उ. प्र. निकाय चुनाव में भाजपा का 391 मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव
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UP Nikay Chunav 2023: लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का बड़ा खेल, यूपी में किस तरफ जाएगा मुस्लिम वोट बैंक?
राहुल पराशर
लखनऊ 05 मई। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से विशेष रूप से प्रयास किया जा रहा है। हर कोई अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश में लगे हैं। परंपरागत वोट बैंक के अलावा विपक्षी दलों के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश है। ऐसे में भाजपा की रणनीति ने हर किसी को हैरान किया है।
हाइलाइट्स
1-उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने 391 मुसलमान उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा
2-दो चरणों में 4 और 11 मई को उत्तर प्रदेश में होने वाले हैं नगर निकाय चुनाव के मतदान
3-भाजपा ने सबसे अधिक मेरठ में दिया मुस्लिमों को टिकट, अलीगढ़ दूसरे नंबर पर
4-अयोध्या नगर निगम में भाजपा से किसी मुस्लिम को नहीं मिली उम्मीदवारी
लखनऊ 05 मई। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव 2023 के बीच से राज्य में लोकसभा चुनाव 2023 की राह निकलती दिख रही है। लोकसभा चुनाव में समीकरण को साधने और नए समीकरण को गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है। सबसे अधिक प्रयोग भारतीय जनता पार्टी की ओर से हो रहा है। पार्टी को परंपरागत वोट बैंक में कुछ बिखराव की आशंका है। ऐसे में नए वोट बैंक को जोड़कर एक अलग समीकरण को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 में एक अलग समीकरण बनाया। पार्टी ने सवर्ण और गैर यादव ओबीसी वर्ग को एक साथ लाकर एक ऐसा समीकरण बनाया जो करीब एक दशक से यूपी में अभेद्य बना हुआ है। हालांकि, उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 के रिजल्ट के बाद से कुछ चीजें सामने आई हैं। इसने उत्तर प्रदेश में भाजपा की रणनीति को बदलने में कदम उठाया है। जाट और ओबीसी वोट बैंक के बिखराव का असर भाजपा को झेलना पड़ा है। ऐसे में पार्टी एंटी इनकंबैंसी जैसे किसी भी फैक्टर से निपटने के लिए उन वोट बैंक को टारगेट कर रही है, जो अब तक पार्टी से अछूते रहे हैं। मुस्लिम वोट बैंक पर नजर इसी कारण है। पसमांदा का मुद्दा छेड़कर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अलग ही हलचल भाजपा पैदा करती दिख रही है।
निकाय चुनाव का रण या टेस्टिंग लैब
भाजपा ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में अपनी रणनीति में बदलाव किया है। वर्ष 2014 के बाद से भाजपा ने में होने वाले चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान से उतारने से बचती रही है। लेकिन, ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारों के साथ आगे बढ़ती भाजपा ने अब इस वर्ग में अपना विश्वास जताया है। नगर निकाय चुनाव में विभिन्न पदों पर 391 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। निकाय चुनाव में भाजपा की इस रणनीति पर अब राजनीतिक विश्लेषकों की पैनी नजर है। इसे लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, प्रदेश के 760 नगरीय निकायों में 14,864 पदों के लिए 4 और 11 मई को दो चरणों में वोट डाले जाएंगे। 13 मई को नगर निकाय चुनाव का रिजल्ट आएगा।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी सबसे बड़ा मुकाबला माना जा रहा है। इसको लेकर तमाम राजनीतिक दल जोर-आजमाइश करते दिख रहे हैं। भाजपा ने भी अपनी साख को दांव पर लगाया। नगरपालिका परिषद और नगर पंचायत अध्यक्ष, वार्ड पार्षद से लेकर नगर निगम के वार्ड सदस्य तक के लिए 391 उम्मीदवार इसकी पुष्टि करते हैं।
मुस्लिम वोट बैंक को साधने की है भाजपा की रणनीति
उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगम समेत 760 निकाय में चुनाव
उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगम समेत 760 निकायों में चुनाव हो रहे हैं। 17 नगर निगम में मेयर और 199 नगरपालिका परिषद एवं 544 नगर पंचायतों में चेयरमैन का चुनाव होना है। इनके अलावा 17 नगर निगम में 1420 नगरसेवक, नगर पंचायतों के 5327 सदस्य और नगर पालिका परिषद के 7177 वार्ड सदस्य चुनाव में चुने जाएंगे। भाजपा की ओर से दिए गए मुस्लिम उम्मीदवारों में महिलाओं की भी अच्छी संख्या है। तीन तलाक जैसे मुद्दों के जरिए भाजपा ने इस वर्ग में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है। भाजपा के कुल 391 मुस्लिम उम्मीदवारों में से 351 नगरपालिका वार्डों के पार्षद पद के प्रत्याशी हैं। इनके अलावा 35 नगर पंचायत और पांच नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष पद के लिए भी मुस्लिम उम्मीदवार दिए गए हैं।
