं सिनेमा, साहित्य, शास्त्रीय संगीत जैसी कलाएं भी विस्तार से आई हैं.

स्थान-स्थान पर न्यूज़ हेडलाइंस से समयकाल का बोध होता रहता है कि यह किस समय-विशेष की घटना है. खास बात यह है कि न्यूज़ हेडलाइंस राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम और खेल-खिलाड़ियों से ज्यादा ताल्लुक रखती हैं. इसका एक विश्लेषण यह दर्शाता है कि दुनिया भर में घट रही घटनाओं के प्रति लेखक जितना सचेत रहा है, खेल और खेल-भावना के प्रति उसकी स्पिरिट दीवानगी की हद तक रही होगी.

इस आत्मकथात्मक उपन्यास में निर्माण कार्यों की हल्की गुणवत्ता, मीडिया-राजनीति-अफसरी का गठजोड़ एक भ्रष्ट व्यवस्था की ओर संकेत करता है. जहां एक ओर उन्होंने ऐसे लोग देखे, जो धन, वैभव, यश, प्रसिद्धि को किसी भी कीमत पर पाना चाहते हैं तो दूसरी ओर गिने-चुने ही सही, ऐसे भी लोग देखे, जो बुद्धि से अधिक महत्त्व विवेक को देते हैं. लेखक की मान्यता है कि ओहदा हमें साधारण मनुष्य से भिन्न नहीं बनाता वरन् ज्यादा जिम्मेदारी देता है. लेखक के मुताबिक अच्छे, व्यावहारिक और लचीले अफसरों में से लचीले, व्यवस्था की धुरी में बने रहते हैं, व्यावहारिक बीच में आ जाते हैं और अच्छे, प्रायः बाहर की तरफ, चक्के की सरहद पर निर्वासित से रहते हैं.

मंडल कमीशन और उसके बाद की घटनाएं, लॉ एंड ऑर्डर ड्यूटी मेंं नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता लेखक के वास्तविक स्वरूप को सामने ले आती हैं. नए भारत के निर्माण को लेकर लेखक पर्याप्त आशावादी हैं. आर्थिक सुधारों के फलस्वरुप उन्होंने आमजन की कमीज का कॉलर पलटने की आदत के बजाय उसकी नई कमीज खरीदने की क्रयशक्ति भी देखी.

मां-बाप से दूर बोर्डिंग हाउस में एक बच्चा, पिता की इच्छापूर्ति के लिए चकाचौंध भरी दिल्ली यूनिवर्सिटी में खुद को निखारता नौजवान किस तरह स्वयं को जीवन-संघर्ष में झोंक देता है, इस रचना में उसके सिलसिलेवार ब्यौरे आते हैं. अभय के नियति-चक्र को लेखक ने गहन सूझबूझ और पैनी दृष्टि से उकेरा है. स्मृति का अपना महत्त्व होता है. स्मृतियां भी कैसी, भावनाओं से भरपूर, जिनमें दु:ख है, दर्द है, सही-सही करने और देखने की भारी छटपटाहट है.

जन्मदिन पर चार्ल्स डिकेंस की ‘डेविड कॉपरफील्ड’ देने वाले पिता, जो बेटे में संभावनाएं ही देख सके और सफलता देखने के लिए जीवित नहीं रहे, को खोने का दु:ख नायक को निरंतर सालता रहता है.

टी एस इलियट के वेस्टलैंड और प्राच्य साहित्य के प्रति आकर्षण लेखक के प्रगाढ़ चिंतन को दर्शाता है. स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो इस कहानी में लेखक खुद उपस्थित हैं और जो कुछ रचा-बुना गया है, ये उनकी स्वयं की चित्तवृत्तियां हैं. जीवन की जटिलताओं को समेटे परिवार की स्मृतियां है, प्रेम है, व्यथा है. सजग दृष्टि से देखें तो इसमें लेखक के जीवन को खोजा जा सकता है. उन्होंने अतीत के अनुभवों और उनसे जुड़ी स्मृतियों को शब्द दिए हैं. कथाक्रम को रोचक बनाए रखने के लिए भरपूर लेखकीय आजादी ली है

उपन्यास को पढ़ना पीछे मुड़कर देखना है जिसमें इंसान आत्मविश्लेषण, आत्मनिरीक्षण कर बेबाकी से वह सब कुछ कह डालता है जो उन्होंने अनुभव किया. कुछ वास्तविकताओं, कुछ आकांक्षाओं को इस रचना में अंतर्वस्तु के रूप में मुखरता से चित्रित किया गया है. आखिर में जो साढ़े चार पेजी कविता है, वो इस उपन्यास का सार है.

लेखक की सोच की भावभूमि पाठक को आसानी से वहां तक पहुंचा देती है, जहां तक पहुंचाना उनका उद्देश्य रहा है. इस रचना में आपको संस्मरण, डायरी और जीवनी जैसी विधाओं का एकमुश्त आस्वादन मिलेगा. आखिर में वे लेखन-अनुभव पर भी बेबाकी से विचार रखते हैं— बरसोंबरस के चिंतन को वे दिमागी बोझ सा अनुभव करते रहे लेकिन जैसे ही उसे कागज पर उकेरा आश्चर्यजनक रूप से हल्कापन सा महसूस किया. पश्चिम और पूर्व की सभ्यताओं से अच्छाई सीखकर समग्र मानव बनना उनका अभीष्ट परिलक्षित होता है.

 

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं.

 

“भंवर एक प्रेम कहानी” उपन्यास के विमोचन के अवसर पर साहित्यकार एवं कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, उपन्यास के लेखक अनिल रतूड़ी, मुख्य सचिव डॉक्टर एस.एस संधू, पूर्व मुख्य सचिव श्री एस रामास्वामी, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार, साहित्यकार डॉक्टर राम विनय सिंह मौजूद थे।

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