शासन में चार और कोष में सात गुणा भाजपा का मुकाबला कैसे करेगी कांग्रेस?
Bjp Has 4 Times More States While 7 Times More Fund How Congress Will Compete In Lok Sabha Election 2024
कांग्रेस से 4 गुना राज्यों में भाजपा की सरकारें, 7 गुना ज्यादा फंड; 2024 में कैसे होगा मुकाबला
कांग्रेस पार्टी का मनोबल तीन राज्यों का चुनाव हारने के बाद धरातल पर है जबकि भाजपा बमबम है। चुनावों में संसाधन और सत्ता की भी काफी भूमिका होती है, इस दृष्टि से दोनों पार्टियों का हिसाब-किताब देखना भी जरूरी है। इन दोनों मोर्चों पर कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा से बहुत पीछे है।
मुख्य बिंदु
कांग्रेस पार्टी तीन राज्यों की सरकार गंवाकर और भी कमजोर हो गई है
भाजपा से मुकाबले को संसाधन के मामले में भी कांग्रेस बहुत कमजोर
लोकसभा चुनावों से पहले दोनों दलों की स्थिति का यह आकलन भी जरूरी
नई दिल्ली 19 दिसंबर: लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं। भाजपा जीत की हैट्रिक लगाने की जुगत में है तो कांग्रेस चुनावी लड़ाई को पूरी ताकत से परिणाम तक पहुंचाने की रणनीति बना रही है। इस बीच कुछ आंकड़े बता रहे हैं कि भाजपा और कांग्रेस में कई बड़े अंतर हैं जिनका लोकसभा चुनावों पर गहरा असर पड़ सकता है। चुनावों पर नजर रखने वाली संस्था द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस न केवल सत्ता और लोकप्रियता बल्कि संपत्ति और संसाधनों में भी भाजपा से बहुत ज्यादा पीछे है। वहीं, कांग्रेस ने हाल ही में तीन राज्यों की सत्ता भी खो दी है जबकि भाजपा ने अपने शासन वाले राज्यों की संख्या बढ़ा ली है।
फंड में भाजपा से काफी पीछे कांग्रेस
पहले बात एडीआर रिपोर्ट की। वित्त वर्ष 2020-21 में भाजपा की कुल संपत्ति 4990.195 करोड़ रुपये थी जो अगले वित्त वर्ष 2021-22 में 21.17% बढ़कर 6046.81 करोड़ हो गई। वहीं कांग्रेस की संपत्ति वित्त वर्ष 2020-21 में 691.11 करोड़ रुपये थी जो अगले वित्त वर्ष 2021-22 में 16.58% ही बढ़ी। अब उसके पास कुल 805.68 करोड़ की संपत्ति है। एडीआर रिपोर्ट में है कि वित्त वर्ष 2021-22 में सबसे अधिक कांग्रेस ने 41.95 करोड़ की देनदारी घोषित की है जबकि भाजपा पर सिर्फ 5.17 करोड़ का देनदारी है। इस तरह, वित्त वर्ष 2021-22 में भाजपा के पास कुल 6041.64 करोड़ रुपये जबकि कांग्रेस के पास 763.73 करोड़ की पूंजी होने का आधिकारिक आंकड़ा है। यानी भाजपा पूंजी के मामले में कांग्रेस से करीब 7 गुना आगे है।
सत्ता की हिस्सेदारी में भी बहुत पीछे
यूं तो पिछले दो लोकसभा चुनावों से खासा स्पष्ट हो गया कि मतदाता विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अलग-अलग कसौटियों पर मतदान करते हैं। राज्यों के चुनावों में जहां स्थानीय मुद्दों पर वोट होता है तो सामान्य राष्ट्रीय चुनाव में राष्ट्रीय विषय रहते हैं। इसी से जिन राज्यों में मतदाताओं ने कांग्रेस को शासन की बागडोर सौंपी,उन्हीं राज्यों के वोटर लोकसभा चुनावों में भाजपा के साथ चले गए। फिर भी अगर मान लें कि राज्य में सरकार होने का लोकसभा चुनावों पर तनिक भी असर तो होता ही होगा,तो इस मामले में भी कांग्रेस पार्टी भाजपा से कोसों पीछे है। भाजपा अभी अपने दम पर 11 राज्यों में सरकार चला रही है जबकि 12वें प्रदेश हरियाणा में उसकी गठबंधन सरकार है लेकिन मुख्यमंत्री पद उसी के हिस्से है। वहीं, चार अन्य राज्यों में भाजपा सरकार में शामिल है। दूसरी तरफ कांग्रेस के सिर्फ तीन राज्यों में अपने मुख्यमंत्री हैं जबकि तीन अन्य राज्यों की सरकार में वो गठबंधन साथी के रूप में शामिल है।
मनोबल भी मायने रखता है
