प्रवास की सबसे बड़ी सफलता:भारत अमेरिका का स्वाभाविक साझीदार है,सहयोगी नहीं
Modi Visit Means For India America Ties Russia Ukraine War China Aggression
Swaminomics: अमेरिका बॉस नहीं दोस्त है… पीएम मोदी के US दौरे की सबसे बड़ी सफलता क्या है?
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे को लेकर काफी चर्चा हो रही है। मोदी की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों में महत्वपूर्ण समझौते भी हुए। दुनिया के सबसे घातक ड्रोन, जेट इंजन डील फाइनल हुई। इन सबके बीच एक सवाल यह भी है कि अमेरिका जिन विषयों पर भारत का साथ चाहता है उस पर साथ मिला नहीं।
हाइलाइट्स
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे से भारत को क्या हासिल हुआ? चर्चा अब भी जारी
विदेश नीति क्या है, एस जयशंकर की बातों से आसानी से समझा जा सकता है
भारत नहीं चाहता कि कोई उस पर हावी हो, उसकी प्राथमिकत सबसे पहले
नई दिल्ली 25 जून: प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे से भारत को क्या हासिल हुआ? इसकी चर्चा देश और दुनिया में हो रही है। भारत-अमेरिका के संबंधों को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक सहयोगी हैं। नरेंद्र मोदी ने उस भावना को दोहराया है। फिर भी यदि बारीकी से देखा जाए तो कई सवाल भी हैं। यदि भारत अमेरिका का सहयोगी होता तो वह यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करता। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। भारत अमेरिका का सहयोगी होता तो रूस को कमजोर करने में उसकी मदद करता न ही उसके बदले रिकॉर्ड मात्रा में रूसी तेल खरीदा। वहीं अमेरिकी खुफिया विभाग का कहना है कि चीन 2027 तक ताइवान पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है। अमेरिका ने ताइवान की रक्षा करने का वादा किया है। क्या भारत ऐसे किसी अभ्यास में अमेरिका का सहयोगी होगा। शायद नहीं। भारत अपनी समस्या का हल करने को प्राथमिकता दे रहा और विदेश नीति क्या है इसको एस जयशंकर की बातों से आसानी से समझा जा सकता है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में भारत की विदेश नीति का खुलासा किया। भारत की किसी एक राजनीतिक धुरी से जुड़े रहने की कोई दिलचस्पी नहीं है। प्रत्येक के साथ सामान्य हित के मामलों पर साझेदारी चाहता है। भारत नाटो या यूरोपीय संघ जैसा गठबंधन नहीं चाहता है। अलग-अलग मंचों पर अलग-अलग साझेदारी है। चीन को घेरने के लिए भारत क्वाड में शामिल हो गया है, फिर भी शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स समूह में चीन के साथ है। भारत बाइडेन के इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढांचे (IPEF) के कुछ हिस्से में शामिल होने से खुश है लेकिन ट्रेड पिलर से बचता है। कुछ आलोचक इसे उलझी हुई सोच कहते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं।
इस वक्त दुनिया में कई पावर सेंटर हैं और भारत का स्टैंड क्लियर है। आने वाले वक्त में वह अपनी एक अलग भूमिका में खुद को देखना चाहता है। मोदी के दौरे से भारत-अमेरिका रक्षा संबंध निश्चित ही मजबूत होंगे। जेट इंजन का प्रोडक्शन दोनों देश मिलकर करेंगे यह इस दौरे की सफलता को दिखाता है। वहीं भारत का रूसी उपकरण खरीदने पर भी जोर है। सबसे ऊपर एस-400 एंटी-मिसाइल सिस्टम, भले ही इसको लेकर अमेरिका की आपत्ति रही हो और प्रतिबंध का खतरा भी। भारत ने कांग्रेस शासन के दशकों तक अमेरिकी सैन्य उपकरणों से परहेज किया क्योंकि यहां अमेरिका को लेकर विश्वास की कमी थी। मोदी अमेरिका के साथ और अधिक गहरी रक्षा साझेदारी करने के इच्छुक हैं। अमेरिका की ओर से भी पॉजिटिव संकेत हैं।
भारत नहीं चाहता कि कोई उस पर हावी हो। अमेरिका के साथ ही रूस, फ्रांस और इजराइल जैसे दूसरे देश उसके लिए महत्वपूर्ण बने रहेंगे। क्रय शक्ति के मामले में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी जीडीपी है और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। इसलिए, अमेरिका भारत में व्यापार और निवेश की बड़ी संभावनाएं देखता है। भारतीय प्रवासी अमेरिकी राजनीति और व्यापार में शीर्ष स्थान पर हैं। इन वजहों ने आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में मदद की है।
भारतीय अर्थव्यवस्था और सेना जितनी मजबूत होगी, चीन को रोकने में उतनी ही अधिक मदद मिलेगी। अमेरिका भारत को मजबूत करने में मदद करने को तैयार है, भले ही दोनों यूक्रेन, नागरिक स्वतंत्रता या किसी अन्य मुद्दे पर असहमत हो। एक पुरानी कहावत है कि किसी देश का कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता, केवल स्थायी हित होते हैं। अमेरिका के साथ रिश्ता कभी भी गठबंधन के स्तर तक नहीं पहुंच पाएगा। हम स्वाभाविक साझेदार हैं लेकिन स्वाभाविक सहयोगी नहीं।
( टाइम्स ऑफ इंडिया में 25 जून 2023 को स्वामीनाथन एस. अलंकेसरिया अय्यर के नियमित कॉलम स्वामीनॉमिक्स का हिंदी अनुवाद)