हालांकि, 17 नगर निगम में से किसी पर भी भाजपा ने मेयर पद के लिए मुस्लिम उम्मीदवार नहीं हैं। भाजपा नेता का दावा है कि पार्टी ने शिया और सुन्नी दोनों वर्गों से 90 फीसदी पसमांदा मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। पार्टी नेता ने कहा कि 2017 के निकाय चुनावों में कुछ ही सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा गया था। कई सीटें ऐसी थी, जहां पार्टी ने एक भी उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं उतारा था।
भाजपा ने नगर निकाय चुनाव में उतारा है बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार
अयोध्या में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं
प्रदेश के 17 नगर निगम में से अयोध्या नगर निगम एक मात्र ऐसा निकाय है, जहां भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा। किसी भी वार्ड में मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया गया है। नगर निगम के वार्ड सदस्यों में सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवार दिए जाने के मामले में मेरठ सबसे आगे है। यहां पार्टी ने 21 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। वहीं, अलीगढ़ में 17, सहारनपुर में 13, कानपुर में 11, बरेली में 5, मुरादाबाद में 8, गाजियाबाद में 4, प्रयागराज एवं वाराणसी में 3-3, लखनऊ में 2 और गोरखपुर, झांसी, आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा-वृंदावन एवं शाहजहांपुर में एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा है।
रामपुर में मुस्लिम कैंडिडेट
टांडा और रामपुर की नगर पालिका परिषदों के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी ने दो महिला उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। जिले की स्वार सीट से अपना दल (एस) ने एक महिला उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया है। भाजपा ने बदायूं जिले के ककराला, आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर और बिजनौर जिले के अफजलगढ़ की नगरपालिका परिषद से मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतार दिया है। नगर पंचायत अध्यक्ष पद को अधिकतर मुस्लिम उम्मीदवार मेरठ, बागपत, अमरोहा, मुरादाबाद, बदायूं, रामपुर और बरेली जिलों से हैं। इन इलाकों में मुस्लिम आबादी को ध्यान में रखते हुए पार्टी की ओर यह निर्णय लिया गया।
भाजपा का दावा, मुसलमानों में बढ़ा पार्टी के प्रति भरोसा
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली कहते हैं कि पहले मुस्लिम समुदाय की ओर से टिकट की ही मांग नहीं होती थी। अब मांग हुई तो टिकट दिया गया है। उन्होंने दावा किया कि यह बदलाव मुसलमानों में भाजपा के प्रति बढ़ते भरोसे का परिचायक है। बासित कहते हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भेदभाव के बिना कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मुसलमानों के बीच पहुंचाया। इस कारण भरोसा बढ़ा है। पार्टी के एक नेता का कहना है कि मुस्लिम उम्मीदवारों को इस समुदाय के प्रभाव वाली सीटों पर टिकट दिया गया। मतदान के दिन जो प्रतिक्रिया आएगी, उससे लोगों तक पहुंच का अंदाजा मिल सकेगा। पिछले दिनों भाजपा ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति डॉक्टर तारिक मंसूर को एमएलसी बनाकर एक बड़ा संदेश दिया। भाजपा के अब विधान परिषद में 4 मुसलमान सदस्य हैं।
मायावती ने मुस्लिम वोट बैंक को साधने की बनाई अलग रणनीति
सपा-बसपा और कांग्रेस की अपनी रणनीति
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के जरिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस भी मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती दिख रही है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार इस वर्ग को साधने की कोशिश करते दिख रहे हैं। वहीं, कांग्रेस भी इस वर्ग में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में है। हालांकि, मायावती इस रेस में आगे निकलती दिख रही हैं। बसपा ने नगर निकाय चुनाव में बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। राज्य के 17 नगर निगमों में से 11 में मेयर पद के लिए मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं। नगर परिषद और नगर पंचायतों में इस वर्ग को बड़ा प्रतिनिधित्व दिया गया है। मायावती की कोशिश समाजवादी पार्टी के माय (मुस्लिम + यादव) समीकरण को तोड़ने का है। यह चुनाव इन तीनों दलों के आधार वोट बैंक की स्थिति और मुस्लिम वोट बैंक के झुकाव को लेकर बड़ा संदेश देने वाला होगा।