इन सबके बीच यह जिक्र करना भी प्रासंगिक होगा कि हालिया चुनाव में तीन राज्यों की सत्ता पर काबिज होकर भाजपा का मनोबल सातवें आसमान पर है तो लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी को बड़ी निराशा हाथ लगी है। भाजपा ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों को धराशायी कर दिया और सत्ता अपने हाथ में ले ली। वहीं, मध्य प्रदेश की अपनी सरकार बचाने में भी कामयाब रही। कांग्रेस को दक्षिण के राज्य तेलंगाना में जीत जरूर मिली, लेकिन उत्तर के इन तीन राज्यों में मिली बड़ी हार ने उसका रंग फीका कर दिया। विधानसभा चुनावों के लिए 3 दिसंबर को आए नतीजों ने लोकसभा चुनावों के लिए फिलहाल माहौल तैयार कर दिया। स्वाभाविक तौर पर भाजपा तने सीने के साथ आगे बढ़ रही है तो कांग्रेस को संभल कर आगे बढ़ना हैं।
Despite Getting Three Times More Votes In Mizoram, Congress Remained Half Of Bjp! A Tremendous Game Of Statistics In Other States Too
मिजोरम में तीन गुना ज्यादा वोट लाकर भी भाजपा से आधी रही कांग्रेस! बाकी राज्यों में भी आंकड़ों का जबर्दस्त खेल
मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव परिणाम आने विश्लेषणों से पता चलता है कि चुनावों में गणित नहीं, कैमिस्ट्री काम करती है। मिजोरम में भाजपा के मुकाबले तीन गुना से ज्यादा वोट पाकर भी आधी सीट ही जीत सकी।
मुख्य बिंदु
विपक्षी दलों ने वोटों को जोड़ने के लिए इंडिया के नाम से गठबंधन बनाया
हालांकि चुनाव दर चुनाव साबित हुए कि वोटों का गणित काम नहीं आता
मिजोरम में कांग्रेस को तीन गुना वोट मिले जबकि भाजपा को दोगुनी सीटें
क्या प्रमुख दलों को एक प्लैटफॉर्म पर लाकर विपक्ष 2024 के अगले लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पछाड़ सकता है? क्या मोदी लहर पर सवार भाजपा अगले चुनावों में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की एकजुटता को भी ध्वस्त कर देगी? एक तरफ विरोधी दल पिछले चुनावों में भाजपा विरोधी वोटों को जोड़कर जीत की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा को उम्मीद है कि मतदाता फिर से उसका ही साथ देंगे। इस बीच चुनावी पंडितों की मिली-जुली राय सामने आती रहती है। अक्सर कहा जाता है कि चुनावी गणित दो जमा दो बराबर चार के मान्य सूत्र पर नहीं चलता है। इसका समीकरण कब, किस आधार पर बदल जाए, कहना मुश्किल है। यानी कोई जरूरी नहीं कि पार्टियों का गठबंधन बन जाने से उनके सारे वोट जुड़ ही जाएं और जुड़ भी जाएं तो वो सीटों में कन्वर्ट हो जाएं।
मिजोरम के आंकड़े हैरान कर रहे
यूं तो विश्लेषणकर्ता अतीत के चुनावों से इसके उदाहरण देते ही रहते हैं, लेकिन बीते 3 दिसंबर को पांच राज्यों के आए चुनाव परिणामों से भी अतरंगी चुनावी समीकरणों की साफ-साफ समझ हो जाती है। सबसे दिलचस्प आंकड़े आए मिजोरम से, जहां कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा वोट पाकर भी उससे आधी सीट ही जीत पाई। वहां कांग्रेस को 20.82% वोट और सिर्फ एक सीट मिली जबकि भाजपा ने मात्र 5.06% वोट पाकर दो सीटों पर कब्जा कर लिया। चुनावों में दो जमा दो बराबर चार का गणित नहीं चलता, इसके उदाहरण बाकी राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी देखने को मिले।
चुनावों में मैथ्स नहीं, कैमिस्ट्री का काम
पिछली बार 2018 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी ऐसे ही आश्चर्यजनक आंकड़े मिले थे। तब भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन सीटें कम। भाजपा ने तब 41% वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस ने 40.9% लेकिन कांग्रेस के खाते में 114 सीटें गई थीं और भाजपा 109 पर सिमट गई थी। यानी यह बात तो सही है कि चुनावों में मैथ्स नहीं, केमिस्ट्री काम आती है।